तीन लाख डॉलर में बिकती थी तैयब मेहता की पेंटिग

मकालीन भारतीय कला इतिहास में तैयब मेहता अकेले पेंटर थे जिनका काम इतनी अकल्पनीय कीमतों में बिका है। तैयब एक शांतखामोशबेचैनसजग और जनचेतना के चितेरे थे। वे निहायत संकोची, विनम्र और अपनी कला में डूबे रहने वाले कलाकार थे। लेकिन वे बाजारवाद के फलते-फूलते कला बाजार में चर्चित ग्लैमरस कलाकारों जैसे बिल्कुल नहीं थे। वे निहायत सादगीपसंद, नर्मदिल और अपनी कला में खोए रहने वाले इन्सान थे।

तैयब मेहता का जन्म 26 जुलाई 1925 में गुजरात के खेड़ा जिले में हुआ था। जबकि उनका पालन-पोषण मुंबई के क्राफर्ड मार्केट में दाउदी बोहरा समुदाय में हुआ था। उनका विवाह सकीना से हुआ था। शुरुआत में उन्होंने फ़िल्म इंडस्ट्री में फेमस स्टूडियोजके लैब में बतौर फिल्म एडिटर का काम किया।

पर फिल्मी दुनिया न उन्हें ज्यादा रास आई और न ही उन्हें अपने कलात्मक तजुर्बे के लिए कोई खास मौके ही मिले। वहां से कुछ बनता न देख उन्होंने जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स में दाखिला लिया और चित्रकला सीखने लगे। यहां से उन्होंने डिप्लोमा किया।

सन 1952 में यहाँ से डिप्लोमा हासिल किया। इसके बाद वे बॉम्बे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुपके सदस्य बन गए। यह ग्रुप पश्चिम के आधुनिकतावादी शैली से प्रभावित था और तैयब के साथ-साथ उसमें एफ.एन. सौज़ा, एस.एच. रज़ा और एम.एफ. हुसैन जैसे महान कलाकार भी शामिल थे।

वे आज़ादी के बाद की पीढ़ी के उन चित्रकारों में से थे जो राष्ट्रवादी बंगाल स्कूल ऑफ़ आर्ट के परंपरा से हटकर एक आधुनिक विधा में कार्य करना चाहते थे।

पढ़े : प्रगतीशील लेखक संघ की जरुरत आज क्यों हैं?

पढ़े : वतन और कला से मक़बुलियत रखनेवाले एम. एफ. हुसैन

कमाल के ब्रश-स्ट्रोक

तैयब के कला जीवन की शुरुआत निराली थी। कहते हैं, सन 1947 में उन्होंने विभाजन के बाद हुए दंगों में मुंबई के मुहंमद अली रोड पर एक व्यक्ति को पत्थर से मारे जाने की हृदय विदारक घटना देखी थी। जिसका असर उनके दिलों दिमाग पर काफी गहरा हुआ। इस घटना ने उनको इतना प्रभावित किया कि उनके हर चित्रकारी में इसकी झलक कहीं न कहीं हमें देखने को मिल जाती है।

ज्यादातर कलाकारों के बारे में कहा जाता है कि वे अपने शुरुआती सालों में अपना बेहतर काम देते हैं। तैयब मेहता ने शुरु मे अपनी कला को निखारने के प्रयास में निकाल दिए। उनकी उम्र के पांचवे और छठे दशक में उनकी कला का जौहर दिखाई दिया, सत्तर के पड़ाव पर जब वे सब कुछ अपने पीछे छोड़ आगे बढ़े तो उन्हें बहुत कुछ हासिल हुआ।

उनके चित्रकारी में कई सधे हुए ब्रश-स्ट्रोक शामिल थे, जिसमें अपने अधिकारों से वंचित कलाकार का शोक और रोष दिखाई देता है, अस्सी और नब्बे की उम्र में ऐसा काम देखने को मिला जो न सिर्फ उनका बल्कि देश का सबसे बेहतर काम था।

