ऱाष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की और से गुड मुस्लिम और बॅड मुस्लिम की अवधारणा निश्चित करने की प्रक्रिया शतको से चली आ रही हैं. बीते कुछ दिनो से संघ कि ओर से उस बात को तुल दिया जा रहा हैं. गुड मुस्लिम की प्रतिमा खडी कर अन्य मुसलमानों को लांच्छने लगाने की यह प्रक्रिया हैं. इस बात को लेकर कुछ दिनो से बहस चल रही हैं. उसी कडी में हम यह निलंजय मुखोपाध्याय का यह आलेख पाठको को दे रहे हैं. दि क्वेंट के सौजन्य से हम मुखोपाध्याय के विचार आपके समक्ष रख रहे हैं.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह कृष्ण गोपाल की जुबानी दारा
शिकोह का गुणगान संघ परिवार की पुरानी रणनीति की एक कड़ी है. रणनीति है मुसलमानों
को दो भागों में बांटने की- ‘अच्छा मुसलमान’ और ‘बुरा मुसलमान’.
दारा शिकोह मुगल बादशाह शाहजहां का सबसे बड़ा बेटा था. कट्टर और
निर्दयी औरंगजेब की तुलना में उसे सुशील और दयालु इंसान माना जाता था. फरवरी 2017
में उसी के नाम पर केंद्र की बीजेपी सरकार ने राजधानी नई दिल्ली में डलहौजी रोड का
नाम बदलकर दारा शिकोह रोड रखा था.
पार्टी सांसद मीनाक्षी लेखी के इस प्रस्ताव को केंद्र के नियंत्रण
वाली न्यू दिल्ली म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन ने मंजूरी दी थी. मीनाक्षी लेखी का कहना था
कि ये फैसला “हिन्दुओं और मुस्लिमों को साथ लाने के लिए” शहजादे के सम्मान
में लिया गया है. वैसे तो सबसे पहले 2014 में औरंगजेब रोड का नाम बदलकर दारा शिकोह
रोड रखने की योजना थी. लेकिन पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की मृत्यु के बाद
योजना बदल गई.
मुसलमानों के मुद्दे पर RSS
की नरम दिखने की कोशिश
यह भी पढे : क्या सचमुच औरंगजेब हिन्दुओं के लिए बुरा शासक था?
यह भी पढे :आझादी के बाद का सबसे बडा
हत्याकांड
इस बयान में कोई नई बात नहीं है. लेकिन कृष्ण गोपाल के बयान को
मुस्लिम मुद्दे पर RSS की नरम छवि दिखाने की कोशिश से जोड़ा जा सकता है.
ये कोशिश 2017 से शुरु हुई थी. उस साल सितंबर में मोहन भागवत ने अपना पुराना बयान
दोहराया था कि मुस्लिमों के बगैर हिन्दुत्व कोई मायने नहीं रखता.
पिछले कई साल से संघ,
‘मुस्लिम राष्ट्रीय मंच’ के जरिए मुस्लिम
समुदाय को लुभाने की कोशिश में जुटा है. इसी कोशिश के तहत हाल में भागवत ने जमात
उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी के साथ विचारों का आदान-प्रदान किया, जिसका जमकर प्रचार
हुआ.
जिस शहजादे को औरंगजेब ने मौत के घाट उतार दिया था, उसका गुणगान अच्छे मुस्लिम
की अवधारणा बनाने की RSS की कोशिश है.
दक्षिणपंथी संगठन ने दारा शिकोह को एक मॉडल मुस्लिम के रूप में पेश
किया है, जो बौद्धिक और दार्शनिक होने के अलावा मुगलिया सल्तनत का वाजिब हकदार
था. माना जाता है कि 17वीं सदी के मध्य में, जब मुगलिया सल्तनत सबसे ताकतवर थी, औरंगजेब ने सिर्फ इस
वजह से शिकोह को उसके हक से महरूम कर दिया, क्योंकि उसका बड़ा भाई धार्मिक सद्भाव में
विश्वास रखता था.
