य़ोमे आज़ादी या 'फूट डालो और राज करो' वाली नीती?

ज हम योमे आजादी के साथ जम्हुरियत के 75 साल का जश्न मना रहे है। इस लोकतंत्र ने समाज के हर तबके के लिए विकास का रास्ता आसान कर दिया । है मगर आज भी काही सारे लोग और समुदाय विकास के लिये तरस रहे है। हमारी जिम्मेदारी है कि हम उन्हें सामाजिक और राजनीतिक विकास तक लेकर जाए।

आज़ादी के ७५ साल में आज भी कई गांव ऐसे हैं, जहां बिजली नही पहुंची है, उसी तरह साफ पानी भी नही पहुंचा हैं।

आज हम बुलेट ट्रेन की बात करते हैं, चांद पर जाने की बात करते हैं, वन ट्रिलियन इकोनॉमी की बात करते हैं, मगर हमारे आसपास के लोगों का हाल भी तो हमे देखना चाहिए!

लोकतंत्र ने समाज के हर हिस्से के लिए विकास के रास्ते खोल दिये है। यह वहीं लोकतंत्र हैं, जिसकी वजह से आज हम सब लोग एक दुसरे के साथ खांदे से खांदा मिलाकर खडे है। अगर हम अंग्रेजो से आजादी नहीं पाते तो आज भी धर्म, परंपरा के नाम पर गुलामी में जकडे हुए होते।

हमारे देश का इतिहास धर्म और प्रथा के नाम पर गुलामी का इतिहास रहा है। कुछ लोग कहते है कि हमारे देश में अंग्रेज नही आते तो हम आज भी धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर गुलामी की और बदनामी कि जिंदगी जी रहे होते। इन्सान को इन्सान न समझ कर जाति, वर्ग में बांट दिया जाता। मैला उठाने, लोगो कि गंदगी साफ करने मे लगाया जाता। जाति के आधार पर भगवान से मिलने नहीं दिया जाता।

अंग्रेजो को आने से हमे धर्म, परंपरा, जाति के नाम पर गुलामी से निजात मिली। अंग्रेजों ने यहां राजनीतिक सुधार के लिए कई काम किये है।


पुणे में अंग्रेजो की मिशनरी स्कूल नही आती तो हमें महात्मा फुले नही मिलते, हमें बाबासाहेब आंबेडकर नही मिलते। अंगेरजो की लाई शिक्षा व्यवस्था ने बाबासाहेब और फुले को पढ़ने का मौका मिला। वरना हमारे देश में तो जाति के नाम पर खुलेआम भेदभाव होता था। उन्हें पढ़ने का मोका नहीं दिया ता था। उन्हें गुलामो से बदतर जिंदगी जिने पर मजबूर किया जाता था। इसाई मिशनरी ने बहुत सारे खिदमती काम अंजाम दिये। उन्होंने यहां स्कूल खोले, अस्पताल खोले जिससे आम लोगो का फायदा हुआ।

मिशनरी के स्कूल नही होते तो महात्मा फुले हमारे बीच नही होते, सर सय्यद अहमद खान हमारे बिच नही होते। राजा राममोहन रॉय हमारे बिच नही होते। इन सारे लोगों ने तालीम का इस्तेमाल आम लोगों के जिंदगी संवारने के लिए किया। वरना आज भी हम ब्राह्मणी धर्म द्वारा लादी गई गुलामी मे जी रहे होते।

१८५७ कि पहली जंग कि आजादी इसी तरह के तालीम पाने वाले लोगो ने शुरू की गई थी। इस जंग के बाद अंग्रेजो ने अपनी सत्ता बचाने के लिए सामाजिक सुधार को बाजू मे रखते हुए कुर्सी संभालना जरुरी समझा। उनके पास दो ही रास्ते थे, या सामाजिक सुधार करते या फिर अपनी कुर्सी बचाते।

अलबत्ता वह यहां सामाजिक सुधार के लिए बिलकूल नही आए थे, बल्कि सत्ता के लिए, भारत को लुटने के लिए आए थे। यहां का सामाजिक माहौल बिगाडने के लिए आए थे। तो, उन्होंने अपनी राजनीतिक सत्ता को बचाने जादा जरुरी समझा। ये जंग कई मायने मे क्रांतिकारी रही। तो दुसरी तरफ इसी जंग के बाद भारत में हिंदू-मुस्लिम एकता के नींव को हिलाकर रख दिया।

