डिसक्लेमर : याद रहे कि यह आलेख मीडियाकर्मी के तौर पर नहीं बल्कि एक भारतीय और मुस्लिम पहचान के साथ लिख रहा हूँ, पत्रकार के रूप मे लिखने वाले बहोत हैं, वे लिखेंगे और लिख रहे हैं.
सबसे पहले एक बात स्पष्ट
कर देना चाहता हूँ कि रोहित सरदाना ‘पत्रकार’ नही बल्कि ‘एबीवीपी’ के सक्रीय प्रवक्ता
थे. इसलिए उन्हें ‘पत्रकार’ या ‘एंकर’ कहना मेरे लिए
बेमानी होगी. पत्रकारिता नि:ष्पक्ष और पीडित, शोषितों के साथ
खडी होती हैं, वह एकतर्फा, एकसुरी नही होती. वह मानवता के विरोध में तो हरगीज नही हो
सकती. संघठन,
कार्यकर्ता
भूमिका लेते हैं. यह भूमिका कभी मानवता के समांतर हो सकती है तो कभी विरोध में.
रोहित भूमिका लेनेवाले
अभाविप के कार्यकर्ता थे, यह बात लेखक नही, बल्कि भाजपा-संघ
के कई मान्यवरों ने उन्हें घोषित रुप से श्रद्धांजलि देते हुए कही हैं. कार्यकर्ता
और वह भी एबीवीपी; यानि वह परंपरावादी, धर्मभिमानी, अस्मितावादी होना
और उदारवादी विचार तथा धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ होना लाजमी हैं. क्योंकि यह उनके मातृ-पितृ
संघठन की जाहिरी भूमिका रही हैं.
प्रधानसेवक मोदी से लेकर
गृहमंत्री शहा तथा राष्ट्रपती तक नें रोहित को श्रद्धांजलि देते हुए ‘ॐ शांति’ का टॅग चलवाया.
इन महामहीमों ने आदंराजली देना, वाकई में रोहित इतने बड़े व्यक्ति थे क्या? इसका जवाब पाठक
अपने तौर पर तय कर सकते हैं. वह भाजपा के क्रियाशिल प्रवक्ता थे, इसलिए उन्हें श्रद्धांजलि
देना इन साहिबान का नैतिक कर्तव्य था, जो उन्होंने पूरा भी किया.
रोहित कोविड की वजह से विदा हुए इस बात का कोई अफसोस नही हैं, क्योंकि अब तक दो लाख (२,१८,९४५) से अधिक भारतीय हमने इस महामारी में खोये हैं. मेरी नजर में इसी मृतकों में वह भी एक हैं. रोहित सरदाना का निधन हुआ, इससे ज्यादा उस महामारी (जिसके बारे में वह सरकार कि गलतियों का समर्थन करते रहे) ने उनका निगल लिया, इसका ज्यादा बुरा लगता हैं. जिस भाजपा के राजकीय और सांघिक उत्थान के लिए वे संघर्षरत थे, उसी सरकार अर्थात ‘सिस्टिम’ के बे-दखली का वे शिकार हुए. भारत में अब तक १५० से ज्यादा फिल्ड पत्रकार कोविड से मरे हैं. इसलिए रोहित कोई सेलिब्रिटी थे, इस गुमान में न रहे.
मराठी में पढ़े : रोहित सरदाना : मुस्लिमांच्या उद्ध्वस्तीकरणाचा खलनायक
पढ़े : आरएसएस के मदरसे यानी सेक्युलर विचारों पर हमला!
पढ़े : बाबरी के साथ बने मुसलमानों के नाइन्साफी का म्यूजियम!
‘मरने के बाद कोई
बैरी नही रहता’
इस
कथन को थोडी देर के मान भी लेते हैं, तो रोहित के दृष्कृत्यों की चर्चा करने से कोई
रोक नही सकता. उतनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता है! इसलिए मैं उस स्वतंत्रता के अधिकार का
इस्तेमाल करते हुए रोहित का उल्लेख आदरार्थी
न करते हुए एकल करना चाहुंगा, क्योंकि रोहित मेरे लिए कभी महान या आदर के पात्री नही
थें.