यह भी पढे : रफीक झकेरिया : एक सुलझे हुए राजनितिज्ज्ञ
यह भी
पढे : न्यूज चॅनेल के ‘टेली मुल्ला’ओं का विरोध होअधूरा ज्ञान, आत्मनिष्ठ नजरिया
जैसा पहले भी हो चुका है,
कृष्ण गोपाल ने एक ऐसी दलील पेश की है, जिसमें इतिहास की
जानकारी का अभाव साफ झलकता है और जो नजरिया अपने हितों के अनुरूप गढ़ा गया है.
कांग्रेस की तरह संघ परिवार को भी अतीत से वर्तमान तक नामी-गिरामी मुस्लिम शख्सियत
की सूची बनाकर गहराई से अध्ययन करने की जरूरत है, ताकि वो अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि का परिचय
दे सकें.
बात, बेतुकी लग सकती है, लेकिन हिन्दू राष्ट्रवाद का कट्टर
झंडाबरदार बनने के बाद भी संघ परिवार के नेता महसूस करते हैं, कि खुद को धर्म
निरपेक्ष साबित करना जरूरी है.
लिहाजा, संघ परिवार के लिए एक दारा शिकोह जरूरी है. ठीक
उसी प्रकार, जैसे आरिफ मोहम्मद खान सरीखे चंद नेताओं और
प्रवक्ताओं के जरिये ये दिखाना जरूरी है कि संघ परिवार को मुस्लिम नेताओं से परहेज
नहीं. लेकिन दारा शिकोह को लेकर RSS
का नैरेटिव इतिहास को बदलने की कोशिश है.
मध्यकालीन इतिहास के मशहूर जानकार हरबंस मुखिया ने सवाल किया था कि
अगर औरंगजेब और दारा शिकोह के बीच कट्टर इस्लामवाद और उदारवाद के मुद्दों पर
विचारों में असहमति थी, तो जसवंत सिंह और जय सिंह जैसे दो मुख्य राजाओं
ने बड़े भाई के बजाय औरंगजेब का साथ क्यों दिया? (मुखिया ने ये भी बताया कि शहजादे का नाम
दारा ‘शुकोह’ था,
न कि ‘शिकोह’. फारसी में ‘शुकोह’ का मतलब मशहूर होना है, जबकि ‘शिकोह’ का मतलब आतंक!)
माध्यम एक, मकसद अलग
निश्चित रूप से सबसे महत्त्वपूर्ण और ताकतवर मुगल परिवार में सत्ता के
संघर्ष में दारा शिकोह की हार हुई. अतीत में अल्पसंख्यक कट्टरपंथियों के विरोध में
धर्मनिरपेक्ष गुट ने दारा शिकोह को एक सज्जन इंसान के रूप में प्रस्तुत किया, जिसने अपना सबकुछ
त्याग दिया था.
ये बात बेतूकी लग सकती है, लेकिन मारे गए शहजादे को कट्टरपंथियों और
उदारवादियों के बीच एक धर्मनिरपेक्ष मुस्लिम साबित करने के पीछे RSS का कारण वही है, लेकिन उनका मकसद अलग
है.
कट्टरपंथियों और उदारवादियों ने इस नैरेटिव का इस्तेमाल इस्लाम के
विरोध में किया, जबकि दक्षिणपंथी हिन्दुत्ववादी संगठन ने दारा
शिकोह को समकालीन मुस्लिम समुदाय के बीच एक रोल मॉडल बनाकर पेश किया.
RSS को हिन्दुओं का समर्थन पाने के लिए
मुस्लिम समुदाय के बीच अपनी कट्टरपंथी छवि बनाए रखना जरूरी है. लिहाजा अगर ‘बुरे मुस्लिम’ की अवधारणा तय नहीं
होगी, तो संघ परिवार के समर्थन देने वाले ‘राजनीतिक हिन्दू’ भी नहीं होंगे.
