मुस्लिम सत्यशोधक मंडल ने आज (6 अप्रेल 2020) मराठी में एक प्रेस रिलीज जारी
कि हैं। जिसमें देश में कोरोना संक्रमण फैलने को कथित रुप से ‘तबलीग जमात’ को जिम्मेदार ठहराया हैं। मूल पत्र इस लिंक पर पढ़े।
"....इस परिपत्रक से आपने (MSM) तबलीग को अपनी गलती पर माफी मांगने कि बात कही हैं। इस पत्र में तबलीग जमात के किसी जिम्मेदार का नाम नही हैं। और न ही इस पत्र में तबलीग जमात के किस शाखा, जिला, तालुका प्रमुख या संघटक का नाम हैं। तबलीग एक बडा संघठन हैं। देश और विदेश में उसका काम चलता हैं। यह एक विशाल संघठन हैं। पर आप के पत्रक में किसी भी जिम्मेदार का नाम नही हैं।
‘तबलीग जमात’ से क्या मुराद हैं। यह कोई व्यक्ति या पॉलिटिकल पार्टी तो नही हैं। आपके पत्रक से यह साबित होता हैं कि यह महज बहुसंख्यकाक लोगों का गुस्से के प्रतिक्रिया स्वरुप निकला स्टैटमेंट हैं।
मानते तबलीग कि गलती हैं। लॉक डाउन के बाद भी वह निजामुद्दीन मरकज में बैठे रहे। कोई मदद ना मिलने के सूरत में उन्हें दिल्ली के मजदूरों की तरह रास्तों पर उतरकर चक्का जाम आंदोलन करना चाहिए था। रास्तों पर उतर कर दिल्ली प्रशासन और दिल्ली पुलिस से बसेस की मांग करनी चाहिए थी।
जिस तरह से नोएडा के मजदूरों ने किया। तबलीग जमात मरकज ने यह काम नहीं किया जो उनकी सबसे बड़ी गलती थी। इस गलती की सजा भारत के सारे तमाम मुसलमानों को मिल चुकी है, और मिल भी रही है।
तो मुद्दा यह बनता है कि मुस्लिम सत्यशोधक मंडल के परिपत्रक में दिल्ली का स्थानीय प्रशासन, दिल्ली पुलिस और संबंधित अधिकारीगण जिन्होंने निजामुद्दीन मरकज को मदद न देकर उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया, उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग मुस्लिम सत्यशोधक मंडल को करनी चाहिए थी।
यह भी पढ़े : मुसलमान ‘टेली मुल्ला’ओं का बायकॉट क्यूँ नही करते? यह भी पढ़े : सोशल डिस्टेंन्सिग कि दुर्गंध
जैसा कि आप जानते हैं दिल्ली मरकज के प्रमुखों ने 23 मार्च (2020) से स्थानीय प्रशासन और दिल्ली पुलिस को पत्राचार किया है। जिसमें उन्होंने निजामुद्दीन मरकज में फंसे हुए लोगों को अपने-अपने घर जाने के लिए बस पास की मांग की थी।
परंतु दिल्ली प्रशासन पुलिस ने निजामुद्दीन मरकज की कोई मदद नहीं की। इसके उलट हरिद्वार के लग्जरी बसों ने गुजरातियों को अहमदाबाद तक पहुंचाया है। यह घटना 28 मार्च (2020) को घटी है। लॉकडाउन मे बगैर सरकारी आदेश के इतना बडा फैसला मुमकिन नही।
परंतु दिल्ली प्रशासन पुलिस ने निजामुद्दीन मरकज की कोई मदद नहीं की। इसके उलट हरिद्वार के लग्जरी बसों ने गुजरातियों को अहमदाबाद तक पहुंचाया है। यह घटना 28 मार्च (2020) को घटी है। लॉकडाउन मे बगैर सरकारी आदेश के इतना बडा फैसला मुमकिन नही।
