पुलिसीया दमन के बावजूद दटे रहे CAA विरोधक

रकार नें लोगो कि बात सुनने के बजाए उलट आग में तेल डालने काम किया हैं। सरकार एनआरसी और एनपीआर प्रक्रिया के माध्यम से भारतीयो कि नागरिकता छिनना चाहती हैं। सरकार द्वारा आम लोगो के खिलाफ बायनबाजी से आंदोलन थमने के बजाए और भडक गए हैं।

सीएए समर्थको द्वारा हिंसा और उत्पात फैलाया जा रहा हैं। जामिया, जेएनयू के छात्रो पर बीजेपी समर्थकों ने जानलेवा हमले किए हैं। दिल्ली में दंगा करवाया गया। जिसमे 44 लोग मारे जा चुकें हैं।

देश में नागरिकता कानून के खिलाफ पिछले तीन महिने से आंदोलन चल रहा हैं। असम के बाद जामिया के छात्रों द्वारा सिविल नाफरमानी’ (Non Co-Operation) आंदोलन शुरू किया। छात्र विश्वविद्यालय परिसर में पुरे शांति के साथ सत्याग्रह कर रहे थें। परंतु दिल्ली पुलिस ने इसपर नृशंस हमला कर तोडने कि कोशिश की। जिसके बाद पुलिसीया तानाशाही का विरोध करते हुए यह आंदोलन समुचे देशभर में फैल गया हैं।

देशभऱ में जामिया के छात्रो के समर्थन और सीएए के खिलाफ शांतिमार्च निकाले गए। दिसंबर और जनवरी में देशभर में मोर्चो कि गुंज सुनाई दी। शांति मार्च से शुरू हुआ यह आंदोलन अब सत्याग्रह में बदल चुका हैं।

गांधीजी भी करते विरोध

रौलेट अब इसे इत्तेफाख कहे या संयोग; सौ साल पहले याने 1919 को महात्मा गांधी ने सर सिडनी रौलक्ट के लाए काले कानून का देशव्यापी विरोध शुरू किया था। जिसे रौलेट एक्ट के नाम से जाना जाता हैं। जिससे भारतीयों को बिना किसी अदालती कार्यवाही के दो साल तक जेल में डाला जा सकता था।

तमाम विरोधो के बावजूद इस बिल को पारीत किया गया। जिसके विरोध में मुहंमद अली जिना, पंडति मदनमोहन मालवीय, मझरुल हक ने प्रतिनिंधी सभा के इस्तीफा दिया था।

24 फरवरी 1919 से शुरु हुआ यह आंदोलन एप्रिल आते-आते एक जनाआंदोलन बन कर रौद्र रूप धारण कर चुका था। महात्मा गांधी ने नौकरशाही और प्रशासन में बसे भारतीयों से असहयोग की बात की। अमृतसर के जालियावाला बाग में हजारो लोग इस काले कानून के खिलाफ प्रदर्शन करने जमा हुए।

अंग्रेजी हुकूमत नें आंदोलकारी लोगो पर गोलिया बरसाई। जिसमें के करीबन 400 लोगो को मौत हुई और 2 हजार से ज्यादा लोग जखमी हुए। वह दिन था 13 अप्रेल 1919 का। इस घटना के बाद ब्रिटिश हुकूमत और रौलेट एक्ट के खिलाफ देशभर में आंदोलन चल निकले। लोगो ने रास्तो पर उतरकर जालियावाला के मृतको के प्रति के प्रति संवेदना प्रकट की।

यहां से असहयोग का नारा बुलंद होते चला गया। 1920 आते-आते वे सविनय अवज्ञा तक पहुँच गया। मौलाना आजाद नें 29 फरवरी को कलकत्ता के खिलाफत कान्फ्रेस में सविनय अवज्ञा और असहयोग पर एक बडा भाषण दिया।

