पिछले साल महाराष्ट्र में मराठा मोर्चे के तहत सरकारी नौकरीयो में आरक्षण की मांग की गई. जगह-जगह होते आंदोलन में मुसलमानो ने मराठा आरक्षण का समर्थन कर आरक्षण को सपोर्ट किया. कोपर्डी घटना से आहत होकर मुस्लिम समुदाय आरोपितो के खिलाफ खडा रहा. मामला यही तक सीमित नही था, बल्की महाराष्ट्रीयन मुसलमान मराठो के प्रति आदरभाव रखते हुये अपनी सुरक्षा हेतू उनके साये के तले खडा रहा.
बाीते कुछ सालो से भारतीय मुसलमान बीजेपी और उनके सहयोगी संघठन के नफरत भरे रवैय्ये से परेशान हैं, कई जगह उसपर हमले किये गये, उसे जान से मारा गया, फिर भी वह अहिंसा के मार्ग पर अडा रहा. लव्ह जिहाद, घरवापसी, मॉब लिचिंग से व्यथित मुस्लिम समुदाय मराठो के साथ जुडकर अपने आर को सुरक्षीत महसूस कर रहा था. मराठा आरक्षण के मांग को सपोर्ट कर कोर्ट द्वारा दिये गये पाँच फिसदी आरक्षण के लिए समहती और प्रेशर ग्रूप बनाना यह भी एक मकसद था.
सौतेले व्यवहार पर चुप्पी
मराठा मोर्चा के साथ ही मुस्लिम समुदाय ने राज्यभर आरक्षण को लेकर बडे-बडे मार्च निकाले. पर वह किसी धार्मिक संघठन द्वारा हायजैक कर उन्होने अपने अजेंडे की कालिख पोत दी. आरक्षण के मांग के साथ कई धार्मिक संघठन अपनी अजेंडो के साथ रास्तो पर थें. खैर..
इन दिनो मराठा क्रांति मोर्चा के चलते विधायिका में मराठा आऱक्षण को लेकर बहस चलती रही, सभी मराठा समुदाय के विधायको नें आरक्षण की मांग को अलग-अलग तरह से पेश किया, पर मुस्लिम विधायको को छोडे तो किसी ने भी मुस्लिम आरक्षण पर अपनी नही रखी. जब भी इस बारे में कोई बात होती तो मराठा आरक्षण के बुलंद आवाज में वह मुद्दा दबकर रह जाता.
मुंबई हाईकोर्ट द्वारा दिया गया मुस्लिम आरक्षण बीजेपी सरकार ने मार्च 2015 में खत्म किया. इस बारे में शासनादेश जारी करते हुए कहा है कि, 'मुंबई उच्च न्यायालय के मुसलमानों को आरक्षण पर रोक लगाए जाने से इसपर जारी अध्यादेश कानूनी रूप नहीं ले सका, इसलिए मुस्लिम आरक्षण संबंधी पूर्व में जारी आदेश रद्द किया जाता है.' इसके बाद सरकार नया मराठा समुदाय के दबाव के चलते नये से अध्यादेश लाकर मराठा समुदाय को आरक्षण घोषित किया.
मराठों को अपना आरक्षण सर्क्युलर द्वारा संरक्षीत हो चुका था, वे मुसलमानो के प्रति सौतेले व्यवहार पर चुप्पी साधे रहे. किसी नें भी हाईकोर्ट द्वारा दिया गया मुस्लिम आरक्षण के बारे मेंं एक शब्द भी नही निकाला, मुस्लिम विधायको ने कुछ हद तक अपनी बात रखी, पर वह भी नाकामयाब रहे.
सालभर बाद फिर एक बार मराठा आऱक्षण को लेकर आंदोलन और राजनिती तेज हो गई हैं, महाराष्ट्र में जगह-जगह मराठा समुदाय के युवक अपनी मांगो को लेकर उग्र आंदोलन कर रहे हैं. सरकार आरक्षण देने पर राजी हैं. पर इस बार भी किसी ने मुस्लिम आरक्षण को लेकर कोई मुद्दा नही उठाया हैं. इस बात से खफा होकर मुस्लिम संघठन आहत हुये हैं.
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को राजनीति में क्यों जाना हैं?