मीडिया के कई महामहिम
‘मोरल पोलिसिंग’ करते हुए कह रहे
हैं की रोहित के पत्रकारिता की खास शैली थी. हां, शैली तो थी. क्योंकि
उसके इस शैली से हजारों घर बरबाद हुए, बहुसंख्य समुदाय में हेट क्राइम की धारणा बढ़ी,
लाखों लोगों के संसार, व्यापार, रोजगार खत्म हुए. कई घरों के चष्मो-चिराग
हमेशा के लिए बुझ गए, हजारों अकारण जेल में सड़ रहे हैं. कईयों का अस्तित्व, उनकी पहचान, जिंदगी, रहन-सहन, दिखना, बोलना,
होना सबकुछ संकट में आया हैं.
उसके शैलीरुपी कथित पत्रकारिता
ने बहुसंख्यकों के मानसिकता पर आघात किया हैं. उसके इसी शैली ने समाज में जाति, धर्म और वर्णविद्वेशी
‘हेट क्राइम’ को जन्म दिया
हैं. एक समाज को हिंदू के रूप में प्रचारित करते हुए उसने उन्हें मुसलमानों के खिलाफ
खड़ा किया. उसके इसी शैली ने बहुसंख्यक समुदाय में मुसलमानों के प्रति गृणा और नफरत
की भावना बढ़ी हैं. जरुरी और मूल सवालों को भूल कर उन्हें ‘हिंदू.. हिंदू..’, ‘मोदी.. मोदी..’ कहने पर विवश
किया हैं. वाकई मे उसकी शैली थी, जो पत्रकारिता के सिलेबस में नही बल्कि आरएसएस के
शाखाओं सिखाई जाती हैं.
पत्रकारिता को मीडियम
बनाते हुए उसने आरएसएस का वर्ण, वर्ग और जातिद्वेशी प्रचार किया हैं. उसके कथित पत्रकारिता
से प्रादूर्भित हुए इस जहर ने समाज को अपाहिज और बिमार बना दिया हैं. जिसका असर आए
दिन देखना, सुनना और सहना पड़ता हैं. उसके इसी शैली ने भारतीय मुसलमानों का दानवीकरण
और बरबादीकरण किया हैं. दलित-ख्रिश्चन, शोषित, पीडित और ज्यादा असहज और असुरक्षित हुआ
हैं. उसके सामने अस्तित्व के सवाल खड़े हुए हैं.
रोहित हर शाम भारतीय समाज
(न्यूज चॅनेल) में ‘दंगल’ करवाता था. जहरिले
विषय लेकर रोज नया विवाद और अशांति पैदा करता था. कभी कभार एफबी स्क्रोल करते हुए उसका
वर्णद्वेशी चेहरा दिख जाता तो, दखल के लिए थोडी देर ठिठक जाता. पर उसकी जहरिली भाषा
सून कर और ज्यादा नफरत का भाव पैदा होता और उंगलीयो से उसे धक्का देकर आगे निकल जाता.
यूंही कभी कभी सोंचता
की रोहित को निंद आती होगी की नही? उसे किस तरह के सपने आते होंगे? सुबह निंद से
जागता तो पत्नी से क्या कहता होगा? अपनी बच्चायों के खेलेते हुए निहारता तब
उनके भविष्य को लेकर क्या सोंचता होगा? पिछले साल कोरोना काल
में ‘मीडिया टेरर’ से भयग्रस्त हुआ
तो हर दिन अर्णब, सुधीर, रोहित और अन्य जहरिले एंकरो के दिनचर्या को लेकर काफी देर
तक सोचता रहता था.
फेसबुक पर वह कभी कुछ
डालता तो भाजपविरोधी तत्त्वों से काफी ट्रोल होता. रोज प्राइम शो से पहले लाइव्ह आता
और गालियां खाकर चला जाता. उन गालियों का गुस्सा वह शो में निकालता. एक दफा उसने अपनी
बच्चीयों के साथ तस्वीर लगा दी. उस दिन लोगों ने उससे सवाल किया, जब यह बच्चीया बड़ी
होगी और कोई उन्हें बलात्कार या एसिड फेकने की धमकी देगा, तब आप क्या करोगे? उस दिन यह सवाल
सूनकर वह उन ट्रोल्स पर काफी भडका.
