आरएसएस के मदरसे यानी सेक्युलर विचारों पर हमला!

प्रतिकात्मक तस्वीर
ज एक पुरानी और एक नई खबर हाथ लगी, जिसके बाद यह मजमून लिखना जरुरी समझा। नई खबर यह है की, केंद्रीय सरकार ने National Institute of Open Schooling के तहत चलने वाले स्कूली सिलेबस में 15 नये विषयों के साथ वेदिक पाठ को शामील कर दिया हैं। इस एनआईओएस संस्थान के अंतर्गत कूल 100 मदरसे एक शिक्षा कार्यक्रम के तहत चलते हैं। जिनमें 50,000 तलबा पढ़ते हैं।

जाहिर है, वेदिक में गीता और रामायण का पाठ भी होगा। जो मदरसे में तालीम हासिल कर रहे मुस्लिम तलबा को भी पढ़ाया जाएगा। अगर यह स्वैच्छिक हो तो कोई हर्ज नही, अगर अनिवार्य हैं, तो मामला मुश्कील में पड़ सकता हैं। इसी आशंका को पुख्ता करती आज की ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की खबर हैं। जिसमें साफ तौर पर कहां गया हैं की, मदरसों में अब गीता और रामायण का पाठ होगा।

खबर में केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के हवाले से बताया गया है की, नोएडा में एनआईओएस के राष्ट्रीय मुख्यालय में सिलेबस जारी करते हुए उन्होंने कहा, “भारत प्राचीन भाषाओं, विज्ञान, कला, संस्‍कृति और परंपरा की खान है। अब देश अपनी प्राचीन परंपरा को पुनर्जीवित करके ज्ञान के क्षेत्र में सुपरपावर बनने को तैयार है। हम इन कोर्सों के लाभ को मदरसों और विश्‍व में मौजूद भारतीय समाज तक पहुँचाएँगे।”

शिक्षा मंत्रालय की प्रेस रिलीज के मुताबिक 50,000 छात्रों के साथ लगभग 100 मदरसे एनआईओएस से मान्यता प्राप्त हैं। इसके अलावा भविष्य में एनआईओएस के साथ मदरसों की मांग के आधार पर लगभग 500 और मदरसों को मान्यता देने की योजना है।

इससे पहले 2013 में मध्यप्रदेश मदरसा बोर्ड शिक्षा में गीता के पाठ को मंजुरी दे चुका हैं। मध्य प्रदेश के राजपत्र में 1 अगस्त 2013 को इस तरह कि अधिसूचना जारी हो गई था। जिसके मुताबिक कक्षा एक और दो की विशिष्ट अंग्रेजी और विशिष्ट उर्दू की पाठ्यपुस्तकों में शिक्षण सत्र 2013-14 से भगवद गीता में बताए गए प्रसंगों पर आधारित एक-एक अध्याय जोड़ने की अनुमति दी गई थी।  

दूसरी एक पुरानी खबर में कहा गया हैं की, आरएसएस अब मदरसे स्थापित करने वाला हैं। 18 मई 2019 कि ‘दि सियासत डेली’ की यह खबर बताती हैं की, नरेंद्र मोदी के इच्छा के अनुसार इसमें सिलेबस होगा। वहीं टाइम्स ऑफ इंडिया की यही खबर बताती हैं, की आरएसएस कुल छह मदरसो का निर्माण करनेवाला हैं। जिसमें उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड में यह मदरसे स्थापित किये जाएगे

खास बात यह है की, उत्तराखंड जिसकी पहचान देव भूमि के रूप में है, वहा संघ मदरसा चलाने वाला हैं। खबर के मुताबिक आरएसएस के सह-मुस्लिम मुस्लिम राष्ट्रीय मंच द्वारा खोले जाने वाले मदरसे शुरुआत में 50 छात्राओं को प्रवेश देंगे। यह पहला मदरसा हरिद्वार जिले के एक गांव में स्थापित किया जाएगा।
जबकि दैनिक जागरण के खबर के मुताबिक आरएसएस द्वारा चलाया जाने वाला यह छठा मदरसा हैं। इससे पहले संघ ने पाच मदरसे खोले हैं। पहले पांच मदरसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश के तीन जिलों में है। मुरादाबाद, बुलंदशहर और हापुड़ में एक-एक और मुजफ्फरनगर में दो मदरसे बने हुए है।

