सफ़र हुआ खत्म यादे छोड़ आये है.


"सफ़र हुआ खत्म यादे छोड़ आये है.
ये दिल्ली तेरे लिए, वोह हसीं पल छोड़ आये है."

चांदणी चौक के छोले भटूरे, दरिया गंज के पराठे, सरोजिनी मार्केट के कबाब, इंडिया गेट के गोल गप्पे, लाल किले की मुंगफ़ली, कालकाजी का पुदीना शरबत, दिल्ली की हर गली की फ़िकी चाय, कॅनाट प्लेस की आईस्क्रीम और न जाने क्या क्या... पुरे सात दीन दिल्ली का  मजा लेकर हमारा पुणे विश्वविद्यालय के, पत्रकारिता एवं जनसंचार का ३७ सदस्यीय शिष्टमंडल परसो १७ मार्च को पुणे पहुंचा.
पिछले सात दिनो मे हमने जमकर दिल्ली के व्यंजनो का और पर्यटन का लुफ़्त उठाया. शेरो शायरी, कविताए और गजल से गुंजती वह टुरिस्ट बस दिल्ली के सडको पर जब गुजरती थी. तो सब सप्नवत लगता था.  मै पहले भी दिल्ली का प्रवास कर चुका हु. पर इतना मजा और आनंद पहले नही आया. महरौली स्थित N.C.R.T. के छात्रावास से रविवार सुबह दिल्ली के सुव्यवस्थित सडको पर हमारी बस निकल पडी. पहला पडाव कुतुबमिनार था. 
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वहा पहुंचकर विशालकाय कुतुबमिनार का विलोभनीय दृश्य आंखो मे बंद कर लिया. कुतुबुद्दीन ऎबक द्वारा बनवाया गया यह मिनार आज भी उस  ऎतिहासिक क्षण की गवाही दे रहा था. तपती धुप मे मिनार का सौदर्य देखने को बनता था. इस जगह भारत के बहूसांस्कृतीक प्रतिभा का दर्शन  हुए भारतभर  से लोग इसे देखने दिल्ली आते है, उनके पेहराव बहूसांसृतीक देश की गवाही दे रहे थे. वहा से निकलकर इंडिया गेट की ओर हमारी बस दौड पडी दिल्ली की नियमीत यातायात व्यवस्था  को सलाम करके बस इंडिया गेट की ओर बढी चली जा रही थी. जीस रास्ते हमारी बस दौडे जा रही थी उस रास्ते कैडंल मार्च और गैंग रैप के विरोधी  अंदोलको पर बरसती लाठीओ की लरश महसूस हो रही थी. उन्हे सलाम करके हम इंडिया गेट  की ओर हम निकल पडे. अमर जवान की पवित्र अग्नी को सॅल्यूट कर इंडिया गेट की ओर देखा द्वितीय विश्वयुद्ध के शहिदो के नाम जो गेट पर लिखे थे उन्हे प्रणाम किया. उस गेट को कॅमरे मे कैद कर लिया, फ़िर एक बार अंदोलको और निर्भया के जज्बे को सलाम कर इंडिया गेट को अलविदा कहा. 
वहाँ से बस कालकाजी स्थित लोटस टेम्पल निकल पडी, कालकाजी पहुंचकर पुदीना शरबत गलेमे उतार दिया तो बडी ठंडक महसूस हुई, बहाई समुदाय द्वारा बनाया गया आधुनिक आर्किटेक्चर का उत्तम उदाहरण यह टेम्पल था. रविवार और महाशिवरात्री होने के वजह से भीड बहुत थी. उस मनोहर दृश्य को आंखोमे कैद कर लिया और वहा से निकल पडे.
अब हमारा लक्ष था अक्षरधाम, मंदिर  रास्ते मे राजघाट महात्माजीको श्रद्धासुमन अर्पीत करके प्रणाम किया. समाधीस्थल पर जॉर्ज बुश दौरे पर घूमे कुत्तो कि बदबू अब तक आ रही थी, मन मे अमेरिका को कोसते हुए हम निकल पडे. आगे हुमायून के मकबरे जाकर फ़ातिहा पढी मुघल शासक को भावभिनी श्रद्धाजंली अर्पीत की. उस ऐतिहासिक वास्तू को निहारा. पलभर मे औरंगजेब कि मजार याद आयी. जो आज भी खुलताबाद मे साधारण मिट्टी से बनी  है. इस शासक और उस शासक की तुलना की. औरंगजेब  के पहरेजगारी को सलाम किया. वहा से हम कुछ ही देर मे अक्षरधाम  पहुंचे. "यहा बहुत मजेदार अनुभव मिले इसको  विस्तार से अगले भाग मे दुंगा तब तक "नो कामेंट्स".
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वहा से निकलकर हम दिल्ली की ऎतिहासिक धरोहर लाल किला पहुंचे. मुघल शासक शाहजहान द्वारा बनवाया गया यह किला उसके तमाम इमारतो यह इमारत अपने आप मे विषेश है. ताज हो या आग्रे का किला या फ़िर दिल्ली की ऎतिहासिक जामा मस्जिद, इस अदभुत इमारत को कितने भी दफ़ा देखो मन नही भरता लाल पत्थर मे बना यह किला आज भी सुरक्षा के मामले मे चाक चौबंद है.  इसपर तिरंगा  अपने शान से लहराता है.  इस किले मे स्थित मिना बाजार से सभी साथीओने बहुत सी खरिददारी की मस्जिद नगारखाने  को छुकर महसूस किया. दिल इस परिकल्पना से बाहर आने को नही चाह रहा था भारत  के ऎतिहासिक विकास मे मुघलो का बहुत बडा योगदान रहा है. जो नकारा नही जा सकता.  भारतीय पर्यटन व्यवसाय  आज भी मुघलो द्वारा बनाई गयी ऎतिहासिक धरोहर से है. वहा से निकलकर जामा मस्जिद जाना था. मिर्जा गालिब, जाकिर हुसेन, मौलाना अबुल कलाम आजाद के मजार पर जाकर फ़ातिहा पढना था, जो नही हो सका. इसका बहुत अफ़सोस रहेंगा. रात बहोत हो जाने के वजह से वहा से निकलना पडा.