अंग्रेजो को समझ आया की यहां सत्ता में बने रहना है तो सामाजिक सुधार को दूर रखते हुए समाज में बिगाड पैदा करना जरुरी है। फिर उन्होंने भारत का इतिहास को हिंदू बनाम मुस्लिम के रूप मे पेश करना शुरू किया। १८५७ के बाद इतिहासकारों ने जो भी किताबे लिखी वह हिंदू इतिहास और मुस्लिम इतिहास की तरह बताई गई। इसी के साथ हमारे देश में हिंदू-मुस्लिम फसाद की शुरुआत हुई। आज जो फसाद हमे दिखते हैं, वह इसी हिंदू इतिहास और मुस्लिम इतिहास का नतीजा हैं। अंग्रजो की यह फूट डालो और राज करो, की नीति आज भी अपनाई जा रही हैं।

आज हम आजादी का जश्न मना रहे है, जिसमें गरीब, मजदूर, किसान जैसे कई लोगों ने बहुत बडा योगदान दिया है। मगर आज हम सिर्फ उन्हीं लोगो को याद करते है, जो इस आजादी के तहरीक का चेहरा बने थे। इस आंदोलन को याद करने की भी एक अपनी अलग सियासत है।

भारत के आजादी के जंग में हर जाति, समाज, धर्म के लोगो ने हिस्सा लिया था। जिसमे समाज के दबे-कुचले लोगो का बड़ा हाथ था। मगर आज ये सब लोग जंगे आजादी के इतिहास से गायब है। आज जो लोग हमारे कान में रिंगटोन के जरिए जंगे आजादी का जश्न मना रहे है, वो उस वक्त कहां थे? अगर यह लोग उस वक्त जंगे आजादी में योगदान देते तो आज इस तरह की कॉलर ट्यून सुनाने की जरूरत नही पडती। इन्ही लोगो ने आजादी के इतिहास में घुसपैठ की हैं। हमारे असली हिरो को छोडकर ऐसे कई बनावटी लोग आजादी के इतिहास में घुसपैठ कर रहे है।

यहीं वजह की आज हमे भारत के जंगे आजादी में मुसलमानों का योगदान, दलितो का योगदान, आदिवासीयों को योगदान, बंजारों का योगदान, पिछडों का योगदान ढुंढना पड रहा है। आज हर एक जाति, समुदाय अपने-अपने जंगे आजादी के योगदान पर बड़ी-बड़ी किताबे लिख रहा है। ये किताबे लिखने की उनको जरुरत क्यों पडी? ये भी एक अपने आपने सवाल है।

अगर यह घुसपैठी जंग आजादी के इतिहास में घूसपैठ नही करते तो आज़ादी के असली हिरो के नाम इतिहास मे दर्ज होते। इन जैसे घुसपैठीयों के इतिहास लेखन की वजह से जंगे आजादी के असली हिरो के नाम किताबों से गायब हुए हैं। आज इसी वजह पिछडे, दलित, मुस्लिम, आदिवासी समुदाय को शक की नजर से देखा जा रहा है, उनकी नागरिकता पर शक किया जा रहा है, उन्हें देशद्रोही बताया जा रहा है, यहीं वजह है की वो भी अपने आपको देशभक्त साबित करने के लिए अपने इतिहास को ढूंढ रहे है।

अगर कोई भी समाज अपने इतिहास को भूल जाता है तो वो आज के साथ इंसाफ नही कर पाता। आज से न्याय करना है तो हमें इतिहास को भूलना नही चाहिये। आज कुछ लोग इतिहास के नाम पर लोगों को भडका रहे है, इसलिये हमको इतिहास का इस्तेमाल आम लोगों को जोडने के लिये करना है, न के लोगों को तोडने के लिये, उनके घर जलाने के लिए, उनकी जिंदगी खत्म करने के लिए...