कई तर्क दिए जाते हैं कि दारा शिकोह और औरंगजेब का पालन-पोषण एक टूटे
हुए परिवार में हुआ था. बड़े भाई के प्रति छोटे भाई के जलन का कारण “बादशाह शाहजहां का
दारा के प्रति ज्यादा स्नेह था”. तर्क दिया जाता है कि औरंगजेब के धार्मिक और
राजनीतिक कट्टरपंथ की उपज बचपन से ही उसकी उपेक्षा का नतीजा थी, न कि उसकी
प्रतिबद्धता के कारण.
वाचा : आपण सर्वच झुंडशाहीला बळी पडलोय!
वाचा : टिपू सुलतानची खरी भीती कुणाला?
अतीत को वर्तमान से जोड़ना
वाचा : टिपू सुलतानची खरी भीती कुणाला?
अतीत को वर्तमान से जोड़ना
थोड़ी देर के लिए इन तर्कों को परे हटा दिया जाए और उनके पालन-पोषण के
तौर-तरीकों पर ध्यान केंद्रित किया जाए, तो क्या RSS दारा शिकोह के समर्पित मुस्लिमवाद को
स्वीकार करेगा?
आखिरकार दो-ध्रुवीय नैरेटिव के अनुसार भी दारा शिकोह को इस्लाम की
ज्यादा समझ थी, जिसने उसे एक ऐसा दयालु और आध्यामिक इंसान बनाया, जो परम सत्य प्राप्त
करना चाहता था.
अपनी इस छवि के लिए दारा शिकोह का विश्वास जिम्मेदार था. लेकिन संघ
परिवार के लिए विश्वास या धर्म उसी प्रकार एक राजनीतिक हथियार है, जैसा औरंगजेब के लिए
था.
इसके अलावा कृष्ण गोपाल और उनसे सहयोगियों से एक साधारण सा सवाल किया
जा सकता है. अगर वो ‘अच्छे मुस्लिम’ को समर्थन देते हैं, तो बादशाह अकबर के
बारे में उनकी क्या राय है? या सिर्फ भारत में अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए
उन्होंने दारा शिकोह का अचानक चयन कर लिया?
इतिहास से सबक लेने के लिए अतीत को वर्तमान से जोड़ना अनिवार्य है.
लेकिन लगता है कि संघ परिवार वर्तमान के अनुसार अतीत की कड़ियां सुनिश्चित करता
है. अपना मतलब निकालने के लिए अतीत को बदलना इतिहास के साथ सख्त नाइंसाफी है.
दारा शिकोह का जरूरत से ज्यादा गुणगान उतना ही बुरा है, जितना औरंगजेब की
जरूरत से ज्यादा निन्दा करना. एक इतिहासकार के रूप में Audrey Truschke कहते हैं कि सम्राट के रूप में दारा शिकोह “विनाशकारी” साबित होता और
औरंगजेब की ही तरह “क्रूर और हिंसक” होता.
वैसे RSS की एक और परिकल्पना बड़ी हास्यास्पद है, जिसका भगवाधारी जमकर
प्रचार करते हैं: अगर दारा बादशाह बन जाता, “तो भारत में इस्लाम को और प्रचार-प्रसार
होता.” ये तर्क कुछ वैसा ही है,
जैसे इनका एक और प्रिय दावा है – अगर जवाहरलाल नेहरू
के बजाय सरदार पटेल भारत के पहले प्रधानमंत्री बनते, तो भारत की हालत बेहतर होती.
(लेखक दिल्ली स्थित पत्रकार हैं. उनकी नवीनतम किताबें हैं- ‘Sikhs: The Untold Agony of 1984’ और ‘Narendra Modi: The Man, The Times’)
वाचनीय
ट्रेडिंग$type=blogging$m=0$cate=0$sn=0$rm=0$c=4$va=0
-
जर्मनीच्या अॅडाल्फ हिटलरच्या मृत्युनंतर जगभरात फॅसिस्ट प्रवृत्ती मोठया प्रमाणात फोफावल्या. ठिकठिकाणी या शक्तींनी लोकशाही व्यवस्थेला हादरे द...