1970 के दशक में तैयब मेहता ने आम इन्सान के द्वंद्व का विलक्षण निरुपण करते हुए एक शार्ट फिल्म भी बनाई- कुदाल जिसे पुरस्कृत किया गया और काफी सराहा गया। फिल्म ज्यादा नही चली जिसके बाद उन्होंने कोई फिल्म नही बनाई। इस दौरान लंबे समय तक तैयब खामोशी और तल्लीनता के साथ काम करते रहे।

तैयब मेहता महान चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन और सैयद हैदर रज़ा के समकालीन थे। खामोशी से काम करने वाले तैयब का नाम कला दुनिया से इतर आम समाज के बीच सहसा 2002 में गूंजा। यूं कला की दुनिया में भी वो गूंज विस्फोट से कम न थी और उसकी वजह भी खास थी।

पढ़े : किसान और मजदूरों के मुक्तिदाता थें मख़दूम मोहिउद्दीन

पढ़े : नामदेव ढ़साल : नोबेल सम्मान के हकदार कवि

रिकॉर्ड दामों पर बिकती पेंटिंग

नीलामी के दौरान उनकी हर एक पेंटिंग रिकॉर्ड दामों पर बिकती। 2002 में सेलिब्रेशन नाम कि इनकी पेंटिंग तीन लाख 12 हज़ार पाँच सौ डॉलर में खरीदी गयी। ये किसी भी भारतीय पेंटिंग के लिए अपने आप में एक विश्व रिकॉर्ड था। अंतरराष्ट्रीय नीलामी में ये उस समय भारतीय पेंटिंग के लिए सबसे महंगी बोली थी।

इससे पहले दुनिया की कला बाजार में इतनी महंगी कोई पेंटिंग नहीं बिकी थी। 2005 में उनकी प्रसिद्ध कृति काली एक करोड़ रुपए में बिकी और 2007 में तो कला जगत और बाकी लोगों भौंचक्के ही रह गए जब उनकी क्रिस्टीन नाम की तस्वीर की एक नीलामी में करोड़ो डॉलर की बोली लगी।

2008 में भी उनकी जेस्चर पेंटिंग भी लाखों डॉलर की बोली के बाद खरीदी गई। मई 2017 में उनकी पेंटिंग वुमन ऑफ रिक्शा (1994) नीलामी में 22.99 करोड़ में बिकी थी। बता दें, पेंटिंग कालीको 2018 में फिर से बाजार में उतारा गया एक ऑनलाइन नीलामी में ये पेंटिंग 26.4 करोड़ रुपए में बिकी। इससे तैयब मेहता के नाम एक और नया रिकॉर्ड दर्ज हो गया।

काली पेंटिंग मानवीय मन की दुविधा, अच्छाई और बुराई की लड़ाई, सृजन और विनाश को लेकर अंतर्द्वद को दर्शाती है। यह नीलामी सैफ्रोनर्ट कंपनी द्वारा आयोजित की गई। सैफ्रोनर्ट ने बयान में कहा, आधुनिकतावादी तैयब मेहता ने आज सैफ्रोनर्ट के समर ऑनलाइन नीलामी में 26.4 करोड़ रुपए में काली (1989) की बिक्री के साथ एक नया विश्व रिकॉर्ड बनाया है।

कलात्मक बारीकियां

प्राचीन स्मृतियों के चित्रण और मिथकीय चरित्रों से अपनी कला को गढ़ने और रंग-आकार देने वाले तैयब अपनी कृतियों में अवसाद और उदासी के बीच शौर्य, साहस, जीवंतता और विपुल ऊर्जा के लिए जाने जाते हैं।

