प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी के विरोधी उन पर भले ही और कोई आरोप लगा लें, पर उनके बारे में यह तो नहीं ही कहा जा सकता कि वे पूर्व प्रधानमंत्री की तरह 'चुप्पे' हैं. मोदीजी बहुत बोलते हैं और बहुत अच्छा बोलते हैं. ऐसे में जब उस दिन, यानी 18 फरवरी को बहुत-से अखबारों में पहले पन्ने पर इस आशय के शीर्षक दिखे कि 'आखिर प्रधानमंत्री ने चुप्पी तोडी तो थोडा अटपटा-सा लगा था.
शायद चुप्पी तोडने वाली बात पूरी तरह गलत नहीं थी. सचमुच, जिस मुद्दे पर वे बोले उस पर प्रधानमंत्रीजी चुप्पी ही साधे हुए थे. मुद्दा धार्मिक असहिष्णुता और सांप्रदायिक हिंसा का था. पिछले एक अर्से से भाजपा के कुछ लोग और संघ परिवार के कुछ नेता कभी घर वापसी, कभी लव-जिहाद, कभी रामजादे और हरामजादे जैसे जुमले उछालकर देश की धार्मिक बहुलता वाली छवि को मैला कर रहे थे.
संसद के पिछले सत्र में भी यह मुद्दा छाया रहा था. सत्तारूढ पक्ष के लोग तो जरूर बोले, लेकिन मार्के की बात बोलने वाले प्रधानमंत्री आश्चर्यजनक रूप से इस मुद्दे पर चुप ही रहे थे. इस चुप्पी का कुछ नकारात्मक असर दिल्ली में हुए चुनावों पर भी दिखा.
इस बीच राजधानी दिल्ली में गिरजाघरों पर हमले की घटनाएं भी हुई संविधान के आमुख-पृष्ठ वाले सरकारी विज्ञापन में 'पंथ-निरपेक्ष' शब्द न दिखाए जाने का मुद्दा भी उठा. कुल मिलाकर, सांप्रदायिक माहौल तनावपूर्ण होता जा रहा था और इस संदर्भ में सत्तारूढ पक्ष से जुडे तत्वों की मुखरता नकारात्मक असर ही डाल रही थी. फिर, ओबामा भारत की यात्रा पर आए. नई सरकार इस यात्रा का राजनीतिक लाभ उठाने की कोशिश करती, यह स्वाभाविक था. परंतु जाते-जाते ओबामा धार्मिक सहिष्णुता की जो सीख दे गए, वह उल्टी पडी.
यह सब, और ऐसा और भी बहुत कुछ, कुल मिलाकर सरकार की छवि को धुंधला बना रहा था. उस पर, इस संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी से भी तरह-तरह के कयास लगाए जाने लगे थे. आखिर यह चुप्पी टूटी. एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने धार्मिक असहिष्णुता और सांप्रदायिक कट्टरता के खिलाफ बहुत स्पष्ट शब्दों में, बहुत महत्वपूर्ण बात कही.
उन्होंने कहा, ''मेरी सरकार किसी भी धार्मिक समूह को, चाहे वह अल्पसंख्यक वर्ग से जुडा हो या बहुसंख्यक वर्ग से, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी के खिलाफ द्वेष फैलाने की मंजूरी नहीं देगी.'' बुद्ध और गांधी का हवाला देते हुए उन्होंने 'ऐसी हिंसा' की कडी निंदा करते हुए कहा, ''सभी धर्मों के प्रति सम्मान की भावना हर भारतीय के डीएनए में होनी चाहिए.'' उन्होंने चेतावनी दी कि दुनिया एक ऐसे चौराहे पर खडी है, जिसे यदि सही तरीके से पार नहीं किया गया तो हम धर्मांधता, उन्मादी कट्टरपंथ और रक्तपात के अंधे युग में वापस फेंके जा सकते हैं.
