आप साहिबान को अस्सलाम,
बीते ५ अगस्त को अयोध्या मे विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण के लिए भूमीपूजन किया गया। जिसमें देश के प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी ने अपनी सहभागिता दर्ज कराते हुए पूजा-अर्चा की। जिस पर काफी बवाल और हो-हल्ला मचा, मगर उतना नही, जितना नेहरू के समय हुआ था।
आपको शायद याद होगा की, 1951 के आज़ाद भारत में सरदार पटेल की पहल पर सोमनाथ मंदिर का फिर से निर्माण किया गया। जिसके पूजा में केंद्रीय मंत्री तथा जनमान्य सरकारी लोगों के शामील होने पर नेहरू ने एतराज जताया। जिसका कुछ हद तक पालन भी हुआ।
मगर पंडित नेहरू का विरोध करते हुए पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद पूजा में शामील हुए। मतलब देश के संवैधानिक पद पर असीन व्यक्ती का पूजा में शामील होना नया नही हैं। मगर एक सेक्युलर राष्ट्र इस तरह किसी धर्मविशेष के पूजा अर्चा में शामील होना गलत हैं। यह एक अलग चर्चा की विषय हैं। जिसमे आप अपनी आलातरीन और बखूबी राय रख सकते हो!
सुप्रीम कोर्ट के हुक्म के बाद अयोध्या के पास धन्नीपुर गांव में ही यूपी सरकार
ने सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ ज़मीन दी है। यह जगह पुरानी बाबरी मस्जिद से तकरीबन 25 किलोमीटर दूर है। हालाँकि इस दूर की ज़मीन पर मस्जिद बनाने के प्रस्ताव पर कई
मुसलमान और इस विवाद में पक्षकार रहे लोगों ने विरोध किया हैं।
साथ ही खबर आई की,
उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये पाँच एकड ज़मीन पर अस्पताल
बनने वाला हैं। खैर। मेरी निजी राय हैं की, बेशक वहां आलीशान
मस्जिद ही बननी चाहीए। इतना ही नही
मस्जिद के साथ वहां कम्युनिटी सेंटर भी बनावे। इसके साथ एक और अहम बात वहां होनी
चाहीए, जिसपर मैं आप लोगो की तवज्जो चाहता हूँ।।
यह मेरी निजी राय हैं,
इसीलिए जरा हटकर है। मैं असद (औवेसी)भाई के राय से सहमत
हूं। हमे आने वाली पीढ़ी को यह बार-बार बताना होगा कि भारत में हमारे साथ नाइंसाफी
हुई है। यहां की सरकार ने हमे छला हैं। मगर महज यह बताने से काम नही होनेवाला।
इसलिए उस पाँच एकड वाली ज़मीन पर मस्जिद के साथ एक म्युझियम भी बने। जिसमें मस्जिद
को लेकर भारतीय मुसलमानों हुई नाइन्साफी की प्रदर्शनी लगे। क्योंकि सारी दुनिया
जानती हैं,
इस देश की न्याय व्यवस्था और भाजपाई हिंदुवादी सरकार ने हम
मुसलमानों के साथ छल कपट किया हैं।
इस छल-कपट के इतिहास को हम हिंद के मुसलमानों को सहेजकर रखना होगा, उसे संरक्षित कर उसका डॉक्युमेंटेशन तैयार करवाना होगा। साफ बात कहू तो,
हम भारतीय मुसलमानों को इस नाइंसाफी का मॉन्यूमेंट बनाकर
उसे म्यूझियम के रूप में संजोकर रखना होगा।
बाबरी मामले में सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के बाद भारतीय मुसलमानों के तीस दशक
के जद्दोजहद में कुछ भी हाथ लगा नही हैं। और ना ही इस मामले में कुछ और करने के
लिए बचा हैं। अगर बचा हैं तो, सिर्फ मिट्टी-पत्थरो का
ढेर! बाबरी शहीद कर देने के बाद वहां मलबा या फिर ढांचा कहिए, कुछ निशानदेही की शक्ल में बचा होगा। जिसे आनेवाली पीढी के लिए एक दर्दाना
इतिहास के रूप में संरक्षित किया जाना बेहद जरूरी है।
बेशक उस ज़मीन पर बाबरी मस्जिद बननी चाहीये। और वह भी ऐसी बने कि दुनियाभर के
लोग उसे देखने और इबादत करने के लिए अयोध्या आए। वहां आनेवाला हर जायरीन बाबरी के
साथ मुसलमानों के साथ हुई नाइन्साफी को भी देखे और उसे समझे।
कुल पाँच में दो एकड़ ज़मीन या जो मुनासिब हो, उसमें बाबरी का मूल ढांचा लाकर रखा जाए। या फिर उसी ढांचे से प्रतिकात्मक