जिसमें वहां मौजूद लोगो से उन्होंने कहा, मुसलमानों का धार्मिक कर्तव्य हैं कि वर्तमान स्थिती में ब्रिटिश सरकार से असहयोग करे याने सहयोग और सहायता से हाथ खिंच ले। उन्होने आगे कहा कि इस्लामी शास्त्रो के अनुसार सेना में नौकरी करने कि मनाई बताई हैं। क्योंकि ब्रिटिश सरकार मुस्लिम देशो के खिलाफ युद्ध कर रही थी।

कलकत्ता के बाद मौलाना आजाद ने कराची, बरेली और लाहौर में नौकरशाही से असहयोग की अपील की। जिसके बाद हजारो लोगो ने असहयोग आंदोलन में भाग लिया था। यह बात अलग हैं कि इसके बाद उनपर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। जिसके अदालती कार्यवाही में उन्होने भाग नही लिया बल्कि अपना निवेदन कौल ए फैसल लिखित स्वरूप में सरकार को पेश किया।

देशभर में महात्मा गांधी के नेतृत्व में रौलेट एक्ट के खिलाफ एक बडा जनाआंदोलन खडा हुआ। वर्तमान भारत में सरकार के खिलाफ बडा जनाआंदोलन खडा हुआ हैं। इस बार लोग अपनी ही चुनी हुई सरकार के खिलाफ खडे हैं। अगर आज महात्मा गांधी और मौलाना आजाद या फिर नेहरू जिन्दा होते तो इस कानून के खिलाफ वह खडे नजर आते।

काला कानून

केरल, पंजाब, मध्यप्रदेश, झारखंड जैसे राज्यो नें सीएए कानून लागू नही करने का प्रस्ताव विधिमंडल में पारीत किया हैं। बीजेपी शासित बिहार भी असहयोग कि घोषणा कर चुका हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरें ने सीएए को गरीब और हिंदूविरोधी कानून बताया हैं।

अदाकारा उर्मिला मातोंडकर ने इस कानून कि तुलना रौलेट एक्ट कर इसे काला कानून कहा हैं। फिल्मकार अनराग कश्यप नें इस कानून को देशविरोधी बताया हैं। जावेद अख्तर इसे गरिबो के विरुद्ध बता चुके हैं। फिल्म और उद्योग जगत ने इस कानून के विरोध में उतरा हैं। समाजसेवी संघठन, तमाम राजनैतिक पार्टीया भी इस कून के खिलाफ खडी हुई हैं।

सीएए के खिलाफ विदेश में आंदोलन चल रहे हैं। सयुक्त राष्ट्र ने इस कानून को भारतीय लोगों के विरुद्ध बताया हैं। पाकिस्तानी गैरमुस्लिम समाज ने इसे हिंदुविरोधी बताकर सहयोग न करने की घोषणा कर चुका हैं। भारत में शिख और इसाई समुदाय के लोग इस कानून के खिलाफ खडे हुए हैं।

सीएए जैसे नागरिकता कानून के खिलाफ देशभर में लोग मनमुटाव भूलकर एकजूट हुए हैं। इस कानून को संविधान पर हमला बताते हुए लोग बीजेपी सरकार की आलोचना कर रहे हैं।

लोगो ने इस आंदोलन में महात्मा गांधी द्वारा दिया सत्याग्रह विरोध का साधन बनाया हैं। देशभर में दिल्ली के तर्ज पर शाहीन बाग खडे हुए हैं। लोग सरकार के कानून का विरोध कर रहे हैं। जिससे सरकार और न्याययंत्रणाए हिल चुकी हैं। मगर फिर भी सरकार पिछे हटने को तयार नही हैं।