कभी-कभी अमित शाह, राजनाथ, मोदी के साथ अपनी
तस्वीरे लगाता. तो कभी विवादास्पद बयानबाजी करने वाले नेताओं के साथ सेल्फी खिंचवाता,
तो लोग उससे सवाल करते, क्या आप भाजपा से हैं? तब लोगों पर गुस्सा
होता, चिडचिडा होता. इसी तरह के उद्योग आए दिन करते रहता.
पढ़े : सोशल डिस्टेंन्सिग कि दुर्गंध
‘हेट क्राईम’ का प्रवर्तक
प्रिंट मीडिया को छोडकर
२०१५ में मैं न्यूज चॅनेल में आया. तब से उसे नोटिस करने लगा. रोज रात वह और उसका साथी
एंकर सुधीर चौधरी ‘झी न्यूज’ पर एक के बाद
एक ‘अँण्टी मुस्लिम’ शो करते. दोनो
के शो एक से बढकर एक जहरिले रहते. आगे वह ‘झी’ छोड ‘आज तक’ में आया. आ गया
कि लाया गया पता नही. वहां पर भी हररोज जहर के अनगिणत टँकर भारतीयों पर उंडेलते रहता.
गोमांस रखने के आरोप मे
हुई हत्याओं का वह हर बार समर्थन करते रहता. कठुआ कि अबोध बालिका हो या हाथरस के युवती
पर हुआ जघन्य अपराध, उसने पीडितों की दोषी ठहराया. कुलदिप सेंगर, चिन्मयानंद जैसे
बलात्कारीयों के संरक्षण में खड़ा दिखायी दिया. बलात्कारी हो या फिर निर्दोष तथा मासूम
लोगो के हत्या का समर्थन करना उसके ‘देशभक्ती’ का हिस्सा बनता
गया.
टीवी से रोजाना मानवी
अधिकार कार्यकर्ता के खिलाफ ‘हेट क्राईम’ की सुपारी देता.
देश के युवाओ को ‘जिहादी’, ‘अर्बन नक्सली’, ‘देशद्रोही’ कह कर कोसते रहता.
उसने जेएनयू, एफटीआय के छात्र-छात्राओं पर गंदे और भद्दे कमेंट किए. कभी उसने मोदी
के असफलताओ को छिपा कर उन्हें विश्वगुरू कहा, कभी चुनाव में भाजपा का प्रचारक बना.
कभी गौरी लंकेश हो या दाभोलकर; की हत्यारों का निर्लज्जता से समर्थन करता
रहा.
भाजपाविरोधी पत्रकारों
का गालिया बकता रहा. भीमा कोरेगाव का दलितविरोधी दंगो का मूक समर्थन हो या, उस दंगे
के निषेध में पुकारा गया ‘भारत बंद’ का विरोध, आरक्षण पर घटिया
बयानबाजी,
आदिवासी-दलित-इसाई
के हमलावरों का सरंक्षण, आदी घटनाओं में वह रोज आधिकाधिक ‘फासिस्ट’ होकर एक घेट्टो
गूट में सेलिब्रिटी बनता चला गया. इधर चीन ने भारत की हजारों स्केअरकिलोमीटर जमीन हथिया
ली, इधर उसकी मोदी(देश)भक्ती अधिक चमकिली होती गयी.
पाकिस्तान में आर्थिक
संकट आया तब मोदी, म्यांमार में रोहिग्या मुस्लिमों का कत्लेआम हुआ मोदी, अरब में कुछ
हुआ मोदी, अमेरिकी चुनाव में मोदी, ट्रम्प हार गए मोदी, इजराईल दौरे में मोदी, संयुक्त
राष्ट्र परिषद में मोदी, गलवान हुआ मोदी, पुलवामा में जवान
शहिद हुए मोदी, तीन तलाक रद्द हुआ मोदी, राम मंदिर फैसला मोदी, एनआरसी मोदी उफ्फ..
