हिरासत में मरते बेगुनाह मुसलमान और विश्वास खोती सरकार!

ख्वाजा युनूस, कतिल सिद्दिकी, रिजवान बेग और अब खालिद मुजाहिद। पहले तो पुलिस बेगुनाह मुस्लिमों को झुठे आरोपो के तहत जेलो मे बंद कर रही है, और जब सुबुत जुटाने मे नाकामियाब होती है तो, अपनी झुठी साख बचाने के लिये उनका कत्ल कर रही है। कोर्ट से बेगुनाह छुटे इससे पहले उन्हे मार दिया जा रहा है।

हैदराबाद मे मक्का मस्जिद के ब्लास्ट के आरोपो मे गिरफ़्तार लोगो को सबुत न मिलने पर निर्दोष छोडा गया, बाद में दोषी फ़िरकापरस्तो को गिरफ़्तार किया गया अब वह मामला न्यायालय मे विचाराधिन है, फ़िर भी हैद्राबाद के पिछले ब्लास्ट मे उन्ही लोगो को धरा गया, आखिर क्यो..?

वहीं मामला कर्नाटक ब्लास्ट मे हुआ ब्लास्ट के आरोपो मे अनगीनत बेगुनाहो को धरा गया, जांच के बाद ब्लास्ट वाली जगह पर स्थानिय बीजेपी लिडर का सिम कार्ड बरामद हुआ।1 क्या आम मुसलमानो की जान इतनी सस्ती हो चुकी है। उधर गुजरात, असम मे हजारो मुसलमानों को मारने के बाद भी वहा की सरकार अब भी बर्फ़ की तरह जमी बैठी है।

पिछले दस साल मे झुठे आरोपो के तहत मालेगांव, हैदराबाद, दिल्ली, गुजरात तथा महाराष्ट्र के विभिन्न शहरो से अनेक बेगुनाह मुस्लिम लडको की गिरफ़्तारिया हुई है, फ़्रंटलाईन के अनुसार 75,000 बेगुनाह मुस्लिम अब भी जेलो मे पडे है।2 उनमे ज्यादातर उच्चशिक्षित नौजवान है। उनकी जिंदगी नियोजनपूर्वक तबाह और बरबाद की गयी है।

कुछ दिन पूर्व हिजबुल मुजाहिदीन से संबध होने के संदेह पर कश्मीर के लियाकत शाह को दिल्ली पुलिस ने गिरफ़्तार किया, पर ठोस सबूत जांच एजेंसी जुटा नही पायी, इस बिना पर उसे अदालत ने जमानत दी।3


संदेह के आधार पर गिरफ़्तार कर उसे मुजरिम ठहराया गया। समाचार पत्रो मे ‘दहशतगर्द को जमानत’ इस तरह के समाचार आये। उस मासूम बेगुनाह को समाचारपत्रो ने दहशतगर्द ठहराया। बाहर आकर उसकी जिंदगी तबाह हुई, उसी तरह महाराष्ट्र के औरंगाबाद निवासी मिर्जा रिजवान बेग को पुणे के जे. एम. ब्लास्ट मे संदेह के आधार पर जांच एजेंसीओने गिरफ़्तार किया था, वह जमानत पर बाहर आते ही समाजद्वारा दहशतगर्द करार दिया गया।

जमानत पर छुटने के बाद भी उसे स्थानिय पुलिस बहुत प्रताडित किया। कुछ दिन बाद उसने अपने ही घर में फ़ांसी लगा ली।4 ऐसे न जाने कितने नाम है जिनकी जिंदगीया तबाह और बरबाद हो चुकी है, यह संघीय राजनिती नही तो और क्या है?

अमेरिका पर चरमपंथी हमले के बाद मुसलमानों को दहशतगर्द साबित करने का प्रयास पूरी दुनिया में जारी है। भारत में भी मुसलमानों के साथ इस मामले को लेकर गलत आचरण किया जा रहा है। इस तरह मुसलमानों को दहशतगर्द चेहरा देना गलत है। इस वजह से भारत का धर्मनिरपेक्ष चेहरा खोने लगा है।

राजनीतिक शक्तियां भारत की धर्मनिरपेक्षता को खत्म करने में जुटे हुई हैं। इसका सीधा परिणाम यहां के अल्पसंख्यकों पर दिखाई दे रहा है। गुजरात में विकास का नाम आगे बढ़ा कर कत्लेआम भुलाने की कोशिश की जा रही है, एक खूनी को प्रधानमंत्री का दावेदार बताया जा रहा है। अगर यह प्रधानमंत्री बनते है तो पूरा भारत ख़त्म हो जायेगा, शुरुआत मुसलमानो से हो सकती है।5