यह चेतावनी और धार्मिक हिंसा को मंजूर न करने का आश्वासन दिलासा देने वाला है. दुनिया भर के देशों में कट्टरपंथ जिस तरह वातावरण को विषैला बना रहा है, वह समूची मानवता के लिए खतरे की घंटी है. इस खतरनाक प्रवृत्ति का हर जगह हर संभव तरीके से प्रभावी विरोध होना चाहिए. चाहे मुद्दा शिया और सुन्नियों का हो या ईसाइयों-मुसलमानों का या फिर हिंदुओं-मुसलमानों का, इसका असर समूची मनुष्यता पर पडेगा. इसलिए उस प्रत्येक जन को, जो स्वयं को मनुष्य कहता है, इस खतरे के निहिताथरें को समझना होगा. सांप्रदायिकता को किसी भी रूप में, कहीं भी, स्वीकार नहीं किया जा सकता.
इसलिए, पिछले एक अर्से में भारत में धार्मिक सौहार्द के संबंध में जिस तरह का वातावरण बनाया जा रहा है, उस पर चिंता होनी ही चाहिए. कोई ओवैसी या कोई साक्षी महाराज यदि देश के धार्मिक एकता के ताने-बाने को कमजोर बनाने की कोशिश करता है तो उस पर चुप बैठने का मतलब एक खतरनाक साजिश को सर्मथन देने जैसा है. इसीलिए प्रधानमंत्री की चुप्पी पर सवाल उठ रहे थे.
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चुप रहने के उनके अपने तर्क हो सकते हैं, लेकिन यह सच है कि उनकी चुप्पी की गूंज बहुत दूर तक पहुंची थी. अब उन्होंने स्पष्ट कहा है कि उनकी सरकार सब धर्मों को समान सम्मान देती है. उन्होंने यह भी आश्वासन दिया है कि देश में सबको अपना धर्म मानने, पालने, उसके अनुसार व्यवहार करने की आजादी होगी. न किसी पर कोई धार्मिक विचार थोपा जाएगा और न ही किसी को जबर्दस्ती धर्मांतरण के लिए बाध्य करने दिया जाएगा.
चुप रहने के उनके अपने तर्क हो सकते हैं, लेकिन यह सच है कि उनकी चुप्पी की गूंज बहुत दूर तक पहुंची थी. अब उन्होंने स्पष्ट कहा है कि उनकी सरकार सब धर्मों को समान सम्मान देती है. उन्होंने यह भी आश्वासन दिया है कि देश में सबको अपना धर्म मानने, पालने, उसके अनुसार व्यवहार करने की आजादी होगी. न किसी पर कोई धार्मिक विचार थोपा जाएगा और न ही किसी को जबर्दस्ती धर्मांतरण के लिए बाध्य करने दिया जाएगा.
स्पष्ट है, अब यदि देश में ऐसा वातावरण बनाने की कोशिश होती है जिससे धार्मिक सद्भाव के वातावरण में किसी प्रकार का प्रदूषण फैलता है तो उसके लिए कोशिश करने वाले तो अपराधी होंगे ही, वह सरकार भी दोषी ठहराई जाएगी जो ऐसी कोशिशों पर लगाम लगाने में नाकामयाब रहती है.
यह स्पष्ट रूप से उन सभी ओवैसियों और साक्षी महाराजों के लिए चेतावनी है जो पिछले एक अर्से में भारत में धार्मिक सौहार्द के संबंध में जिस तरह का वातावरण बनाया जा रहा है, उस पर चिंता होनी ही चाहिए. कोई ओवैसी या कोई साक्षी महाराज यदि देश के धार्मिक एकता के ताने-बाने को कमजोर बनाने की कोशिश करता है तो उस पर चुप बैठने का मतलब एक खतरनाक साजिश को सर्मथन देने जैसा है. इसीलिए प्रधानमंत्री की चुप्पी पर सवाल उठ रहे थे.
(यह लेख वरीष्ठ पत्रकार विश्वनाथ सचदेव द्वारा दैनिक ट्रिब्यून में लिखा गया था)
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