फातिमा शेख किस का फिक्शन है?

फातिमा शेख जोतीराव फुले और सावित्रीमाई फुले के साथ काम कर चुकी हैं। जब जोतीराव-सावित्रीमाई को उनके पिताजी ने घर से निकाला तब फातिमा और उनके भाई उस्मान ने दोनों को अपने घर में पनाह दी। फातिमा शेख ने सावित्रीमाई के साथ कंधे से कंधा मिलाकर शिक्षा जागरण के लिए काम किया।”.... हुश्शश....

इन चार वाक्यों के अलावा फातिमा शेख के बारे में और अधिक जानकारी पब्लिक डोमेन में मौजूद नहीं है। महाराष्ट्र में जनसभा हो, पब्लिक प्रोग्रॅम हा या फिर गुफ्तगू की बैंठके - प्रोग्रेसिव फोर्सेस की ओर से यहीं चार वाक्य फेकें और फिकवाए जाते हैं। इसके अलावा और जानकारी उनके शब्दों में नहीं होती।

इस मामले में शुरुआत में दिए गये इन चार वाक्यों के अलावा और जानकारी तलाश मैं भी हूं; पर मुझे अब तक इसके कोई रिसोर्सेज उपलब्ध नहीं करा सका। और ना ही मेरे निजी अकादमिक खोज में वे मुझे मिले हैं।

मेरी जानकारी के अनुसार मैंने जहां तक महात्मा फुले और उनके समकालीन मराठी लेखकों को पढ़ा है, किसी ने भी फातिमा के बारे में कुछ लिखा नहीं है। बशर्ते फुले अपनी हर एक बात को ग्रंथ स्वरूप देकर लिख चुके हैं। उनकी सारी किताबें पब्लिक डोमेन में आज भी मौजूद है। इसी तरह सावित्रीमाई फुले पर भी समग्र साहित्य मौजूद हैं, जो महाराष्ट्र सरकार द्वारा संचालित साहित्य संस्कृति मंडल ने प्रकाशित किया हैं। इसके अलावा फुले दम्पत्ति पर भी बहुत लिखा गया हैं, और लिखा जा रहा है। उसमें कहीं पर भी फातिमा शेख का जिक्र छोटा या विस्तार से नजर नहीं आता।

कथित रूप से इतना बड़ा सहकार्य करने वाली इस महिला को जोतीराव भला कैसे भूल सकते हैं? जबकि फुले अपने साहित्य में दुनियाभर के लोगों को याद करते, अपना लिखा उन्हें समर्पित करते हैं। इस आधार पर सवाल उठता हैं की फिर फुले ने फातिमा पर क्यों नहीं लिखा?


एक शब्द का संदर्भ

हां, एक बात याद दिलाता चलू की, सावित्रीमाई ने 10 अक्टूबर 1856 को अपने पति जोतीराव को लिखे एक खत में फातिमा का जिक्र मिलता हैं। पर वह भी सिर्फ एक शब्द का! जिसका कुछ हिस्सा निचे दे रहा हूँ।

वे लिखती हैं

पत्रास कारण की,

माझ्या तबियतीत अनेकदा उलटा पालटी होऊन ताळ्यावर आली आहे. या दुखण्यात भाऊने अपरिमित श्रम घेऊन माझी सेवा केली आहे. यावरून तो किती प्रेमळ आहे हे दिसून येते. मी परिपूर्ण दुरुस्त होताच पुण्यास येईन. काळजीत असू नये. फातीमास त्रास पडत असेल पण ती कुरकूर करणार नाही. अस्तु. ...

मूल सार का हिंदी अनुवाद-

मैं जानती हूं कि मेरे पुणे में न होने के वजह से फातिमा पर काम का बोझ बढ़ गया होगा। पर वह कभी ना-नुकर नहीं करेगी।

फातिमा पर लिखे गए इस एक वाक्य के मतलब निकाले जा सकते हैं। इस एक शब्द से फातिमा के कार्य का पता नही चलता। और ना ही सावित्रीमाई किस काम के बारे में हमें (जोतीराव को) अवगत करा रही हैं। मतलब वह शिक्षिका थी, यह बात प्रमाणित नहीं होती।

दूसरी अहम बात यह की इस एक शब्द के अलावा फातिमा पर इतिहास के अन्य रिसोर्सेज तथा प्रमाण उपलब्ध नहीं होते। बशर्ते जो लिखा गया है, या तो वह अनुमान और या कल्पना। इसलिए मेरी नजर में इसका कोई अकादमिक मूल्य नहीं बनता।