इस तरह के झुठे मामले चलाने के लिये गृहमंत्री ने कुछ दिन पहले एक घोषणा की मुस्लिम समुदाय के मामले चलाने के लिये फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट की स्थापना करने की, मै इस घटना को अलग दृष्टिकोन से देखता हुं। बेगुनाह मुस्लिम समुदाय के नौजवानो को संदेह के बिना पर या झुठे आरोपो में फ़साकर यह मामले जल्दी ही कोर्ट द्वारा निपटाकर उन्हे फ़ांसी पर लटकाओ। कितनी गंदी साजिश है सरकार की।

कुछ लोग इसे वोट कार्ड के लिये खेला दांव बता रहे है। पर कोई बेगुनाह मुस्लिम समुदाय के झुठे आरोपो मे धरने के बात पर उफ़्फ़ तक नही कर रहा है। और कहो..! हमारा भारत देश ‘लोकतांत्रिक’ है। यह तो काँग्रेस की संघीय राजनिती है।



संघ की तरह काँग्रेस ने मुसलमानों सफ़ाया करने का बेडा उठाया है। पुलिस तो हर बार पक्षपात करती है, पर अब सरकार भी अब खुलकर सामने आ रही है। इस फ़ैसले को अलग तरह से देखा जाए तो मुसलमानो को कुछ हद तक राहत मिलेंगी। बरसो से जो बेगुनाह जेलो मे सड़ रहे है, उनके घर वापसी की आशा कर सकते है। पर फ़ैसला निपक्षपाती होना जरुरी है।

भाजपा शासित राज्य मे ऐसी अदालते के गठन की संभावना कम है। गुजरात सरकार तो मुस्लिम छात्रो को केंद्र द्वारा मिलने वाला वजीफ़ा तक बांटने नही दे रही है।6 यह शिकंजे मे आये मुसलमानो कैसे छोड सकती है। लेकिन कड़वी सच्चाई यह है की सबसे ज्यादा गिरफ़्तारिया काँग्रेस शासित राज्य मे ही हुई और हो रही है।6

27 फरवरी 2013 में इसी मुद्दे को लेकर लोकसभा में तिथी बहस भी हुई थी। जिसमें कम्युनिस्ट पार्टी के बासुदेव आचार्य ने आरोप लगाया था कि अल्पसंख्यक समुदाय के कई युवा संदिग्ध अतिवादी होने की आड़ में पिछले 10-15 साल से बिना चार्जशीट के जेल में बंद हैं।

उन्होंने आगे कहा, “मुस्लिम समुदाय के कई युवा सदस्य संदिग्ध के रूप में जेल में बंद हैं। उनमें से कई बाद में बरी हो जाते हैं। लेकिन जेल में उनके बरबाद हुए सालों का क्या? कुछ युवकों को जानबूझकर धमकाया जाता है और फिर उनके खिलाफ सबूत न देने पर रिहा कर दिया जाता है। क्या सरकार उन्हें मुआवजा देगी और जानबूझकर परेशान करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करेगी?”

उनके बाद समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव ने कहा, 'जिनके खिलाफ उत्तर प्रदेश में कोई सबूत नहीं मिले, हमने उन्हें तुरंत रिहा कर दिया है। 

बाटला हाउस झड़प का मुद्दा तृणमूल कांग्रेस के सौगत रॉय ने उठाया। उन्होंने यह भी बताया कि कांग्रेस महासचिव मुठभेड़ में गिरफ्तार संदिग्ध अतिवादियों के रिश्तेदारों से मिलने पहुंचे थे। उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि यह स्पष्ट था कि जब कांग्रेस नेता ने इस तरह का व्यवहार किया तो सरकार दोयम दर्जे की थी, जबकि शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया था कि संघर्ष झूठा नहीं था।

एक और घटना का जिक्र यहा होना जरुरी है। वह यह है कि, इंडियन मुझाहिदीन के नाम पर हजारो बेगुनाहो को धरा जा रहा है, आये दिन अखबार इनके नये नये सदस्य पैदा करवा रहे है, उसी तरह इस संघठन के कितने संस्थापक जांच एजेंसीयोने जन्म दिये है, न जाने अबतक इस कल्पनाशक्ती के कितने शिकार अब तक हो चुके है।

