आरएसएस-बीजेपी संचालित ‘मोदी 0.2’ कार्यकाल कई मायनों में विवादित रहा. पूरे सत्ता काल के दौरान समूचे देश में धर्म के नाम पर फूट डालने का काम तेजी से हुआ. दूसरी ओर आर्थिक तथा संवैधानिक मोर्चे पर भी कई शर्मनाक हादसे पेश आए. एक खास वर्ग की संपत्ति मे बढ़ोत्तरी होती रही, तो वहीं दूसरी ओर समाज का एक बहुत बड़ा तबका रोजगार विहीन हुआ. लाखों युवाओ के जॉब गए, गरीब तथा मध्यवर्ग के आय मे कटौती हुई.
कई मुसलमान नेता
तथा बुद्धिजीवी भाजपा-आरएसएस के समर्थक हो गए. अलग-अलग ‘राष्ट्रीय मौलाना तंजिमे’ वजूद में आई, उनके द्वारा हिंदुवादी ताकतों
के गुंडई का समर्थन हुआ. उन्होंने मॉब लिंचिंग के नॉर्मलाइज करने की कोशिशे की. भीड
द्वारा हत्या में मरने वाले पीड़ित समुदाय अब पसमांदा बनकर सरकार के भोंपू बन गए हैं.
जो सालों से पसमांदा के हकों बात कर रहे थे,
वे बीजेपी के इस कार्यक्रम से
दूर रहकर आलोचना कर रहे हैं.
बीजेपी की नफरत
के राजनीति से, दंगों
से, हमलों
से, लिंचिंग
से त्रस्त होने वाली महिलाओं के संवैधानिक आवाज को दबा दिया गया. तलाक जैसे मसलों को
हवा देकर तमाम मुसलमानों का अमानवीकरण किया गया. सुल्ली-बुल्ली एप के जरिए उनके जिस्म की बोली लगाई गई.
उन पर झूठी एफआईआर कराई गई.
कश्मीर से कन्याकुमारी
या गुजरात से मणिपूर तक सभी जगह महिलाओं के प्रति हिंसा ने उत्पात मचाया. कई जगहों
पर बीजेपी के समर्थक दल तथा सदस्यों, विधायकों,
सांसद तथा मंत्रिगण महिलाविरोधी
हिंसा, अत्याचार, लैंगिक ज्यादतियों में लिप्त
पाए गए. उन्हें इस शर्मनाक गुनाह से बचाने के लिए सरकारी स्तर तथा ट्रोलर द्वारा मुहिमे
चलाई गई. तिरंगा यात्राएं निकाली गई.
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सीएए-एनआरसी
के खिलाफ सत्याग्रह करने वाले कार्यकर्ताओं को झूठे केस में फंसा कर जेलों मे बंद किया गया. आंदोलक छात्र-छात्राओं पर गोलियां चलाई गई. हॉस्टल में, घरों में घुसकर उन पर लाठियां-गोलियां बरसाई गई. शाहीन बाग महिला सत्याग्रहीं की अस्मत के साथ खिलवाड़ किया गया. दिल्ली में दंगे करवाकर संवैधानिक हक तथा नागरी हितो के रक्षा की मांग करने वाले मुसलमान तथा नवयुवकों की आवाजे बंद की गई.
उभरते हुए राजनीतिक चेहरों
को झुठे केसों में बंद किया गया, उनके खिलाफ मीडिया ट्रायल चलाया गया. कोरोना के लिए मुसलमानों
को जिम्मेदार ठहराया गया. मानव अधिकारों के हनन की कई घटनाए मोदी के दूसरे कार्यकाल
में अधिकृत तथा जनसामान्य की गई. लोगों के मानस को बदलने के लिए झूठा नरेशन गढ़ा गया.
बीजेपी-आरएसएस के हिंदुवादी तथा ब्राह्मण्यवादी
बहुसंख्यकवाद ने दलित, आदिवासी, पिछड़े तथा अल्पसंख्यक समाज को हाशिया पर ला खड़ा
किया. किसानों, खिलाडीयों, ईसाई, मुसलमान तथा दलितों को लेकर एक
सामान्य राय कायम करने के लिए प्रोपेगेंडा मशीनरी ने जिस निचले पायदान पर जाकर काम
किया वह शर्मनाक थी. यहीं दुष्प्रचार दुनियाभर में भारतवर्ष की छवीं खराब करने का कारक
बन रहा हैं. युरोपिय तथा अरब देश हमारे धार्मिक उन्माद को देख हमपर हंस रहे हैं.