आरएसएस के मदरसा परियोजना को देखने वाले मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के राष्ट्रीय उप-महासचिव तुषार कांत सिलेबस के बारे में कहते हैं, “हमारे मदरसे सुनिश्चित करेंगे कि छात्र सिर्फ क़ाज़ी (शरीयत अदालतों में न्यायाधीश), कारी (मदरसे में धर्म के शिक्षक), इमाम (सामुदायिक नमाज़ के नेता), मौलाना (विद्वान पुरुष) और मुफ़्ती (जो फतवा जारी करते हैं) न बनें, बल्कि इंजीनियर, डॉक्टर, वैज्ञानिक और अन्य पेशेवरों के रूप में भी ग्रैजुएट हो।”

मतलब साफ हैं की, न्यूज चॅनेल के टेली मुल्लाओं के बाद यहां से निकलने वाले कथित मौलवी और उलेमा लोग ‘कट्टर इस्लाम’ का समर्थन करते फिरेंगे। मुसलमानों को और ज्यादा बदनाम करने के लिए यह लोग अब अपने विचारों के मदरसे खुलवाएंगे और मौलवी बनवाएगे। इतना ही नही इस्लामिक इंस्टिट्यूशन का अधिग्रहण भी करेंगे।

मुसलमानों को ब्राह्मण्यवादी सांप्रदायिक ढांचे का हिस्सा बनाएगे। अपने जहरिले विचारों से इस्लाम में और समाज में बिगाड़ पैदा करेंगे। उसे अधिमान्यता दिलवाएगे। अपने हिंसक विचारों के हिमायती पैदा करेंगे। इन मदरसों से खतरनाक विचारों वाले मौलवी निकलकर हमारे माशरे मेंहमारे शहरों मेंहमारे मोहल्ले, हमारे घरों में दाखिल होंगे।

इस तरह ये कथित मौलवी उदारवादी और सेक्युलर मुसलमानों के बरखिलाफ अपना धर्मवादी अजेंडा चलाते रहेंगे। जैसेराम मंदिर के लिए चंदा जमा करनेवाली जमात बनाएगे। तमाम मसलमानों को हिंदू साबीत करेगे। उन्हें हनुमान भक्त बताकर आरती करवाएगे। इस्लाम में चार शादियां करना जायज हैयह डंके की चोट पर बतायेगे।

जिहाद की नई व्याख्या करेंगे। आतंकवाद को धर्म का हिस्सा मानेगे। कुरआन का अपने ढंग से विश्लेषण करेंगे। इस्लाम में पर्दा लाजमी है इसकी वकालत करते रहेंगे। तीन तलाक़ का समर्थन करेगे। महिला अत्याचार और पितृसत्ताक का समर्थन करेंगे। मुसलमान मूल रूप से हिंदू ही है, ऐसा बेतुका दावा करेंगे। चरमपंथ को ही इस्लाम बताएंगे। कट्टरता को असल इस्लाम प्रचारित करेगे। इशनिंदा की हिमायत करेगे। आम लोगो को इस्लाम के नाम पर हिंसा के लिए प्रोत्साहित करेगे।

हिंसा को इस्लाम का अभिन्न अंग बताएंगे। मंदिर में पूजा अर्चना करना इमान हैइस तरह की दलील देंगे। मस्जिदों के एक कोने में मंदिर की स्थापना करने को भक्ति साबित करेंगे। नमाज और इबादत को दोयम बताएंगे। बच्चे, बड़े, बुढ़े और महिलाओं को आरएसएस की शाखाओं से जुड़ने की अपील करेंगे।

मुसलमानों के खिलाफ हो रही सांप्रदायिक हिंसा को जायज़ बताएंगे। मुसलमानों के खिलाफ चल रहे हरएक अजेंडे को सच्चा और पाक कदम बताएगे। एक जमात आरक्षण का विरोध करेगी तो दूसरी कहेगी तमाम मुसलमानों को आरक्षण दो। जबकि जातिगत आरक्षण का विरोध करेगे। मुसलमानों के जाति व्यवस्था का झुठलाएगे। तमाम मुसलमानों को ब्राह्मणवादी सांस्कृतिक वर्चस्ववाद के खूंटे से बांध देंगे। संघ द्वारा फैलाए जा रहे ब्राह्मणवादी सांस्कृतिक अभिशप्त को अपनाने की अपील करेंगे।

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जवाब में मुसलमान क्या करेंगे,