CAA समर्थको का उत्पात

सरकार नें लोगो कि बात सुनने के बजाए उलट आग में तेल डालने काम किया हैं। सरकार एनआरसी और एनपीआर प्रक्रिया के माध्यम से भारतीयो कि नागरिकता छिनना चाहती हैं। सरकार द्वारा आम लोगो के खिलाफ बायनबाजी से आंदोलन थमने के बजाए और भडक गए हैं। सीएए समर्थको द्वारा हिंसा और उत्पात फैलाया जा रहा हैं। जामिया, जेएनयू के छात्रो पर बीजेपी समर्थकों ने जानलेवा हमले किए हैं। दिल्ली में दंगा करवाया गया। जिसमे 44 लोग मारे जा चुकें हैं।

दिल्ली का दंगा पुलिसीया दमन का एक नमुना बनकर उभरा हैं। जहां पुलिस ने दंगाईयो का साथ दिया हैं। लोग मदद कि गुहार लगाते रहे पर पुलिस है कि टस से मस नही हुई। दिल्ली मॉयनॉरिटी सेल के फॅक्ट फाईडिंग टीम नें एक पत्रकार परिषद लेकर स्पष्ट रुप से कह दिया हैं कि पुलिस ने लोगो कि सहायता बिलकूल नही की हैं। पुलिस नें मदद की गुहार लगाते लोगो को मरने के लिए छोड दिया।

रिपोर्ट कहती हैं कि पहली बार ऐसा हुआ हैं, खुलकर कि पुलिस द्वारा दंगाईओ की मदद की गई। मीडिया रिपोर्ट की माने तो एक साजिश के तहत यह दंगे करवाए गए। सोशल मीडिया के व्हिडिओ यह बताते हैं कि हिंदू लोगो नें ही अपने ही लोगो के घरो को जलाया हैं। जिसका आरोप मुसलमानो पर मढा जायेंगा।

बीजेपी के मंत्री और नेता मुसलमानों के खिलाफ खुलकर नफरत वाले बयान दे रहे थे। यही नही मीडिया वाले भी मुसलमानो के खिलाफ आग उगल रहे थें। लोगो के मुसलमानों के खिलाफ हमले करने के लिए उकसाया जा रहा था।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में शाहीन बाग वर्सेस दिल्ली चुनाव ऐसी स्थिती बन गई थी। देश के गृहमंत्री अमित शाह नें वोट देकर शाहीन बोग को करंट लागने का बात कही। बीजेपी के लोगो ने पुरे प्रचार में दिल्ली के मुसलमानों के खिलाफ बयानबाजी की। फिर भी वह चुनाव हार गए। जिसके प्रतिक्रिया में सीएए समर्थकों द्वारा दंगे करवाए गए।  

सरकार के दमनशाही क खिलाफ अब भी लोग दटकर खडे हैं। लोग एनपीआर प्रक्रिया में भाग नही लेने की बात कर रहे हैं। NPR प्रकिया से नागरिकता के तलाशी लेने का अभियान सरकार चला रही हैं। एक तरफ सरकार कह रही हैं, कि अभी तर NRC की बात नही हुई हैं। परंतु दूसरी ओर एनपीआर प्रक्रिया के तहत एऩआरसी का डेटा संकलित किया जा रहा हैं।

सरकार ने साफ तौर पर कहा है कि NPR का डाटा NRC के लिए इस्तेमाल होनेवाला हैं। जिससे लोगो में दहशत का वातावरण बना हं। इसीलिए लोग NPR प्रक्रिया में भाग नही लेने की घोषणा कर चुके हैं।

NPR के इल्यूमिनेटर को कागज नही दिखायेंगे का नारा लगाया जा रहा हैं। देशभर में सविनय अवज्ञा मुहीम छेडी जा चुकी हैं। लोग खुलकर सरकारी आदेशों कि सिविल नाफरमानी कर रहे हैं। इतने विरोध और दमन के बाद भी लोगो के हिम्मत को दाद देने को जी करता हैं।

कलीम अज़ीम, पुणे
मेल: kalimazim2@gmail.com

वाचनीय

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पुलिसीया दमन के बावजूद दटे रहे CAA विरोधक
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