राम मंदिर भूमीपूजन के लिए 5 अगस्त क्यों चुना ?


दि वायर के संपादक सिद्धार्थ वर्दराजन का ये लेख उनके अंग्रेजी व्हिडिओ पर आधारित हैं, जिसे हमने व्हॉट्स एप के द्वारे पाया। इसके हिन्दी अनुवादक के बारे पता (अनुवादक का नाम मिले तो डालेगे) नही चल सका हैं। वैसे ये आलेख काफी महत्त्वपूर्ण हैं, इसलिए हम नजरिया पाठकों के WP के सौजन्य से दे रहे हैं।
देश के समाजकंटक जिन्होंने भारत देश की आजादी में कभी भी हिस्सा नहीं लिया उन्हीं लोगों ने 5 अगस्त यह तारीख जान बूझ कर चुनके देश के लोगों को नीचा दिखाने की कोशिश की है। इसकी वजह से 15 अगस्त की अहमियत कम करने की कोशिश है। यह तारीख विकास के बजाय विध्वंस, कानून के बजाय अपराध और सच्चाई के बजाय झूठ के लिए जानी जाएगी।

इसी दिन पिछले साल जब भारत सो रहा था कश्मीर के लोगों को कर्फ्यू और गुलामी का सामना करना पड़ा। मुजरिमों का एक गिरोह जिनकों 450 साल पुरानी मस्जिद को शहीद करने के लिए गिरफ़्तार करना चाहिए था, वही लोग आज खुलकर मौज़ कर रहे थे।

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मदद से इस मंदिर का शिलान्यास किया इस बात की गवाही देता है कि देश के संविधान को तोड़ मरोड़ के रख दिया गया है। यहां सवाल ये उठता है की संविधान की धारा 370 और 35-A पिछले साल अगस्त में खारिज करने के बाद संविधान में बचता ही क्या है और मैं कहूंगा कि जो कुछ भी बचता है उसके पन्ने इधर-उधर बिखर दिए गए हैं।

मंदिर का शिलान्यास और वह दो धाराओं को खारिज करने के बाद नरेंद्र मोदी इस बात को पेश करना चाहते हैं कि यह नया भारत बनाने का प्रमाण है।

हालांकि यह बात तो सबको पता है की देश की सर्वोच्च अदालत के बिना यह काम इनके लिए संभव न था। कट्टरतावादी सोच को राष्ट्रीय सोच में तब्दील करने का यह प्रयास है। इस देश की बहुसंख्यक मीडिया का इसमें हाथ होना हमारे लिए बड़ी ताज्जुब की बात है।




देश की कुछ मीडिया ने आज की हुकूमत को दो बड़े झूठ गढ़वाने में मदद की है। पहला यह कि जो संघ परिवार का मंदिर है जिसको बनाने में उनका बहुत बड़ा हाथ था एक सच्चा हिन्दू मंदिर है और दूसरा संविधान की वह दो धाराएं जो कश्मीर को एक अलग पहचान देती थी इसको खारिज करने के बाद आतंकवाद से लड़ने में मदद होगी, देश का आर्थिक विकास होगा और कश्मीर के लोगों को एक सच्चा भारतीय बनाने में मदद होगी।

यहां इस बात का पता चलता है कि इसी तारीख को दो बड़े फैसले लेना यह संघ परिवार का एक नया भारत बनाने का प्रयास है।

बाबरी मस्जिद को शहीद करना और उस जगह पर राम मंदिर का निर्माण करना यह हमेशा आरएसएस और भाजपा का एजेंडा था। 1980 से लेकर 6 दिसंबर 1992 यानी बाबरी मस्जिद शहीद करने तक भाजपा ने आरएसएस की मदद से एक मुहिम चलाई जिसकी वजह से भाजपा को 1984 में मिले 2 सीट से एक दशक के बाद 182 सीटें मिलने में मदद हुई और कुछ सालों बाद देश में बहुमत की सरकार बनाने मैं मदद हुई।

2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कई मुद्दों के साथ साथ राम मंदिर का मुद्दा भी उपस्थित किया जिसकी वजह से उनकी और भी सीटें बढ़ गई और इसी के साथ उनका वोट शेयर भी बढ़ गया। यह बढ़ने के पीछे मंदिर ही वही एक मुद्दा है। आज भी हमें भाजपा और आरएसएस द्वारा कहा जाता है कि यह एक लंबे समय से चला आ रहा मुद्दा है जो 5 अगस्त को समाप्त हुआ लेकिन सच्चाई से बढ़कर कुछ भी नहीं होता।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज सदियों का संघर्ष समाप्त हुआ लेकिन वह यह बात भूल गए की संघ का संघर्ष पिछले 35 सालों का ही था। उन्होंने एक और बात कही कि कुछ लोगों को विश्वास नहीं हो रहा की वह इस दिन को देखने के लिए जिंदा है लेकिन वह इस बात को कहना भूल गए की हजारों से ज्यादा लोग इस दिन को देखने के लिए जिंदा नहीं है क्योंकि इस विध्वंस के वजह से उनको अपनी जान गवानी पड़ी।

