न्यूज मीडिया की धर्मधारित रिपोर्टींग

पिछले कुछ दिनो से फेसबुक के 'नेशनल मीडिया' पर भोपाल के फर्जी एन्काऊंटर के बारे विश्लेषको के प्रश्न आते रहे. तरह-तरह के सवाल लोगो द्वारा उपस्थित किये जा रहे थे. इसी तरह  'NDTV  इंडिया' के एकदिवसीय बॅन की सोशल मीडिया पर पुरजोर आलोचना की जा रही हैं. आज तो NDTVके साथ अन्य दो चॅनल 'न्यूज टाईम आसाम' और 'केअर वर्ल्ड टीव्ही' पर भी प्रतिबंध लगाया गया है. 

'केअर वर्ल्ड टीव्ही' पर बॅन की तो हद हो गयी है. इस टीव्ही पर सरकारने 7 दिनो का बॅन लगाया है. सोशल मीडिया की माने तो यह पाबंदीया 'अघोषित इमरजंसी' से कम नही है. इंदिरा सरकार ने तो सिधे से इमरजन्सी घोषित कर दी थी. पर यह सरकार तो छुपे तौर पर पाबंदी लगा कर अभिव्यक्ती का गला घोंट रही है..  

एक तरफ मीडिया के अभिव्यक्ती के बारे हम बात कर रहे है. तो दुसरी ओर मीडिया द्वारा मचाया गया उत्पात मुसलमानो के एक पिढी को पाँच साल पिछे ले गया. हर मुसलमान यह कहते हुये सहम गया की यह क्या हो रहा है. भोपाल के क़ैदियों की कथित फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मौत के बाद उन तमाम मुसलमान क़ैदियों की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है. 

इस हफ्ते सोशल मीडिया पर प्रमुखता से 3 खबरें छाई रही, एक भोपाल में सिमी सदस्यो का फर्जी एन्काऊंटर, दुसरी टाईम्स नाऊ के चीफ एडिटर अरनब गोस्वामी का रेझीकनेशन.. और तिसरी खबर NDTV इंडिया के 9 नवंबर को होने वाले प्रसारण पर पाबंदी.. पहले बात करे भोपाल के फर्जीवाडे की तो इस खबर का विश्लेषण पढकर ख्वाजा युनूस की याद ताजा हो गई. इस फर्जीवाडे पर बीबीसी ने पहले ही दिन अनेक प्रश्न उपस्थित किये थे

इसी तरह इसी तरह एस मामले की सटीक तरीके से संवेदनशील रिपोर्टींग की. वेबसाईट ने हर बार इस मामले मे संबधित यंत्रणा को घेरे मे लिया.. दुसरी खबर अरनब के इस्तफे की, जानकारो की माने तो .. यह खबर 'नेशन वान्ट्स टू नो' कहने पर अरनब का मजाक उडाने के लिए ही ज्यादा चलाई गई. तो कई जोनकार यह भी कहते रहे की अरनब को हटाया गया. खैर इसपर हम ज्यादा बात नही करेंगे..

तिसरी खबर थी NDTV पर लादी गई पाबंदी की.. सटीक खबरो के लिए जाना जानेवाला औसत टीआरपीवाला NDTV चॅनल, अचानक वर्ल्ड स्तर पर चर्चा का विषय बन गया. क्या दिखाना है? क्या न दिखाए? इस की पहले से नियमावली तय है. बावजूद इसके हमारे यहाँ टीव्ही पर परोसे जा रहे जहर की कोई मॉनिटरींग नही की जाती. जेएनयू मामले में कथित देशभक्त चॅनल की टीआरपी उच्चतम सीमा पर थी. यह भी कहा जाता है की,  'इस चॅनल ने ही इस मामले को ज्यादा तूल दिया. खैर इस चॅनल की उस समय की मॉनिटरींग निकाली गई तो यह साफ हो जाएगा की संवैधानिक बॅन किस चॅनल को लगाना चाहीए. खैर लोग सब जानते है. 

एक तरफ हम NDTV के अभिव्यक्ती स्वंतत्रता की बात कर रहे है, तो दुसरी और भोपाल की फर्जीवाडे में मीडिया ने एक 'शब्द' जानबुँझकर इस्तेमाल किया. इस पर किसी विषेतज्ज्ञ का ध्यान नही गया. या फिर यह कह लिजीए की, जानबुँझकर इसे दुर्लक्षित किया गया

'सिमी के फरार आंतकी' जोर-जोर से इस शब्द को लेकर चिल्लाया गया. जबकी हिंदुत्व के आतंकी को 'सदस्य' या 'साधक' बताया जाता है.  जबकी इस्लामिक विद्वान जाकीर नाईक को आतंकी गुरु, भोपाल के अंडर ट्रायल कैदी को आंतकवादी या मास्टरमाईंड कहकर 'स्टुडिओ उत्पात' मचाया गया. राजद के पूर्व सांसद सय्यद शहाबुद्दीन हाईकोर्ट द्वारा जमानत पर रिहा हुये. मात्र, हायकोर्ट का फैसले के बाद भी किस तरह शहाबुद्दीन का मीडिया ट्रायल किया गया. यह भी पूरा देश भली भाँती जानता है