-
“जो तीराव फुले और सावित्रीमाई फुले के साथ काम फातिमा कर चुकी हैं। जब जोतीराव को पत्नी सावित्री के साथ उनके पिताजी ने घर से निकाला तब फातिमा ...
-
उस्मानाबाद येथे ९३वे अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलन पार पडत आहे. या संमेलनाचे अध्यक्ष फादर फ्रान्सिस दिब्रिटो आहेत. तर उद्घाटन म्हणून रान...
-
अ खेर ४० वर्षानंतर इराणमधील फुटबॉल स्टेडिअमवरील महिला प्रवेशबंदी उठवली गेली. इराणी महिलांनी खेळ मैदानात प्रवेश करून इतिहास रचला. विविध वे...
-
मध्यपूर्वेतील इस्लामिक राष्ट्रात गेल्या 10 वर्षांपासून लोकशाही राज्यासाठी सत्तासंघर्ष सुरू आहे. सत्तापालट व पुन्हा हुकूमशहाकडून सत्...
-
फिल्मी लेखन की दुनिया में साहिर लुधियानवी और सलीम-जावेद के उभरने के पहले कथाकार, संवाद-लेखक और गीतकारों को आमतौर पर मुंशीजी के नाम से संबोधि...
-
इ थियोपियाचे पंतप्रधान अबी अहमद यांना शांततेसाठी ‘नोबेल सन्मान’ जाहीर झाला आहे. शेजारी राष्ट्र इरिट्रियासोबत शत्रुत्व संपवून मैत्रीपर्व सुरू...
/fa-clock-o/ रिसेंट$type=list
चर्चित
RANDOM$type=blogging$m=0$cate=0$sn=0$rm=0$c=4$va=0
/fa-fire/ पॉप्युलर$type=one
-
को णत्याही देशाच्या इतिहासलेखनास प्रत्यक्षाप्रत्यक्ष रीतीने उपयोगी पडणाऱ्या साधनांना इतिहाससाधने म्हणतात. या साधनांचे वर्गीकर...
-
“जो तीराव फुले और सावित्रीमाई फुले के साथ काम फातिमा कर चुकी हैं। जब जोतीराव को पत्नी सावित्री के साथ उनके पिताजी ने घर से निकाला तब फातिमा ...
-
इ थे माणूस नाही तर जात जन्माला येत असते . इथे जातीत जन्माला आलेला माणूस जातीतच जगत असतो . तो आपल्या जातीचीच बंधने पाळत...
-
2018 साली ‘ युनिसेफ ’ व ‘ चरखा ’ संस्थेने बाल संगोपन या विषयावर रिपोर्ताजसाठी अभ्यासवृत्ती जाहीर केली होती. या योजनेत त्यांनी माझ...
-
फा तिमा इतिहास को वह पात्र हैं, जो जोतीराव फुले के सत्यशोधक आंदोलन से जुड़ा हैं। कहा जाता हैं की, फातिमा शेख सावित्रीमाई फुले की सहयोगी थी।...
अपनी बात
- कलीम अजीम
- कहने को बहुत हैं, इसलिए बेजुबान नही रह रह सकता. लिखता हूँ क्योंकि वह मेरे अस्तित्व का सवाल बना हैं. अपनी बात मैं खुद नही रखुंगा तो कौन रखेगा? मायग्रेशन और युवाओ के सवाल मुझे अंदर से कचोटते हैं, इसलिए उन्हें बेजुबान होने से रोकता हूँ. मुस्लिमों कि समस्या मेरे मुझे अपना आईना लगती हैं, जिसे मैं रोज टुकडे बनते देखता हूँ. Contact : kalimazim2@gmail.com