भारत दुनिया का इकलौता देश होगा जहां के सरकार समर्थित अनेकों दल कोविड19 जैसी महामारी फैलने को मुसलमानों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
फेक न्यूज और प्रपोगंडा मशिनरी के वेब पोर्टल, न्यूज चॅनेल तथा अखबार झुठी खबरों
को चलाकर आए दिन देश के मुसलमानों को निशाना बना रहे हैं। सरकारी यंत्रणाओ के
नाकामी का ठिकरा मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरा प्रचार कर फोडा जा रहा हैं। सोशल
मीडिया के साथ मेनस्ट्रीम कहलाने वाला गोदी मीडिया भी नफरत भरे प्रचारी साहित्य
प्रोड्यूस करने में अग्रणी भूमिका में नजर आता हैं।
मार्च महीने के शुरुआती हफ्ते में ही तबलीग जमात को लेकर नफरत भरा प्रचार आरंभ
किया गया। जिसके बाद देश भर में मुसलमानों के खिलाफ नफरती बर्ताव कि बाढ़ सी आ गई
थी। जो तबलिगी प्रपोगंडा ‘झुठा’ और ‘काल्पनिक’ नरेशन था, यह साबित (कई मीडिया संस्थान ने
इसपर विशेष लेख लिखे हैं) होने के बाद भी अब तक जारी हैं। जिससे देश के हजारों
मुसलमान आहत हुए हैं। इस तरह कि घटनाओं की भारत में बाढ़ सी आ चुकी हैं।
मुसलमानों को ठेले पर सब्जी बेचने से रोकने को लेकर शुरू हुआ यह दुष्प्रचार
मुसलमानों को स्वाथ्य सुविधा देने कि मनाई करता हुआ आर्थिक बहिष्कार तक आ पहुँचा
हैं। आए दिन इस तरह कि खबरे अखबारों और समांतर मीडिया में पढने-सुनने को मिलती हैं।
जिसपर सरकार का कोई नियत्रंण नही हैं।
सामाजिक भेदभाव कि बाढ़
जब भारत में यह अप्रचार चल रहा था, तभी विश्व स्वास्थ्य संघठन ने कोविड को
किसी धर्म विशेष में ना थोंपने कि बिनती की थी। अरब देशों मे इस्लाम के बदनामी को
लेकर भारत क खिलाफ भूचाल आ गया था। गल्फ देशों मे रहकर इस्लाम ओर मुसलमानों को
भला-बुरा कहने वालों के खिलाफ इन देशों ने कार्रवाई शुरु की हैं। जिससे दुनियाभर
में भारत को काफी बदनामी और जिल्लत झेलनी पडी हैं।
अब तो अमरिकी राजनायिक ने भी कहा हैं कि, “वायरस संक्रमण फैलाने का आरोप लगाकर भारत में मुस्लिमों पर हमले किए जा रहे हैं। कोविड-19 के संबंध में मुसलमानों के खिलाफ बयानबाजी और प्रताड़ना से जुड़ी घटनाए, सोशल मीडिया की गलत जानकारियों और फर्जी खबरों की वजह से बढ़ी हैं।”
इस कडी में 15 मई को अमर उजाला अखबार के पोर्टल पर प्रकाशित एक खबर चिंतनीय बन कर हमे सामने आती हैं। यह समाचार हरयाणा के पावटा के करीब सिरमोर कस्बे से हैं। खबर कहती है, 42 दिन क्वारण्टाइन में गुजारने के बाद सरकारी आदेश पर हरयाणा से उत्तराखंड जा रहे 17 जमातीयों को एक बस चालक ने बीच रास्ते में ही एक सुनसान जंगल में छोड कर भाग गया। जिसके बाद यह लोग पैदल चलकर अपने गंतव्य स्थान तक पहुँच गए।
