प्रतिकात्मक तस्वीर |
मुसलमानों को ब्राह्मण्यवादी सांप्रदायिक ढांचे का हिस्सा बनाएगे। अपने जहरिले विचारों से इस्लाम में और समाज में बिगाड़ पैदा करेंगे। उसे अधिमान्यता दिलवाएगे। अपने हिंसक विचारों के हिमायती पैदा करेंगे। इन मदरसों से खतरनाक विचारों वाले मौलवी निकलकर हमारे माशरे में, हमारे शहरों में, हमारे मोहल्ले, हमारे घरों में दाखिल होंगे।
इस तरह ये कथित मौलवी उदारवादी और सेक्युलर मुसलमानों के बरखिलाफ अपना धर्मवादी अजेंडा चलाते रहेंगे। जैसे, राम मंदिर के लिए चंदा जमा करनेवाली जमात बनाएगे। तमाम मसलमानों को हिंदू साबीत करेगे। उन्हें हनुमान भक्त बताकर आरती करवाएगे। इस्लाम में चार शादियां करना जायज है, यह डंके की चोट पर बतायेगे।
जिहाद की नई व्याख्या करेंगे। आतंकवाद को धर्म का हिस्सा मानेगे। कुरआन का अपने ढंग से विश्लेषण करेंगे। इस्लाम में पर्दा लाजमी है इसकी वकालत करते रहेंगे। तीन तलाक़ का समर्थन करेगे। महिला अत्याचार और पितृसत्ताक का समर्थन करेंगे। मुसलमान मूल रूप से हिंदू ही है, ऐसा बेतुका दावा करेंगे। चरमपंथ को ही ‘इस्लाम’ बताएंगे। कट्टरता को असल इस्लाम प्रचारित करेगे। इशनिंदा की हिमायत करेगे। आम लोगो को इस्लाम के नाम पर हिंसा के लिए प्रोत्साहित करेगे।
हिंसा को इस्लाम का अभिन्न अंग बताएंगे। मंदिर में पूजा अर्चना करना इमान है, इस तरह की दलील देंगे। मस्जिदों के एक कोने में मंदिर की स्थापना करने को भक्ति साबित करेंगे। नमाज और इबादत को दोयम बताएंगे। बच्चे, बड़े, बुढ़े और महिलाओं को आरएसएस की शाखाओं से जुड़ने की अपील करेंगे।
मुसलमानों के खिलाफ हो रही सांप्रदायिक हिंसा को जायज़ बताएंगे। मुसलमानों के खिलाफ चल रहे हरएक अजेंडे को सच्चा और पाक कदम बताएगे। एक जमात आरक्षण का विरोध करेगी तो दूसरी कहेगी तमाम मुसलमानों को आरक्षण दो। जबकि जातिगत आरक्षण का विरोध करेगे। मुसलमानों के जाति व्यवस्था का झुठलाएगे। तमाम मुसलमानों को ब्राह्मणवादी सांस्कृतिक वर्चस्ववाद के खूंटे से बांध देंगे। संघ द्वारा फैलाए जा रहे ब्राह्मणवादी सांस्कृतिक अभिशप्त को अपनाने की अपील करेंगे।
पढे : न्यूज चॅनेल के ‘टेली मुल्ला’ओं का विरोध होपढ़े : नफरत के खिलाफ मुहब्बत की लड़ाई
पढ़े : फ्रांसचा सेक्युलर इस्लाम फोबिया
जवाब में मुसलमान क्या करेंगे,
जैसे, यह तो ईमान से खारिज है। नउजुबिल्लाह ये हराम है। ये इस्लाम का नया फिरका हैं। हमारा मजहब इसकी इजाजत नहीं देता। इस्लाम शांति का मजहब है। इस्लाम में यह बातें हराम है। ये कुरआन की तालीम नहीं है, आदि कानों पर हाथ रख कर मीठी मीठी और लुभावनी बातें करेंगे।