जैसेयह तो ईमान से खारिज है। नउजुबिल्लाह ये हराम है। ये इस्लाम का नया फिरका हैं। हमारा मजहब इसकी इजाजत नहीं देता। इस्लाम शांति का मजहब है। इस्लाम में यह बातें हराम है। ये कुरआन की तालीम नहीं है, आदि कानों पर हाथ रख कर मीठी मीठी और लुभावनी बातें करेंगे। 

मगर जिस हथियार से मुसलमानों पर सांस्कृतिक और वैचारिक हमला किया जा रहा है उस को समझने की कोशिश नहीं करेंगे। गैरइस्लामिक ब्राह्मणवादी अजेंडा और मुस्लिमद्वेशी मानसिकता को नहीं पहचानेंगे। इसकी छांव में छिपी सांस्कृतिक राजनीति को नहीं परखेंगे। अस्मिताधारी आर्थिक राजनीति के पहेली को नहीं बुझेगे।

और तो और इसका तोड़ इस्लाम में ही ढूंढ लेंगेमगर भारतीयतासंस्कृतिसभ्यता और विरासत में जवाब नहीं तलाशेगे। आरएसएस ने देशनिष्ठा को नाम पर मुसलमानों को बरगलाया हैं। हमारे बताये हुये रास्ते पर चलेगे तो ही सच्चे और अच्छे मुस्लिम कहलाएगे, वरना देशद्रोही साबित होगे, इस तरह का मॅकेनिझम उनके दिमाग में फीड किया हैं। उन्हें राष्ट्रनिष्ठा की अफीम देकर नशे मे रखा हैं। देश (राम)भक्ती और पंथनिरपेक्षता की जालीदार टोपी पहना कर और लंबी दाढ़ी रखवाकर कुछ मुसलमानों के गले में एक खास तरह का पट्टा डाल रखा हैं।

इस पट्टे को जब वे ढिल देंगे तो यह लोग मुसलमानों पर ही हमलावर होगे और जब खींचेगे तो एकाएक रुक जाएंगे। आज इस तरह की कई धार्मिक जमातेतंजीमे, सामाजिक-राजकीय संगठनप्रवक्ता मुसलमानों में मान्यता प्राप्त कर चुके है। गोदी मीडिया के टीवी स्क्रीन पर इनके टेली मुल्लोंकी भीड़ हर दिन बनी रहती है।

यह नकली मुल्ला लंबी दाढ़ी रख कर आरएसएस के अजेंडे की हिमायत करते हैं। सच्चे मुसलमाँ और नेक इस्लामी होने के दावे करते हैं। रिज्ड इस्लाम के अनुयायी बनते हैं। भाजपाई पे-रोल पर रहने वाले यह लोग भारत के तमाम मुसलमानों के प्रतिनिधि बनते हैं। इस्लाम और भारतीय मुसलामानों का प्रतिनिधी बनकर अनाप-शनाप बातें कहते हैं। नई-नई मनगढ़त कहानियां गढ़ते हैं।

इस्लाम के परंपरावादी उलेमाधार्मिक विद्वानधर्मवादी नेतृत्व इनके जवाब में कुछ नहीं करते। उन्हें ना विरोध करते हैंना उनके खिलाफ मोर्चा खोलते हैं। ना ही उन्हें इस्लाम का प्रतिनिधी बनने से रोकते हैं। और न ही उन्हे मुसलमानों का कथित रूप से हिमायती बनने पर टोकते हैं। उसी तरह ना ही उनसे संपर्क रखते हैं, ना डायलॉग रखते हैं।

महज पैसा, शोहरत और सम्मान पाने की लालसा के लिए दुश्मनों के खुंटे से बंधे इन लोगों की मजबूरी को समझना जरूरी हैं। यह लोग जातिभेद, उच-नीच, शिया-सुन्नी पंथीय विवाद के चलते हम ही से सताये हुए हैं। यह लोग अस्मिताधारी पहचान के भूखे हैं। यह लोग नाम की लालसा रखे हुए हैं। हमारे परंपरावादी उलेमा, धर्मपंडित और धर्म के ठेकेदार इन महामहिमों की जरुरत, लाचारी और मजबूरी को इकोनॉमिकली समझने की कोशिश नही करते।