सिर्फ मोदी ही मोदी.. हद कि इंतेहा देखो, कोरोना भगाने में डॉक्टरो का नहीं बल्कि मोदी
का योगदान, मोदी भगाऐगे कोरोना को, महामारी संकट पर बंगाल चुनाव की कव्हरेज.. कुंभ
के कोरोना हॉटस्पॉट पर चुप्पी... वाह रे पत्रकारिता!
पढे : असहिष्णुता पर ‘भारत माता’ के नाम एक बेटे का खुला खत
मुस्लिम संज्ञा से अतिव
प्रेम
रोहित के मुस्लिम विरोध
के बारे कितना और क्या क्या बताए. सुबह निंद से उठने से लेकर रात सोने तक मुसलमानों
के अस्तित्व को कलंकित करते रहता. जैसे मुसलमान ही उसका ओंढना और बिछोना हो. रोजाना
कोई भी टॉपिक हो, उसे मुसलमानों पर जरूर लाता और उसपर भाष्यकाररुपी कृमी छोड़ता. दो
नही बल्कि चार-चार, छह-छह मुर्गो की लड़ाई करवाता. और इन सबका विकृत रूप से आनंद लेता.
राम मंदिर, आयोध्या, काश्मीर, गोरक्षा, मॉब लिचिंग, तीन तलाक, ओवैसी, अबू आझमी, आजम खान, सीएए, एनआरसी, दिल्ली दंगा आदी
विषयों में उसने फैलाया विष रोज रह-रह कर जहररुपी अग्नी की चिंगारीयां उडाता हैं. उसने
राम मंदिर,
बाबरी,
सीएए, एनआरसी मामलों को सुलगा कर असंख्य आम नागरिकों के दिमाग में जहर की मात्रा डालकर
रोज उसे भडकाया हैं.
कोविड संक्रमण काल मे
‘तबलिग मामले’ को प्रपोगेट कर
उसने तो कहर ही कर दिया. भाजपा सरकार के (गोदी मीडिया की भाषा में सिस्टम) अकार्यक्षमता
के दोष दिखाने के बजाए उसने कोविड पॅन्डिमिक का सारा ठिकरा मुसलमानों पर फोडा. उसके
इतर साथीगण की तरह सिर्फ तबलिग.. तबलिग... कहते हुए चिखते रहा. समुचे साल भर उसने भारतीयों
को मुसलामानों के खिलाफ ‘हेट क्राइम’ करने के लिए उकसाते
रहा और हुआ भी यहीं. उसके फैलाए जहर से दिमाग को संक्रमित कर आम लोग रास्ते पर उतरे
और मुसलमानों के खिलाफ मुहिम शुरू कर दी. यह भीड मुसलमानों पर हमले करते हुए उनकी पहचान,
अस्तित्व, कारोबार, घुमने-फिरने का अधिकार नकारती रही.
सुस्त आरोग्य सुविधा, दवाईयों की कमी, डुबते रोजगार, लाखों का पलायन, पैदल चलते हुए रास्तों पर मरने वाले लोग, चिखते-चिल्लाते पेशंट, रास्तो पर आक्रोष करती औरते, बच्चे; सबकुछ मुसलमानों के वजह से हो रहा हैं, इस तरह का झुठा प्रचार करता रहा.
मोदी सरकार के खामियां छिपाकर थाली बजाने और बजवाने का उत्सव मनाता रहा. विपक्ष को बदनाम किया, उन्हें देश के शत्रू के रूप में प्रचारित किया. कोरोना जैसे आपातकाल में सरकार के गलतियों को छिपा कर हिंदू-मुस्लिम करता रहा. अफसोस की, जिन गलतियों को, खामियों को उसने छिपाकर रखा अंत मे उसी का शिकार हुआ.
शालिनता कहां से लाऊ?
कहते हैं, मौत के बाद
मरने वाले के खामियां, बुराईयां, रंजीश को जाहिर नहीं करते, बल्कि उन्हें छिपाते हैं.
मृतक के बारे में अच्छा और पॉजिटीव कहना भारतीय संस्कृति हैं. माफी चाहता हूँ, पर मैं
रोहित के बारे में यह सब नही कर सकता. उसने मुसलमानों के खिलाफ शुरू किया आंदोलन मैं
नही भूल सकता, मॉब लिचिंग के लिए उकसाए भीड को दिमाग के स्मृति पटल से हटा नही सकता.
