वैसे भारत का सच अपराध को लेकर कितना भयावह है. मौजूदा वक्त में हजारों की तादाद में जेल में वैसे कैदी सड. रहे हैं जिन पर गैरकानूनी हथियारों को रखने का आरोप है. एक तरफ जमानत के पैसे नहीं हैं या फिर कोई जमानत लेने वाला नहीं है, तो दूसरी तरफ अवैध हथियारों को रखने के जुर्म में तयशुदा कैद से ज्यादा वक्त जेल में गुजारने के बाद भी कोई सुनने वाला नहीं है. जनवरी 2013 तक देश में 3,13,635 कैदी अलग-अलग जेलों में कैद हैं. जिनमें से करीब 75 हजार कैदी अवैध हथियारों के खेल में ही फंसे हैं. तिहाड जैसे जेल में इस समय दो सौ से ज्यादा कैदी हथियारों की आवाजाही में ही फंसे हैं.
संविधान का अनुच्छेद 161 राज्यपाल को अधिकार देता है कि वह किसी भी सजायाफ्ता को माफी दे सकते हैं, तो माफी की फेहरिस्त खासी लंबी है. 1993 ब्लॉस्ट में दोषी पाए गए संजय दत्त को माफी देने की गुहार जिस तरह देश का विशेषाधिकार प्राप्त तबका लगा रहा है, उसने कई सवाल एक साथ खडे. कर दिए हैं. अगर संजय दत्त माफी के हकदार हैं तो उनके घर से राइफल ले जाकर नष्ट करने वाला यूसुफ नलवाला क्यों नहीं? करसी अदेजानिया क्यों नहीं? रूसी मुल्ला क्यों नहीं? इसी फेहरिस्त को आगे बढाएं तो जैबुनिशा कादरी, मंसूर अहमद, समीर हिंगोरा, इब्राहिम मुसा चौहान सरीखे दर्जनों नाम 93 ब्लॉस्ट के दोषियों में से ही निकल कर आएंगे, जिन्हें राज्यपाल चाहें तो माफी दे सकते हैं.
अवैध हथियारों का खेल
सवाल सिर्फ 93 ब्लॉस्ट का नहीं है. अवैध या बिना लाइसेंसी हथियारों को रखने का खेल देश में कितना व्यापक है, यह समझने से पहले जरा संजय दत्त को लेकर उठते माफीनामे की आवाज के पीछे के दर्द को देखिए. सांसदों से लेकर बालीवुड के कई सितारे हैं जिन्हें लगता है कि संजय दत्त की गलती लड.कपन वाली थी. कुछ को लगता है कि संजय दत्त की गलती नहीं थी बल्कि बुरी संगत का असर ज्यादा था. कुछ तो 92-93 के दौरान मुंबई के हालात को लेकर संजय के तर्कको सही मानते हैं. सिर्फ इन्हीं आधारों को मानें तो 93 के ब्लास्ट में 16 ऐसे दोषी हैं जिनके साथ भी ऐसा ही कुछ है, तो क्या उन्हें माफी नहीं मिलनी चाहिए. हां, जो यह कहते हैं कि संजय दत्त के छोटे-छोटे बेटे हैं और परिवार की त्रासदी या फिर सुनील दत्त या नरगिस के काम को याद करना चाहिए, तो 93 ब्लास्ट के दोषियों की फेहरिस्त में कस्टम अधिकारियों से लेकर हथियारों को इधर-उधर ले जाने वाले 9 दोषी ऐसे हैं, जो संजय दत्त के समानांतर माफी के हकदार हैं और जैसा जस्टिस काटजू की राय है कि बीते 20 बरस बहुत होते हैं, जिस दौरान संजय दत्त ने हर तरह की त्रासदी भोगी है तो देश के सच से जस्टिस काटजू इत्तेफाक नहीं रखते कि अलग-अलग जेल में मौजूदा वक्त में तीन हजार से ज्यादा ऐसे कैदी हैं जो बीस बरस से ज्यादा वक्त से जेल में बंद इसलिए हैं क्योंकि उनकी जमानत लेने वाला कोई नहीं है और उनके पास भी जमानत की रकम देने लायक कुछ भी नहीं है.