बाज वक्त तो ऐसे भी देखने को मिला है कि आरएसएस के लोग मेनस्ट्रीम के धर्मवादी (किसी का दल या संघठन का नाम नहीं लेना चाहता) संगठनों के हां में हां मिलाकर काम करते हैं। इन मेनस्ट्रीम वालों को लगता है कि आरएसएस हमारे धर्म (इस्लाम)के खिलाफ नहीं है। यह लोग भी बड़े चालाक होते हैं, जो मुसलमानों के धर्मीय मामलों से हस्तक्षेप नही करते। बल्कि उन्हें धर्म से जोडे रहने की ओर उकसाते हैं। उन्हें धर्म में लिपटे रहने की जुगत हमेशा करते रहते हैं।

इनका मकसद तो मुसलमानों को सियासत से दूर रखना, नागरी अधिकारों से वंचित रखना, लोकतांत्रिक हकों से अलग रखना, उन्हें डी-पॉलिटीसाइज करना आदी होता हैं। यह धार्मिक रूढीवादी लोग और तंजीमे आरएसएस के इस छिपे अजंडे को नहीं जानतेया जानना ही नहीं चाहते। सच कहूँ तो ऐसे लोग मेरी नजर में आरएसएस से भी ज्यादा नुकसानदेह है।

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व्हाइट कॉलर लोग जिम्मेदार

इससे होने वाले सांस्कृतिक और धार्मिक बिगाड़ के लिए सबसे पहले यह व्हाइट कॉलर लोग ही जिम्मेदार है। हमें सबसे पहले इनका गिरेबान पकड़ना चाहिए। आरएसएस के मदरसा नीति के मामले मे यह लोग अनजान बने बैठे हैं। यह लोग सबकुछ जानकर भी चुप्पी साधे बैठे है। जानने की बात इसीलिए कर रहा हूँ की, इस्लाम की गलत छवी पेश करने के इस तरह के छिपे प्रयासो से हर कोई वाकिफ हैं।

इस तरह की कोशिशे दुनिया में बहुत पुरानी हैं। आर्थिक स्वतंत्रता, समता की बात करते हुए छठवीं सदी में पैगम्बर मुहंमद (स) के माध्यम से इस्लाम आया। तब शोषण आधारित बने-बनाये आर्थिक ढांचे और धर्म के मोनोपली को एक जोरदार धक्का लगा। इसके हिमायतीयों ने जो यहुदी और बाद में इसाई थे, उन्होंने रास्ते से नई व्यवस्था हटाने के लिए, इस्लामी राजव्यवस्था को लगत ढंग से प्रचारित किया। उसकी और पैगम्बरे इस्लाम की गलत छवी पेश करने के लिए नये लोगों को इस्लाम मे दाखिल कराया। आगे चलकर हजरत उस्मान की खिलाफत के दौर में यहीं लोगों ने इस्लामी निज़ाम को नेस्तनाबूद कर दिया। ये लोग समाज में बिगाड पैदा कर के इस्लामी खिलाफत को अपने ढंग से संचालित कर रहे थे। भारत में आरएसएस भी यही चाहता हैं। यहं कोई इस्लामी खिलाफत या निज़ाम नही हैं, पर धर्म में बिगाड लाना, सामाजिक सौहार्द का माहौल खराब करना, सांप्रदायिक राजनीति का संचालन करना, मुसलमानों को अतिधार्मिक बनाना उसका मकसद हैं।

संघ अपनी यहीं मदरसे वाली सांप्रदायिक जमात को लेकर सेक्युलर विचारधाराओं पर हमला करने वाला है। इस्लाम को कट्टर साबित कर उसपर तोहमत लगाने वाला है। इस्लाम को चरमपंथ का हिमायती बताने वाला है। आधुनिक विचारों को इन नये उलेमाओं को सामने रखकर तोड़ मरोड़ने वाला है।

यह कथित उलेमा वर्ग मुसलमानों को और ज्यादा कट्टर बनाएगा। उन्हें आधुनिकता से रोकने वाला हैं। कॉलेजों में दाखिला लेना हराम बताने वाला है। बच्चों को मदरसे में भेजने की अपील करने वाला हैं। सेक्युलर विचारधारा और आधुनिकतावाद का गला घोटने वाला है।

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विभाजनकारी अजेंडा

राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान के नई शिक्षा नीति के मुताबिक मदरसो में गीता, रामायण के साथ सूर्य नमस्कार, ज्योतिष शास्त्र, महेश्वरा सूत्र, प्राणायाम सिखाए जाएगे। सिधे तौर पर कहे तो, केंद्रीय शिक्षा नीति का यह भगवाकरण हैं। एक सांप्रदायिक अजेंडा हैं। केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि ये सब कुछ नई शिक्षा नीति के अनुरूप ही किया जा रहा हैं।

दुसरी महत्त्वपूर्ण बात यह है की, या भाजपाई केंद्र सरकार मदरसों को क्यों बढावा दे रही है? आरएसएस तो इसे और इसके साथ तमाम मुसलमानों को बदनाम करती हैं। मिसाल के लिए देखे तो आरएसएस मदरसों के बारे में हजार झूूठी कहानियां गढ़ता हैउसके बारे में भला बुरा कहता है और अब यही लोग मदरसों को स्थापित कर रहे हैंइससे क्या सबक लिया जा सकता है? 

