पृथक विदर्भ को लेकर बीजेपी कि दोगली नीति


मंगलवार तिसरे दिन भी महाराष्ट्र विधानमंडल की कार्यवाही नही चल सकी। अलग राज्य के माँग का विरोध तिसरे दिन भी दोनो सदनो में कायम रहा। विपक्ष आज भी मुख्यमंत्री फडणवीस के स्पष्टीकरण अडीग रहा। बडे विरोध के चलते आज भी सीएम ने अपनी और सरकार की भूमिका रखी। पर विरोधी सीएम की बात को नही माने। परिणाम स्वरुप दोनो सदनो की कार्यवाही स्थगित करनी पडी।
असल में इस विवाद को महाराष्ट्र के सांसद नाना पटोले शुरु किया। जब उन्होने शुक्रवार को 29 जुलै को लोकसभा में पृथक विदर्भ को लेकर एक निजी बील पेश किया। जैसे ही इसकी भनक महाराष्ट्र को लगी, मंत्रीयोने विधानसभा सेशन में भारी हंगामा किया। विपक्ष के साथ शिवसेना और भाजपा भी आमने-सामने रही। इस बात को लेकर महाराष्ट्र विधानमंडल के दोनों सदनों मे हंगमा रहा। विपक्ष ने बीजेपी सांसद के पृथक विदर्भ के बिल को मुद्दा बनाते हुए सदन का कामकाज रोका। सत्तापक्ष को इसपर स्पष्टीकरण देने की माँग विपक्षी काँग्रेस और एनसीपी ने की।
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इसी बीच उसी दिन यानी शुक्रवार को देर रात भाजप के प्रदेशाध्यक्ष रावसाहब दानवे ने पुणे मे भाजप की ओरसे स्पष्टीकरण दिया। कहा कि "भाजप शुरु से ही अलग और छोटे राज्यो की पक्षधर रही हैं। तेलंगण राज्य बनाने वाली काँग्रेस विदर्भ पर सियासत कर दोगली निती अपना रही हैं।" 
इसपर काँग्रेस-एनसीपी तथा सेना वर्सेस भाजपी वाकयुद्ध चलता रहा। सोमवार को जब विधानमंडल के आखरी सत्र कामकाज शुरु हुआ। सेना ने विधानमंडल के बाहर सरकारविरोधी नारेबाजी की। तो विपक्ष ने सदन मे हंगामा शुरु किया। थोडी ही देर विधानसभा स्थगित करनी पडी। 
15 मिनट बाद फिरसे कार्यवाही शुरु हुई, तो विपक्ष ने जमकर हंगामा करते हुये सीएम से स्पष्टीकरण की माँग की। जब सीएम ने जवाब दिया, तब भी विपक्ष सरकार पर जमकर बरसा। हंगामे के बीच विधानसभा की कार्यवाही दो बार, विधानपरिषद की भी दो बार कार्यवाही स्थगित करनी पडी। इसी तरह मंगलवार को भी सीएम के जवाब से संतुष्ट न होकर विपक्ष ने हंगामा किया। नतिजतन मंगलवार को भी दोनो सदनो की कार्यवाही रोकनी पडी।
अलग राज्य किसे चाहीए?