संबंधित खबर असल रूप से सोशल डिस्टेंन्सिग हैं, जो हमारे समाज में सामाजिक बुराई के तौर पर पनप रही हैं। यह बीजेपी आईटी सेल और गोदी मीडिया कि फैलाई दुर्गंध हैं। जब रोजमर्रा का काम करने वाले आम लोग जब विषैले प्रचार के चपेट में आते हैं तो और भी ज्यादा बुरा लगता हैं।
उन लोगों का दुख महसूस करने कि कोशिश करीये जो 42 दिन क्वारण्टाइन नामक यातना शिविर मे गुजारकर अपने घर निकले थें। उन्हे बीच जंगल मे छोडकर ड्राइवर फरार हो जाता हैं। क्या यह लोग इन्सान नही हैं। यह लोग कोरोना के मौत मुँह से तो बच गए मगर इनकी असल लडाई तो अब शुरू होनी है। घर जाकर भी यह लोग सुरक्षित नही रहेगे, क्योंकि इन्हें समाज के भेदभाव का शिकार होना पडेंगा। क्या यह लोग वाकई में गुनहगार हैं, क्या विदेश से बिमारी यह लोग लेकर आए थें?धार्मिक मेले, गुरुद्वारे, वैष्णोदेवी, भजन कीर्तन, तेहरवी, प्रवचने, पाठ, जन्मदिन, सरकार स्थापना का जश्न, जैन मुनी का स्वागत इन जैसे अन्य गैर इस्लामी कार्यक्रमों में हजारों कि भीड इकठ्ठा होकर फिजिकल डिस्टेंन्सिग के नियमों का मखौल उडा रही हैं, उसे अनदेखा कर मीडिया और सराकरी तंत्र के लोग तबलीग का राग अलाप कर जली रस्सी पिटे जा रहे हैं। यह खुले तौर पर एक समुदाय विशेष के खिलाफ जफरत का जहर उगलना हैं। जो लोग तबलीग तबलीग चिख कर आम लोगों को गुमराह कर रहे है, उन्हें याद रखना चाहिए कि सच्चाई पता चलने पर क्या अपने आप से आँख मिला पाओगे? याद रहे कि यही जहर एक दिन हम सबको दीमक कि तरब चबाकर समाप्त कर देगा।
विपक्ष पर दोष मढना
अरब देशों के कहासुनी के बाद प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी ने लिन्क्डइन पर ‘Life in the era of COVID-19’ शीर्षक से एक बयान दिया था। जिसमे वह कहते हैं, “कोविड-19 हमला करने के लिए नस्ल, धर्म, रंग, जाति, समुदाय, भाषा या सीमा को नहीं पहचानता। इसलिए हमें इसका सामना करने में एकता और भाईचारे को प्रमुखता देनी होगी।”
हमे यह सोंचना होंगा कि ऐसी सांप्रदायिक घटनाओं से विश्व स्तर पर भारत कि बेदाग छवी पेश हो सकती हैं। क्या मुसलमान औऱ इस्लाम के विरोध मे नफरत का प्रचार कर मोदी विश्वगुरू बन सकते है। इसका उत्तर नही में आएगा।
— न्यूज नजरिया (@newsnajariya) May 17, 2020सांप्रदायिक ताकते और बलवाईयों पर कार्रवाई करने के बजाय सरकार इसे अनदेखा कर रही हैं। देश के अल्पसंख्यक मंत्री श्री. मुख्तार अब्बास नकवी इन घटनाओं को अनदेखा कर इस जहन्नुमी वातावरण को ‘मुसलमानों कि जन्नत’ कहते फिर रहे हैं। श्री. नकवी प्रपोगंडा मशिनरी को रोकने के बजाए विपक्ष पर दोष मढ़ रहे हैं।
असल बात तो यह हैं, कथित रुप से सरकार द्वारा समर्थित यह नफरत कि मशिनरी अब उनके हाथ से निकल चुकी हैं। अपने आकाओं के नियंत्रण से बाहर हुई हैं। यही वजह है कि अपने सांसद तेजस्वी सूर्या के नफरत और द्वेश फैलाने वाले ट्विट्स को हटाने को लेकर सरकार को ट्विटर से बिनती करनी पड रही हैं। इससे स्पष्ट होता हैं कि उनके ही लोग अब बेकाबू हो चुके हैं। विश्व स्तर प्रतिमा मलीन होने के डर से सरकारी मंत्री, प्रधानसेवक और राजनायिकों को तथ्य को छिपाकर बयान देने पड रहे हैं।