मतलब फातिमा के बारे में जो भी लिखा जा रहा हैं, उसका आधार सेकेंडरी सोर्सेस हैं। या फिर इस मामले में सुनी-सुनाई बातों को बेस बनाया गया हैं। अगर कहीं-सुनी बातों का या मौखिक परंपरा को आधार बनाया जाता जो, उस दौर के लोगों से सुना हुआ होता।

मगर जैसे ऊपर बताया गया हैं, फुले के समकालीनों ने और बाद की सत्यशोधक परंपरा (आंदोलन) के लोगों ने फातिमा पर कुछ लिखा नहीं हैं। असल में पिछले १० सालों से फातिमा पर बोला-लिखा-बताया जा रहा हैं। मतलब करीबन २०० साल बाद यानी अब के लोगों द्वारा बताया जा रहा हैं। जिसको इतिहास के पैमाने पर परखा नहीं जा सकता।

असल बात यहीं है की, सेकंडरी रिसोर्सेस को आधार बनाकर यानी कल्पनारंजन कर फिक्शनल कहानी गढ़ी जा रही हैं। उसी को आधार बना कर लिखा-बोला जा रहा हैं। यहीं वजह हैं, फातिमा के बारे में उपरोक्त ४ वाक्यों के अलावा और कोई जानकारी उपलब्ध कराता। अगर आज भी कोई इस मामले में ऐतिहासिक प्रमाण दे तो मैं अपने आप को करेक्ट कर लूंगा।

मेरी निजी राय है कि फातिमा शेख प्रोग्रेसिव फोर्सेस द्वारा तैयार किया गया एक मुज्जसमा (कल्पना) यानी फिक्शन है। जो आगे चलकर काल्पनिक कथाओं के बाजार में चल निकला है। जिसका इतिहास में कोई सिर पैर नजर नहीं आता। वैसे फातिमा शेख को लेकर विचारक, लेखक की ओर से आज भी कुछ लिखा नहीं जाता, जिसे ठोस माना जा सके। लिखते भी कैसे, कोई एक शब्द के अलावा कोई जानकारी जो मौजूद ही नहीं।

पिछले दिनों कुतूहलवश दि प्रिंट पर एक आर्टिकल पढ़ा, जिसमें घुमा-फिरा कर यहीं चार वाक्यों को रटा गया है। लेखक ने हेडलाइन में फातिमा शेख का नाम देकर पाठकों से दगा किया है। इसी तरह कुछ हिंदी-मराठी वेब पोर्टल पर फातिमा शेख को लेकर आर्टिकल रचे गए हैं जिसमें कोई तथ्य या प्रमाण नजर नहीं आते।

झुलेखां जबीं मेरी महिला मित्र है, जो इन दिनों दिल्ली में रहती है। वह फातिमा शेख पर रिसर्च करने के लिए पुणे और उसके परिसर के कई चक्कर काट चुकी है। महाराष्ट्र के दिगर जिलों का भी उन्होंने दौरा किया हैं। पुणे में गंज पेठ जहां भीडेवाड़ा मतलब जोतीराव फुले का घर हैं, वहाँ के कई लोगों से मिल चुकी है, पर वह भी अब तक कोई ठोस जानकारी जुटा नहीं पायी।


फातिमा क्यों चाहिए?

सांगली के करीब मिरज में दिनकर काकडे नामक एक सज्जन ने फातिमा शेख पर एक नोवेल लिखी है, जो काल्पनिकता से भरी पड़ी हैं। किताब में इतिहास कुछ तथ्य नजर नहीं आते। यह नोवेल बेसिकली सावित्रीमाई के नाम से होनी चाहिए थी, क्योंकि इसमें सिर्फ उनका ही सारा चरित्र नजर आता है और जोतीराव फुले के सत्यशोधकी कार्यों का जिक्र।

ये एक फिक्शन तथा काल्पनिक उपन्यास है। मैं लेखक से मिल चुका हूं, बात कर चुका हूं। वह भी मुझे रिसोर्सेस के बारे में कोई तसल्ली वश जवाब नहीं दे पाए। इस उपन्यास को महाराष्ट्र के पूर्व पुलिस महानिरीक्षक (former Inspector General of Police) एस. एम. मुश्रीफ जो खुद को सत्यशोधकी परंपरा से मानते हैं, जिन्होंने बहुचर्चित ‘Who Killed Karkare?’ किताब लिखी हैं, उन्होंने उस उपन्यास की प्रस्तावना लिखी है, जिसमें प्रमुखता से इन चार वाक्यों का ही जिक्र है और बाकी सत्यशोधक आंदोलन और जोतीराव के बारे में तथा सावित्रीमाई, ब्राह्मणवाद और उस दौर के रिग्रेसिव फोर्सेस पर टिप्पणी हैं।