मगर जिस हथियार से मुसलमानों पर सांस्कृतिक और वैचारिक हमला किया जा रहा है उस को समझने की कोशिश नहीं करेंगे। गैरइस्लामिक ब्राह्मणवादी अजेंडा और मुस्लिमद्वेशी मानसिकता को नहीं पहचानेंगे। इसकी छांव में छिपी सांस्कृतिक राजनीति को नहीं परखेंगे। अस्मिताधारी आर्थिक राजनीति के पहेली को नहीं बुझेगे।
और तो और इसका तोड़ इस्लाम में ही ढूंढ लेंगे, मगर भारतीयता, संस्कृति, सभ्यता और विरासत में जवाब नहीं तलाशेगे। आरएसएस ने ‘देशनिष्ठा’ को नाम पर मुसलमानों को बरगलाया हैं। हमारे बताये हुये रास्ते पर चलेगे तो ही ‘सच्चे और अच्छे मुस्लिम’ कहलाएगे, वरना देशद्रोही साबित होगे, इस तरह का मॅकेनिझम उनके दिमाग में फीड किया हैं। उन्हें राष्ट्रनिष्ठा की अफीम देकर नशे मे रखा हैं। ‘देश (राम)भक्ती’ और ‘पंथनिरपेक्षता’ की जालीदार टोपी पहना कर और लंबी दाढ़ी रखवाकर कुछ मुसलमानों के गले में एक खास तरह का पट्टा डाल रखा हैं।
इस पट्टे को जब वे ढिल देंगे तो यह लोग मुसलमानों पर ही हमलावर होगे और जब खींचेगे तो एकाएक रुक जाएंगे। आज इस तरह की कई धार्मिक जमाते, तंजीमे, सामाजिक-राजकीय संगठन, प्रवक्ता मुसलमानों में मान्यता प्राप्त कर चुके है। गोदी मीडिया के टीवी स्क्रीन पर इनके टेली मुल्लोंकी भीड़ हर दिन बनी रहती है।
यह नकली मुल्ला लंबी दाढ़ी रख कर आरएसएस के अजेंडे की हिमायत करते हैं। सच्चे मुसलमाँ और नेक इस्लामी होने के दावे करते हैं। ‘रिज्ड इस्लाम’ के अनुयायी बनते हैं। भाजपाई पे-रोल पर रहने वाले यह लोग भारत के तमाम मुसलमानों के प्रतिनिधि बनते हैं। इस्लाम और भारतीय मुसलामानों का प्रतिनिधी बनकर अनाप-शनाप बातें कहते हैं। नई-नई मनगढ़त कहानियां गढ़ते हैं।
इस्लाम के परंपरावादी उलेमा, धार्मिक विद्वान, धर्मवादी नेतृत्व इनके जवाब में कुछ नहीं करते। उन्हें ना विरोध करते हैं, ना उनके खिलाफ मोर्चा खोलते हैं। ना ही उन्हें इस्लाम का प्रतिनिधी बनने से रोकते हैं। और न ही उन्हे मुसलमानों का कथित रूप से हिमायती बनने पर टोकते हैं। उसी तरह ना ही उनसे संपर्क रखते हैं, ना डायलॉग रखते हैं।
महज पैसा, शोहरत और सम्मान पाने की लालसा के लिए दुश्मनों के खुंटे से बंधे इन लोगों की मजबूरी को समझना जरूरी हैं। यह लोग जातिभेद, उच-नीच, शिया-सुन्नी पंथीय विवाद के चलते हम ही से सताये हुए हैं। यह लोग अस्मिताधारी पहचान के भूखे हैं। यह लोग नाम की लालसा रखे हुए हैं। हमारे परंपरावादी उलेमा, धर्मपंडित और धर्म के ठेकेदार इन महामहिमों की जरुरत, लाचारी और मजबूरी को इकोनॉमिकली समझने की कोशिश नही करते।
बाज वक्त तो ऐसे भी देखने को मिला है कि आरएसएस के लोग मेनस्ट्रीम के धर्मवादी (किसी का दल या संघठन का नाम नहीं लेना चाहता) संगठनों के हां में हां मिलाकर काम करते हैं। इन मेनस्ट्रीम वालों को लगता है कि आरएसएस हमारे धर्म (इस्लाम)के खिलाफ नहीं है। यह लोग भी बड़े चालाक होते हैं, जो मुसलमानों के धर्मीय मामलों से हस्तक्षेप नही करते। बल्कि उन्हें धर्म से जोडे रहने की ओर उकसाते हैं। उन्हें धर्म में लिपटे रहने की जुगत हमेशा करते रहते हैं।
