चेतन भगत का मुस्लिम युवक को काल्पनिक खत

प्रिय भारतीय मुसलमानों के रखवालों (सभी धर्मनिरपेक्ष दलों, कभी-सांप्रदायिक रहे दलों, भ्रमित सहयोगियों, मौलवियों, मुस्लिम कल्याण संगठनों तथा आमतौर पर इन दिनों कोई भी समेत।), आप शायद आश्चर्य कर रहे हों कि मैं हूं कौन? आखिर स्तंभकार का नाम अहमद या सईद या मिर्जा जैसा नहीं है, ऐसा कुछ नहीं जो मुझे स्पष्ट रूप से मुसलमान साबित करे। 
आप भूल रहे हैं, लेखक काल्पनिक कहानियां भी लिखता है। इसलिए शायद मैं, या जो मैं यहां कह रहा हूं, मनगढ़ंत के अलावा कुछ नहीं है। फिर भी, शायद आप जैसे सभी शुभ चिंतकों के लिए कुछ लाभदायक हो।हर कोई मुसलमानों का ध्यान रखता-सा लगता है, लेकिन असल में उनकी सुनता कोई नहीं है। खासकर हम युवा। 
मैंने राजनेताओं को देखा, कैसे चिल्लाते हैं वे हमें ऊपर उठाएंगे। मैं नहीं जानता वे हमें उठाने के लिए कैसी योजना बनाते हैं और केवल हमें, बिना देश को ऊपर उठाए। लेकिन तब मैं तो कोई नहीं, भला मैं कैसे जानूं? मैं उन्हें देखता हूं मुस्लिम टोपियां पहने, शायद यह बताने के लिए कि वे असल में हमारी जिंदगियां सुधारना चाहते हैं। फिर भी आपके सिर पर एक टोपी किसी की जिंदगी नहीं बदल सकती। 
आपके दिमाग में क्या चल रहा उसका उपयोग शायद बदल सकता है, आप नहीं। फिर हम ही क्यों लगातार भारत के सबसे पिछड़े समुदायों में से एक बने हुए हैं? ऐसा नहीं है कि हमारे पास मुसलमानों में सफलता पाने वालों की कमी है। भारतीय मुसलमानों ने अच्छा काम किया है। लगभग हर क्षेत्र में मुस्लिम सितारे हैं। इन लोगों ने अपनी उपलब्धियां टोपी पहने किसी राजनेता की मदद के बिना ही हासिल की हैं। 
इन्होंने ऐसा लगन, कल्पना और कड़ी मेहनत से किया है। उनके पास जीवन में ऊपर उठने के लिए आधुनिक नजरिया था और एक तमन्ना थी। यही है जो हम सबको अपने भीतर चाहिए। हमें एक ऐसा नेता चाहिए, जो यह समझ सके और हमें बेहतर करने के लिए प्रेरणा दे सके। हमें ऐसा नेता चाहिए जो हमें अगले स्तर तक ले जाए। हमें रोजगार चाहिए, हमें अच्छे स्कूल-कॉलेज चाहिए। हमें चाहिए बिजली, पानी के साथ एक अच्छा घर। हमें चाहिए एक शालीन जीवनस्तर ताकि हम अपना जीवन सम्मान के साथ जी सकें। 
हमें यह खैरात में नहीं चाहिए, हम इसके लिए कड़ी मेहनत करना चाहते हैं। अगर आप कर सको तो बस ऐसा करने के लिए माहौल पैदा कर दो। हां, यह वैसा ही है जैसा दूसरे युवा चाहते हैं। आखिर दुनिया में ऐसा क्या है जिससे आपको लगता है कि भारतीय मुस्लिम युवा कुछ अलग चाहते हैं? क्या है जो आपको सोचने पर मजबूर करता है कि नेता को टोपी पहननी ही चाहिए, कुछ खैरात बांटनी चाहिए, शब्दों के ढोल पीटने चाहिए और हमसे एकमुश्त वोटों की उम्मीद करनी चाहिए? हम हैं क्या, भेड़ों का झुंड? क्या यह हिंदुस्तान है? 
आखिरी बार मैंने सुना था कि हम धार्मिक गणराज्य नहीं हैं, हम लोकतांत्रिक गणराज्य हैं। तो हमसे लोकतंत्र के नागरिकों की तरह ही व्यवहार करो। कृपया एक तथ्य अपने मस्तिष्क में सीधे डाल लो। भारतीय मुसलमान दुनिया के बाकी मुसलमानों से अलग हैं। कई इस्लामी देश हैं जहां राजनीति और धर्म पूरी तरह घुले-मिले हैं। उन्हें ज्यादा रूढ़िवादी देश होना ही है। उनके पास हमारे जैसी विचारों की गूंज, व्यक्तिगत आजादी और खुलापन नहीं है। भारत वैसा देश नहीं है। 