जबकि निजामुद्दीन का मीडिया ट्रायल 29 मार्च को शुरू हुआ। एक तरफ निजामुद्दीन मरकज के प्रमुख दिल्ली प्रशासन से मदद की गुहार कर रहे थे। दूसरी ओर निजामुद्दीन मरकज को मदद ना पहुंचा कर हरिद्वार से गुजरात मदद पहुंचाई गई। क्योंकि सब जानते हैं कि निजामुदीन में फंसे लोग मुसलमान थे और हरिद्वार में फंसे लोग हिन्दू थे।
तमाम पत्राचार बावजूद दिल्ली पुलिस ने निजामुद्दीन को मदद क्यों नहीं पहुंचाई? परंतु हरिद्वार से गुजरात 1200 किलोमीटर का रास्ता तय कर हिंदू भाइयों को अहमदाबाद तक लग्जरी बसों में पहुंचाया गया।
मुस्लिम सत्यशोधक मंडल के परिपत्रक में इस बात का जिक्र होना चाहिए था। परंतु आपके प्रेस रिलीज में महज तबलीग जमात से माफी की गुहार की गई है।
इसके अलावा राज्य के स्थानीय नेता राज ठाकरे का जिक्र किया है जिसमें वह फेक न्यूज़ को आधार बनाएं एक स्टेटमेंट देते हैं कि, “तबलीग जमातीओं को गोली मारनी चाहिए”
परिपत्रक में आप (MSM) कहता हैं कि इस भाषण से देश के मुसलमान डरे हुए हैं। (हमे तो कहीं से भी नही लगा) इसलिए तबलीग जमात ने देश से माफी मांगनी चाहिए। परंतु आप ने राज ठाकरे को माफी मांगने के लिए नहीं कहा हैं। और न ही उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई कि मांग की हैं। आपने उनके खिलाफ अपने प्रेस रिलीज में निंदा प्रस्ताव पारीत कर FIR कि मांग करनी चाहीए थीं।
राज ठाकरे का बयान संज्ञेय अपराध के श्रेणी में आता हैं। परंतु आपने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई की मांग नहीं की है।
आप ने प्रेस रिलीज जारी कर मूल मुद्दों को दूर रखा है जो कि गलत है। (यह तो भाजपाई लोग ओर सरकार समर्थक संघटनाओं अजेंडा हैं. मूल मुद्दो से ध्यान भटकाकर किसी निर्दोषों पर ठिकरा फोडना यह RSS कि नीति हैं) सत्यशोधक मंडल भी बहुसंख्यक वर्ग ने तैयार किए गए नरेटीव में फंसा है, जो नहीं होना चाहिए था।
फेक न्यूज को आधार बनाकर भारत के मुसलमानों के खिलाफ सांप्रदायिक युद्ध छेड़ा गया। उनके खिलाफ नफरत के माहौल खड़ा किया गया। फेक न्यूज़ में तरह-तरह की गलतफहमियां फैलाकर समाज के खिलाफ नफरत का वातावरण तैयार किया गया। जबकि तबलीग जमात और अन्य (मुसलमानों) लोगों का कोई गुनाह नहीं था। फिर वह किस बात की माफी मांगे?
इस समय समाज में मुसलमानों के खिलाफ सांप्रदायिक लहर खड़ी हुई है। ऐसे में आप भी अगर दोषियों को साइड करेंगे तो समाज ने किस और उम्मीद से देखना चाहिए?
सत्यशोधक मंडल खुद को समाज में अलग हैसियत रखने वाला और पकड रखने वाला मानता हैं। जिससे कुछ लोग उम्मीद भी रखते हैं। मगर उस पत्रक में मुझे जैसे कई लोगों के उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।
कलीम अजीम
पुणे का एक आम शहरी
6 मार्च 2020
6 मार्च 2020
यह भी पढ़े : जिवघेणा कोण? कोरोना की मराठी मीडिया?