इनका मकसद तो मुसलमानों को सियासत से दूर रखना, नागरी अधिकारों से वंचित रखना, लोकतांत्रिक हकों से अलग रखना, उन्हें डी-पॉलिटीसाइज करना आदी होता हैं। यह धार्मिक रूढीवादी लोग और तंजीमे आरएसएस के इस छिपे अजंडे को नहीं जानते, या जानना ही नहीं चाहते। सच कहूँ तो ऐसे लोग मेरी नजर में आरएसएस से भी ज्यादा नुकसानदेह है।
पढ़े : नाकामियां छिपाने का ‘सेक्युलर’ अलापपढे : सांप्रदायिक हिंसा पर चुप्पी के नुकसान
पढ़े : फातिमा शेख किसका फिक्शन है?
व्हाइट कॉलर लोग जिम्मेदार
इससे होने वाले सांस्कृतिक और धार्मिक बिगाड़ के लिए सबसे पहले यह व्हाइट कॉलर लोग ही जिम्मेदार है। हमें सबसे पहले इनका गिरेबान पकड़ना चाहिए। आरएसएस के मदरसा नीति के मामले मे यह लोग अनजान बने बैठे हैं। यह लोग सबकुछ जानकर भी चुप्पी साधे बैठे है। जानने की बात इसीलिए कर रहा हूँ की, इस्लाम की गलत छवी पेश करने के इस तरह के छिपे प्रयासो से हर कोई वाकिफ हैं।
इस तरह की कोशिशे दुनिया में बहुत पुरानी हैं। आर्थिक स्वतंत्रता, समता की बात करते हुए छठवीं सदी में पैगम्बर मुहंमद (स) के माध्यम से इस्लाम आया। तब शोषण आधारित बने-बनाये आर्थिक ढांचे और धर्म के मोनोपली को एक जोरदार धक्का लगा। इसके हिमायतीयों ने जो यहुदी और बाद में इसाई थे, उन्होंने रास्ते से नई व्यवस्था हटाने के लिए, इस्लामी राजव्यवस्था को लगत ढंग से प्रचारित किया। उसकी और पैगम्बरे इस्लाम की गलत छवी पेश करने के लिए नये लोगों को इस्लाम मे दाखिल कराया। आगे चलकर हजरत उस्मान की खिलाफत के दौर में यहीं लोगों ने ‘इस्लामी निज़ाम’ को नेस्तनाबूद कर दिया। ये लोग समाज में बिगाड पैदा कर के इस्लामी खिलाफत को अपने ढंग से संचालित कर रहे थे। भारत में आरएसएस भी यही चाहता हैं। यहं कोई इस्लामी खिलाफत या निज़ाम नही हैं, पर धर्म में बिगाड लाना, सामाजिक सौहार्द का माहौल खराब करना, सांप्रदायिक राजनीति का संचालन करना, मुसलमानों को अतिधार्मिक बनाना उसका मकसद हैं।
संघ अपनी यहीं मदरसे वाली सांप्रदायिक जमात को लेकर सेक्युलर विचारधाराओं पर हमला करने वाला है। इस्लाम को कट्टर साबित कर उसपर तोहमत लगाने वाला है। इस्लाम को चरमपंथ का हिमायती बताने वाला है। आधुनिक विचारों को इन नये उलेमाओं को सामने रखकर तोड़ मरोड़ने वाला है।
यह कथित उलेमा वर्ग मुसलमानों को और ज्यादा कट्टर बनाएगा। उन्हें आधुनिकता से रोकने वाला हैं। कॉलेजों में दाखिला लेना हराम बताने वाला है। बच्चों को मदरसे में भेजने की अपील करने वाला हैं। सेक्युलर विचारधारा और आधुनिकतावाद का गला घोटने वाला है।
पढ़ें : आरएसएस-काँग्रेस गुप्त संधि की स्क्रिप्ट
पढ़े : नाकामियां छिपाने का ‘सेक्युलर’ अलाप