बाबरी का निर्माण करवा लिया जाए। दूसरी अहम बात यह है कि उस दो एकड में बाबरी का
ढांचा बनवाया जाए;
जो तोडने के बाद दर्शनीय स्वरूप में बचा थी या दिख रहा था।
उसी तरह उसे संरक्षित कर रखना जरुरी हैं।
बीते तीन दशक से बाबरी की जो तस्वीर मीडिया में प्रकाशित हो रही हैं, उसी शक्ल में प्रतिकात्मक बाबरी मस्जिद का मॉन्युमेंट बने। जिसमें गुम्बद के उपर उपद्रवियों की भीड हाथ में कुदाल और फावडे लिए चढ़ी हैं।
इस तस्वीर को दर्शनीय स्थल के रूप में सरंक्षित किया जाए। क्योंकि इसकी
तस्वीरे पब्लिक डोमेन में मौजूद हैं। इसे एक संग्रहालय के रूप में स्थापित किया
जाए। जिसे आनेवाले पिढी भारत के सांप्रदायिक इतिहास को जाने और उससे सबक हासिल कर ले।
पढे : न्यूज चॅनेल के ‘टेली मुल्ला’ओं का विरोध हो
सिक्खो ने अपने खिलाफ हुई नाइन्साफ़ी को इस संग्रहालय के माध्यम से दुनिया को बताया हैं। जब मैंने उसे देखा तो घंटे भर के लिए मेरे दिल में भी मुग़लों के प्रति नफरत और सिक्खों के प्रति हमदर्दी पैदा हुई। पर इसका असल इतिहास तो हम सब जानते हैं। सिक्खों ने बड़ी ही सादगी से अपने साथ हुए जुल्म को आम लोगों के सामने मॉन्यूमेंट के रूप में पेश किया है। जिससे उनका मकसद पूरा होता नजर आता है।
दुनिया भर में इस तरह के कई मॉन्यूमेंट या वॉर म्यूजियम बने हैं, जैसे इजराइल का होलोकॉस्ट मेमोरियल, वियतनाम का वॉर
म्युझियम या फिर पिछले साल 2019 को खोला गया अल्बामा के मोंटगुमरी का वर्णभेदविरोधी ‘लिगसी म्युझियम!’
1992 में इजराइल के यहूदीयों
ने ‘होलोकॉस्ट म्यूजियम’
बनाकर दुनिया को यह दिखा दिया की, उनके साथ ज्यादती और
नाइन्साफी की गई। जिसका मकसद उन 60 लाख यहूदी औरते, आदमी और बच्चों को याद करना जिनकी नाजियों और उनके सहयोगियों ने मिलकर कत्ल किया
था। इस म्यूजियम में नाजियों द्वारा सताये गये या मारे गए यहूदीयों से जुड़े बहुत
सारे दस्तावेज मौजूद हैं। म्यूजियम के विशालकाय डोंब पर एक लाख से ज्यादा पीडित
यहूदीयों की फोटो लगी हैं।
इजराइल नें नाजियों द्वारा मारे गए इन यहूदींयो (म्यूजियम) को हथियार बनाकर
दुनिया भर से हमदर्दी लूटी हैं। और यह हक हासील कर लिया हैं की,
नाजियों का जुल्म सहने के बाद वह दुनिया पर जालिमाना
कार्रवाई करने का और जुल्म ढाने का हक रखता हैं।
दुसरी ओर मोंटगुमरी का स्लेवरी म्यूजियम
हैं। जिसे देखने के बाद आम इन्सान को भी वर्णभेद के खिलाफ हथियार हाथ में लेने को
दिल करता हैं। यह ‘Legacy Museum’ अश्वेत अमेरिकियों की लिंचिंग के हजारों पीड़ितों को
समर्पित है,
जो 1877 और 1950 के बीच हुआ था। म्यूजियम में ऐसे लिंचिंग के 4400 मामलों की खोजने में कामयाब हुआ हैं।
इस म्यूजियम में गुलामी की जंजीरों में जकडे हुए इन्सानो की स्टैच्यू लगे हैं, जिसके देखकर रुह कांप जाती हैं। इस लिंचिंग म्यूजियम की जानकारी और रिपोर्ट कई वेबसाइटों पर आसानी से मिल से मिल जाएगी।
क्यो न हम भारत के मुसलमान इसी तर्ज पर पाँच एकड़ ज़मीन पर बाबरी का संग्रहालय बनाए। जिससे हम बाबरी के इतिहास और मुसलमानों के साथ हुई नाइन्साफी का बखान बिना बताये कर सकते हैं। यह म्यूजियम आनेवाली पिढी का सांस्कृतिक और राजनैतिक प्रतिनिधित्व कर सकता हैं। बाबरी को लेकर भारतीय मुसलमानों के साथ जो अन्याय हुआ, उनका गलत चित्रण पेश किया गया और सामाजिक कुरितियां फैलाई गई उसे हम इस मॉन्युमेंट्स के जरीए दुनिया के सामने रख सकते हैं।
पढ़े : नाकामियां छिपाने का ‘सेक्युलर’ अलापमाशाअल्लाह, आप लोग समाज के नुमाईंदे हैं। मैं जिन लोगों को ये मेल भेज रहा हूँ उसमे, विधायक और सांसदों के साथ देश तता महाराष्ट्र के बुद्धिजीवी, विचारक, राजनीतिक विश्लेषक, पत्रकार भी हैं। आप सब लोग मुसलमानों के नुमाइंदगी करते हैं। आप पिछले 30 सालो से सार्वजनिक जीवन में है। आपने सारा मामला और बढती सांप्रदायिकता देखी हैं। जिससे आप इस मॉन्युमेंट्स का कल्चरल वैल्यू बखुबी समझ सकते हैं।