जवाब न मिलने कि सुरत में हमारी कमेंट
तबलीग संदर्भ जो खबरे गोदी मीडिया में प्रकाशित हुई थी, वह सारी झुठी निकली हैं। ऐसे सूरत में MSM को एक और पत्रक निकालकर इसपर अपनी भूमिका स्पष्ट करनी चाहीए। जो अबतक उन्होंने नही हैं। जैसा कि शुरुआत में कहा है, हमारे इस पत्र का कोई जवाब उन्होंने नही दिया हैं, ऐसी सूरत उस पत्र को हम इस ब्लॉग के माध्यम से प्रकशित कर रहे हैं।
तबलीग के आड में आम मुसलमानों को निशाना बनाया गया। उनके खिलाफ नफरत और विषैला नातावरण तयार किया गया। ऐसी सूरत में मुसलमानों के लिए सामाजिक सुधार करनेवाले संघठनों ने केंद्रीय सरकार, स्थानीय दिल्ली सरकार, पुलिस और संबंधित प्रशासन को सवाल पुछे हैं। कुछ संघठनों से सुप्रीम कोर्ट में झुठी खबरों के खिलाफ जनहित याचिकाएं भी दाखिल की हैं। उसी तरह तबलीग के नाम पर फैलाई गई झुठी खबरों के बारे में जिक्र नही हैं।
हमारे इस मेल के बाद अध्यक्ष ने छह दिन बाद मराठी अखबार लोकसत्ता में 'तबलीगी जमातचे काय चुकते आहे?' लेख लिखा जिसमें इस परिपत्रक का विस्तार किया गया। फॅक्ट्स को नजरअंदाज कर फिर से एक बार उसी बातों को दोहराया गया। जिससे संदेह कि संघठन के भूमिका को लेकर स्थिति कि स्थिती निर्माण हुई हैं।
इस मुश्कील समय में मुसलमानों के लिए समाज सुधार का दावा करने वाले MSM ने मुसलमानों को खिलाफ नफरतभरा प्रचार करनेवालों के पक्ष में खडे होना गलत हैं। हमने इस संबंध में संघठन के कुछ कार्यकर्ताओं से बात की।
नाम जाहीर न करने के शर्त पर उन्होंने कहा, "इस पत्रक के बारे में हमे पुछा नही गया। उसी तरह हमारे किसी भी साथी को पुछा नही गया। मंडल के व्हॉट्सएप ग्रुप पर हम तबलीग के मीडिया ट्रायल पर एक प्रेस रिलिज निकालने के डिंमाड कर रहे थे, उस बारे में चर्चा चल रही थी और अचानक अध्यक्ष नें ये पत्रक निकाला, जिसकी किसी को खबर नही थी। हमे मीडिया के खबरों से पता चला कि ऐसा कोई पत्रक निकाला गया हैं। खबरों के बात व्हॉट्सएप ग्रुप मे अनबन भी हुई, मगर कोई ठोस जवाब नही मिल सका।"
परिपत्रक पढ़कर लगता है, पुणे के इस संघठन ने लोगों का ध्यान मूल मुद्दो से भटकाकर नफरत कि राजनीति और देश को तोडनेवाली शक्तियों का साथ दिया हैं।
नाम जाहीर न करने के शर्त पर उन्होंने कहा, "इस पत्रक के बारे में हमे पुछा नही गया। उसी तरह हमारे किसी भी साथी को पुछा नही गया। मंडल के व्हॉट्सएप ग्रुप पर हम तबलीग के मीडिया ट्रायल पर एक प्रेस रिलिज निकालने के डिंमाड कर रहे थे, उस बारे में चर्चा चल रही थी और अचानक अध्यक्ष नें ये पत्रक निकाला, जिसकी किसी को खबर नही थी। हमे मीडिया के खबरों से पता चला कि ऐसा कोई पत्रक निकाला गया हैं। खबरों के बात व्हॉट्सएप ग्रुप मे अनबन भी हुई, मगर कोई ठोस जवाब नही मिल सका।"
परिपत्रक पढ़कर लगता है, पुणे के इस संघठन ने लोगों का ध्यान मूल मुद्दो से भटकाकर नफरत कि राजनीति और देश को तोडनेवाली शक्तियों का साथ दिया हैं।
हमारी भूमिका स्पष्ट रूप से प्रकाशित हुई हैं। हमारी नजर में तबलीग से ज्यादा गंभीर गुनाह सरकारी तंत्र का हैं, जिसपर हम सवाल करते हैं। यह पत्रक वास्तविक स्थिति से बिलकूल अलग हैं। हम फेक न्यूज के आधार पर भाजपाई नफरत के प्रपोगंडा का समर्थन नही कर सकते। इसलिए इस पत्रक नोटिस कर हमने उसका संज्ञान लिया हैं।
इस पत्रक के मीडिया में आने के बाद संघठन के कुछ सदस्य अध्यक्ष के खिलाफ गए। उनका कहना था कि किसी से भी पुछे बगैर इस पत्रक को निकाला गया, जबकि तबलीग कि कोई गलती नही थी। याद रहे कि संघठन के कुछ कार्यकर्ता भी मानते थे कि इस सब में निजामुद्दीन मरकज बेगुनाह हैं, उसका (मुसलमानों का) मीडिया ट्रायल किया गया हैं। जिसके बाद अध्यक्ष नें अपने संघठन के अधिकृत फेसबुक अकाऊंट से एक नोट प्रकाशित की हैं जो हम परीशिष्ठ के रूप में दे रहे हैं।
(नोट : यह पत्र सार्वजनिक करने का हमारा कोई इरादा नहीं था, मगर जवाब ने मिलने और हफ्तेभर बाद उसी गलती को दोहराते हुए अखबार में आर्टिकल लिखने की सुरत में हमे उसे पब्लिक करना पड़ा।)
वाचनीय
ट्रेडिंग$type=blogging$m=0$cate=0$sn=0$rm=0$c=4$va=0
-
जर्मनीच्या अॅडाल्फ हिटलरच्या मृत्युनंतर जगभरात फॅसिस्ट प्रवृत्ती मोठया प्रमाणात फोफावल्या. ठिकठिकाणी या शक्तींनी लोकशाही व्यवस्थेला हादरे द...