पढे : सांप्रदायिक हिंसा पर चुप्पी के नुकसान
विभाजनकारी अजेंडा
राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान के नई शिक्षा नीति के मुताबिक मदरसो में गीता, रामायण के साथ सूर्य नमस्कार, ज्योतिष शास्त्र, महेश्वरा सूत्र, प्राणायाम सिखाए जाएगे। सिधे तौर पर कहे तो, केंद्रीय शिक्षा नीति का यह भगवाकरण हैं। एक सांप्रदायिक अजेंडा हैं। केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि ये सब कुछ नई शिक्षा नीति के अनुरूप ही किया जा रहा हैं।
दुसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है की, या भाजपाई केंद्र सरकार मदरसों को क्यों बढावा दे रही है? आरएसएस तो इसे और इसके साथ तमाम मुसलमानों को बदनाम करती हैं। मिसाल के लिए देखे तो आरएसएस मदरसों के बारे में हजार झूूठी कहानियां गढ़ता है, उसके बारे में भला बुरा कहता है और अब यही लोग मदरसों को स्थापित कर रहे हैं, इससे क्या सबक लिया जा सकता है?
सेक्युलर और लिबरल इस्लाम के मानने वाले और उसके अमन पसंद प्रचारकों को रोकने के लिए यह आरएसएस की खतरनाक कवायद और साजिश है। जिसका शिकार पहले सेक्युलर शिक्षा संस्थान और उसके बाद जनमानस होने वाला हैं।
जैसे की मान्यता है धर्मवादी अंधे होते हैं, इसलिए यह गूट तो छूट जाएंगे। मगर विभाजनकारी सांप्रदायिक अजेंडे से नुकसान तो गिने-चुने सेक्युलर, लिबरल और मध्यम मार्गी लोगों का होने वाला है। यह लोग सेक्युलर विचारों पर सीधा हमला करेंगे और उनके कहे गए इस्लाम को अपनाने की नसीहते देगे। उनका बताया इस्लाम अपनाने को कहेगे, इससे उन्हें मुसलमानों को और ज्यादा कट्टर, धर्मभिमानी, दकियानूस कहने में आसानी होंगी।
एक तरफ यह लोग मुसलमानों को तोहमत लगायेगे तो दुसरी ओर मुसलमानों में सांप्रदायिक शक्तीयाँ उभरने के लिए नियोजनबद्ध रूप से काम करेगे। यही लोगो द्वारा ही ‘गुड मुस्लिम और बॅड मुस्लिम’ की अवधारणा बनाई गयी हैं। इनके इशारों पर न चलने वालों को यह लोग ‘बॅड मुस्लिम’ बताते हैं।
इन मदरसो से मुसलमानों को हिंसा वाला इस्लाम, जिहाद वाला इस्लाम, सांप्रदायिक सोंच वाला इस्लाम सिखाएगे। उन्हें समाज से, विशिष्ट समुदाय से नफरत करना सिखाएगे, जैसा की आरएसएस की कई सारी शाखाए यह काम करती हैं, इसी तरह इन मदरसो का भी संचालन किया जाएगा।
(नोट : लेख में लेखक के विचार अपने हैं, उसे किसी पर थोंपने कि कोई मंशा नही हैं। गर इस मजमून को कोई पुन:प्रकाशित करना चाहता है, तो इजाजत की जरुरत नही हैं। बशर्ते लेखक को ज्ञात करवाना होगा।)
कलीम अजीम, पुणे
वाचनीय
ट्रेडिंग$type=blogging$m=0$cate=0$sn=0$rm=0$c=4$va=0
-
जर्मनीच्या अॅडाल्फ हिटलरच्या मृत्युनंतर जगभरात फॅसिस्ट प्रवृत्ती मोठया प्रमाणात फोफावल्या. ठिकठिकाणी या शक्तींनी लोकशाही व्यवस्थेला हादरे द...