इतिहास के नाम पर लोगों को भडकाया जा रहा है। दंगे करवाए जा रहे है, लोगों के घरों में घुसकर हमले किए जा रहे है, लोगों के खाने पर पाबंदी लगाई जा रही हैं। कपडों पर बंदिशे लगाई जा रही हैं। इसलिए इतिहास का नाम पर, धर्म के नाम पर भडकना है, या आगाह होना हैं, यह हमें समझने की जरुरत हैं।

आज योमे आजादी के हिरो को याद कर रहे हैं। इस आजादी के लिए हमारे बुजुर्गोने हजारों कुर्बानीया दी हैं। अपने घर-बार, परिवार, बीबी-बच्चो, रोजगार कि फिक्र किये बगैर पुरे वक्त आज़ादी के बारे मे सोचा हैं। उसके लिए जंगे लड़ी है। गोलिया, लाठीया खाई हैं।

कुरबान हुसैन, बाबू गेनू, भगतसिंग राजगुरु जैसे क्रांतिक्रारी फांसी पर चढे हैं। महात्मा गांधी तो जंगे ए आज़ादी के लिए नंगे फकीर बने थे। उन्होंने अपने बदन से कपडे निकाल फेंके थें। जवाहरलाल नेहरू ने अपनी शानशौकी जिंदगी छोड दी थी। मौलाना आज़ाद अपनी खानदानी विरासत छोड कर पुरी जिंदगी फटेहाल रहे। मौलाना मोहानी गुरबत में जिंदगी बसर की। इन लोगो ने अपनी जिंदगी के कई साल जेलों के सलाखों के पीछे काटे हैं। पुणे के येरवडा जेल में भूख हडताले की हैं। अहमदनगर कि जेलो में दिवारों से बाते की हैं। इन्हें अपने बीवी-बच्चो का आखरी दिदार भी नसीब नहीं हुआ। हमारे इन बुजुर्गो के कुरबानीयो क लिए हमे जंग ए आज़ादी याद रखना जरुरी हैं।

दोस्तों, हमे वादा करना हैं की, हमारे बुजुर्गो की इस आज़ादी के नेमत को बचाना हैं। हमे उनकी कुरबानियो की कदर करनी है। मगर आज जो लोग इस आजादी का गलत इस्तमाल कर रहे है, उन्हें यह याद रखना जरुरी है इस देश ने अंग्रजो के २०० साल कि गुलामी को खदेड दिया था। तो आप किस केत की मुली हो!

हमारे समाज के एकता ने ब्रिटिशो के चंगुल से देश आजाद किया। यहीं एकता हमारी असली ताकत हैं। यहीं एकता हमे आज के राजनेताओं के गुलामी से निजात दिला सकती हैं।

हमारे बुजुर्गोंने अपनी जान कि बाजी लगाकर मुल्क को आज़ाद किया। एक सेक्युलर भारत देश हमें खडा करके दिया। इसमें लोगों के सरकार याने लोकतंत्र, जम्हुरियत बनाई। नेहरू ने अपने पहले भाषण मे कहा था, “अब कसम पुरी करने का वक्त आया हैं.” मतलब नेहरू ने कहां था, आम लोगो के विकास के लिए काम करने का वक्त आया हैं।

दोस्तों आजाद देश की नींव लोगो के कल्याण के लिए रखी गई थी। उन्होंने आम लोगो के विकास को जरुरी समझा। हर दबे-कुचले समुदाय के विकास उन्होंने जरुरी समझा। उसके लिए जम्हुरियत याने लोगों के सत्ता अधिकार की स्थापना की। लोगों द्वारा चुनी गई सरकार देश को दी।

मगर आज इस लोकतंत्र में हम लोग महज खिलौना बनकर रहे गए हैं। इस जम्हुरियत का सबसे ज्यादा फायदा किस को हुआ, यह भी हमे देखना चाहिए। लोगो द्वारा चुनी गई सरकार एक रात मे बदल दी जाती है, एक झटके में लोगों के जनाधार को खत्म किया जा रहा है, लोकतंत्र के नाम पर तानाशाही चलाई जा रही है, किसी एक की सरकार, किसी एक का शासन, किसी एक का हुक्म, किसी एक का आदेश लोगों पर थोंपा जा रहा हैं।

सत्ता कि कुर्सी पाने के लिए दंगे, लूट, हत्या किये जा रहे हैं। सामाजिक सद्भाव को बिगाडा जा रहा हैं। सत्ता को बचाने के लिए चोरी, लुट, बदमाशी आम हो गई हैं। इसलिये हमे इस लोकतंत्र को भी समझना जरुरी है। जम्हुरियत का गलत इस्तेमाल किया जा रहा हैं।