मोदी के पूरे
शासनकाल में अभिव्यक्ति स्वतंत्रता के साथ धार्मिक स्वतंत्रता भी खतरे में आई. शत्रुता, नफरत और हिंसा की राजनीति जैसे
आम हो गई. सौहार्द, जोड़, मिलाप और दोस्ती की बात करने वालों को देशद्रोही बताया
गया. सद्भाव तथा समन्वय के प्रक्रिया में बाधा ड़ाली गई. इस नफरत के दौर ने हमारे समूचे ‘पॉलिटिकल कल्चर’ को बदलकर रख दिया हैं. केवल राजनीतिक
लाभ के लिए हजारों साल की भारतीय संस्कृति के रचना को ध्वस्त कर दिया गया हैं. सामाजिक
विभाजन तथा ध्रुवीकरण कि राजनीति इस तरह हावी हो गई की आम लोग भी उसके चपेट में आ गए.
ट्रेनों में, बस
डेपो, सार्वजनिक
स्थलों पर लोगों के खिलाफ हेट क्राइम हो रहे हैं. जिससे अल्पसंख्यक समाज का जीना मुहाल
सा हो गया हैं.
औपनिवेशिक भारत
में ब्रिटिशों ने अपनी सत्ता ज्यादा मजबूत करने के लिए
‘फूट डालो’ वाली राजनीति अपनाई थीं. 1857 के
गदर के बाद यह विभाजनकारी राजनीति और तेज होती गई. अंग्रेजों ने इतिहास की व्याख्या ‘हिंदू विरुद्ध मुस्लिम’ के रूप में की. यह महज साधारण
सी बात नहीं थी बल्कि एक गहरा षड्यंत्र था. हजारों साल पुरानी भारतीय सभ्यता संस्कृति
तथा आपसी मेल मिलाप को तोड़ने और उसे धर्म के नाम पर बांटने की साजिश थी. इसके बाद
समूचे भारतवर्ष में धर्म के नाम पर अलग-अलग गुट बने. जिन्होंने आगे चलकर भारत को तीन हिस्से
में विभाजित कर दिया. संविधानिक राष्ट्रवाद को नकार कर हिंदू राष्ट्र परिभाषा गढ़ना
इसी विभाजनवादी राजनीति का काला चेहरा हैं.
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वास्तव में अखिल भारतीय कांग्रेस का निर्माण ब्रिटिशों ने किया, जब वह उनके नियंत्रण से बाहर जाने लगा तब उसके खिलाफ धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले लोगों को खड़ा किया गया. जिसने धर्म को खतरे में बता कर कांग्रेस के खिलाफ यानी जंगे आजादी के खिलाफ मुहिम चलाई. अंग्रेजों की इस साजिशों ने आने वाले 50 से 60 सालों तक समाज में विभिन्न प्रकार की शत्रुता, आपसी रंजीश पैदा कर दी. ब्रिटिशों द्वारा स्थापित विभाजनकारी राजनीति सफल हुई.
वर्तमान में आरएसएस-बीजेपी द्वारा यहीं नीति अपनाई
गई. उसने अपनी सत्ता मजबूत करने के लिए कई आभासी शत्रुओं को गढ़ा हैं. केवल मुसलमान
तथा अल्पसंख्यक को अपना (देश) शत्रु घोषित नहीं किया बल्कि उनके खिलाफ जनमानस को खड़ा
किया. संवैधानिक राष्ट्र को नकार कर हिंदू राष्ट्र को प्रचारित किया जा रहा हैं. यह
भी अपने आप में एक किस्म का राष्ट्रद्रोह हैं. मगर इस जघन्य अपराध को हिंदू राष्ट्रवाद
के रूप में लोगों पर थोपा जा रहा हैं.