संवैधानिक हकों कि बात करने वाले मुस्लिम युवाओं को उसके कहे जिहादी शब्द को मैं नही
भूल सकता.
शायद इस प्रसंग और इस
तरह के व्यक्तियों के लिए अफसानानिगार सआदत हसन मंटो ने लिख छोडा हैं, “ऐसे समाज पर हज़ार
लानत भेजता हूं जहां यह उसूल हो कि मरने के बाद हर शख़्स के किरदार को लॉन्ड्री में
भेज दिया जाए जहां से वो धुल-धुलाकर आए.”
क्योंकि इन्सान जिस तरह
सोचता हैं, उसी आधार पर अपने विचारों और सोंच को बनाता हैं और प्रतिक्रिया देता हैं.
मैं रोहित के बारे में जैसा सोचता हू, जिस तरह उसे नरेट करता हूँ; उसी तरह मुझे
बोलना होगा, लिखना होगा. गर मैं ऐसा नही करता तो खुद से बेमानी होगी, जो मैं नही कर
सकता.
रोहित ने मुझे एक सामान्य
और उदारवादी मुस्लिम के रूप में कभी सोंचने नही दिया. मुझे हमेशा उसके लिए नफरत करना
सिखाया, अतिसामान्य होने के लिए उकसाता रहा, अपने बारे में घृणा करना सिखाया, जो बुरे
खयाल मुझमें नहीं थे, उसीने उन्हें मुझमें लाने को विवश किया. मैंने उसे एक टीवी ‘एंकर’ नही बल्कि मुसलमानों
का दूश्मन, नफरत के ‘द्वेशी प्रचारक’ रूप में देखना,
सोचना और विचार करना शुरू किया. वहीं मुझे बार बार ऐसा करने पर मजबूर करता रहा. इस
में मेरा कसूर नही हैं.
वह मुसलमानों को हमेशा
भला-बुरा कहता, उन्हें अपमानित करता, जिहादी संबोधित करता, इस्लाम और मुसलमानों को
हिंदू के समाज के सामने चुनौती के रूप में पेश करता. उनके जिने का हक नाकारता, उन्हें
गालियां बकता, उनके नबी को भला-बुरा कहता, मुस्लिम प्रवक्ताओं को अपने चॅनल पर आमंत्रित
कर उन्हे खरी-खोटी सुनाता, झिडकारता, गद्दार कहता, पाकिस्तान चले जाओ कहता, बहुसंख्याक
समाज को मुसलमानों के खिलाफ गुनाह करने के लिए उकसाते रहता. भाजपा विरोधी, दलितों के
प्रति, आदिवासीयों के प्रति घृणा का भाव बढाते रहता. बहुसंख्य समाज को उनके खिलाफ अपराध
करने पर उकसाते रहता.
इस तरह के हिंसक व्यक्ति
और नफरत के प्रचारक को मैं भला ‘अच्छा’ कैसे कह सकता
हूँ! उसके किए करतुते मानवता विरोधी, संविधानविरोधी, समाज के लिए घातकी
हैं. इस तरह के हिंसक, अपराधी करतुतों को भूल जाऊ इतनी शालिनता मेरे पास
नही है. और मेरी भारतीय संस्कृति जिस में मैं पला-बडा, ऐसा करने की इजाजत मुझे नहीं
देती.
किसी के मौत पर खुशी का इजहार करू इतना विवेकहिन मैं नही हूँ. इस बुराई का समर्थन भी नही हो सकता. यह करतूत सु-संस्कृत और स-सभ्य नही हैं, लेकिन जिसने यह किया हैं, वह उनके प्राकृतिक भावनाओं का उद्रेक हैं. कुछ लोगो ने उसे ‘रोहित दंगाना’ कह संबोधित किया, इसमें क्या बुराई हैं! क्या उसने, उसके विचारों ने समाज में दंगे नही करवाए?