बिल्डरो, पूंजीपतीयो के लिए कानून बनाये जा रहे हैं, कानूनो को बदला जा रहा हैं। नियम मरोड़े जा रहे हैं। उद्योगपतीयों के मुनाफा बढ़ाने के लिए नये तरिके ढुंढे जा रहे हैं। मतलब जम्हुरियत का इस्तेमाल अमीर लोगो को और ज्यादा अमीर, धनवान, पैसेवाले बनाने के लिए और गरीबो को और ज्यादा गरीब, निर्धन बनाने के लिए किया जा रहा हैं। नेताओ नें आम लोगो को गुलामी की जिंदगी दी हैं।

सरकार लोकतंत्र के नाम पर जो चाहे वह कर सकती हैं। लोगों पर नजर रख सकती हैं, लोगों के बेडरुम में घुस सकती हैं, लोगों का मोबाईल हॅक कर सकती हैं। विरोधी आवाज को दबा सकती हैं। नागरी संघटनों को बॅन कर सकती हैं। लोगो को देशद्रोही, अर्बन नक्सल बता सकती हैं।

इलेक्शन में खिलाफ काम करने वाले लोगों को देशद्रोही बता सकती हैं। मुसलमानों के व्होट को नजरअंदाज कर सकती हैं। उनके व्होटो के अहमियत को खत्म कर सकती हैं। दलित के साथ खिलवाड कर सकती हैं। आदिवासीयों को नागरिक मानने इनकार करती हैं। मुसलमानों को दबा सकती हैं। उनके खिलाफ जुल्म को आम कर सकती हैं।

रास्ते पर चलते विरोधीयों को जकड सकती हैं, सरकार का विरोध करने पर जेल में डाल सकती हैं। यह सब लोकतंत्र के नाम पर, जम्हुरियत के नाम किया जा रहा हैं। सरकार के हामी लोग इंटरनेट पर ट्रोल गँग बनकर आम लोगों को गंदी-गंदी गालिया देती हैं। मां-बहनो पर असीड अटैक और बलात्कार की धमकी देती हैं, उनपर नजर रखती हैं।

महाराष्ट्र सरकारने लोकतंत्र के नाम पर ‘पब्लिक सिक्योरिटी एक्ट’ लेकर आया हैं। जिसमे हम सरकार के खिलाफ कोई बात नही कर सकते, आंदोलन नही कर सकते, किसी को सरकार कि खामियो बता नहीं सकते। अगर हम ऐसा करते है तो हमे जेल में डाल दिया जाएगा। हां, दोस्तो यह सब जम्हुरियत के नाम पर किया जा रहा हैं।

इस निगरानी से, राजनितिक गुलामी से भी मे आज़ादी चहिए। तानाशाही से हमें आज़ादी चाहिए। इस जुल्म से हमे निजात चाहिए। दलबलू नेताओं से हमे मुक्ती चाहिए।

सत्ता हथियाने के लिए समाज मे बिगाड पैदा करने वाले राजनितिक पार्टी से हमें मुक्ती चाहिए, हिंदू-मुस्लिम एकता को बिगाडने वालों राजनितिक दल से हमे मुक्ती चाहिए।

लोकतंत्र पर खतरा पैदा करने वालों से हमे आज़ादी चाहिए। हमारे संविधान को खतरे डालने वालों से हमे आज़ादी चाहिए।

आज योमे आज़ादी जश्न पर हमे लोकतंत्र को बचाने कि कसम खानी हैं। इसी के साथ जम्हुरियत को आम लोगो के फायदा वाला, विकास वाला बनाने के लिए हरमुमकीन कोशिश करनी चाहिए।

हमारे बुजुर्गो ने इस देश को राष्ट्र बनाने के लिए कुरबानिया दी हैं, सामाजिक एकता बनाने के लिए कुबानिया दी हैं। समाज में बिघाड पैदा करने वालों के देश से भगाया हैं। हमे भी यह कसम खानी हैं की, हमारे बुजुर्गो के उस विरासत को हमे किसी भी किमत पर बचाना हैं।

जय हिंद...

कलीम अज़ीम, पुणे

मेल : kalimazim2@gmail.com

वाचनीय

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य़ोमे आज़ादी या 'फूट डालो और राज करो' वाली नीती?
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