अक्षरधाम में सुविधाओका अभाव


पिछले महीने १० मार्च को दिल्ली के अक्षरधाम मंदीर दुबारा जाने का संयोग प्राप्त हुआ.   यह मंदीर  24 राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है.  इस बार मै पुणे विश्वविद्यालय  की ओर से प्रायोजीत दिल्ली दौरे पर था. हमारे जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग के सभी साथी मेरे साथ मौजूद थे. रविवार और महाशिवरात्री होने के वजहसे मंदीर मे भीड बहोत थी. बैग, केमरा, मोबाईल, पेन, सभी वस्तुए अंदर ले  जाने पर पाबंदी थी, सिर्फ़ अपना बटूवा अंदर ले जा सकते थे, सुरक्षा  व्यवस्था पार करके हम अंदर पहूंचेहमारे मेडम के पास भुलवष पेन ड्राईव्ह रहा इस वजह से वह अंदर नही आ सके. कडकती धूप और गर्मी के मारे हमारा बुरा हाल हो रहा था. 
दिल्ली स्थित यह  अक्षरधाम मंदिर 86342 वर्ग फुट परिसर में फैला है. 356 फुट लंबा और  316 फुट चौड़ा तथा 141 फुट ऊंचा है. 100 एकड मै फ़ैला यह परिसर अपनी बाहे फ़ैलाये हम को करीब बुला रहा था. अंदर पहूंचकर हमने विशाल मूर्ती के दर्शन लिये, और हम सब वहा के सुक्ष्म  कलाकारी को निहारने लगे. सोने और पितल तथा अन्य धातू की परते यहा के दरवाजो तथा खिडकीओपर थी. दिवारे और छत बारीकी से सजायी गयी थी. 
अक्षरधाम मंदिर बेशक एक वास्तुशिल्प अचंभा. परिसर के केंद्रीय हॉल के बारे में 110 मीटर लंबे, 96 मीटर चौड़ा और 43 मीटर ऊँचा है. देवताओं, पशु, नर्तक, आदि के सुंदर आंकड़े, स्मारक के हर दीवार पर खुदी हुई हैं. विभिन्न स्थापत्य देश के विभिन्न हिस्सों में लोकप्रिय शैली संरचना के डिजाइन में इस्तेमाल किया गया है. राजस्थानी गुलाबी बलुआ पत्थर बड़े पैमाने पर निर्माण में इस्तेमाल किया था, सुशोभनता नक़्क़ाशीदार खंभे, उनमें से सभी 234, और नौ गुंबद, केंद्रीय हॉल की मुख्य विशेषताएं हैं. लगभग 20,000 प्रतिमाओं और आंकड़े या हिंदू संतों  केंद्रीय हॉल के भीतर मौजूद हैं.
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इस में ज्योतीर्धर  भगवान स्वामीनारायण  विराजमान थे. अंदर दालान मे बडी बडे तीन संदूके दानपेटीनूमा रखी गयी थी. संदूको के बाजू मे काऊटंर थे, वहा चंदा जमा करने वाले रसीद लिये बैठे थे. यहा निम्नतम एक सौ से लेकर आगे की रसीद दी जा रही थी. विशालकाय मूर्ती के दर्शन लेकर मुडते ही, सामने रसीद वालो की बेबस निगाहो से देखते.
बाहर आकर मंदीर के पूर्ण परिसर की चिलचिलाती धूप मे  प्रदिक्षणा की. प्यास के मारे गला सुखा जा रहा था, बहुत तलाश किया पर पानी  न मिला. मंदीर के पिछे भगवान निलकंठ स्वामी का अभिषेक चल रहा था. वहा एक छोटे से कुडंल मे पानी देख मेरी प्यास और तेज हो गयी. 40 M.L. पानी  के कुडंल की किमत थी. 51 रूपये. यहा जितना ज्यादा पानी  लेंगे उतनी ही किमत बढती जा रही थी. और इसके साथ मेरी प्यास भी. बटूवा अंदर आकर खाली हुआ जा रहा था, बेचारा बाहर रहता तो कम से कम भरा तो रहता. कभी कभी यह खयाल भी आता. पर अब तक खाली हो चुका था. यहा अभिषेक की किमते बोर्ड पर दर्शायी गयी थी. 4.500 से लेकर 45.000 तक के अभिषेक यहा किये जाते है. बाहर अंदर वाला रसीद लेये एक अधेड उम्र की महिला बैठी थी, उससे पिने के पानी के बारे मे पुछताछ की. महिला ने तुनक से जवाब दिया. उस ओर भोजनालय है, वहा जाओ बिसलरी मिलेंगी.