सोमवार को  प्रेस कौन्सिल के चेअरमन काटजू से वार्तालाप हुआ और पत्रकार बनने के लिये शैक्षिक योग्यता  पर सहमती बनाने के लिए  बाध्य किया. तथा पत्रकारिता के विविध अयामो पर चर्चा की गयी. वहा से निकल कर दिल्ली मेट्रो का जायजा लिया मेट्रो के मुख्य प्रो अनुज दयाल मेट्रो की परिकल्पनाओ से हमे अवगत करवाया. मंगलवार  को राष्ट्रिय कृषि संग्रहालय जाकर कृषक तथा अन्य कृषि संबधी जानकारिया  हासील की. वहा से संसदभवन निकल पडे वहा केमरा अलाऊड नही था. तथा अन्य पेन कागज इतर वस्तु पर प्रतिबंध था. वहा जाकर संसद संग्रहालय को भेट दी. स्वातंत्र्यसंग्राम, संविधान संबधीत अनेक जानकारीया प्राप्त हुई. तभी किसीने लोकसभा स्थगीत  होने की जानकारी दी. गैंगरेप के आरोपी ने फ़ांसी लगवाई थी और राबर्ट वढेरा प्रकरण से शोरशराबा बढा इसी कारण  कामकाज बंद हुआ. सामने लोकसभा  की गेलरी थी और हम अंदर नही जा सके.
बुधवार को योजना भवन पहुंचे, योजना आयोग के सदस्य डा. नरेंद्र जाधव से  मिलना था उनसे मिलकर  खाद्यसुरक्षा, मीड डे मील, ग्राम विकास, १२ वी पंचवार्षिक योजना के बारे विस्तृत जानकारी मिली. वहा से निकल कर कृषि भवन पहुंचे केद्रिंय कृषिमंत्री शरद पवार से कृषी संबधी समस्याओपर चर्चा की गयी. हमारे साथी मित्र सुनिल दुधे ने महाराष्ट्र के फ़ल व्यवसायी किसान के समस्या दर्शित की. (इसपर  दो दिन बाद मा. कृषिमंत्री ने 400 करोड रुपयो का विशेष अनुदान दिया.) गुरुवार को निर्वाचन सदन पहुंचकर वोटर कार्ड, मतदाता सुची मे पाई जाने वाली गडबडीयो के बारे मे चर्चा हुई.  वहा से हम N.D.T.V. के कार्यालय पहुंचे वहा रविश कुमार से भेट हुई तथा अन्य  पदाधिकारियोसे मिलकर कामकाज संबधी जानकारी ली.
शुक्रवार को हमारा काफ़िला आग्रा की ओर निकल पडा. फ़तेहपुर सिक्री पहुंचकर सलिम चिश्ती  की जियारत की मजार पर विभाग के ओर से चादर चढाई गयी . मुघल सम्राट अकबर ने अपने बेटे की याद मे यह किला बनवाया था. यहा स्थित सुफ़ी संत सलिम चिश्ती ने अकबर को खुर्रम (जहांगीर) अता किया था ऎसी दंतकथा यहा प्रचलित है. जहागीर के जन्म के बाद अकबर ने इस फ़तेहपुर का विकास किया. 134  फ़िट बुलंद दरवाजे  का निर्माण करवाया. यह दरवाजा  रोड से 160 फ़िट के ऊचांई पर स्थित है. इस ऎतिहासिक सौंदर्य आंख के साथ केमरे मे कैद  लिया. 
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उसके बाद ऎतिहासिक आग्रा नगरी पहुंचे विशाल किले को आंखोमे समाया. अतिविशाल किले की प्राचीन  धरोहर को करिब से निहारा शिवाजी महाराज को कैद से मुक्त करने वाले उस मुस्लिम सैनिक की याद आयी.  किला अपने  आप मे स्थापत्य कला का  ऊत्तम उदाहरण था. उपर से जमुना नदी के किनारे  बसे ताज का विलोभनीय दृश्य देखकर शाहजहान को सौ बार सलाम करने को दिल चाहा. लाल पत्थर मे बने इस किले को पराजित करना बहुत मुश्किल था.
शुक्रवार होने के वजह से ताज का दर्शन दुर्लभ हुआ. पर जरा भी अफ़सोस नही हुआ. फ़िर आग्रा आने का मौका प्राप्त हो जाये और छुने का मौका मिले.
आग्रे का मशहुर पेठे का स्वाद चखा, लेदर मार्केट से सभी ने बहुत सी खरिरदारी की. और भरे दिल से आग्रे को अलविदा कहा. बाहर आकर अकबर के मजार पर फ़ातिहा पढा. और दिल्ली की ओर निकल पडे.
सात दिन पुरे हर्षोऊल्हास से बीते. इसबार की दिल्ली  बहुत सी मायने मे यादगार रही. इस प्रवास में बहुत  यादगार अनुभव आये जो एकबार में देना उचीत नहीं अगले भाग में एक एक करके सब आयेगे, तो पढ़ते रहना .......

कलीम अजीम, पुणे 

वाचनीय

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