सेक्युलर और लिबरल इस्लाम के मानने वाले और उसके अमन पसंद प्रचारकों को रोकने के लिए यह आरएसएस की खतरनाक कवायद और साजिश है। जिसका शिकार पहले सेक्युलर शिक्षा संस्थान और उसके बाद जनमानस होने वाला हैं।

जैसे की मान्यता है धर्मवादी अंधे होते हैंइसलिए यह गूट तो छूट जाएंगे। मगर विभाजनकारी सांप्रदायिक अजेंडे से नुकसान तो गिने-चुने सेक्युलरलिबरल और मध्यम मार्गी लोगों का होने वाला है। यह लोग सेक्युलर विचारों पर सीधा हमला करेंगे और उनके कहे गए इस्लाम को अपनाने की नसीहते देगे। उनका बताया इस्लाम अपनाने को कहेगे, इससे उन्हें मुसलमानों को और ज्यादा कट्टर, धर्मभिमानी, दकियानूस कहने में आसानी होंगी।

एक तरफ यह लोग मुसलमानों को तोहमत लगायेगे तो दुसरी ओर मुसलमानों में सांप्रदायिक शक्तीयाँ उभरने के लिए नियोजनबद्ध रूप से काम करेगे। यही लोगो द्वारा ही गुड मुस्लिम और बॅड मुस्लिम की अवधारणा बनाई गयी हैं। इनके इशारों पर न चलने वालों को यह लोग बॅड मुस्लिम बताते हैं।

इन मदरसो से मुसलमानों को हिंसा वाला इस्लाम, जिहाद वाला इस्लाम, सांप्रदायिक सोंच वाला इस्लाम सिखाएगे। उन्हें समाज से, विशिष्ट समुदाय से नफरत करना सिखाएगे, जैसा की आरएसएस की कई सारी शाखाए यह काम करती हैं, इसी तरह इन मदरसो का भी संचालन किया जाएगा।


हमे इस कोशिश को रोकना होगा। उन्हें मदरसा स्थापित करने से हम रोक नही सकते, मगर हां इतना जरूर कर सकते है की, इन मदरसो मे जाने से अपने बच्चो को रोके। उन्हें वहाँ दाखिल न कराये। समाज में इस बारे में कौन्सिलिंग का काम करे। समाज को आधुनिक शिक्षा का महत्त्व समझाए। इतना ही नही, अपने बच्चो के लिए पारपंरिक मदरसो के लिए भी इनकार करे। बच्चो को आधुनिक शिक्षा दिलवाए। कॉन्व्हेंट स्कूल, अंगरेजी मीडियम, कॉलेज, युनिवर्सिटी मे भर्ती कराए।

इसी पर आधारित टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर बताती हैं की वहां किसी भी धर्म के बच्चो को प्रवेश दिया जाएगा। गर ऐसा है तो वहां सिर्फ गैरमुस्लिम बच्चे ही पढने चाहीए! मुसलमानों के बच्चे वहां किसी भी सूरत में नही जाने पाए। और हां यह आम लोगो को ही करना पडेगा। क्योंकि इसका विरोध मजहबी तंजीमे, इदारे, मकतब नही करने वाले हैं। क्योंकि वे भी किसी अजेंडे को लेकर काम करते हैं, इसीलिए उनसे उम्मीद करना बेमानी हैं।

(नोट लेख में लेखक के विचार अपने हैं, उसे किसी पर थोंपने कि कोई मंशा नही हैं। गर इस मजमून को कोई पुन:प्रकाशित करना चाहता है, तो इजाजत की जरुरत नही हैं। बशर्ते लेखक को ज्ञात करवाना होगा।)

कलीम अजीम, पुणे

मेल : kalimazim2@gmail.com

वाचनीय

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नजरिया: आरएसएस के मदरसे यानी सेक्युलर विचारों पर हमला!
आरएसएस के मदरसे यानी सेक्युलर विचारों पर हमला!
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