पिछले कई दिनो से राज्य एक मुद्दा सियासत गर्मा रहा हैं। वैसे यह हफ्ता सत्र का आखरी सप्ताह होंगा। फिर भी सदन सुचारु रुप से नही चल रहा हैं। इसी बहाने हमने विदर्भ के मुल मुद्दे को हाथ डाला। असल विवाद के कुछ बिंदू आपके सामने जोडकर पेश कर रहा हूँ। पृथक विदर्भ की माँग वैसे तो बहुत पुरानी हैं।
1960 से समय-समय पर अलग विदर्भ राज्य की माँग उठते आ रही हैं। 1960 से पहले विदर्भ मध्य प्रांत मे था। तथा शेष महाराष्ट्र मुंबई प्रांत में था। भाषिक आधार पर राज्यो की स्थापना की गयी। जिसमे विदर्भ को मध्य प्रांत से तोडकर महाराष्ट्र से जोंडा गया। जिसका विदर्भ में कडा विरोध हुआ। 
विदर्भ महाराष्ट्र से जुडना नही चाहता था बल्की अपना अलग राज्य चाहता था। तब ही से पृथक विदर्भ की माँग चली आ रही हैं। इतिहास जानने के लिए बस इतना काफी हैं। कहा जाता है कि संयुक्त महाराष्ट्र के लिए कई लोगो ने अपनी जान गंवाई थी। इसके जवाब मे विदर्भवादी कहते हैं अलग राज्य के माँग को लेकर हमने भी कई जाने खोई हैं। अनुषेश के कारण पिछले साठ बरसो मे लाखो किसानो खुदकशी की हैं। कई लोग सुखे से मरे हैं। इसकी भरपाई कौन करेंगा।
विदर्भ और मराठवाडा के पिछडेपन को स्थानिक नेता पश्चिम महाराष्ट्र संभाग को जिम्मेवार मानते हैं। दोनो पिछडे संभाग की अगर तुलना की जाए तो नागपूर और औरंगाबाद शहरो के अलावा शेष भाग में ना तो कोई औद्योगिक इकाई हैं, न ही कोई बडे आर्थिक स्त्रोत के साधन। हर बार विकास की योजना या तो पुणे-मुंबई मिलती हैं, या फिर शेष पश्चिम महाराष्ट्र हिस्से मे आती हैं। महंगे सरकारी शिक्षा संस्थान हो या, कोई ओद्योगिक प्लांट सिधे मुंबई-पुणे आकर बसता हैं। इसी तरह केंद्र की विकास निती सिर्फ मंत्रालयो के कागजो सिमटी रहने का आरोप आये दिन लगता आ रहा हैं।
होता हैं भेदभाव
अगर हम रिपोर्टो का आधार ले तो, 2012 मे राज्य द्वारा स्थापित अर्थशास्त्री विजय केलकर समिती ने चौकांने वाले आँकडे पेश किये हैं।मुख्यत: असंतुलन और अनुशेष को फोकस करते हुये रिपोर्ट मे कहा गया कि विदर्भ और मराठवाडा के प्रति व्यक्ति आय राज्य के दूसरे क्षेत्रों के मुकाबले 27 प्रतिशत कम है। 
विदर्भ का विकास घाटा 39 पर्सेंट और मराठवाडा का विकास घाटा 37 पर्सेंट को दर्शाया हैं। तथा समिती ने स्पष्ट रुप से कहा कि विदर्भ और मराठवाडा के समुचित और संतुलित विकास न हो पाने के लिए सिर्फ पश्चिम महाराष्ट्र जिम्मेदार हैं। 
इसलिए समिती ने कहा कि क्षेत्रीय मंडलों की स्थापना कर विकास के नियोजन की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी जाए। और शेष महाराष्ट्र की तुलना में विदर्भ और मराठवाडा को बजट में ज्यादा राशी प्रदान की जाए। समिति ने पिछले साठ सालो राज्य द्वारा दिया जाने वाला हजारो करोड का अनुषेश तुरंत देने की भी बात कही। इसी के साथ समिती ने मराठवाडा और विदर्भ में सभी लंबित सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने की सिफारश की थी। यह तो रही आँकडो की बात।
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इसी तरह विदर्भ की जनता का मानना है कि उनके साथ हरबार अनदेखी की जाती हैं। यहाँ के लोग मानते हैं कि क्षेत्र के मुद्दों की अनदेखी की जा रही है। इसी तरह मुंबई से संचालन करने वाली सरकार उनके साथ सौतेला व्यवहार करती है। विदर्भ और मराठवाडा में लोगों की पहली आवश्यकता पानी की हैं। चाहे वह पीने का पानी हो या फिर सिंचाई का। इसका हाल तो सारा देश जानता हैं। बस यही असंतुलन और अनुशेष के आधार पर डा. बाबासाहब आंबेडकर ने भी तत्कालिन स्थिती में छोटे राज्य की माँग की थी।
