कठुआ फैसले की हो समीक्षा

कठुआ बलात्कार मामले में पठानकोट न्यायालय के फैसले की समीक्षा होनी चाहिए। प्रथमदृष्टया कोर्ट को इस फैसले पर बधाई देनी चाहिए जो कि उसने सालभर के अंदर यह फैसला सुनाया हैं। पर इस से काम नहीं चलेगा। जिस तरह से यह विदारक घटना घटी थी, उसकी गंभीरता को देखते हुए अदालत के इस फैसले पर प्रश्नचिन्ह उठ रहे है।

पठाणकोट न्यायालय ने सांझी राम के अलावा परवेश कुमार, दो स्पेशल पुलिस ऑफिसर दीपक कुमार और सुरेंदर वर्मा, हेड कॉन्स्टेबल तिलक राज और सब-इंस्पेक्टर आनंद दत्ता को इस मामले में दोषी करार दिया हैं। पुलिसकर्मियों को सबूतों को मिटाने में दोषी ठहराया गया है। अदालत ने सांजी राम के बेटे विशाल जंगोत्रा को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया हैं। तथा अन्य नाबालिग को जुवेनाइल कोर्ट में सुनवाई का फैसला दिया हैं।

जम्मू पुलिस के चार्जशीट के अनुसार आरोपी विशाल जंगोत्रा बलात्कार का दोषी हैं। पर कोर्ट ने तो उसकी घटनास्थल पर मौजू होने की बात को नकारा हैं और निर्दोष साबित किया है। जबकि चार्जशीट मे इस आरोपी की सिधे तौर पर लिप्तता पाई गई हैं।
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ज्ञात रहे कि कठुआ रेप कांड का सारा मामला जम्मू पुलिस के उस चार्जशीट के बाद खुला था जो पुलिस ने अप्रैल २०१८ में स्थानीय कोर्ट में दाखिल की थी। वास्तव में, पुलिस ने सभी ८ अभियुक्त को आरोपी बनाया था। जबकि कोर्ट ने उनमें से एक को निर्दोष बरी किया है। इसलिए कोर्ट के इस फैसले पर सवाल उठना लाज़मी है  इसी तरह देश के कई बुद्धिजीवियों ने इस फैसले पर आपत्ति जताई है। महिला आयोग ने भी अदालत के फैसले पर सवाल खडे किये हैं।

२०१२ के दिसंबर में दिल्ली में निर्भया नामक एक लड़की से जघन्य लैंगिक अपराध किया गया। जिससे सारा देश सहम उठा था। इस घटना के बाद सरकार ने बलात्कार संबंधी पारंपरिक व्याख्या को बदलकर कानून में बदलाव किया था। उस घटना के बाद से बलात्कार जैसे अपराधो के प्रति भारत में असंतोष शो उमड़ रहा है। पूरे साल भर में देश भर में विरोधी आंदोलन खड़े हुए अरे की मांग रही थी कि बलात्कार के खिलाफ सजाव को और सख्त कर उसे बढ़ाया जाए।
दिल्ली के इस घटना के ५  साल बाद जम्मू के कठुआ का मामला सामने आया। जिसमें एक घुमंतू जाति के बकरवाल समुदाय के ८ वर्षीय मासूम बच्ची के साथ सामूहिक बलात्कार कर उसकी हत्या की गई। बलात्कार जैसा घिनौना अपराध ही नहीं बल्कि उस मासूम को नशीली दवाई पिलाकर कई दिनो तक बेहोश रखा गया। इस बेहोशी की हालत में उस मासूम के साथ कई लोगों ने सामुहिक अत्याचार किया। यह सारा मामला एक पवित्र स्थल मंदिर में चल रहा था। जहां उस बच्ची को बंधक बनाकर रखा गया था। बच्ची को पिछले साल १० जनवरी को अग़वा किया गया था और क़रीब एक सप्ताह बाद उसका शव स्थानीय जंगल में पडा मिला था।