वैसे भारत का सच अपराध को लेकर कितना भयावह है. मौजूदा वक्त में हजारों की तादाद में जेल में वैसे कैदी सड. रहे हैं जिन पर गैरकानूनी हथियारों को रखने का आरोप है. एक तरफ जमानत के पैसे नहीं हैं या फिर कोई जमानत लेने वाला नहीं है, तो दूसरी तरफ अवैध हथियारों को रखने के जुर्म में तयशुदा कैद से ज्यादा वक्त जेल में गुजारने के बाद भी कोई सुनने वाला नहीं है. जनवरी 2013 तक देश में 3,13,635 कैदी अलग-अलग जेलों में कैद हैं. जिनमें से करीब 75 हजार कैदी अवैध हथियारों के खेल में ही फंसे हैं. तिहाड. जैसे जेल में इस समय दो सौ से ज्यादा कैदी हथियारों की आवाजाही में ही फंसे हैं. किसी के तार खूंखार अपराधियों से जुडे. हैं तो कोई देशद्रोहियों के साथ मिला हुआ पाया गया.
कैदियों की लंबी फेहरिस्त
राष्ट्रीय सुरक्षा कानून, आर्म्स एक्ट के दायरे में आए कैदियों की सबसे लंबी फेहरिस्त पूरे देश की जेलों में हैं. लेकिन इनके लिए किसी विशेषाधिकार संपन्न सांसद या बालीवुड सरीखे चमकदार तबके में से आज तक कोई आवाज नहीं उठी. वैसे हथियारों के हालात देश में कितने घातक हो चुके हैं, इसका अंदाजा इसी से मिल जाना चाहिए कि मौजूदा वक्त में देश के भीतर 4 करोड. राइफल या बंदूक हैं, जिनमें से सिर्फ 63 लाख राइफल रजिस्टर्ड हैं. यानी 3 करोड. 37 लाख राइफल, बंदूक या पिस्तौल गैर कानूनी हैं और संयोग से 1993 के बाद के उन्हीं बीस वर्ष में जिस दौरान संजय दत्त त्रासदी भोगते रहे, देश में कुल 85 आतंकवादी धमाके हुए, जिसमें गैर कानूनी हथियारों का इस्तेमाल हुआ और हथियारों की आवाजाही करने या हथियारों को रखने के आरोप में 1200 से ज्यादा लोगों की गिरफ्तारी देशभर में हुई. इन 1200 आरोपियों में से अब तक सिर्फ 27 को ही दोषी माना गया है, लेकिन पुलिस ने किसी को मुक्त नहीं किया है. क्या किसी सांसद या बालीवुड के किसी सितारे ने कभी अपने विशेषाधिकार के तहत यह सवाल उठाया कि इन्हें जेल में क्यों रखा गया है. यानी सिर्फ इस सोच के आधार पर आतंक की घटना से जुडे. आरोपियों को कैद में रखा गया है कि इनके तार कहीं ना कहीं जुडे. हो सकते हैं या छूटने के बाद ये कैदी किसी विस्फोट को अंजाम न दे दें. मुश्किल यह भी है कि जस्टिस काटजू सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी को भी भूल गए जहां 93 के ब्लास्ट पर फैसला सुनाते वक्तस् वैसे भारत का सच अपराध को लेकर कितना भयावह है.
मौजूदा वक्त में हजारों की तादाद में जेल में वैसे कैदी सड. रहे हैं जिन पर गैरकानूनी हथियारों को रखने का आरोप है. एक तरफ जमानत के पैसे नहीं हैं या फिर कोई जमानत लेने वाला नहीं है, तो दूसरी तरफ अवैध हथियारों को रखने के जुर्म में तयशुदा कैद से ज्यादा वक्त जेल में गुजारने के बाद भी कोई सुनने वाला नहीं है. जनवरी 2013 तक देश में 3,13,635 कैदी अलग-अलग जेलों में कैद हैं. जिनमें से करीब 75 हजार कैदी अवैध हथियारों के खेल में ही फंसे हैं. तिहाड. जैसे जेल में इस समय दो सौ से ज्यादा कैदी हथियारों की आवाजाही में ही फंसे हैं.
लेखक - पुण्य प्रसून वाजपेयी
-साभार लोकमत समाचार

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