मगर जिस तरह का शोर शहाबुद्दीन की जमानत पर मचा, वैसा माया कोडनानीबाबू बजरंगी या डीजी वंजारा की जमानत पर यह 'स्टुडिओ अॅक्टर' उन्माद नही मचा पाये. लेखक को यहाँ शहाबुद्दीन की वकालत नहीं करनी पर केवल जाती और धर्मो को आधार पर यहाँ मीडिया ट्रायल किया जा रहा है. बल्कि सवाल यह है कि मीडिया ट्रायल शहाबुद्दीन का हो सकता है, तो फिर दूसरे शातीर अपराधियों इससे दूर क्यों ?  साध्वी प्रज्ञाकर्नल पुरोहितअसीमानंद, वीरेंद्र तावडे, समीर गायकवाड जैसे अंडर ट्रायल कैदियो को भी आतंकवादी लिखना चाहीए. जबकी ऐसा न होते हुये इन्हे सिर्फ नाम से पुकारा जाता है. भारतीय मीडिया की यह दोगली निती क्यो

भोपाल के एन्काऊंटर मे मारे गये खालीद के माँ ने भोपाल पुलिस मध्यप्रदेश के गृहमंत्री के खिलाफ महाराष्ट्र के शोलापूर में एफआरआई दर्ज की, इस में पुलिस महासंचालक ऋषीकुमार चौधरीपुलिस अधीक्षक अरविंद सक्सेनाभोपाल जेल के अधीक्षक अखिलेश तोमरमध्यप्रदेश एटीएस प्रमुख संजीव शामी के खिलाफ हत्या का शिकायत दर्ज कराई

कुछ एक वेबसाईट छोडे तो इसे किसीने 'खबर' नही बनाया. इसी तरह कथित मुसलमान आतंकी अन्य मामलो में जेल से रिहा होते तो इसे कभी खबर नही बनाई जाती. बल्की जब अरेस्ट किया जाता है तो, आतंकी आंतकी कहकर यही मीडिया कोहराम मचाता है. इसके बाद डेव्हलपमेंट भी मीडिया से दूर रहती है. इस डेव्हलपमेंट में सबुत न मिलना, बरी होना, किसी और गुट की साजीश यह सारी चिजे रिपोर्टींग से नदारद रहती है. इसी तरह गोव, मडगाव, झाबुआ की सारी बाते मीडिया बाहर क्यो नही लाता.


बावजूद इसके मालेगाव, परभणी, नांदेड, हैदराबाद अन्य मामले में कभी निपक्ष रिपोर्ताज नही किया. इसी तरह जो लोग जेलसे बरी हुये वह भी कभी मेनस्ट्रीम मीडिया का हिस्सा नही बने. इसी तरह गौआंतकी द्वारा मचाया गया देशभर का उत्पात, एक अखलाक छोडे तो बाकी मामले स्थानिक प्रशासन के फाईलो में सिसकियाँ लेते रहे है. यह भेदभाव क्यो? इसका जवाब क्या यह मीडिया दे पायेंगा? शायद कभी नही

भोपाल कांड के बाद दहशतगर्दी के आरोप में भारत के अलग-अलग जेलों में बंद मुसलमान कैदीयो का चिंता बढ गई हैं. इन सबके के मामले कोर्ट में लंबीत पडे है.. जैसे ही यह सबुतो के अभाव में छुटने वाले होते हैं. उन्हे मुठभेड मे मार गिराना जैसे भारत में आम बात हो गई है. ताजा उदाहरण परभणी के ख्वाजा यूनुस, फैजाबाद के खालिद मुजाहीद, अहमदाबाद के सोहराबुद्दीन शेख के मामले याद किये जा सकते है. शहाबुद्दीन के जमानत पर शोर मचाने वाले प्रशांतभूषण भोपाल कांड पर खामोश है. यह ख्वाजा पर भी खामोश थे, उसी तरह खालिद मुजाहिद पर भी खामोश रहे.. मात्र, शहाबुद्दीन पर हाईकोर्ट के फैसले पर टांग अडाने आ धमके. 


मीडिया पहले से बी बायस्ड रहा है यह सब जानते है, पर जाती और धर्मो के नाम पर रिपोर्टींग करना खतरनाक साबीत हो सकता है. और कितने दिन मीडिया इस तरह की रिपोर्टींग करता रहेगा. कुछ महिनो यानी रमजान माह में दिल्ली के कुछ युवाओको दहशतगर्दी के आरोप में धरा गया.. इस मामले को दिल्ली के कुछ प्रगतिशील मुस्लिम युवको द्वारा सोशल मीडिया पर फॅक्ट फाईडींग रिपोर्ट पेश की इसके बाद पुलिस ने एक-एक  कर सभी युवको को रिहा किया. 

इसी तरह भोपाल कांड की फर्जीवाडे की पोल खोलते कुछ व्हिडिओ सोशल मीडिया पर आ धमके.. बाद इसके सभो ने इस फर्जीवाडे के झुठी और मनगढत कहानियाँ बाहर निकाली.. इस मामले की जाँच के लिए इनकार करने वाली सरकार को आखीर इस पर जाँच जाँच कमिटी बैठानी पडी. इसे केवल सोशल मीडिया की जीत कह सकते है. पर जिस तरह से मेनस्ट्रीम मीडिया जो जातिगत आधार पर रिपोर्टींग का ढांचा तय्यार किया है. यह संवेधानिक मुल्यो के अधिन नही है. इसपर प्रगतिशील ऐर जनवादी ताकतो को आवाज उठानी चाहीए अन्यथा मीडिया अगले बँटवारे का जिम्मेवार हो सकता है.  
कलीम अजीम,मुंबई

वाचनीय

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न्यूज मीडिया की धर्मधारित रिपोर्टींग
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