बाबासाहब की माँग उस समय जायज थी। और हेतू भी शुद्ध था। पर आज भाजपा बाबासाहब के यही जुमले को लिए हंगामा खडा कर रही हैं। जिसका विरोध बुद्धिजीवी वर्ग कर रहा हैं। श्रीहरी अणे आज पृथक विदर्भ के नेता माने जा रहे हैं। कहा जाता हैं कि उनके दादाजी और पिताजी भी एक समय पृथक विदर्भ की माँग लिए लडने को मैदान में थेे। पिताजी तो काँग्रेस के सक्रीय सदस्य भी थे। 
यह भी कहा जाता है की इन्हे संघ मुख्यालय से सपोर्ट प्राप्त था और उनके परिवार के किसी सदस्य से 'बंच ऑफ थॉट' की प्रस्तावना लिखी थी। इस बात से विश्लेषक यह दावा करते है की पूर्व एडव्होकेट जनरल अणे को संघ का सपोर्ट है।
सत्ता काबिज करने कि जुगत
कहते है कि छोटे राज्यो को संघ का सपोर्ट कुछ अलग कारणो से हैं। संघ देशभर मे फेडरल स्टेट को निर्माण करना चाहता हैं। जिससे अलग-अलग राज्यो अपनी सत्ता बना सके। राज्यो सियासत और संस्कृती पर अपनी पकड हो। देश के कुछ बुद्धीजिवी यह भी कहते हैं कि छत्तीसगड, झारखंड, उत्तराचंल जैसे राज्यो निर्माण संघ के अजेंडे के लिटमस टेस्ट थे। 
इसी तरह आज भी गोरखालंड, बोडोलैंड तथा अन्य राज्यो की माँग संघ के इशारे पर हो रही हैं। उसी क्षेत्र के लोगो सत्ता की चाहत पैदा कर अलग राज्यो की माँग उनसे ही बाहर निकाल रही हैं। इसलिए बार बार महाराष्ट्र विधानमंडल में माँग उठ रही हैं की, पृथक विदर्भ के माँग के पिछे कौन है
यह अखंड महाराष्ट्र के सरकार को जनता को बताना हैं। विपक्ष यही माँग पिछले तीन दिन से कर रहा हैं। बीजेपी राज्य मे सत्ता स्थापीत करते ही कहता हैं हम अलग विदर्भ के पक्ष में हैं। पर यहाँ विदर्भ के अनुषेश और असंतुलन की बात अभी कोई नही कर रहा हैं। बस हंगामा खडा करना ही इनका मकसद रह गया हैं।
बीजेपी सत्ता पाते ही अचानक पूर्व एडव्होकेट जनरल अपनी एसी और सेवन्थ पे वाली नौकरी छोड 'विदर्भवादी' बने फिर रहे हैं। जो काम अणे के दादाजी, पिताजी से नही बन सका वह संघ अब अणे से कराना चाह रहा हैं। मात्र अन्य विदर्भवादीयोको संघ और अणे के विचारधारा कोई लेना-देना नही हैं। बस विदर्भ पृथक राज्य बनना चाहिये, यही विदर्भवादी नेताओकी चाहत हैं। बस इसलिए वे श्रीहरी अणे के साथ हैं। 
इसलिए विदर्भवादीयोने एक मई महाराष्ट्र दिवस पर राज्य के कई हिस्सों में अलग विदर्भ समर्थकों ने आंदोलन किया। नागपूर में अणे ने अलग विदर्भ का अलग झंडा भी फहराया था। राज्य में कुल 24 जगहो पर विदर्भ की मांग में ऐसे झंडे लहराए गए। बाद मे अणे को सेना और एमएनएस, स्वाभीमान संघठन का विरोध भी झेलना पडा था। 
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तो दुसरी ओर बीजेपी को छोडकर सभी पार्टीया पृथक विदर्भ का विरोध कर रहे हैं। अखंड महाराष्ट्र की वकालत हर कोई कर रहा है। कुर्बानीयाँ याद दिला रहा हैं। पर कोई भी इन क्षेत्र की पिछडेपन का चर्चा नही करना चाहता अलग राज्यो माँग न उठे इसलिए क्या कदम उठाये जा सकते हैं। इस बारे में अभी कोई नही सोंच रहा हैं। बस आये दिन बीजेपी के आड मे संघ की छुपी निती का विरोध किया जा रहा हैं। जिसकी स्थिती आज के विपक्ष ने ही पिछले साठ सालो में तयार की थी। जमीन तो वही है, संघ और उसकी अलग अलग इकाईयाँ उसे जोंत रही हैं। फैसला आज भी काँग्रेस एनसीपी के हाथ मे हैं। अलग राज्य बनाना है या जो है उसे समृद्ध बनाना हैं।

कलीम अजीम, मुंबई

वाचनीय

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