मौत का खेल और लोगों का व्हिडिओ कॉम्पीटिशन

प्यारे अम्मीजान,
सलाम

मुंबई में आकर आज नऊ महिने पुरे हो गये हैं। आज अचानक सफर करते हुये आपकी वह बात याद आ गयी। आपने कहा था 'बेटा मुंबई मे संभलकर सफर करा कर, सुना हैं मुंबई की रेल्वे बडी खतरनाक होती हैं' वाकई मे अम्मी आज देखा, यह रेल्वे बडी खतरनाक होती हैं। एक वाकये ने अम्मी को खत लिखने मजबूर किया हैं। 
GTB (गुरु तेघ बहादूर) स्टेशन की अनाऊंसमेंट होते ही, रेल के अंदर के लोगो ने, अपना इधर-उधर पडा अंग समेटकर दरवाजे की खिसकना शुरु किया। जितने बाहर निकलने वाले थे उससे दुगने लोग, रेल में जस-तस घुसने के फिराख मे बाहर खडे थे। शाम के सात बजने को थे। इसलिए लोग किसी भी तरह रेल के अंदर घुसना चाह रहे थे। अंदर तो किसी के पैर अटके थे तो, हाथ और बैग कही, जस-तस पैरो की जगह बनाये सिमटकर लोग खडे थे। जोरो का झटका देकर लोग चढ चुके थे।
एक बंदा घुस नही सका तो, खिडकी पर पैर टिकाये छत पर चढ गया। स्लिपर से झाँकते पसीने वाले पैर मैने देख लिये। अम्मी शायद वह बहुत जल्दी मे था। जो छत पर चढने लगा शायद उसे किसी भी सुरत घर पहुंचना था। उसकी माँ ने बेटा शाम को घर जल्दी कहा होंगा। और अपने बेटे का इंतजार कर होंगी। उसके पसीनेवाले पैर देख विंडोवाला चिख पडा, 'साले उतर निचे' यह आवाज शायद उस तक नही पहुंच पाई थी। पर एक पर बडा सा धमाका हुआ। एक बडा सा शोला चमक गया। शोले की चमक से टप्पर के मकडी के जाले भी दिख पडे। अंदर की लाईट फैन सब बंद हो चुके थे। अचानक बोगी के छत पर धमाका हुआ था। लोग पागलो की तरह भागने लगे। आधे सेकंद मे बोगी खाली हो चुकी थी। एक झटके में खचाखचा भरी ट्रेन खाली हुयी।
मैं भी बाहर आया। लगा कुछ तो जरुर हुआ हैं। आवाज आयी कोई रेल की छत पर करंट लगने से कोई मर गया हैं। उपर देखा तो बाजू वाले बोगी पर कोई बंदा हाथ मे झोला लिये पडा था। धुँए से सारा GTB स्टेशन का प्लैटफॉर्म भर गया था। अफसोस करने वाले जमा हो गये। सब लोग शोक करने लगे। दुसरे सेकंद मे बहुत सारे स्मार्ट फोन बाहर निकल कर सिनोमेटोग्राफी करने लगे। देखते-देखते आस-पास की बोगीया भीड बनकर जमा हो गयी, और सिनेमेटोग्राफर तब्दील हो गयी। 'साला बैमौत मर गया' 'क्या जरुरत थी उपर चढने की' 'बेचारा जान से गया' भीड से तरह-तरह की आवाजे आने लगी।
घटना घटीत होकर तीन-चार मिनट हो चुके थे। अम्मी कुछ ही दिन पहले हार्बरवाले करंट को एसी से डीसी में तब्दील किया था। २५ हजार व्होल्ट का झटका लगा था। अम्मी शायद यही वजह उसके मौत की वजह बनी हो। यकीन करो अम्मी मैं बहुत डर गया। आँखे बडी किये माजरा देखता रह गया। चाहकर भी कुछ न कर सका। किसी अम्मी बेटा कुछ सेकंद मे लाश मे तब्दील हुआ था। मेरी तो बोलती बंद थी। उसके पसीनेवाले पैर आँखो के सामने घुम रहे थे। पैरागॉन की स्लिपर आँख के पुतली में छप चुकी थी। मै बस दस मिटर की दूरी पर खडा था। शोर बढ गया। जिता-जागता इंन्सान चंद सेकंदो में मौत के मुँह मे समा चुका था। ट्रेन पुरी तरह से रुक चुकी थी। लोग कैमरा लिये व्यस्त थे, जैसे कोई व्हिडिओग्राफी का कॉम्पीटिशन चल रहा हो। और देश के प्रधानसेवक सेल्फी के साथ बडा इनाम देनेवाले हो।