गौरतलब है कि इस जघन्य अपराध में ३ पुलिसकर्मी भी शामिल थे। जो मामलो को छुपाने को लेकर उस बच्ची के साथ दुष्कर्म करने लिए राजी हुए थे। इस बलात्कार का मुख्य आरोपी सांझी राम का बेटा भी इस सारे अपराध में लिप्त था। नाबालिग आरोपी ने अपने ममेरे भाई (मुख्य आरोपी का लडका) को मेरठ से लडकी के साथ बलात्कार का करने के लिए बुलाया था। मतलब जाँच में सांझी राम का बेटा विशाल जंगोत्रा ने भी इस अपराध में पुरी तरह से लिप्त पाया गया है। जबकी चार्जशीट में इसका उल्लेख भी नजर आता हैं।

इस मामले की कोर्ट में चार्जशीट दाखिल हुई तब स्थानीय हिंदूवादी संगठनों ने इस मुद्दे को धार्मिक रंग देखकर आरोपी के पक्ष में तिरंगा यात्रा निकाली। और पुलिस को चार्जशीट दाखिल करने से रोका। हद तो तब हो गई जब इस मोर्चे में स्थानीय वकील और पत्रकार भी इसमें शामिल हुए। इस तिरंगा यात्रा में जम्मू-कश्मीर की बीजेपी-पीडीपी सरकार में शामिल दो भाजपाई मंत्री चौधरी लाल सिंह और चंदर प्रकाश गंगा शामील थे। इसे देखते हुए मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दख़ल दिया और आदेश दिया कि मामले का ट्रायल जम्मू से बाहर पठानकोट में किया जाएगा और इस ट्रायल में हर दिन कैमरे के सामने कार्यवाही होगी।

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इन सब का कहना था कि आरोपियों को धर्म के नाम पर फंसाया जा रहा है। जबकि दूसरी ओर कोर्ट में मामला देखने वाली वकील राजावत को भी इन हिंदूवादी संगठनों ने धमकियां देनी शुरू की। कुछ समय बाद राजावत नें भी इस केस से खुद को अलग कर लिया। पठानकोट फैसले के बाद राजावत की प्रतिक्रिया आई है, जिसमे उन्होंने कहा है कि, “इस सारे मामले में मुझे हिंदूवादी संघटनो बदनाम किया हैं। मुझपर जिस तरह से फब्तियां कसी है, उस घटना को लेकर मैं एक किताब लिखने वाली हूं।

इतना ही नही बल्की कई मीडिया संस्थान आरोपी के समर्थन में खडे हुए ते। दैनिक जागरण अखबार ने तो पीडिता से बलात्कार के घटना को गलत बताते हुए मुख्य खबर तक बना डाली थी। वही झी समूह के एंकर सुधीर चौधरी ने उसपर विशेष शो का प्रसारण भी किया था। इन खबरो नो चार्जशीट को झुठा करार देकर आरोपी को फंसाने भी बात कही थी। पठाणकोट अदालत के बाद कुठ लोगो ने इन खबरीया संस्थानो को भी सजा दिलवाने की मांग की थी। जबकी झी के एंकर ने विशाल जंगोत्रा मेरी वजह से छुटा हैं इस तरह का ट्विट भी किया हैं। जिसे लेकर लोगो ने उन्हे ट्रोल भी कर रहे हैं। कुछ लोगो का कहना था की, तूम पीडिता का न्याय न मिलाने के पक्ष में खडे होकर पत्रकारिता पर लानत भेजी हैं। 

दूसरी ओर दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने इस पठानकोट कोर्ट के फैसले पर सवाल उपस्थित किए हैं। कोर्ट में २ लोगों को उम्रकैद तथा ३ को पाँच-पाँच साल की सजा दी हैं। मालीवाल के मुताबिक यह सजा काफी नही हैं। ङन्होने कहा की, “आठ साल के मासूम बच्ची के साथ ७ दरिंदो ने बारी-बारी बलात्कार कर उसका गला घोट के मारा, जब वह लोग गला घोंट रहे थे तब बी वह लोग उस मासूम के साथ घिनौनी हरकत कर रहे थे। उन आरोपी को कोर्ट सिर्फ उम्रकैद कैसे दे सकती हैं। मै तो जम्मू-काश्मीर सरकार से अपील करती हू की, इस मामले के उपरी अदालत मे चुनौती दी जाए। देश के संघटनो ने इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाना चाहीए।