प्रधान सेवक के बयान के बाद भी मुसलमानों के खिलाफ नफरत का प्रचार थमा नही हैं। कुछ विशेषज्ञ इसे ‘कहो एक और करो अलग’ कि बीजेपी-आरएसएस की कुटनीति मानते हैं। चाहे कुछ भी हो पर इस नफरत का बाजार भारत में खूब फल-फुल रहा है। जिससे भारत के बहुसांस्कृतिकता और सभ्यता के विरासत को चोट पहुँची हैं।
छह साल पहले का भारत देस ऐसा तो न था। जबसे देश में बीजेपी सत्ता पर असीन हुई तब से भरत के मिली-जुली और एकता वाली परम्परा में सेंध लग गई हैं। हर तरफ नफरत का माहौल पैदा कर लोगों को तोडने का काम जारी हैं। जिसमे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी यंत्रणाए लिप्त पाई जा रही हैं। प्रशासन, न्यायतंत्र, पुलिस मुसलमानों और पिछडों के प्रति सांप्रदायिक बनी नजर आती है। हर तरफ नफरत औऱ जहर का माहौल है। हर तरफ केवल हिन्दू और हिन्दू का हा राग अलापा जा रहा हैं।
छह साल पहले का भारत देस ऐसा तो न था। जबसे देश में बीजेपी सत्ता पर असीन हुई तब से भरत के मिली-जुली और एकता वाली परम्परा में सेंध लग गई हैं। हर तरफ नफरत का माहौल पैदा कर लोगों को तोडने का काम जारी हैं। जिसमे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सरकारी यंत्रणाए लिप्त पाई जा रही हैं। प्रशासन, न्यायतंत्र, पुलिस मुसलमानों और पिछडों के प्रति सांप्रदायिक बनी नजर आती है। हर तरफ नफरत औऱ जहर का माहौल है। हर तरफ केवल हिन्दू और हिन्दू का हा राग अलापा जा रहा हैं।
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रोटी नही टास्क लो !
कोरोना संकट में लाखों मजदूर बेघर हजारों भूखमरी के शिकार हुए हैं। औरते, बच्चे, बुढे और जवान जिन्दगी कि तलाश में बेतहाशा रास्ते पर दौड लगा रहे हैं। ऐसे समय इन्हीं मासूम लोगों द्वारा चुनी गई सरकारे उन्हीं रोटी देने के बजाए मरने के लिए छोड रही हैं। क्या अब हिन्दू खतरे में नही आ रहा हैं। महाराष्ट्र के पालघर(काँग्रेस गठबंधन कि सरकार) में साधूओं कि हत्या होती हैं तो धर्म खतरे मे आता हैं, परंतु उत्तर प्रदेश मं योगी राज (बीजेपी कि सरकार) में आए दिन हिन्दू साधुओं तथा प्रचारको पर हमले हो रहे हैं, उनकी हत्याए हो रही हैं, तब हिन्दू खतरें मे क्यूँ नही आता। तब कोई मीडिया ट्रायल चलाया नही जाता। इस सिलेक्टिव्हिजम को क्या कहेंगे?
कोरोना संकट में बीजेपी सरकार आम लोगों कि जिन्दगी बचाने के बजाय उन्हें थाली पिटना, फुल बरसाना जैसे इव्हेंट और टास्क दे रही रही हैं। चारों ओर मजदूर परेशान हैं और समर्थक ‘सबसे अच्छी सरकार’ कह डिंगे मार रहे हैं। क्या सरकार को जिन्दगी के जंग मे हारते यह आम लोग नजर नही आते?