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मुझे खुदको इंन्सान कहने मे शर्म आ रही थी। तभी लाश मे हलचल पैदा हुई। मेरी जान थोडीसी वापस आ चुकी थी। कैमरे और बढ गये टिल्ट, पैन सभी टोटके आजमाए जा रहे थे। भीड और बढ गयी। लाश बना वह इंन्सान उठने की कोशीश करने लगा था। धिरे-धिरे उठा खडे रहने की कोशीश करने लगा। खडा रहता तो अब वाकई कोयला बनता था। क्योंकि सिधे तार से टकरा जा सकता था। कुथ लोग चिखने लगे। भाई बैठ जा। वह अब पुरी तरह होश मे आ चुका था। चंद सेकंद मे वह फिसल कर प्लैटफॉर्म पर आ चुका था। कैमरेवाले डिरेक्टर कट लेने मे व्यस्त थे। मैं उस इन्सान के मदत हेतू आगे बढा। पर भीड ने मुझे आगे जाने नही दिया। शायद उन्होने सोंचा होगा, यह आगे जाकर हमसे भी अच्छी फिल्म बनायेगा, हो सकता हैं शायद इसलिए मुझे आगे जाने नही दिया गया।
भीडवाले मदत करने के बजाए फिल्म बनाने में व्यस्त थे। मै लास्ट के बोगी पास खडा था, इसलिए आसानी मोटरमन के पास पहुंचकर मदत की गुहार लगाई। मोटरमन ने तुरंत वाकी से आरपीएफ के जवानो बुलाया। लोग भीड बनाकर कैमरा ताने थे। पर कोई उसे उठाने जहेमत नही कर सका। कुछ देर बैठने के बाद वह खुद खडा होने की कोशीश करने लगा। उसकी यह कोशीश कैमरेवालो को तमाचा थी। जबतक स्ट्रेचर आता वह ऊठकर खडा हुआ। और आरपीएफ वाले के साथ चलने लगा। वह अब ठिक से चल रहा था। बदन के बडे-बडे काले दाग लिए वह चलने लगा। उसकी चमडी पुरी जल चुकी थी। कैमरे रेड कार्पेट की तरह साथ-साथ चलने लगे। स्टेशन के बाहर आकर वह पुलिस के साथ टैक्सी बैठ गया।
अम्मी तुम्हारी बहुत याद आयी। अम्मी वेबसाईट पर अभी एक खबर आयी हैं, कि आज ही के दिन मुंबई के अलग-अलग रेल हादसो मे ९ लोग अपनी जान गवा चुके हैं। इनमे से अकेले कुर्ला स्टेशन पर ट्रैक क्रॉस करते हुये पाँचो ने अपनी जिंदगी खोई हैं। यह वही कुर्ला स्टेशन हैं, जहाँ से मैंने भीड के कारण, पनवेल और सीएसटी जानेवाली कई ट्रेने छोडी हैं। यहाँ से प्लैटफॉर्म १ से ७ पर लोगो की तरह कभी ट्रैक क्रास कर नही गया। आज की घटना और यह खबर जिंदगी भर के लिए सबक बन गयी हैं। २४ मई से १ जून २०१६ तक यानी सिर्फ ९ दिनो में मुंबई में नब्बे लोग मौत के मुँह मे समा चुके हैं। 
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कैमरा बंद किये लोग अब तक ट्रेन मे वापस अपनी जगह ले चुके थे। अम्मी तुम्हारी बहुत याद आयी। हर बार मुंबई आते आपने कहा हैं ठिक से रहा कर। जल्दी मे रेल को मत लटका कर। अम्मी मैं आपकी बात मानता हूँ। भीड के कारण मैंने कई ट्रेने छोडी है। प्लैटफॉर्म चाहे नजदीक या दूर ब्रीज से ही गया हुँ। दरवाजे कभी नही खडा। अम्मी हर बार आपकी बात मानी हैं। आज शायद परेल से स्टैंडहर्स्ट रोड उल्टा न जाता तो शायद आपको यह खत भी नही लिख पाता। और मदत करने के बजाए फिल्म बनाने वाले भी नही देख पाता।
अम्मी आपने बच्चो के लिए दुआ की होंगी। वही दुआ आज किसी के काम आ गयी थी। शायद यहाँ कोई अम्मी बेसब्री से बेटे का इंतजार कर रही थी। सुबह उसने उसके अम्मी से कहा होगा, अम्मी शाम को आते हुये सब्जीमंडी से बैंगन लाऊंगा, आज मुझे आपके हाथ का भुरता बना दो। शायद उस प्लैटफॉर्म पर बिखरे बैंगन मे माँ की दुआ बसी होगी। सच कहा ना अम्मी। इसलिए तो आज उसका बेटा मौत मुँह ले बाहर आया था। अम्मी हर बार आप बेटो की घर के लिए राह तकती हो। और हम आपका के दुख बढाने मे लगे रहते है। अम्मी हमे माफ करे। पत्रकार था इसलिए मुझे न चाहते हुये भी फोटो खिंचना पडा इसलिए अम्मी मुझे माफ करें एक बार फिर अम्मी हमे माफ करे।

-आपका नाफरमान बेटा

वाचनीय

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