औरंगाबाद ता. ७ मई (कलीम अजीम ) इंडियन मुजाहीदिन की कोई रचना नही है, उसका कोई संस्थापक नही है, अगर है तो आई. बी. मुझे बताये क्यॉकी, एक पत्रकार होने के नाते मुझे यह जानना जरुरी है, एक ढकोसाला तयार कर आम इन्सानोको गुम्रराह किया जा रहा है, यह सिर्फ एक कल्पना है, ऐसा दिल्ली की वरिष्ठ पत्रकार सीमा मुस्तफा ने कहा.
प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता और विचारक असगर अली इंजीनियर की 'द लिविंग फेथ' नामक आत्मचरित्र पुस्तक के प्रा जयदेव डोले द्वारा किए गए मराठी अनुवाद के विमोचन कार्यक्रम में सीमा मुस्तफा संबोधित कर रही थीं. यह पुस्तक 'लोकवाड्मय गृह', मुंबई, 'तंजीम- ए- इंसाफ' की स्थानीय शाखा की ओर से प्रकाशित की गई.
इस अवसर पर 'भारतीय मुसलमानों के सामने चुनौती' विषय पर मार्गदर्शन करते हुए सीमा मुस्तफा ने खेद जताते हुए कहा कि अमेरिका पर आतंकवादी हमले के बाद मुसलमानों को आतंकवादी साबित करने का प्रयास पूरी दुनिया में जारी है. भारत में भी मुसलमानों के साथ इस मामले को लेकर गलत आचरण किया जा रहा है. इस तरह मुसलमानों को आतंकवादी चेहरा देना गलत है. मक्का मस्जिद ब्लास्ट में कोर्ट ने बेगुनाह करार दिए मासूमो को फिर से हैदराबाद ब्लास्ट में धरा गया है, जबकी मक्का मसजिद ब्लास्ट के आरोपी खुलेआम घूम रहे है. इस वजह से बेगुनाह भारत का धर्मनिरपेक्ष चेहरा खोने लगा है. राजनीतिक शक्तियां भारत की धर्मनिरपेक्षता को खत्म करने में जुटे हुई हैं. इसका सीधा परिणाम यहां के अल्पसंख्यकों पर दिखाई दे रहा है. धर्म के नाम पर कोलिनिया बन रही है जो एक लोकतांत्रिक देश के लिए बहुत बढ़ा खतरा है. गुजरात में विकास का नाम आगे बढ़ा कर कत्लेआम भुलाने की कोशिश की जा रही है, एक खूनी को प्रधानमंत्री का दावेदार बताया जा रहा है. अगर यह प्रधानमंत्री बनते है तो पूरा भारत ख़त्म हो जायगा। शुरवात मुसलमानो से हो सकती है.
सीमा मुस्तफा ने कहा कि कहीं पर भी आतंकवादी हमला होने पर मुस्लिम नागरिकों की गिरफ्तारियां बडे. पैमाने पर होती है. कईं बार गिरफ्तार आरोपी दोषी नहीं होते है. इसलिए वह निर्दोष छूट जाते हैं, लेकिन निर्दोष रिहाई के बावजूद उनके साथ आतंकवादियों जैसा आचरण किया जाता है. इस आचरण को रोकने के लिए कोई तैयार नहीं है. इस वजह से सरकार के खिलाफ अविश्वास बढ़ता जाएगा इसे रोकने की जरुरत है .
कलीम अजीम, औरंगाबाद
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अपनी बात
- कलीम अजीम
- कहने को बहुत हैं, इसलिए बेजुबान नही रह रह सकता. लिखता हूँ क्योंकि वह मेरे अस्तित्व का सवाल बना हैं. अपनी बात मैं खुद नही रखुंगा तो कौन रखेगा? मायग्रेशन और युवाओ के सवाल मुझे अंदर से कचोटते हैं, इसलिए उन्हें बेजुबान होने से रोकता हूँ. मुस्लिमों कि समस्या मेरे मुझे अपना आईना लगती हैं, जिसे मैं रोज टुकडे बनते देखता हूँ. Contact : kalimazim2@gmail.com