ओबीसी आंदोलन
मुस्लिम आऱक्षण को लेकर महाराष्ट्र में कई सालो से शांती से आंदोलन चल रहे हैं. किसी भी संघठन नें उग्र आंदोलन नही किया हैं, क्योंकि उन्हे पता वह अगर हिंसक आंदोलन करते हैं तो बेगुनाह होकर भी सालो साल जेल में सडे रहेंगे कोई विपक्ष या मुस्लिमो का हिमायती उन्हे छुडाने नही आयेंगा.
बीते चार साल से मुस्लिम संघठन आरक्षण को लेकर आंदोलन कर रहे हैं. पर इन संघठनो का विरोध सरकार के रवैय्ये के खिलाफ नारो तक ही सिमित रहा, किसीने संवैधानिक मामले को आगे लेकर किसी ने भी बात नही कही, जो भी विधायक या फिर संघठन मुस्लिम आरक्षण को लेकर बात करते थें, वह मुस्लिम समुदाय को गुमराह कर रहे थे. वे संघठन तथा नेतागण बस अपनी-अपनी नेतृत्व की राजनिती चमका रहे हैं. पर एक बात इस जनाआंदोलन से सकारात्मक हुई हैं, वह यह कि मुसलमानो में आरक्षण और अपने अधिकारो के प्रति सजगता बढी हैं. और जगह-जगह हको और अधिकारो को लेकर लोग खडे होते रहे.
1995 में महाराष्ट्र में मुस्लिम ओबीसी आंदोलन चल निकला. इस आंदोलन के पिछे बुद्धिजिवी असगरअली इंजिनिअर, प्रफुल्ल बिडवई, फकरुद्दीन बेन्नूर जैसे लोग थें. इस आंदोलन ने समूचे भारत में पिछडे मुसलमानों के प्रश्नो को रेखांकित किया.
इस आंदोलन से पहली दफा मुसलमानो के जाति आधारित अधिकारो कि मांग मुख्य पटल पर आई. जिसे लेकर देशभर में काफी हंगामा हुआ. दी हिंदू से लेकर एक्सप्रेस, टाईम्स में इस विषयो को लेकर लेख लिखे गये. मराठी में भी फकरुद्दीन बेन्नूर ने इस विषय को लेकर खूब लिखा.
अंतराल के बाद इस आंदोलन में विलास सोनावणे, शब्बीर अन्सारी जैसे लोग जुडे. कुछ ही समय में मुस्लिम ओबीसी आंदोलन नें राजनितीक हलके में हलचलें मचा दी. राज्य सरकारो पर दबाव बढा, जिसके चलते सरकार नें आंदोलन में फूट डाली गई.
नब्बे के दशक में उत्तर में पसमांदा मुसलमानो का आंदोलन चल रहा था, जिसकी परिकल्पना से महाराष्ट्र में मुस्लिम ओबीसी आंदोलन चल निकला. बढते दबाव के चलते महाराष्ट्र सरकार ने कुछ मांगे स्वीकार कर ली. नब्बे के दशक से मुसलमानो के अधिकारो को लेकर कई-कई जगह आंदोलन होते रहे.
वाजपेयी के बीजेपी शासनकाल में मध्यवर्ग के मुसलमान भी अपने अधिकारो को सजग होते रहे. परिणामस्वरूप लोग रास्तो पर आते रहे, 2005 में यूपीए सरकार सत्ता में आई, मुसलमानो के सामाजिक परिस्थिती का अध्ययन करने का काम सरकार ने हाथ में लिया.
पंधरा सुत्री कार्यक्रमों का क्या हुआ?
सरकार ने अल्पसंख्याक समुदाय के लिए 15 सूत्री कार्यक्रम घोषित किया. राष्ट्रपति ने भी संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते अल्पसंख्यक कल्याण की बात कही थी. उसके बाद सरकार ने सच्चर समिती का गठन किया. इस समिती नें महाराष्ट्र में ओबीसी आंदोलन के सिफारसे अपने रिपोर्ट में दर्ज कराई.
2006 में सच्चर कमिटी नें अपनी रिपोर्ट सरकार को पेश की. कमिटी ने मुसलमानो को आरक्षण देने की बात कही थी. इस रिपोर्ट को लेकर समुचे देशभर में राजनिती तेज हो गई, बीजेपी नें कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप लगाया, जिससे डरकर सरकार ने रिपोर्ट को ठंडे बक्से के हवाले कर दिया.