आज के इस हिंदू
राज में बीजेपी ने अपने विरोधियों का जेल में डाला हैं. दूसरी ओर अपने खेमे से कई लोगों
के विरोधी खेमे में पहुंचा दिया. आज विरोधी खेमे में कई पुराने भाजपाई तथा संघी घुस
आए हैं. यहीं लोग आज सामाजिक संघठनों, जनाआंदोलनो के चेहरे बने हुए हैं. वह दिखाने के
लिए बीजेपी के राजनीतिक विरोधी तो हैं, पर आरएसएस के सांस्कृतिक षडयंत्र तथा उसके अल्पसंख्यक
विरोधी सोच के खिलाफ बात नहीं करते. जातिगत जनगणना पर चुप्पी साधते हैं. कुछ लोग तो
सिर्फ अर्थतंत्र की बहस में उलझे रहते हैं तो कुछ सिर्फ मोदी के व्यक्ति विरोध में
फंसे हैं. जिसे देख सवाल पैदा होता हैं की,
कहीं विरोधी
खेमों तथा आंदोलनो को सेबोटाइज करने के लिए ही इन्हें इधर भेजा नही गया हैं?
कुल मिलाकर यह
कह दे तो बुरा नहीं होगा की, मोदी ने अपने विरोधियों की भी खुद ही चुना हैं. पिछले
दस साल में अच्छी हो या बुरी कोई भी चर्चा मोदी से हटकर नहीं होती. आए दिन मोदी चर्चा
में या ट्रोलिंग में छाए रहते हैं. मोदी... मोदी... का राग भारत के निवासियों पर इस
कदर चढ़ा दिया गया हैं की, वे भगवान जैसे बन गए हैं. उनके विभूतिपूजा में डूब गए
हैं.
आज भारत के नागरिक धर्म के नाम में आपस में लड़ रहे हैं. उनके लिए ‘जेब की बात’ से ज्यादा ‘धर्म’ अहम मुद्दा बन गया हैं. वे आरएसएस के सांस्कृतिक गुलामी को खुशी से स्वीकार कर रहे हैं. उन्हें अपनी आर्थिक स्वतंत्रता तथा राष्ट्रीय हित का ख्याल बेमानी सा लग रहा हैं. यह लोग अपने-अपने निजी स्वार्थ, अस्मिता, विवशता के खातिर चुप्पी साधे बैठे हैं. जिसके परिणाम में आम लोग भी धर्म और अस्मिता की राजनीति में इस तरह उलझे हैं कि, ढीली पड़ती जेबों की तरफ उनका ध्यान ही नहीं जाता. इस धर्मवादी वर्चस्ववाद के बीच बीजेपी ने लूट मचा कर उद्योगपतियों की जेबे भरने का काम चुपके से जारी रखा.
कई क्रोनी कैपिटलिस्ट वजूद में आए. उनपर मोदी सरकार ने सार्वजनिक संपत्ति लुटा दी. कौडीयों के दामों में सरकारी कंपनियों को उनके झोली में डाल दिया. आँखो के सामने देखते-देखते सार्वजनिक क्षेत्रों का निजीकरण होता रहा. अप्रत्यक्ष रूप से आरक्षण को खत्म करने का काम ब्राह्मणवादी सरकार ने कर दिया. यह उद्योगपती आज खुलकर बीजेपी-आरएसएस से आर्थिक हितों की बात करते हैं. भगवी राजनिति कि हिमायत करते हैं. संविधान को खत्म करने या बदलने की मांग करते हैं. प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण लागू करने का विरोध करते हैं. कांग्रेस तथा अन्य विरोधियों की मुखालफत करते हैं.
इसी तरह स्वतंत्र कहे जाने वाले कई विचारक मामूली फायदे के लिए बीजेपी के खेमे
में जाकर बैठे हैं. वे हेट क्राइम तथा ध्रुवीकरण कि राजनीति का खुलकर समर्थन करते हैं, उसको राष्ट्रीय साबित करने के
आर्ग्युमेंट करते हैं, राष्ट्रवाद के नए कसीदे गढ़ रहे हैं. कुल मिलाकर बीजेपी
सरकार ने हर तरह से अपने अ-राष्ट्रीय कामों को स्वीकृत तथा जनमान्य करने के लिए हर
तरह के हथकंडे इस्तेमाल में लाए हैं. तथाकथित
(अ)हितकारी विमर्श गढ़ने,
ध्रुवीकरण करने, फूट डालने और नफरत के इस राजनीति
ने हिंदू राष्ट्रवाद के कल्पनाओं को हवा मिल गई हैं.