फुले पर महारत रखने वाले कई लोग महाराष्ट्र में है, उन में से किसी ने भी फातिमा शेख के कथित रूप से फिक्शन या नरेटीव को विस्तार स्वरूप नहीं दे सके। बल्कि महाराष्ट्र बुक्स बोर्ड ने उर्दू के दूसरी कक्षा के बालभारती में फातिमा की कहानी दोहराई हैं। जिसका संदर्भ नजर नहीं आता।

इस आधार पर कह सकते हैं की फातिमा शेख नाम का कोई विस्तारित करैक्टर इतिहास के संसाधनों में नजर नहीं आता। फिर क्यों सुधारवादी आंदोलन इसे झंडा बनाएं घूमते रहते हैं? अगर वह मानते हैं कि ऐसी कोई पात्र इतिहास में था तो वह संशोधन क्यों नहीं करते। उस पर शोध निबंध तथा आर्टिकल क्यों नहीं लिखते, उसे प्रमाणित क्यों नहीं करते।

बशर्ते फातिमा को बाहर लाने में किसी का कोई गलत मकसद नहीं हैं। फुले-शाहू-अम्बेडकर तथा सत्यशोधकी परंपरा का आगे बढ़ाने सामूदायिक सौहार्द बनाये रखने के लिए फातिमा को खड़ा किया जा रहा हैं।

दूसरी ओर मेरी अपनी राय है कि मराठी मुसलमानों को खुश करने के लिए यानी टोकनिज्मकी भूमिका के लिए इस पात्र को उभारा गया है। प्रोग्रेसिव फोर्सेस को लज्जत के लिए मुसलमान लगते हैं, बस यहीं से यह शुरुआत हुई हैं।

अगर वाकई में इन जैसे ऐतिहासिक पात्र की चिंता होती तो हजारों मुस्लिम महामानवों ने इतिहास में उल्लेखनीय काम किया है, सुधारवादी गुटों द्वारा इन सब का जिक्र भी करना परहेज माना गया है।

महाराष्ट्र में फुलेवियन सामाजिक सुधार आंदोलन के बाद कई लोग इस तहरीक से जुड़े थे। यहीं नही, पुणे-मुंबई में जंग ए आज़ादी में कई लोग कार्यरत थे, अपनी शहादत दे चुके हैं, जिन्होंने शिक्षा तथा सामाजिक सुधार में उल्लेखनीय कार्य किया हैं। पर उनके नाम लेने वाला कोई नहीं दिखता।

स्वतंत्रता काल के दौर में सांगली के सय्यद अमीन नामक एक व्यक्ति गुजरे हैं, जिन्होंने सर्वप्रथम मुस्लिम मराठी साहित्य आंदोलनको खड़ा किया। उन्होंने १९२०-३० के दौर में सामाजिक सौहार्द, सभ्यता, साहित्य, महामानव के चरित्र तथा तत्कालीन राजनीतिक घटनाओं पर खुब लिखा है। यानी ७० के दशक तक उन्होंने सांस्कृतिक क्षेत्र में काफी कार्य किया था। उनकी सारी किताबें पब्लिक डोमेन में उपलब्ध है।


इसके अलावा मुंबई के तैयबजी परिवार के लोग, पुणे-मुंबई-ठाणे में खिलाफत तथा असहयोग आंदोलन को गती देने वाले अनगिनत मुसलमान थे, जिनके बारे में बहुत कुछ लिखा जा चुका हैं। साथ ही बाद के दौर में मोईनुद्दीन हारीस, मोईन शाकिर, इसहाक जामखानवाला, रफीक जकारिया, प्रो. फकरुद्दीन बेन्नूर इत्यादि महामहीमों ने महाराष्ट्र में शिक्षा, साहित्यिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परंपराओं को आगे ले जाने का काम किया है। यह लोग सामाजिक सुधार के लिए भी प्रस्थापित यंत्रणाओं से लड़ते झगड़ते रहे हैं।

आज महाराष्ट्र का कोई सुधारवादी आंदोलन तथा कथित रूप से लिबरल्स तथा प्रोग्रेसिव फोर्सेस इन लोगों का नाम नहीं लेते, जबकि फातिमा शेख की कल्पना वह बार-बार दोहराते हैं।

इतना ही नहीं महाराष्ट्र में हर २ हफ्ते बाद एक मराठी मेसेज वायरल होता है जिसमें लिखा होता हैं, ‘आज फातिमा शेख का जन्मदिन है। उन्होंने फलां-ढिमका कार्य किया है। आज उन्हें हम भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।'

यह मेसेज बीते ५ सालों से फेसबुक, व्हॉट्सअप पर लगातार वायरल होता रहा है। इस एक ही मेसेज को खुद मुसलमान और सुधारवादी गुटों द्वारा वायरल किया जाता है। इस तरह महाराष्ट्र के सभी सुधारवादी गुट तथा कार्यकर्ता फातिमा शेख का हर हफ्ते जन्मदिन मनाते हैं। यह तो सरासर बकवास हैं न! खैर...

