फरवरी का आज आखरी दिन था। अगले महिने से पदोन्नती की सौगात मिलनेवाली थी। आकाओ को खुश करते-करते २४ साल हो चुके थें। बडे लंबे इंतजार के बाद प्रमोशन हो रहा था। पेमेंट मे अच्छी खासी बढोत्तरी होनेवाली थी। और अगले महिने से काम भी कम था। शहर को धधकते हुये तीन दिन बीत चुके थें। अभी भी मार काट चल रही थी। मुझे कुछ न करने की हिदायत उपर से दी गयी थी।
दो दिन से दफ्तर के कुल तीनो भी फोन डेड कर दिये थे। हमे सिर्फ ऑर्डर फॉलो करना था। सो बैठ गया। इमरजंसीवाले फोन पर हर दस मिनट मे आका खैरियत पुछ लेते। मैं अंदरवाले कैबीन मे मेज पर पैर टिकाये बैठा था। संतरी से कहा था बाहर कोई भी आये उसे साहब गश्त पर गये कहकर सल्टा दो। संतरी अपना काम बखुबी कर रहा था। सुबह से सेकडों मदत की गुहारवाले सल्टा दिये गये थे। शहर के हालात बिगड रहे थें।
इमरजंसीवाला नंबर खनखना उठा। हैलो कंट्रोल रुम... मैं सदाचार भारती बात कर रहा हूँ। हमे बचाओ हजारो के भीड मे हमे घेर रखा हैं। मेरा पुरा परिवार खतरे में हैं। मेहरबानी करके हमे बचाओ। फोनसे गिडगिडाने की आवाज आ रही थी। ठिक हैं, कहकर मैंने रिसीव्हर रख दिया। सदाचार भारती नाम सुना सा लगा। मैं फिरसे अपनी जगह आकर बैठ गया। मेज पर नये फाईलो ढेर लगा था जिसमे शहर कुछ रिहाईश के नाम पडे थें।
भारती का नाम कानो मे गुंज रहा था। कुछ सेकंड मे याद आया। यह वही भारती जी थे जिन्होने अपने सांसद फंड से इस चौकी को पाँच लाख दिये थें। बिटीया सुलक्षणा के शादी में भी बडी रकम दी थी। भारती जी को कौन नही जानता था। पुरे मोहल्ले मे भारती जी एक अकेला ही परिवार था। कालोनी मे भारती जी अपने परिवार के साथ रिटायरमेंट की जिदंगी जी रहे थे।
मैं झठ से उठ खडा हुआ। अब मुझे बडी बेचैनी हो रही थी। तभी फोन खनखना ऊठा। वही बेरुख आकाओ की आवाज थी। मैंने भारती जी की खबर दी। उधर से कोई रिसपॉन्स नही था। उपर से कहा गया "आपसे जो कहा हैं बस उतना ही करो" और रिसीव्हर पटक दिया।
मुझे अब बेचैनी होने लगी। गला सुख गया था। खून जम चुका था। घबराहट रे मारे मैं पसीना हुआ जा रहा था। चाह कर भी कुछ न कर सका। क्रिंग-क्रिंग के घंटी मेरी जान निकाले जा रही थी। दिल पर पत्थर लिए फोन रिसीव्ह किया। फिरसे भारती जी आवाज थी। आवाज मे डर और बिनती थी। चिंखे और चिल्लाहटे थी। मैंने फिरसे फोन पटक दिया। भारती नजरो के सामने से हटने का नाम नही ले रहे थे।
चिखे कानो को फाड रही थी। अब हरामी आकाओ पर गुस्सा आ रहा था। फिरसे क्रिंग की आवाज कानो मे थी, थरथराते हाथो से रिसीव्हर लिया। इसबार भारती जी की बुढी पत्नी थी। वही गिडगिडाहट, वही मदत की गुहार, वही चिखे। पचपन साला बुढीया बेबस होकर चीख रही थी। और मै इधर दबकर बैठा था। किस तरह का पुलिसवाला था मैं। किडे पडेंगे मुझे। सडकर मरुंगा मैं। अपने को की बद्दुआ दिये जा रहा था।
इसी झुंझलाहट मे फिर एकबार आका को फोन घुमाया। आका अब ज्यादाही हरामीपन पर उतर आये थें। अब मुझे गालीयो से बाते किये जा रही थी। लग तो रहा था की, फोन के वायर से ही हरामी आका का गला घोंट दू। जैसे ही फोन रखा, फिरसे बज उठा। फिरसे भारती जी चिखे फोन से आ रही थी।
वह कह रहे थे मैं सासंद रह चुका हूँ। सरकार और तुम्हारी इमानदारी से सेवा की हैं। मेरे जान की हिफाजत करना पुलिस का फर्ज हैं। प्लिज बचाओ मुझे। अब मुझसे चिखे गिडगिडाहट बर्दाश्त नही हो रही थी। मैंने फोन पटक दिया। सदाचार भारती आँखोसे ओझल नही हो रहे थे।
दो महिने पहले ही राहुल की माँ भारती दी के घर आधी रात को गयी थी। भारती जी के बेटे ने निंद से जाग कर राहुल को आला लगाया था। अपने क्लिनीक जाकर राहुल के लिए दवाई भी लायी थी। मुझे भारती से जुडी हर बात याद आ रही थी।
सुबह से दोपहर और अब शाम हो चुकी थी। भारती जी आँखो से ओझल हुये थे। फिरसे मैं अपनी नयी पेमेंट की जुगाड मे व्यस्त हो चुका था। आका के हर फोन ने शाबाशी दी थी। मैं अब थोडा स्थिर हुआ था। मेरी अंजान बनने की प्रैक्टीस अब बढ चुकी थी। खुदको मजबुत किये टिव्ही ऑन किया।
राष्ट्रीय चैनल की सुर्खीया चल रही थी "पूर्व सांसद अपने परिवारवाले के साथ खाक" 'भीड ने सारे कालोनी को किया आग के हवाले' मै मेज पर बैठा घुँट पे घुँट लिये जा रहा था।
मोहल्ले वाले साहसी युवाको मन ही मन मे सलाम ठोंके जा रहा था। एक ही झटके भारती के परिवार के ६९ लोग स्वाहा किसे जा चुंके थें, दिनभर की मेहनत ने झोली और भी भर दी थी। सात पुश्ते भी खतम न हो आकाओने इतना दिया था। घुँट की धुंद मे भविष्य का जुगाड करते-करते आँख कब लगी इसका पता भी नही चला। अगले दिन मेरा कारनामा अखबार की सुर्खीया बन चुका था।
(कहानी के पात्र का तात्कालिक घटना से अगर संबध पाया जाता है तो, महज एक संयोग कहा जायगा)
वाचनीय
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अपनी बात
- कलीम अजीम
- कहने को बहुत हैं, इसलिए बेजुबान नही रह रह सकता. लिखता हूँ क्योंकि वह मेरे अस्तित्व का सवाल बना हैं. अपनी बात मैं खुद नही रखुंगा तो कौन रखेगा? मायग्रेशन और युवाओ के सवाल मुझे अंदर से कचोटते हैं, इसलिए उन्हें बेजुबान होने से रोकता हूँ. मुस्लिमों कि समस्या मेरे मुझे अपना आईना लगती हैं, जिसे मैं रोज टुकडे बनते देखता हूँ. Contact : kalimazim2@gmail.com