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अंग्रेजों ने मुसलमानों
के नागरी, सामाजिक, सांस्कृतिक स्वरूप को नजरअंदाज करते हुए उन्हें धर्म के नाम पर दुष्प्रचारित किया, बीजेपी ने भी वहीं किया हैं. आरएसएस के इस हिंदू राज में मुसलमान एक भारतीय नागरी समाज न होकर महज ‘धर्म’ संप्रदाय बनकर रह गया हैं. जिसने आम लोगों को इनके खिलाफ ‘वह और हम’ विमर्श गढने तथा नफरत करने के लिए मजबूर किया गया हैं.
मोदी के पहले
सत्ता काल में मुसलमानों को शत्रु बताया गया और उनके सामाजिक, सांस्कृतिक पहचान पर चोट पहुंचाई
गई. दूसरे कार्यकाल आते-आते उनके अस्तित्व को ही नकारा जाने लगा. नागरी हकों तथा
मताधिकार से वंचित रखने की कोशिशे हुई. उनके खिलाफ जुल्म और अत्याचार को देशभक्ति बताई
गई. मोदी के इस कार्यकाल में सिर्फ मुसलमानों का दानवीकरण नहीं हुआ बल्कि दलित, आदिवासी तथा अन्य पिछड़े वर्गों
को भी चोट मिली.
मुसलमानों पर तरह-तरह के हमले तेज होते गए. दंगों का पैटर्न भी बदला. मुसलमानों के न्याय की, संवैधानिक अधिकारों की बात करने वाले संगठन, समाजसेवी, लेखक, विचारक तथा कार्यकर्ताओं को झूठे इल्जाम लगाकर उनका मीडिया ट्रायल करवाया गया. उन्हें अनिश्चितकाल के लिए जेल में बंद किया गया. सीएए और दिल्ली दंगों के बाद इस प्रक्रिया में तेजी आई.
मुसलमानों के मोहल्ले
में जाकर हथियारबंद जुलूस निकालना, तलवारे नचाना,
उनके खिलाफ गाली-गलौज करना, उनके धर्म को भला बुरा कहना और
उन्हें हिंसा के लिए उकसाना मानों एक पैटर्न सा बन गया. मुसलमानों के खिलाफ खुले तौर
पर धमकियां देना, जन सभाएं आयोजित करना,
नरसंहार कि सामूहिक शपथ दिलाना, झूठे इलजाम लगाकर घरों पर बुलडोजर चलवाना, टीवी के प्राइम टाइम डिबेट में मारपीट करना, संसद में मुसलमानों गाली देना, उनके हत्याओं की धमकी देना, वांशिक खात्मे के लिए आम लोगों
को उकसाना मानों आम होता गया.
इस तरह के दानवीकरण
पर संविधान प्रेमी तथा मानवी हकों के पैरोकार खुलकर लिखते-बोलते रहे. लिखने-बोलने की सजा भी कई लोगों को मिली. मगर फिर भी उन्होंने
अपना ‘मकसदी
लेखन’ बंद
नहीं किया. उन्होंने समाज में जाकर अपनी बात रखना जारी रखा. डॉ. राम पुनियानी भी उसमें
एक है. वह बीजेपी के सांप्रदायिक राजनीति के खिलाफ पिछले
50 साल से लिखते-बोलते आए है. जाहिर हैं, इस सांप्रदायिक राजनीति में भी
वह बोलते-लिखते
रहे हैं. परिणाम स्वरूप उन्हें जान से मारने की धमकियां भी मिली. मगर वह अपने मकसद
से बिल्कुल पीछे नहीं हटे. वे लगातार फासिवादी दक्षिणपंथी ताकतों के खिलाफ मोर्चा संभाले
हुए है.