वरीष्ठ पत्रकार सीमा मुस्तफा की माने तो, इंडियन मुझाहिदीन के नाम पर सोची समझी साजिश के तहत झूठ गढा जा रहा है। इस झुठ के बिना पर बेगुनाहों के सर पर हमलो कि जिम्मेदारी थोंपी जा रही है, पता नही यह काम कब तक चलेगा। बस एक कल्पना खडी कर तबाही मचायी जा रही है। क्या हमारी जांच एजेंसीया हर बार पक्षपात वाला रवैया अपनाती है, या फ़िर यह संघ से जा मिली है।7 (मई 7 को सीमा मुस्तफ़ा ने औरंगाबाद मे इस विषय पर चिंतन किया बाद मे नादेंड मे मुस्लिम अल्पसंख्याक अधिवेशन 15 जून को सीपीआई के ए.बी. वर्धन ने इस विषय पर अपने अलग से विचार रखे।)



कहीं पर भी चरमपंथी हमला होने पर मुस्लिम नागरिकों की गिरफ्तारियां बड़े पैमाने पर होती है। कई बार गिरफ्तार आरोपी दोषी नहीं होते है। इसलिए वह निर्दोष छूट जाते हैं, लेकिन निर्दोष रिहाई के बावजूद उनके साथ चरमपंथीयो जैसा बर्ताव किया जाता है। इस आचरण को रोकने के लिए कोई कथित सेक्युलर तैयार नहीं है।

यहीं वजह हैं, की, मुसलमानों के मन में सरकार के खिलाफ अविश्वास बढ़ता जा रहा हैं। आए दिन सरकारी एजेसीयों द्वारा कुछ ऐसी घटनाएं अंजाम दी जा रहा है, जिसे यह अविश्वास और बढ़ता जा रहा हैं। आये दिन के धरपकड से मुस्लिम समुदाय मे सरकार के प्रती असंतोष बढता जा रहा है, हर बार मुसलमानो के साथ यह अन्याय क्यो, क्या मुस्लिम समाज इस देश का हिस्सा नही है, गर है तो सरकार इतनी बेरहम क्यो है।

वास्तविक इस तरह के जघन्य अपराधों में कोई और लिप्त पाया जाता हैं, जबकी गिरफ्तार मुसलमान होते हैं। अब यह किसी से छिपा नही हैं, देश में इस तरह के ब्लॉस्ट कैन कर रहा हैं। महाराष्ट्र के पूर्व आईजी एस.एम. मुश्रीफ की हू किल्ड करकरे? और विनिता कामटे की दि लास्ट बुलेट पढ़े तो यह साबित होता हैं, की, यब ब्लॉस्ट की घटनाए दक्षिणपंथी अंजाम दे रहे हैं।

इस बात की पुष्टी हाल ही में मराठी अखबार लोकमत में आई एक और खबर से होती हैं। वह खबर कुछ इस तरह,

“बॉम्बस्फोटांखेरीज अनेक गुन्ह्यांत हिंदू माथेफिरूंचा हात

नवी दिल्ली। दि. 11 (जून 2013) (लोकमत न्यूज नेटवर्क)

गेल्या काही वर्षांत मालेगावसह देशाच्या इतर भागांत झालेल्या बॉम्बस्फोटांच्या संदर्भात राष्ट्रीय तपास यंत्रणेने (एनआयए) गेल्या महिन्यात अटक केलेल्या कथित हिंदू माथेफिरूंचा खून आणि गोळीबार यासारख्या इतरही काही सनसनाटी गुन्ह्यांत सहभाग असल्याचे केंद्रीय गृह मंत्रालयाचे म्हणणे आहे.

गृह मंत्रालयाच्या आज येथे प्रसिद्ध करण्यात आलेल्या मासिक कामगिरी अहवालात नमूद केले गेले की, ‘एनआयए’ने अटक केलेल्या हिंदू माथेफिरूंनी समझौता एक्स्प्रेस, हैदराबादची मक्का मशीद व मालेगाव येथील बॉम्बस्फोटांखेरीज इतरही काही सनसनाटी गुन्ह्यांची कबुली दिली आहे.

केंद्रीय गृहमंत्री सुशीलकुमार शिंदे यांनी हा अहवाल जारी करताना सांगितले की, राजेंद्र चौधरी, मनोहर सिंग, धनसिंग व तेजराम या ‘एनआयए’ने अटक केलेल्या आरोपींनी 2006 व 2008मध्ये मालेगाव येथे, फेब्रुवारी 2007 मध्ये समझौता एक्स्प्रेस गाडीत व मे 2007 मध्ये हैदराबादच्या मक्का मशिदीत बॉम्बस्फोट घडवून आणल्याची कबुली दिली आहे.