उनकी पेंटिंग कालीहो या महिषासुर’, ये सभी आधुनिक चिंताओं को संबोधित कलाकृतियां हैं और उनकी कलात्मक बारीकियां बेजोड़ हैं। कला के किनारों पर सक्रिय बाजार और उसे भयानक हलचल का संसार बना चुके नीलामीघरों के इन प्रतिस्पर्धी गलियारों के कोहराम से बाहर तैयब मेहता एक शांत, खामोश, बेचैन, सजग और जनचेतना के कलाकार थे।

हालांकि मृत्यु से एक दशक तक लगातार उनकी नजरें कमजोर हो रही थीं और यहां तक कि उन्हें नजदीक का दिखाई देना ही बंद हो गया था, उनकी सुनने की शक्ति खत्म हो चुकी थी और वे अस्पताल के कई चक्कर लगा चुके थे। बावजूद इसके वे अपनी आखरी पेंटिंग रियाजके जितना मुनासिब हो सका उतना करीब रहे।

भले यह पेंटिंग कैनवस पर न उतर सकी, लेकिन उनके दिमाग में यह बिल्कुल साफ थी। सादगी और कठोरता दोनों उनके लिए सिक्के और जिन्दगी के दो पहलू थे, इसलिए ये उनकी कला में भी दिखाई दिए। उन्होंने हर चीज को कठोर सत्य के साथ दिखाया।

इसमें डायगनलशृंखला, ‘रिक्शापुलर्स’, ‘काली’, ‘महिषासुर’, ‘सेलिब्रेशनऔर शांतिनिकेतनशामिल हैं। अपनी कला के आखिरी रूप में उनकी असंतुष्टि उनका अपूर्व काम थी। अगर वे अपने कैनवसों से नफरत करते थे, तो वह इसलिए नहीं कि वे उनसे बेहद जुड़े हुए हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि अक्सर वे जो पेंट करने थे, उसके परिणामों से खुश नहीं होते थे।

पढ़े : फातिमा शेख किस का फिक्शन है?

पढ़े : मुसलमान लडकियों का पहला स्कूल खोलनेवाली रुकैया बेगम

आधुनिक कला के बड़े स्तंभ

भारत के आधुनिक कला में बड़ा योगदान देने के लिए उन्हें कई पुरस्कार और सम्मानों से नवाजा गया। जिसमें सन 1968 में उन्हें जॉन डी रॉकफेलर फ़ेलोशिपप्रदान की गयी।

सन 1968 में ही दिल्ली में पेंटिंग के लिए  और सन 1974 में फ्रांस में आयोजित इंटरनेशनल फेस्टिवल ऑफ़ पेंटिंगमें उन्हें स्वर्ण पदक प्रदान किया गया। उनकी शार्ट फिल्म कूदालको सन 1970 में फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवार्ड दिया गया।

सन 1988 में मध्य प्रदेश सरकार ने उन्हें कालिदास सम्मानसे नवाजा। सन 2005 में उन्हें कला, संस्कृति और शिक्षा के लिए दयावती मोदी फाउंडेशन पुरस्कार दिया गया। सन 2007 में भारत सरकार की ओर से पद्म भूषण से नवाजे गए थे।

दुनिया में जाने-माने चित्रकार रहे तैयब मेहता ने 2 जुलाई 2009 में सबको अलविदा कह दिया। ह्रदय गति रुक जाने के कारण मुंबई के एक अस्पताल में उन्होंने आखरी सांस ली। उन्होंने अपने जीवन का ज्यादातर समय मुंबई में बिताया। साठ के दशक में तैयब मेहता कई वर्षों तक लंदन में रहे। मुंबई-लंदन के अलावा, न्यूयॉर्क और शांतिनिकेतन में भी रहे। वे अपने पीछे अपनी पत्नी, पुत्र युसूफ और पुत्री हिमानी छोड़ गए।