इस जगह अस्पताल, स्कूल, इस्लामिक कल्चरल एक्टिविटीज, रिसर्च इंस्टिट्यूट, लाइब्रेरी, पब्लिक यूटिलिटी इनफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करे। वहां के इस लाइब्रेरी में हमारे साथ हुई नाइंसाफी, न्याय व्यवस्था का रवैय्या, राम जन्मभूमि आंदोलन, बाबरी विध्वंस के बाद हुए दंगों में मारे गए मुसलमान, उनके साथ हुई ज्यादतियों और इस विवाद के इतिहास संजोकर रखें। जिसमें इस आंदोलन पर की गई रिसर्च की किताबे रखी जाए। साथ ही अखबार की खबरे, टीवी शो, डॉक्युमेंटरी, रिपोर्ट, अध्ययन आदी को सहेजकर रखे। जिससे आनेवाले समय में इस मामले के स्टडी के लिए पर्याप्त संसाधन एक ही जगह पर मिले।
मेरी राय है कि उस जगह मस्जिद के साथ संग्रहालय भी बने। जिसमें बाबरी और राम जन्मभूमि आंदोलन को लेकर भारत के मुसलमानों के साथ जो जो हालात पेश आये है उसका संदर्भ-साहित्य मिले। इसके अलावा मुसलमानों के वैचारिक पृष्ठभूमि बनाने के लिए एक रिसर्च सेंटर का निर्माण वहां हो।
बीते तीन दशकों से मुसलमानों के साथ राजनैतिक नजरिये से साथ जो-जो हुआ है उसको यहां (अयोध्या) एक इतिहास के रूप में संजोकर रखना बेहद जरुरी हैं। जिसे देखने के बाद हम मुसलमानों के लेकर कोई राय बनाने से पहले वास्तविकता को परखे।
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पूरे 5 एकड़ ज़मीन में मस्जिद के साथ रिसर्च सेंटर, सेमिनार हॉल आदि सुविधा मुहैया कराना जरूरी है। जहां हर साल दुनियाभर के बुद्धिजीवी लोग बुलाकर अमन और मानवीयता का पैगाम देने के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम हो।
क्योंकि दुनिया भर से लोग जब अयोध्या आएंगे तो इसे भी देखने आएंगे। जहां उन्हे एक हजारों मुसलमानो के लाशों पर खडा मंदिर दिखाई देगा। तो दुसरी तरफ नाइन्साफी की मुजस्समा मस्जिद दिखाई देगी।
अबतक भारत के मुसलमानों ने इजराइल की तरह भावनाओं का व्यापार नहीं किया है। यह करना गलत भी है। मगर मौजूदा हालात में जहां मुल्क के हिंदूवादी शासक आए दिन मुसलमानों के खिलाफ मुहिम छेडे हैं। ऐसे समय इस मामलों को लेकर और ज्यादा डिप्लोमॅटिक होना जरुरी हैं। जिस तरह से हिंदुत्ववादी और आरएसएस से जुड़े संगठनों ने मुसलमानों के प्रति नफरत फैलाने के लिए बहुसंख्य समुदाय के भावनाओं का इस्तेमाल किया है; हमें भी चाहिए कि इसी ट्रिक के साथ हमारी मूल और सच्ची भावनाओं को लोगों के सामने पेश करें।
खैर, यह एक चर्चा का अलग विषय है। पर आप साहिबान मेरी सांस्कृतिक दखल की बात पर गौर करें। हो सकता हैं, ये मेरी राय आपको फिजुल लगे। पर इसपर सोचे जरुर। मैं व्यक्तिगत तौर पर यह राय रखी हैं। अब आप साहिबान का फर्ज बनता हैं, इस बात को सुन्नी वक़्फ बोर्ड, इंडो इस्लामिक कल्चरल फ़ाउंडेशन के वरीष्ठ तथा जिम्मेदार के सामने रखे।
ता. 10 अगस्त 2020
शुक्रिया....
कलीम अजीम
(पत्रकार, लेखक और शोधकर्ता)
स्थायी निवास पुणे
मो. 9422XXXXXX
(संबंधित खत देश के सभी मुस्लिम सांसद और विधायक तथा सुन्नी वक़्फ बोर्ड, बाबरी पक्षकार तथा बुद्धिजीवीयो को
भेजा गया था। जिसमें सिर्फ मुंबई से राज्यसभा सांसद जनाब हुसैन दलवाई का जवाब
आया। उन्होंने इस प्रस्ताव की ताइद और नुमांईदगी की। मगर बाकी अन्य लोग इस प्रस्ताव पर जवाब नही
दे पाए। या फिर उन्हे यह प्रस्ताव मिला ही नही। इस सुरत में एक साल बाद इस खत को पब्लिक किया जा रहा हैं।)
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