भारतीय अपनी आजादी से प्यार करते हैं। भारतीय नहीं चाहते कि उनके धार्मिक नेता बताएं किसे वोट दें। और हम भी भारतीय हैं। बड़ी संख्या में आधुनिक भारतीय मुसलमान धर्म और राजनीति को अलग रखना चाहते हैं। यहां आप असल में मदद कर सकते हैं। आप जोर दे सकते हैं कि भारत पहले आता है, हमारे समुदाय की कट्टर आवाजों को किनारे कर सकते हैं। लेकिन आपमें से कोई भी ऐसा नहीं कर रहा। 
आप सभी प्रतिगामी हैं, हमारे साथ झुंड जैसा व्यवहार करते हैं और हमारे रूढ़िवादियों और कट्टरवादियों का पक्ष लेते हैं। आप जानते हैं तकलीफ क्या देता है? हमारे पास मजबूत आधुनिक भारतीय मुसलमान आवाज नहीं है। अगर मैं एक भारतीय मुसलमान हूं, महत्वाकांक्षी, वैज्ञानिक सोच, उद्यमशीलता, सशक्तीकरण, प्रगति और व्यक्तिगत स्वतंत्रता में विश्वास करने वाला, तो मैं कहां जाऊं? कौन- सी पार्टी इसका समर्थन करती है? क्या कोई उस नेता का नाम बता सकता है जो मेरी उम्मीदों का प्रतिनिधित्व करता हो, और मुझे एक विकलांग जैसा न समझे? 
मैं नहीं बता सकता कितना कुंठित महसूस करता हूं। यह बहुत खराब है कि हम किराये पर मकान भी नहीं ले सकते, पुलिस कुछ ज्यादा ही ध्यान देकर हमारी तलाशी लेती है, जब-तब हम पर फिकरे कसे जाते हैं। असल में बुरा क्या है, इसके बावजूद आप लोग दावा करते हैं कि आप हमारा खास ख्याल रखते हैं, जबकि वास्तव में हमें पिछड़ेपन में धकेलते हैं और वहीं अभिशप्त रहने को मजबूर करते हैं। आपकी वजह से लोग सोचते हैं कि हम एक झुंड में वोट देते हैं और भारत को पिछड़ा बनाए हुए हैं। 
आप, हमारे रखवालों, लोगों को यह सोचने पर मजबूर करते हो कि हमें सिर्फ धर्म की चिंता है, भ्रष्टाचार और विकास की नहीं। यह सच नहीं है। भ्रष्टाचार चोरी है और चोरी पाप। कोई सच्च मुसलमान या तरक्कीपसंद भारतीय इसका समर्थन नहीं कर सकता। शायद मैं कुछ ज्यादा सख्त हो गया, आपमें से कुछ लोग तो सुनियोजित तरीके से ऐसा करते हैं। लेकिन जब आप धर्म के नाम पर हमें अलग करते हैं, हर बार नतीजा भुगतते हैं। 
हमारे लिए उससे ज्यादा भी कुछ है। अगर आप सच में मदद करना चाहते हैं तो मेरे पास एक विचार है। हमारा भी एक अद्भुत धर्म है। हालांकि अन्य धर्मो की तरह इसकी व्याख्या भी उदार या परंपरावादी के रूप में कर सकते हैं। दुनिया के कई देशों में दैनिक जीवन में यह बेहद सख्त है। भारत ज्यादा उदार है, कई मुस्लिम इसे ऐसा रखना चाहते हैं। क्या आप इसमें सहयोग करेंगे? 
हमारे जीवन पर हमारे धर्मगुरुओं, सख्त विचारों और कट्टरपंथियों को नियंत्रण मत करने दो क्योंकि यह भारत का सार नहीं है। अगर आप ऐसा कर सकते हो तो हम आपका साथ देंगे।

(लेखक चेतन भगत द्वारा लिखा यह खत 30 जून 2013 को टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित हो चुका है। जिसका  काफिला पर  दिया गया है, वहां चेतन भगत कि काफी आलोचना कि गई हैं)

वाचनीय

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