जबकी पीडिता ते परिवार नें मुख्य अभियुक्त सांझी राम को फांसी देने की मांग की थी। देशभर से हुए विरोध प्रदर्शन में सभी आरोपीयो को फाँसी की माँग की गई थी। कठुआ के मामले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गुंजा था। अप्रैल २०१८ संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने इस घटना को डरावना बताया था। उन्होने कहा था की, "मुझे लगता है कि हम इस बच्ची के उत्पीड़न और हत्या की डरावनी घटना की मीडिया रिपोर्ट देख चुके हैं। हम ये उम्मीद जताते हैं कि प्रशासन इन अपराधियों को उनके अंजाम तक पहुंचाए, ताकि उन्हें इस बच्ची की हत्या के लिए जवाबदेह ठहराया जा सके।"

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जबकी सरकार नें इस घटना के बाद से उठ रहे रोष को ध्यान में रखते हुए, १२ साल से कम उम्र की बच्चियों से दुष्कर्म के दोषियों को अदालतों द्वारा मौत की सज़ा देने पर अध्यादेश लाया था। घटना के तुरंत बाद १२ अप्रेल को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस अध्यादेश को मंजुरी भी दे दी थी।

दि वायर के खबर के अनुसार १६ वर्ष से कम आयु की किशोरी से बलात्कार के दोषियों को न्यूनतम सज़ा को १० वर्ष कारावास से बढ़ाकर २० वर्ष कारावास किया गया है जिसे बढ़ाकर उम्रक़ैद किया जा सकता है। १६ वर्ष से कम आयु की किशोरी से सामूहिक बलात्कार के दोषियों की सज़ा शेष जीवन तक की क़ैद होगी।

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी ने भी कहा थी की, नाबालिग से रेप पर फांसी का प्रावधान हो, इसके लिए उन्होने केंद्र सरकार को पत्र लिखेने की बात भी कही थी। हास्यास्पद हैं की, उसी उत्तरप्रदेश में कम उम्र के बच्चीयो के साथ सामुहिक बलात्कार और हत्या के मामले बीचे दोन सालो से काफी बढे हैं। 

कई लोगो नें पठानकोट अदालत के फैसले पर सवाल खडे किये हैं। एक मासूम से बलात्कार सामूहिक बलात्कार और उसकी क्रूरता से हत्या करना इस संगीन गुनाहों लगता हैं कोर्ट ने नजरअंदाज किया हैं। घटना के सबूत मिटाना, लोगों को बरगलाना, आम लोगों को अपने पक्ष में आरोपी का खड़ा करना, आरोपी के पक्ष में राज्य के मंत्री, वकील, पत्रकारों का खड़ा होना, इस जैसी जघन्य अपराधिक घटना पर कोर्ट ने कुछ भी संज्ञान नहीं लिया है। कोर्ट ने सिर्फ उम्र कैद देकर एक तरह से घटना की गंभीरता को नकारा है। कोर्ट को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। उसी तरह सामाजिक संगठनों को यह मामला उच्चतम अदालतों में लेकर जाना चाहिए।  

फांसी के सजा से बलात्कार रुकेंगे या नही पता नही पर कडी सजा होने से उसकी परिणामकारकता से जुर्म करने पर जरूर विचार हो सकता हैं। बलात्कार के वन शारीरिक नहीं होता वह मानसिक होता है। जिसका असर पीड़िता के जिंदगी के साथ चलता रहता है। हमारे समाज बलात्कार के आरोपी को गुनहगार नहीं बल्कि पीडिता को गुनहगार समझा जाता हैंं। इस पीड़ा को वह बेगुनाह बलात्कार की कलंक को सरे उम्र ढोंती रहती हैंं। पीडिता इस गम को लेकर कई तरह के शोध हुए हैं। इसलिए बलात्कार के आरोपी को जेपी सख्त सजा हो सकती है उतनी देनी चाहिए।
वैसे भी हमारे यहाँ अरब राष्ट्रो की तरह कानून को मांग इन जैसे अपराधो के लिए की जाती हैं। गौर करे तो अरब राष्ट्रो जुर्म का प्रतिशत घटा हैं। फिर क्यो न हमे भी इसी तरह के सजा का प्रावधान करना चाहीए। 



कलीम अजीम, पुणे

वाचनीय

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