तीन हफ्तो से चल आ रही आरबीआई गवर्नर की चर्चा को सोमवार को थोडासा विराम लगा. अपनी ही पार्टी के सासंद द्वारा गवर्नर को अपमानित करने वाले, मुद्दे पर प्रधानमंत्री ने एक निजी चॅनल पर यह कहकर चुप्पी तोडी कि राजन सच्चे देशभक्त है. उन्हे परेशान नही किया जाना चाहीए. मतलब पार्टी के सदस्य देश के वरीष्ठ ब्युरोक्रेट को देशद्रोही कहे. तीन हफ्ते बाद देश के प्रधानमंत्री राजन को देशभक्त कहकर मामला रफा-दफा करेंगे. यह किस हद तक सही हैं. यह सरकार की दोगली निती नही तो और क्या हैं.
राजन सच्चे देशभक्त हैं तो उन्हे गवर्नर की दुसरी टर्म क्यो नही? यह सवाल देश के जनता के मन मे हैं. क्या इसका उत्तर सरकार की ओर से प्रधानमंत्री देंगे?शायद नही. बडबोले सुब्रमण्यम स्वामीजी किस के रिमोट के सहारे चल रहे थे. यह सवाल शायद ही मिले. पर राजन के अप्रत्यक्ष इस्तीफे के बाद गवर्नर के उन १२ नामो मे देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन का एक नाम था. स्वामीजी इनके पिछे भी पडे रहे. सुब्रमण्यन को स्वामीजीने देश का दुश्मन बताया. इस घटना के दो दिन बाद ही स्वामीजीने राजस्व सचिव शक्तिकान्त दास पर तिखी टिपण्णी की. यही तक स्वामी नही रुके आगे जाकर उन्होने अपने ही पार्टी के वरीष्ठ नेता अरुण जेटली पर छिंटाकशी की. स्वामीजी ने जेटली पर टिपण्णी करते हुये बहुत ही ओछे दर्जे की बात कही. इन सब बात को लेकर यह साफ हुआ की स्वामीजी आखीर चाहते क्या है. विपक्षी पार्टी ने तो यह भी आरोप लगाया की स्वामीजी अर्थमंत्रालय चाहते हैं.
राजन-स्वामी चर्चा देश में दो-तीन हफ्तोसे से चल रही हैं. स्वामींजी के आरोपो का दंश झेल चुके रघुराम राजन ने, १९ जून को आरबीआई के मौजूदा गर्वनर दूसरी पारी से इनकार किया. बाद इसके सियासत का दौर शुरु हुआ. इस मुद्दे पर अभी तक ख़ूब सियासत जोंती जा रही है. राजन के बयान के बाद सवाल यह भी उठा कि अगला गर्वनर कौन होंगा. राजन मुद्दे पर सोशल मीडिया पर चर्चाओ का बाजार अभी तक गर्म हैं. ट्विटर पर तो विशेष हॅशटैग चलाकर राजन को दूर करनेवालो खूब कोसा गया. फेसबुकी विश्लेषको द्वारा मौद्रीक निती, रेपो रेट की समस्या सुलझाने का प्रयास किया गया. बडे-बडे सोशल मीडिया अर्थशास्त्री राजन को इस तरह क्यों हटाया गया, इसकी समिक्षा सोशल मीडिया पर खूब होने लगी.
शिकागो यूनिवर्सिटी के ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनेस में प्रोफेसर रहे रघुराम राजन उच्चतम योग्यता रखते है. जब यूपीए सरकार ने उनकी की नियुक्ती गवर्नर पद पर की तो, देश के हर तबके से राजन का स्वागत किया गया. विशेष कर संघ परिवार ने राजन के तारिफो के पूल बांधे. पर जब राजन की आर्थिक निती भाजप और संघ परिवार को नही जचीं तो सरकार और उनके मंत्री द्वारा रघुराम राजन के कामो मे खामीयाँ निकालना शुरु हुई. तरह-तरह से रघुराम राजन की बदनामी की गयी. इसका प्रावधान यह हुआ की राजन ने तंग आकर खुद ही दुसरी टर्म लेने से इनकार कर दिया. देश मे राजन के पहले विदेश में पढ़े अर्थशास्त्री थें. पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह, मोंटेक सिंह अहलूवालिया, सी रंगराजन जैसे कई नाम हैं. पर इनमे राजन एक अलग व्यक्तीत्व के धनी थे.
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दुनिया के बेहतर अर्थशास्त्री माने जाने वाले रघुराम राजन का कार्यकाल सितम्बर में ख़त्म हो रहा हैं. राजन दुसरी टर्म को लेकर असहमति जताने के बाद अगले गवर्नर के लिए उम्मीदवारों की चर्चा जोर पकड़ रही हैं. गवर्नर पद के लिए १२ नामो की चर्चा हैं. जिनमे राजन के लेफ्टिनेंट कहे जाने वाले रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर उर्जित पटेल, बैंक बोर्ड ब्यूरो के प्रमुख विनोद राय, एसबीआई प्रमुख अरुंधति भट्टाचार्य, मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन, विश्व बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री कौशिक बसु,राजस्व सचिव शक्तिकान्त दास, वित्त मंत्री के पूर्व सलाहकार पार्थसारथी शोम, ब्रिक्स बैंक के प्रमुख केवी कामत,सेबी के चेयरमैन यूके सिन्हा, रिजर्व बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर राकेश मोहन और सुबीर गोकर्ण, पूर्व वित्त सचिव विजय केलकर आदी नामो की चर्चा हो रही है. सरकार राजन के बाराबरी के कद का कोई गवर्नर नही चाहती.
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अब देखना यह होंगा की सरकार नयी मौद्रीक निती बरकरार रखने के लिए किसे गवर्नर पद पर नियुक्त करेंगी. और सरकार की मर्जी बनाये रखने की जिम्मेदारी भी नये गवर्नर को रखना होंगी. वरना नये गवर्नर को भी रघुराम राजन बनने देर नही लगेंगी...
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अपनी बात
- कलीम अजीम
- कहने को बहुत हैं, इसलिए बेजुबान नही रह रह सकता. लिखता हूँ क्योंकि वह मेरे अस्तित्व का सवाल बना हैं. अपनी बात मैं खुद नही रखुंगा तो कौन रखेगा? मायग्रेशन और युवाओ के सवाल मुझे अंदर से कचोटते हैं, इसलिए उन्हें बेजुबान होने से रोकता हूँ. मुस्लिमों कि समस्या मेरे मुझे अपना आईना लगती हैं, जिसे मैं रोज टुकडे बनते देखता हूँ. Contact : kalimazim2@gmail.com