क्या है आत्मनिर्भर भारत के पाँच पिलर?#atmanirbharbharat#आत्मनिर्भर_भारतhttps://t.co/Jg71mA1Stn— न्यूज नजरिया (@newsnajariya) May 13, 2020
खबरे आ रही है कि इन मजदूरों को उत्तरप्रदेश राज्य में प्रवेश नही दिया जा रहा हैं। बेचारे आम गरीब लोग भूखमरी से बचने के लिए हजारों किलोमीटर पैदल चलकर सुरक्षित अपने घर लौटना चाहते है, पर सराकार उनपर अन्याय और अत्याचार कर रही हैं। श्रमिकों के कानून बदल रही है। बदले कि भावना से नागरिकता कानून और सरकारी नीतियों का विरोध करने वाले अक्टिविस्टों को जेलों में बंद कर रही हैं।
प्रवासी मजदूरों कि मौत
शनिवार 16 मई 2020 को उत्तर प्रदेश के अरैरिया कि एक खबर पढकर लोग सन्न रह गए। एक सडक हादसे में घर के लिए निकले एकसाथ 24 लोग मौत के मुँह मे समा गए हैं। यह प्रसंग रौंगटे खडे कर देनेवाला था। उसी दिन मध्यप्रदेश के सागर जिले के निकट एक साथ छह लोग मर गए। एनडीटीवी के अनुसार, दुर्घटना के बाद घटनास्थल की तस्वीरें हृदयविदारक थीं, जहां मां के शव के पास बच्चे रोते और बिलखते हुए दिखाई दिए।
बीते गुरुवार 14 मई को उत्तर प्रदेश के जालौन और बहराइच में दो अलग-अलग सड़क दुर्घटनाओं में 3 प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई थी, जबकि 71 अन्य घायल हो गए। वहीं, बुधवार और गुरुवार को तीन अलग-अलग हादसों में 15 मजदूरों की मौत हो गई थी। उत्तर प्रदेश के ही मुजफ्फरनगर में बस से कुचलकर 6 प्रवासी मजदूरों की मौत हो गई, जबकि चित्रकूट में ट्रक की टक्कर से एक मजदूर की मौत हो गई। मध्यप्रदेश में बस की टक्कर से ट्रक में सवार आठ प्रवासी श्रमिकों की मौत हो गई। इन हादसों में 60 से अधिक प्रवासी मजदूर घायल हो गए थे।
क्या इन बेजुबान बच्चो, गरीब श्रमिकों, महिलाओं के चिखने, चिल्लाने, बिलखने कि आवाज सरकारों तक नही पहुंचती? बेसहारा, निकाले गए, बेरोजगार, सामान्य लोग जो भूखमरी से बचने के लिए हाजारों किलोमीटर पैदल घर की ओर निकले हैं, इस दृष्य देखकर सरकार कि क्यों संवेदनशील नही होती?
याद रहे कि, इन गरीब और मध्यवर्ग के दम पर ही तुमने अपनी सरकारें बनाई थी। इनके मासूम दिमाग मे ‘हिन्दू खतरे मे हैं’ का मैकेनिज्म फिट कर उनके भावनाओं कि हेराफेरी कि गई। रास्ते पर चलकर दम तोडने वाले को क्या आपके हिन्दू धर्म में कोई स्थान नही है?
दूसरी ओऱ विदेश से हजारों लोग विशेष विमानों द्वारा मुफ्त में भारत लाए जा रहे हैं। जिन लोगों से यह महामारी फैली उनकी लिए सरकार ने पालखी बिछा दी हैं। और जो मजदूर, श्रमिक, गरीब किसान देस में रहकर मेहनत, मजदूरी कर अर्थचक्र मे गती देता हैं, उसे तडपते हुए छोड दिया जा रहा है। क्या यह सरकार का इन्साफ है? यह सरकारों का सामाजिक भेदभाव (सोशल डिस्टेंन्सिग) नही तो क्या हैं।
जाते जाते यह (मराठी) भी पढे :
* मुसलमानांचे राजकीय व सांस्कृतिक आत्मभानवाचनीय
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