वहा से निकलकर आगे बढा, पश्चिमी भाग मे लेझर शो आयोजन किया गया था जहा शो की तिकट बीक रही थी. इस शो में अक्षरधाम मंदिर का एक अन्य महत्वपूर्ण भाग नीलकंठ कल्याण यात्रा, 65 बाय 85 फीट स्क्रीन का थिएटर है. जहां आगंतुकों फिल्म "नीलकंठ यात्रा," विशेष रूप से दिखाया जाता है. किशोरावस्था के दौरान 7 साल की स्वामीनारायण की लंबी यात्रा पर यह फिल्म  केंद्रित है, जब उन्होंने  भारत के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा किया था .३  काऊटंर पर १२० से आगे की तिकटे मौजूद थी, उसे लेने के लिये लोगो की भीड उमड रही थी. १२० की सभी तिकीटे खत्म हुई थी. वहा भी पानी नही मिला.
आगे जाकर मंदीर प्रतिष्ठाण के केमरे से मै रुबरु हुआ.  वहा अपना फ़ोटो निकलवाने के लिये लोगो की भीड लगी थी. १८० रूपयोमे, तत्काल फ़ोटो उपलब्ध करवाये जा रहे थे. मेरे गले की प्यासी आवाज आखीर भगवान ज्योतीर्धर ने सुन ली.  सौ एकड मे मुझे एक अदद प्याऊ मिल ही गया.  वहा जाकर एक ग्लास पानी गले मे उतार दिया, दुसरा ग्लास भरने की भी तमन्ना नही हुई. बेमजा पानी से मेरी प्यास ही बुझ गयी.  अब मुझसे रहा नही गया मै फ़ौरन भोजनालय की ओर बढा. वहा का नजारा एक मेले की तरह लग रहा था.
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कुल जगह के एक चौथाई भाग मे विशाल मार्केट सजा था.  दिल्ली ते सभी खाने-पिने वालो का मजमा यहा लगा था. चाट, छोले, गोल गप्पे, स्नेक्स,  तथा  अन्य खाद्यजन्य वस्तूओ के दुकानो का बाजार सजा था. वहा जाकर पहले बिसलरी खरिदी, १० की बिसलरी २० रूपये देकर गले मे उतारी. तब जाकर महसूस हुआ की धरती पर पानी से बढकर कोई  चीज ही नही है.  भूख के मारे जान निकल जा रही थी. सोचा कुछ खा ले, वही प्रतिष्ठान के भोजनालय मे, हमने १२० रूपयो वाली थाली के टोकन लेकर बैठ गये. थाली बहुत ही बढीया थी, क्यो न हो १२० जो अदा किये थे. पर पानी बिसलरी के सिवा नही था, सो खरिदकर ही पानी भी पीना पडा. यहा सभी चिजे दोगूना महंगी थी.
मंदीर के पूज्य प्रमुख स्वामी महाराज अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त आध्यात्मिक नेता हैं और 'बीएपीएस स्वामीनारायण संस्थान' के प्रमुख हैं। उन्होंने अप्रैल 1971 से नवंबर 2007 के बीच पांच महाद्वीपों में 713 मंदिरों का निर्माण करने का विश्व रिकार्ड बनाया है. इतना बड़ा विशालकाय मंदीर  जिसका गिनीज बुक में विश्व का सबसे बडा मंदीर ख्याती प्राप्त होने के बावजूद पिने के लिए पानी उपलब्ध नहीं है.  यह कितनी बड़ी शर्म की बात  है, इसके अलावा एक साधारण मनूष्य दान स्वरूप एक बार में हजारो रुपये देता है, बदले में उसे पिने का एक ग्लास पानी मुहैया नहीं होता. इतना अमीर तथा उच्च प्रती का देवस्थान जिसकी ख्याती विश्वभर में है. वह अपने भक्तो को पानी नहीं पिला सकता. बाहर मार्केट में 10 में मिलाने वाली बोतल दोगुने दाम में लेना पढ़ता है. दूसरी महंगाई अलग से.
इतना बड़ा मंदीर होने बावजूद मुलभूत सुविधाए भी उपलब्ध नहीं है, हर कदम पर पैसा वसूल करने के बाद भी पिने का पानी नहीं मिलता. मेरा यह लेख लिखने का मतलब किसी के भावना दुखाना नहीं बल्की सुविधा के अभावो को दिखाना था. गर किसीके भावना को ठेस पहुंचाती है तो मै इसके लिए माफ़ी का तलबगार हूँ . 

कलीम अजीम, पुणे

वाचनीय

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अक्षरधाम में सुविधाओका अभाव
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