एमएफ़ हुसैन ने तैयब अली के निधन पर कहा था, “60 से 70 सालों से हमारा साथ रहा है। सैयद हैदर रज़ा, पदमसी, तैयब मेहता, इन्होंने समकालीन भारतीय कला के लिए अपनी सारी ज़िन्दगी दे दी। मुझे याद है शुरु में इतनी बड़ी बड़ी मुश्किलें आईं, इतने बड़े बड़े पंडित बैठे हुए थे, जब हम कुछ नया कर रहे थे, तो उन्होंने बड़ी बड़ी बाधाएं डालीं, लेकिन बजाय कुछ कहने के हमने अपने काम से लोगों की ज़बानें बंद कर दीं।

उनके नज़दीकी लोगों का कहना था कि वो अपने कला कर्म के प्रति इतने ख़ामोश समर्पण वाले थे कि संतुष्ट न होने तक अपनी पेंटिंग्स को कला दीर्घाओं में जाने से बचाते रहते हैं। कला को लेकर तैयब मेहता का कहना था, सार्वजनिक होने वाली कला में कोई खोट नहीं रहना चाहिए।

तैयब मेहता आधुनिक कला के बड़े स्तंभ थे और उनके निधन से भारतीय आधुनिक कला को बहुत भारी नुकसान हुआ। आज भारतीय कला में सारी दुनिया की दिलचस्पी है और इस दिलचस्पी का एक बड़ा श्रेय तैयब मेहता को भी जाता है। जब क्रिस्टीन जैसी कलादीर्घा ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनकी कृतियों की नीलामी की तो भारतीय कला के लिए ये एक बड़ी बात थी।

समकालीन भारतीय कला इतिहास में तैयब मेहता ही अकेले पेंटर थे जिनका काम इतने कीमतों में बिका। अपने चित्रों में डायगनल के प्रयोग के लिए वे काफ़ी जाने जाते थे। इसके अलावा वे पुरानी किवदंतियों से लिए गए किरदारों को भी आधुनिक तरीके से अपनी पेंटिंग में दिखाते थे। रिक्शावालेसे लेकर अपनी कालीतक तैयब मेहता भारतीय कला स्मृति में हमेशा जीवित रहेंगे।

कलीम अजीम, पुणे

मेल:kalimazim2@gmail.com

वाचनीय

Name

अनुवाद,2,इतिहास,49,इस्लाम,37,किताब,24,जगभर,129,पत्रव्यवहार,4,राजनीति,292,व्यक्ती,17,संकलन,61,समाज,246,साहित्य,77,सिनेमा,22,हिंदी,53,
ltr
item
नजरिया: तीन लाख डॉलर में बिकती थी तैयब मेहता की पेंटिग
तीन लाख डॉलर में बिकती थी तैयब मेहता की पेंटिग
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiiL48NH-xyn0UEJ2z7ddI1E41LStY3GZJ9cB353IrAXS_8XUbvj3-mRg7Pu2W-IUVhNyewif1pSsOehZJCl2Zh8wWZBmXeeOqUtqNMiybkw2LsNjdTiQ65D-tZfDk9jW-NkudbqQCeXOB7ktwdmX-kMSTFQK7L6ASi4r0ugxno2aBgDdRcBrJ0oEJcbQ/w640-h400/Tayyab%20Mehata.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiiL48NH-xyn0UEJ2z7ddI1E41LStY3GZJ9cB353IrAXS_8XUbvj3-mRg7Pu2W-IUVhNyewif1pSsOehZJCl2Zh8wWZBmXeeOqUtqNMiybkw2LsNjdTiQ65D-tZfDk9jW-NkudbqQCeXOB7ktwdmX-kMSTFQK7L6ASi4r0ugxno2aBgDdRcBrJ0oEJcbQ/s72-w640-c-h400/Tayyab%20Mehata.jpg
नजरिया
https://kalimajeem.blogspot.com/2022/09/blog-post_13.html
https://kalimajeem.blogspot.com/
https://kalimajeem.blogspot.com/
https://kalimajeem.blogspot.com/2022/09/blog-post_13.html
true
3890844573815864529
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content