जनाब राम पुनियानी
ने मोदी राज के बीते 10 साल में काफी कुछ लिखा है. उनके यह लेख संविधान प्रेमी
तथा मानवी हक्क के पैरोकार के लिए हौसले का सबब बने. मोदी के कार्यकाल में मुसलमान
का जो मीडिया ट्रायल हुआ उसका सारा इतिहास श्री. पुनियानी ने लेखों के माध्यम से समय-समय पर रेखांकित किया है. आने वाले दौर में जब-जब आरएसएस-बीजेपी-मोदी के 10 सालों की राजनीति की जब समीक्षा
की जाएगी तब इस संकलित लेखों को ऐतिहासिक संदर्भ-स्रोत के रूप में माना जाएगा. यहीं वजह थी कि लगा
कि जनाब पुनियानी के विविध लेखों का संकलन किया जाए. वैसे तो पुनियानी सर ने इस 10 साल में हजार से ज्यादा सम सामाईक आर्टिकल
लिखे हैं. मगर इस संकलन में सिर्फ मुसलमान समुदाय से संबंधित 90 आर्टिकल इकट्ठा किए है.
वाचा : आरएसएस आणि वर्तमान राजकारण
वाचा : आरएसएसप्रणीत वर्तमान राजकारणाचा इतिहास : 'मनुचा मासा'
पहले भाग में
इसे समय-काल के हिसाब से सिलसिलेवार रूप से संकलित किया है जबकि दूसरे और तीसरे भाग
में विषय के मुताबिक लेखों कि रचना की गई हैं. आमतौर पर पुनियानी अंग्रेजी में लिखते
हैं, मगर
उनके लेखों का देश के कई अलग-अलग क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद किया जाता रहा है. हिंदुस्ताँनी
में भी लेख आते रहे हैं. कई लोग समय-समय पर इन लेखों का अनुवाद कर उसे प्रकाशित करते
रहे. मगर इस किताब में श्री. अमरीश हरदेनिया द्वारा हिंदी रुपांतरित लेख लिए गए हैं.
क्योंकि एक ही शैली के लेख पाठकों के पढ़ने को मिले. इन लेखों को समय-समय पर अनुवाद
करने के लिए श्री. हरदेनिया का हम आभार प्रकट करते हैं.
इस संकलन के सभी आलेख समय के मांग के अनुसार लिखे गए हैं. जिसे किताबी शक्ल में पेश करते वक्त अलग-अलग बातों का ध्यान रखा गया हैं. जरुरत के हिसाब से तारीख, साल जोडे हैं. घटना, बयान, प्रसंग को विस्तारित रूप से संपादित किया गया हैं. बाकी कोई खास बदलाव नहीं किया गया हैं. लेखों को समसमाइक ही रखा गया हैं. सारे लेख समय अनुरूप हैं. उस वक्त की घटनाएं, प्रसंग और राजनीति को दर्शाते हैं. किताब पढ़ते समय समकालीन दौर को ध्यान में रखना जरूरी हैं.
राम पुनियानी
के इस लेखन कार्यों के समकालीन इतिहास के रूप में संकलित करना मेरी भूमिका थी. दूसरी
बात यह मेरी और मेरे समाज की तरफ उनके प्रति कृतज्ञता भी है. इस अहम डॉक्यूमेंटेशन
को हम आप के सामने पेश कर रहे हैं. उम्मीद हैं,
आप इस का स्वागत करेंगे. आनेवाले
समय में इस का मराठी और उर्दू अनुवाद भी पेश करने का भी इरादा हैं.
शुक्रिया....
कलीम अज़ीम, पुणे
25 दिसंबर 2023
मेल : kalimazim2@gmail.com

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- कलीम अजीम
- कहने को बहुत हैं, इसलिए बेजुबान नही रह रह सकता. लिखता हूँ क्योंकि वह मेरे अस्तित्व का सवाल बना हैं. अपनी बात मैं खुद नही रखुंगा तो कौन रखेगा? मायग्रेशन और युवाओ के सवाल मुझे अंदर से कचोटते हैं, इसलिए उन्हें बेजुबान होने से रोकता हूँ. मुस्लिमों कि समस्या मेरे मुझे अपना आईना लगती हैं, जिसे मैं रोज टुकडे बनते देखता हूँ. Contact : kalimazim2@gmail.com