-
“जो तीराव फुले और सावित्रीमाई फुले के साथ काम फातिमा कर चुकी हैं। जब जोतीराव को पत्नी सावित्री के साथ उनके पिताजी ने घर से निकाला तब फातिमा ...
-
उस्मानाबाद येथे ९३वे अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलन पार पडत आहे. या संमेलनाचे अध्यक्ष फादर फ्रान्सिस दिब्रिटो आहेत. तर उद्घाटन म्हणून रान...
-
अ खेर ४० वर्षानंतर इराणमधील फुटबॉल स्टेडिअमवरील महिला प्रवेशबंदी उठवली गेली. इराणी महिलांनी खेळ मैदानात प्रवेश करून इतिहास रचला. विविध वे...
-
मध्यपूर्वेतील इस्लामिक राष्ट्रात गेल्या 10 वर्षांपासून लोकशाही राज्यासाठी सत्तासंघर्ष सुरू आहे. सत्तापालट व पुन्हा हुकूमशहाकडून सत्...
-
फिल्मी लेखन की दुनिया में साहिर लुधियानवी और सलीम-जावेद के उभरने के पहले कथाकार, संवाद-लेखक और गीतकारों को आमतौर पर मुंशीजी के नाम से संबोधि...
-
इ थियोपियाचे पंतप्रधान अबी अहमद यांना शांततेसाठी ‘नोबेल सन्मान’ जाहीर झाला आहे. शेजारी राष्ट्र इरिट्रियासोबत शत्रुत्व संपवून मैत्रीपर्व सुरू...
/fa-clock-o/ रिसेंट$type=list
चर्चित
RANDOM$type=blogging$m=0$cate=0$sn=0$rm=0$c=4$va=0
/fa-fire/ पॉप्युलर$type=one
-
को णत्याही देशाच्या इतिहासलेखनास प्रत्यक्षाप्रत्यक्ष रीतीने उपयोगी पडणाऱ्या साधनांना इतिहाससाधने म्हणतात. या साधनांचे वर्गीकर...
-
“जो तीराव फुले और सावित्रीमाई फुले के साथ काम फातिमा कर चुकी हैं। जब जोतीराव को पत्नी सावित्री के साथ उनके पिताजी ने घर से निकाला तब फातिमा ...
-
इ थे माणूस नाही तर जात जन्माला येत असते . इथे जातीत जन्माला आलेला माणूस जातीतच जगत असतो . तो आपल्या जातीचीच बंधने पाळत...
-
2018 साली ‘ युनिसेफ ’ व ‘ चरखा ’ संस्थेने बाल संगोपन या विषयावर रिपोर्ताजसाठी अभ्यासवृत्ती जाहीर केली होती. या योजनेत त्यांनी माझ...
-
फा तिमा इतिहास को वह पात्र हैं, जो जोतीराव फुले के सत्यशोधक आंदोलन से जुड़ा हैं। कहा जाता हैं की, फातिमा शेख सावित्रीमाई फुले की सहयोगी थी।...
अपनी बात
- कलीम अजीम
- कहने को बहुत हैं, इसलिए बेजुबान नही रह रह सकता. लिखता हूँ क्योंकि वह मेरे अस्तित्व का सवाल बना हैं. अपनी बात मैं खुद नही रखुंगा तो कौन रखेगा? मायग्रेशन और युवाओ के सवाल मुझे अंदर से कचोटते हैं, इसलिए उन्हें बेजुबान होने से रोकता हूँ. मुस्लिमों कि समस्या मेरे मुझे अपना आईना लगती हैं, जिसे मैं रोज टुकडे बनते देखता हूँ. Contact : kalimazim2@gmail.com