नरेंद्र मोदी ने इस मंदिर को बनाने के लिए बड़ी तेजी दिखाई और साथ ही में उन्होंने सीबीआई पर अपनी निगाह भी बनाई रखी ताकि जो लोग इस मस्जिद को शहीद करने में शामिल थे उनको बचाया जा सके।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी बड़ा अजीब था। वे इस बात को मानती है कि मुसलमानों को उनकी मस्जिद से गैर कानूनी तौर पर दूर रखा और मस्जिद को शहीद करना एक बड़ा अपराध था और इसके बावजूद भी उन्होंने अपना फैसला मंदिर के पक्ष में रखा।



अदालत का फैसला आने के बाद केंद्र सरकार ने फौरन ही एक ट्रस्ट को स्थापित करने का निर्णय लिया जो मंदिर की देखभाल कर सकें। लेकिन यह एक पक्षपाति काम ना होने का जो दावा किया जा रहा था वह फौरन ही समाप्त हुआ जब नृत्य गोपाल दास और चंपत राय जिनका मस्जिद को गिराने में बड़ा योगदान था और सीबीआई ने उन पर आरोप भी किए थे, इस ट्रस्ट के अनुक्रमे अध्यक्ष और सचिव बनाए गए।

नरेंद्र मोदी, योगी आदित्यनाथ ने उनकी पक्षपाति मीडिया की मदद से इस मंदिर को हिन्दू राष्ट्र बनाने की पहल दिखाई है जो संविधान के बिलकुल खिलाफ है। 5 अगस्त की यह रणनीति इस बात का पुख्ता सबूत देती है कि आरएसएस का एक हिन्दू राष्ट्र बनाने का सपना आने वाले कुछ सालों में बड़ा जोर पकड़ेगा।

नरेंद्र मोदी ने इस बात की पूर्व कल्पना 2019 के लोकसभा चुनाव में दी थी जब उन्होंने वायनाड के मतदारों का मजाक उड़ाया क्योंकि वह ऐसे क्षेत्र से थे जहां देश के अल्पसंख्यांक उस क्षेत्र के बहुसंख्यक लोग थे। उन्होंने यह बात भी कही थी की ‘हिन्दू कभी आतंकवादी नहीं हो सकता’ और उसी वक्त साध्वी प्रज्ञा को भोपाल से अपनी पार्टी का प्रत्याशी बनाया।

नरेंद्र मोदी का अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रिपल तलाक के अलावा संविधान की वह दो धाराएं जो जम्मू और कश्मीर को अलग पहचान देती थी हटवाने का मकसद था। 1 साल के बाद यह बात अब साबित हुई है कि कश्मीरियों का एकीकरण मतलब उनके हक छीन लेना जो संविधान देश के सभी नागरिकों को देता है। 



मौजूदा हालात में संविधान के बारे में कोई कुछ नहीं कहता जिसकी वजह से आने वाले कुछ समय में लोगों को यह बात समझ में आएगी कि उनके खुद के हक पैरों तले कुचले जा रहे हैं।

देश में बढ़ती कट्टरता के कारण यह बात आज आम है कि नरेंद्र मोदी को डोनाल्ड ट्रंप, व्लादिमीर पुतिन, जैर बोल्सोनारो, रेसिप अर्दोआन इनके साथ उनकी तुलना की जा रही है। लेकिन नरेंद्र मोदी देश को जिस अराजकता की ओर ले जा रहे हैं इससे साबित होता है कि वह ‘स्लोबोडन माइलोजे़विक’ (Slobodan Milosevic) की राह पर चल रहे हैं।

   
भारत में यूनाइटेड नेशन्स के बड़े लंबे समय तक चले आ रहे राजदूत थे जिनका नाम था फिओडर स्टार्सेविक। वह भारत में युगोस्लाविया के एक नागरिक के रूप में आए थे। लेकिन 2003 में जब वह वापस जा रहे थे तब उन्होंने कहा था कि मुझे ही नहीं मालूम किस देश में मैं वापस जा रहा हूं। 1990 के शुरुआती दशक में युगोस्लाविया के राजनेताओं ने वह नीति को अपनाना बंद किया जो सारे देशवासियों को धर्म, पंथ, भाषा के बलबूते पर समान हक प्रदान करता था, जिसका अंजाम यह हुआ की वह सात अलग देशों में बट गया।

भारत 2002 के गुजरात दंगे से गुजर ही रहा था जब स्टार्सेविक भारत छोड़ रहे थे। उन्होंने अपने अंतिम भाषण में यह कहा कि भारत को युगोस्लाविया का उदाहरण देखना चाहिए और यह सीखना चाहिए कि क्या नहीं करना है। उस समय किसी ने इनकी सलाह को गंभीरता से भी नहीं लिया होगा जो आज के दौर में बिल्कुल सच साबित होता है। लेकिन आरएसएस किसी की भी बात नहीं मानती।

5 अगस्त को नरेंद्र मोदी ने मंदिर का शिलान्यास किया। वह इस बात को मंदिर मान सकते हैं और साथ ही में वह कई लोगों को इस बात का विश्वास दिला सकते हैं लेकिन जिन लोगों ने हमेशा कानून को तोड़कर, अपनी नीति को छोड़कर और एकता को समाप्त करके जो ढांचा बनाया है उसमें से कुछ भी पवित्र चीज बाहर निकल कर नहीं आ सकती।

वाचनीय

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नजरिया: राम मंदिर भूमीपूजन के लिए 5 अगस्त क्यों चुना ?
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