कई रिपोर्ट कहती हैं की,
दिल्ली दंगा तो इसी तरह के पत्रकारों के वजह से हुआ हैं. उसके मौत पर खुशी मनाने वाले
वर्ग-समूहो की भावना समझनी होगी. क्योंकि उसने अपने कृति से उन्हें ऐसा करने पर मजबूर
किया हैं. इतिहास हिटलर और मुसोलिनी को ‘अच्छा’ कह संबोधित नही
करता. उसी तरह नथुराम का भी हैं. रोहित ने किया हुआ कृत्य अपराध हैं. और वह मानवताविरोधी
है, इसीलिए अक्षम्य हैं. वह सांप्रदायिक था, नफरत का, घृणा
का प्रचारक था.
जाहिर बात हैं, उसके सबसे
ज्यादा विरोधक मुस्लिम थे. पर वह उसके शत्रू नही थे. उसने की हुई कथित पत्रकारिता,
अपप्रचार, नफरती मुहिम के वह समिक्षक थे, आलोचक
थे. उसके गलतियों का एहसास दिलाने वाले थे. मुसलमानों ने उसके खिलाफ कभी भी जाहिर तौर
पर हिंसक भाषा का इस्तेमाल नही किया. बल्कि उसके निधन पर सच्चे दिल से ‘खिराजे अकिदत’ पेश करते दिखाई
दिए. बेशक उनमें कुछ आनंदित भी हुए हैं. इस बारे में नैतिक, अनैतिक चर्चा
होती रहेगी,
पर
जिन्हें शोक प्रस्ताव पारित करना नही हैं, तो वह उनका हक हैं. दलित, पिछडों तथा अन्य
जमात को उसके मृत्यु पर दु:ख नही होता, उन्हें शोक करने के लिए मजबूर नहीं किया जा
सकता. उनके हको का जतन और संरक्षित करना भारतीय संविधान ने उससे किया हुआ वादा हैं.
आज के नये भारत में तो
विरोधी विचारों के व्यक्ति के निधन पर उत्सव करने की विकृत परंपरा तो रही हैं न! गांधी हत्या के
बाद मिठाई बांटने वाली जमात को इतिहास को अपने अंदर समा लिया हैं. नथुराम को शहीद कहने
वाली जमात देशभर मे जन्मी हैं न! कसाब और अफजल गुरु के फांसी पर उत्सव मनाया
गया हैं न! गौरी लंकेश के हत्या पर हर्षोत्सव मनाने वाले विकृत ट्रोल्स भी हमने देखे
हैं न!
फिर भी किसी के इच्छा
के खिलाफ जाकर सब ने रोहित को अच्छा बताना, श्रद्धा सुमन
अर्पित करना, ऐसी ‘लिबरल’ और ‘सेक्युलर’ रहने की शर्त
हैं;
और
वह सबने मान लेनी चाहीए, यह गैरजरूरी आग्रह हैं. यह जिद पूरी करने
के लिए कोई बंधा नही हो सकता. इतनी व्यक्तिगत स्वतंत्रता एक मानव के रूप में सभी की
हैं न!
सोशल मीडिया पर रोहित के बारे हो रही नफरत की भावना गोदी मीडिया, उसके पत्रकार, एंकर तथा चालक-मालिकों के लिए सबक हैं. प्यार, करुणा और अपनापन दिया, तो समाज तुम्हें वही देगा. पर अगर, नफरत, घृणा, शत्रूता, हिंसक विचार तथा जहरिला वातावरण देते हैं, तो उसको लौटाने का काम भी समाज करेगा ही!
(लेखक स्वतंत्र टिपण्णीकार
हैं, यह मत उनके अपने हैं और वह आक्रोष से आए हैं, सब उससे राजी हैं, ऐसा तो नही हैं.)
कलीम अजीम, पुणे
मेल : kalimazim2@gmail.com
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- कलीम अजीम
- कहने को बहुत हैं, इसलिए बेजुबान नही रह रह सकता. लिखता हूँ क्योंकि वह मेरे अस्तित्व का सवाल बना हैं. अपनी बात मैं खुद नही रखुंगा तो कौन रखेगा? मायग्रेशन और युवाओ के सवाल मुझे अंदर से कचोटते हैं, इसलिए उन्हें बेजुबान होने से रोकता हूँ. मुस्लिमों कि समस्या मेरे मुझे अपना आईना लगती हैं, जिसे मैं रोज टुकडे बनते देखता हूँ. Contact : kalimazim2@gmail.com