हद तो तब होती हैं, हर कोई इन्हे पहली मुस्लिम शिक्षिका कहता हैं। यह सरासर गलत हैं, मध्यकाल में कई महिलाएं थी, जो शिक्षादान का काम करती थी। उसी तरह हैदराबाद दकन में भी महिला शिक्षिकाएं उभरी हैं, जो शिक्षा का काम करती थी। रुकैय्या सखावत हुसैन नामक एक नारावादी का नाम आज भी बिहार और बंगाल के लोग जानते हैं। जिसने मुस्लिम लड़कियो के लिए भागलपूर में स्कूल खोला था। मतलब साफ हैं की फातिमा पहली शिक्षिका हो नहीं सकती।

वैसे, हमारा मकसद इस पात्र को नकारना नही हैं। मगर जिस के बारें एक शब्द से ज्यादा जानकारी उपलब्ध नही हैं। उसपर कल्पना रंजन क्यों करे? क्यों मन-गढ़ कहानियां बनाये? जिससे अन्य ऐतिहासिक पात्र जिनके बारें कम जानकारी हैं उनके बारें में संदेह को जगह बनाये।

बता दूँ की कल्पना से बनाया कोई फिक्शन इतिहास के आधार पर सिद्ध नहीं हो सकता। यानी जितना हैं, वहीं बताये। उसके बारे में दिल से कहानिया न गढ़े। हो सकता हैं, मेरी इस राय से अस्मितावादी सहमत न हो। मगर इतिहास तो सवाल पुछता हैं भाई! 

बता दू की, फेसबुक पर प्रो. खालिद अंसारी साहब के एक पोस्ट पर चर्चा चल रही है, उन्होंने वहां मुझे मेंशन किया हैं। क्योंकि उन्होंने मुझसे हुई बातचीत के आधार पर कुछ लिखा हैं। इसलिए इसे लिख रहा हूं।

वैसे मैंने तय किया था कि जब तक इस मामले को लेकर कोई ठोस जानकारी तक नहीं पहुंचता तब तक नहीं लिखूंगा। खैर... जानकारी मिलने पर इसे अपडेट करता रहूंगा।

*नोट - इसे पढ़ने वाला अगर मुझे इससे संबंधित रिसोर्सेज उपलब्ध कराता है, तो मैं फातिमा शेख को लेकर अपनी जानकारी अपडेट करूंगा और मुझे खुशी भी होंगी जिससे मैं अपना अधूरा काम पूरा कर सकूं।

कलीम अजीम, पुणे

मेल-kalimazim2@gmail.com

जाते जाते :

वाचनीय

Name

अनुवाद,2,इतिहास,42,इस्लाम,37,किताब,15,जगभर,129,पत्रव्यवहार,4,राजनीति,271,व्यक्ती,4,संकलन,61,समाज,222,साहित्य,68,सिनेमा,22,हिंदी,53,
ltr
item
नजरिया: फातिमा शेख किस का फिक्शन है?
फातिमा शेख किस का फिक्शन है?
https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgNDLCXKc-P528JSAB4NNmFPAm-r2nDcKdI5B56CvWZjYnNcnITimxarD4qoxdObp97QOdHLaYp41Je9HusVPsckZS27DAmsu-DU9ZQLQJv9rL4L367YbRl_0Y378yal1jPGzm6-mk5xkYfseSKkVfUmXF2APeo9HfiphvgA2VuKh0hYeavbEvyXSmr6A=w640-h416
https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgNDLCXKc-P528JSAB4NNmFPAm-r2nDcKdI5B56CvWZjYnNcnITimxarD4qoxdObp97QOdHLaYp41Je9HusVPsckZS27DAmsu-DU9ZQLQJv9rL4L367YbRl_0Y378yal1jPGzm6-mk5xkYfseSKkVfUmXF2APeo9HfiphvgA2VuKh0hYeavbEvyXSmr6A=s72-w640-c-h416
नजरिया
https://kalimajeem.blogspot.com/2020/09/blog-post_10.html
https://kalimajeem.blogspot.com/
https://kalimajeem.blogspot.com/
https://kalimajeem.blogspot.com/2020/09/blog-post_10.html
true
3890844573815864529
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content