-
“जो तीराव फुले और सावित्रीमाई फुले के साथ काम फातिमा कर चुकी हैं। जब जोतीराव को पत्नी सावित्री के साथ उनके पिताजी ने घर से निकाला तब फातिमा ...
-
उस्मानाबाद येथे ९३वे अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलन पार पडत आहे. या संमेलनाचे अध्यक्ष फादर फ्रान्सिस दिब्रिटो आहेत. तर उद्घाटन म्हणून रान...
-
अ खेर ४० वर्षानंतर इराणमधील फुटबॉल स्टेडिअमवरील महिला प्रवेशबंदी उठवली गेली. इराणी महिलांनी खेळ मैदानात प्रवेश करून इतिहास रचला. विविध वे...
-
मध्यपूर्वेतील इस्लामिक राष्ट्रात गेल्या 10 वर्षांपासून लोकशाही राज्यासाठी सत्तासंघर्ष सुरू आहे. सत्तापालट व पुन्हा हुकूमशहाकडून सत्...
-
फिल्मी लेखन की दुनिया में साहिर लुधियानवी और सलीम-जावेद के उभरने के पहले कथाकार, संवाद-लेखक और गीतकारों को आमतौर पर मुंशीजी के नाम से संबोधि...
-
इ थियोपियाचे पंतप्रधान अबी अहमद यांना शांततेसाठी ‘नोबेल सन्मान’ जाहीर झाला आहे. शेजारी राष्ट्र इरिट्रियासोबत शत्रुत्व संपवून मैत्रीपर्व सुरू...
/fa-clock-o/ रिसेंट$type=list
चर्चित
RANDOM$type=blogging$m=0$cate=0$sn=0$rm=0$c=4$va=0
/fa-fire/ पॉप्युलर$type=one
-
को णत्याही देशाच्या इतिहासलेखनास प्रत्यक्षाप्रत्यक्ष रीतीने उपयोगी पडणाऱ्या साधनांना इतिहाससाधने म्हणतात. या साधनांचे वर्गीकर...
-
“जो तीराव फुले और सावित्रीमाई फुले के साथ काम फातिमा कर चुकी हैं। जब जोतीराव को पत्नी सावित्री के साथ उनके पिताजी ने घर से निकाला तब फातिमा ...
-
इ थे माणूस नाही तर जात जन्माला येत असते . इथे जातीत जन्माला आलेला माणूस जातीतच जगत असतो . तो आपल्या जातीचीच बंधने पाळत...
-
2018 साली ‘ युनिसेफ ’ व ‘ चरखा ’ संस्थेने बाल संगोपन या विषयावर रिपोर्ताजसाठी अभ्यासवृत्ती जाहीर केली होती. या योजनेत त्यांनी माझ...
-
फा तिमा इतिहास को वह पात्र हैं, जो जोतीराव फुले के सत्यशोधक आंदोलन से जुड़ा हैं। कहा जाता हैं की, फातिमा शेख सावित्रीमाई फुले की सहयोगी थी।...
अपनी बात
- कलीम अजीम
- कहने को बहुत हैं, इसलिए बेजुबान नही रह रह सकता. लिखता हूँ क्योंकि वह मेरे अस्तित्व का सवाल बना हैं. अपनी बात मैं खुद नही रखुंगा तो कौन रखेगा? मायग्रेशन और युवाओ के सवाल मुझे अंदर से कचोटते हैं, इसलिए उन्हें बेजुबान होने से रोकता हूँ. मुस्लिमों कि समस्या मेरे मुझे अपना आईना लगती हैं, जिसे मैं रोज टुकडे बनते देखता हूँ. Contact : kalimazim2@gmail.com