2007 में आंध्र सरकार ने मुस्लिम सुमदाय की 15 पिछड़ी बिरादरियों को सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में चार प्रतिशत आरक्षण देने का फ़ैसला किया. जिसके चलते देशभर मुस्लिम तुष्टिकरण का आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा. महाराष्ट्र में भी मुस्लिम आरक्षण को लेकर आंदोलन होते रहे. मुसलमानो के बढती मांगो के लेकर राजनितीक हलचले तेज होती देखकर यूपीए-2 सरकार नें 15 सूत्री कार्यक्रम के सिफारसे अमल में लाने की घोषणा कर दी.
मुस्लिम आरक्षण कि मांग तेज
2014 में महाराष्ट्र के कांग्रेस-राकांपा सरकार ने मुसलमानो को 5 और मराठो को 16 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की थी. इस बार लगा कि मराठो के साथ मुसलमानो को आरक्षण दिया तो हिंदूओं का विरोध नही होंगा और यह रिजर्वेशन टिक जायेंगा, मराठे इसका रक्षण करेंगे. पर अफसोस ऐसा हुआ नही, उच्च न्यायालय ने 14 नवंबर 2014 को मराठा आरक्षण के साथ मुस्लिम आरक्षण भी स्थगित कर दिया. लेकिन उच्च न्यायालय ने मुसलमानों को शिक्षा के क्षेत्र में आरक्षण देने पर राजी हुआ.
2017 में तेलंगाना में पिछड़े मुसलमानों को 12 प्रतिशत आरक्षण दिया. इसके साथ अन्य पिछडे जातियो का आरक्षण भी बढाया, यहाँ बीजेपी के अलावा कई गैरमुस्लिम विधायक मुसलमानो के आऱक्षण का समर्थन किया था.
जिसके बाद महाराष्ट्र में छिटपूट तौर पर मुस्लिम आरक्षण की मांगे बढती रही. वरीष्ठ कार्यकर्ता फकरुद्दीन बेन्नूर के नेतृत्व में 'महाराष्ट्र मुस्लिम आरक्षण आंदोलन' नामक एक संघठन बना, जिन्होने आरक्षण की मांगो को लेकर राज्यभर में जनसभाए ली.
2015 में एमआयएम विधायक इम्तियाज जलील के नेतृत्व में बीड शहर में मुस्लिम आरक्षण को लेकर बडा आंदोलन किया गया. पर सरकार ने इसको नजरअंदाज किया. तब से अलग-अलग संघठनो द्वारा मुसलमानो के आरक्षण को लेकर एकल आंदोलन होते रहे. जनसभाए होती रही, वहाँ मुस्लिमो के अलावा कोई और नजर नही आया.
मराठों को दिया सहयोग
2016 में महाराष्ट्र 'मराठा क्रांति मोर्चा' के तहत मराठा समुदाय रास्तो पर था. कोपर्डी मामले के रेपिस्ट को कडी सजा के साथ अन्य मांगे भी इन मोर्चा के द्वारा कि जा रही थी. इन मांगो में अल्पभूधारक किसानो की समस्या को प्रमुख जगह दी गई थी, कुछ समय बाद सरकारी नौकरीयों में आरक्षण की मांग इन मांगो के साथ जोड दी गई.
सालभर मोर्चे का ज्वर समुचे महाराष्ट्र बढता गया. मराठा समुदाय का दबाव काम आ गया, सरकार नें कुछ मांगो को मान लिया, जिसके फलस्वरूप ‘सारथी’ नामक संस्था का जन्म हुआ. इस सरकारी स्वायत्त संस्था के तहत मराठा समुदाय के विद्यार्थियों को अलग-अलग सहूलते प्रदान की गई, इसके अलावा लघु व्यवसाय को बढावा देने के लिए मायक्रो ऋण सुविधा उपलब्ध कराई गई.
इस आंदोलन को मुसलमानो का बडा समर्थन प्राप्त था, जिसका मकसद यह था की, मराठे भी मुसलमानो के आरक्षण की मांगो का समर्थन करे. छोटी-छोटी जनसभाए अगर छोडे तो मराठा संघठन नदारद था. अगर इन आंदोलनो को अन्य संघठन का समर्थन मिलता तो शायद मराठी मुसलमानो के झोली में एखाद दुसरी सहूलते पड जाती. पर दुर्भाग्यवश यह हुआ नही.