तसेच आजवर गुंता न सुटलेले देशाच्या विविध भागातील अनेक गुन्हेही याच आरोपींनी केल्याचे त्यांच्या कबुलीजबाबांतून स्पष्ट झाल्याचे शिंदे यांनी सांगितले. हे गुन्हे असे - उज्जैन (म. प्रदेश) जिल्ह्यातील नरवार पोलिस ठाण्याच्या हद्दीत लीना नावाच्या एका ख्रिश्‍चन जोगिणीला गोळी घालून जखमी करणे.....”
वहीं केद्रीय गृहमंत्री सुशीलकुमार सिंदे भी कह चुके हैं की, "समझौता, मक्का मस्जिद और मालेगांव धमाकों के पीछे RSS का हाथ था।" चलीए देखते हैं, इस संबंध में आई मराठी अखबार दैनिक सकाळ की खबर क्या कहती हैं।
[आरएसएस'चे कँप हिंदू दहशतवाद्यांसाठीच - शिंदे
- - वृत्तसंस्था
रविवार, 20 जानेवारी 2013 - 02:13 PM IST

जयपूर - भारतीय जनता पक्ष (भाजप) आणि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघाकडून (आरएसएस) चालविण्यात येणारे कँप हे हिंदू दहशतवाद्यांसाठीच असल्याचे, वक्तव्य केंद्रीय गृहमंत्री सुशीलकुमार शिंदे यांनी आज (रविवार) केले.

जयपूर येथे सुरु असलेल्या चिंतन शिबिरात ते बोलत होते. यावेळी शिंदे यांनी आरएसएसवर आरोप करताना म्हटले, की देशात झालेल्या समझौता, मक्का मशिद आणि मालेगाव स्फोटांमागे आरएसएसचा हात होता. सरकारकडे याबाबत पुरावे आहेत. आरएसएस स्वतःच बॉम्ब लावते आणि नंतर अल्पसंख्यांकांवर बॉम्बस्फोट केल्याचा आरोप करते. आरएसएसकडून चालविण्यात येणारे कँप हे हिंदू दहशतवादाला खतपाणी घालत आहे.]

बात पानी की तरह साओफ होने के बावजूद सरकारी जाँच एजेंसीयाँ सिर्फ मुसलमानों की धरपकड कर रही हैं। और मुसलमानों में अपनी साख खोती जा रही हैं। इन जैसी घटना समाज को सरकार के प्रती आश्वस्त होने के बजाए अविश्वासी कर रही है, कोई भी फ़िरकापरस्त ताकते देश को नुकसान पहुचांने की घटनाए करती है, और हर बार निशाना मुसलमानो पर ही साधा जाता है, ऐसा क्यो यह एक अनउलझा सवाल है। सिर्फ़ उच्चशिक्षीत नौजवान ही हर बार टारगेट क्यो बनते है।

इसका मतलब यह तो नही की समाज मे उपर उठ रहा शिक्षा का स्तर निचे गिराना है, या फ़िर समाज द्वारा उच्च शिक्षा हासिल करने वालो को डराना है, या फ़िर यह भी हो सकता है की समाज मुख्य प्रवाह से दुर रखना है। जो भी हो यह बहुत बुरा हो रहा है।

इससे भारत की धर्मनिरपेक्ष वाली छवी धुमील हो रही है, ऐसी घटनाए लोकतांत्रिक देश के लिये सबसे बडा खतरा है, इन जैसी घटना न हो इसके लिये हमे जल्द से जल्द कोशिश करनी चाहिए। नही तो अविश्वास की लहर बढ सकती है और यकीनन यह सोंच यह देश के लिये खतरा साबित हो सकती हैं।

(यह आलेख 24 जून 2013 को लातूर स्थित एलान अखबार को प्रकाशित करने लिए भेजा गया था, अखबार द्वारा प्रकाशित करने की कोई सूचना प्राप्त न होने पर इसे यहाँ प्रकाशित किया जा रहा हैं।)

कलीम अजीम, पुणे

संदर्भ- 
1) लोकमत समाचार, 8 मई 2013, औरंगाबाद
2) फ़्रंटलाईन, फ़रवरी 2013
3) लोकसत्ता, मई 2013
4) लोकमत समाचार, जनवरी 2013
5) सीमा मुस्तफ़ा विचारमाला, मई 7 औरंगाबाद, असगर अली इंजिनीअर के जीवनी के मराठी अनुवाद का विमोचन, अनुवादक-जयदेव डोळे
6) लोकमत समाचार, मई 2013
7) लोकमत, 16 जून 2013

(इस मामले को अधिक विस्तार से जानने के लिए इस लिंक पर जाए)

वाचनीय

Name

अनुवाद,2,इतिहास,42,इस्लाम,37,किताब,15,जगभर,129,पत्रव्यवहार,4,राजनीति,271,व्यक्ती,4,संकलन,61,समाज,222,साहित्य,68,सिनेमा,22,हिंदी,53,
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