इसके बाद बदलते घटनाक्रमो के साथ केेेेवल मराठा रिजर्वेशन को संरक्षित करने प्रयास किया गया, पर मुसलमानो के हको को लेकर किसी मराठा या गैरमराठा विधायक ने अपना पक्ष नही रखा.
आज राज्य में हर कोई मराठा आरक्षण की बात कर रहा हैं. फडणवीस सरकार ने मराठा आरक्षण पर विचार विमर्श करने के लिए कई समितीया गठीत की हैं. विविध जाति समुदाय के विधायको ने विधिमंडल में मराठो आरक्षण देने पर राजी हुये हैं. पर कोई भी हाईकोर्ट ने मुसलमानो को दिये आरक्षण की बात नही कर रहा हैं.
यहा तक कि 2015 में मुस्लिम आरक्षण को लेकर विशाल मार्च का आयोजन करने वाले इम्तियाज जलील और अन्य मुस्लिम विधायक इस बार भी अपनी मांग विधिमंडल के पटल पर पुरे ताकद के साथ नही रख पाये.
महज बयानबाजी
इस बार के मराठा आंदोलन में शिवसेना ने अलग-अल बयानबाजी कर मीडिया को अपनी और खिंच रखा. अब शिवसेना ने मराठा के साथ मुस्लिम आऱक्षण का समर्थन किया हैं, सोमवार को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा है कि ‘सरकार को मराठों ही नहीं धनगर और मुस्लिम समुदायों को भी आरक्षण देने पर विचार करना चाहिए.’
शिवसेना एक हिंदूवादी पार्टी के तौर पर पहचानी जाती हैं. लेकिन अब वह मुसलमानो को शिक्षण संस्थानों में पांच फ़ीसदी आरक्षण देने की वकालत कर रही हैं. हालांकि उनके मनसूबे अभी साफ तौर पर बाहर नही आ पाये हैं. क्योंकि मुसलमानो का विरोध कर कई सालो से मुंबई में सत्ता में बैठी शिवसेना अचानक मुसलमानो की हिमायती कैंसे बनी. जाहीर हैं शिवसेना ने बीजेपीविरोध के चलते यह बयान दिया हैं.
गौरतलब हैं कि 2014 में शिवसेना के ही सरकार ने मुस्लिम और मराठा आरक्षण खत्म किया था. विपक्ष आरोप लगाता हैं कि 'सरकार नें जानबूझकर आरक्षण को लेकर ठिक ढंग से कोर्ट में पत्र नही रखा' अब वही सत्तापक्ष की सहयोगी पार्टी मुस्लिम और मराठा आरक्षण देने की बात कर रही हैं. यह मजाक नही तो क्या हैं.
बीते कई दिनो से महाराष्ट्र में मराठा आऱक्षण को लेकर आंदोलन चल रहा हैं, पर अफसोस किसी ने भी मुसलमानो के आऱक्षण के बारे में कहा नही हैं. मराठों का मुसलमानो के प्रति यह रवैया देख मराठा आरक्षण को समर्थन देनेवाले मुस्लिम संघठन सकते में आ गये हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान ने 2014 मे लाया गया आरक्षण सर्क्युलर हडबडी में लाने की बात निजी तौर पर कबूल कर चुँके हैं. पर आज तक उन्होने मुस्लिम रिजर्वेशन पॉलिसी को लेकर कोई बडा कदम नही उठाया हैं. फडणवीस जब विपक्ष में थे, तब उन्होने कहा था, 'हम सत्ता मे आते ही मराठा-मुस्लिम का एनरॉन कर (खत्म) देंगे' सत्ता मे आते ही फडणवीस सरकार ने मुस्लिम आरक्षण को खत्म किया, पर मराठो के दबाव के चलते उनके रिजर्वेशन को हाथ तक नही लगाया.
हाईकोर्ट द्वारा दिया गया मुस्लिम रिजर्वेशन बीजेपी ने रद्द किया, पर अफसोस प्रगतिशील आंदोलन का मोर्चा थामे अब की काँग्रेस और राकांपा चूप रही, क्या यही हैं प्रगतिवादी विचार? और कहाँ है प्रगतीशीलता का ढिंडोरा पिटने वाले मराठे नेतागण?
कलीम अजीम, पुणे
Twitter@kalimajeem
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