अमीरों की तालीम गरीबों के देनेवाले वली रहमानी


ली रहमानी 25 साल के बंगाली नौजवान है। कोलकाता शहर में रहते है। उन्हें भारत के लोग राजनीतिक विश्लेषक और टिप्पणीकार के रूप में जानते है। महज 17 साल की उम्र में एक पब्लिक स्पीकर के रूप में दुनियाभर में मशहूर हो गये। उनका अध्ययन, पेशकश, विश्लेषण, तर्क श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। बांग्ला, हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी में महारत रखने वाले यह युवक मेन स्ट्रीम मीडिया के प्रमुख न्यूज चैनलों पर प्राइम टाइम बहसों में फासीवादी ताकतें, सांप्रदायिकता, सेक्युलॅरिझम और सामाजिक सद्भाव पर प्रभावशाली बात करते हैं। उनके भाषण यूट्यूब, सोशल मीडिया, व्हाट्सएप पर खूब वायरल होते हैं। इन सब से दूर हटकर अब वह शिक्षा के क्षेत्र में काफी अहम काम कर रहे हैं।

उन्होंने अपनी लोकप्रियता के साथ-साथ इंटरनेट और सोशल मीडिया का इस्तेमाल रचनात्मक कार्यों के लिए किया है। बीस साल की उम्र में उन्होंने कोलकाता शहर में अनाथ बच्चों के लिए एक रेसिडेन्शियल स्कूल की नींव रखी। उनके स्कूल के लिए करीबन 1500 छात्र वेटिंग लिस्ट में हैं। लेकिन माकूल संसाधन और जगह की किल्लत की वजह से वह उन्हें दाखिला नहीं दे पाते। इसके लिए उन्होंने प्रस्तावित विद्यालय की खाका प्रस्तुत किया और अवाम से पैसो की मांग की। हर किसी से महज 100 रुपये ही उन्होंने मांगे। उन्होंने ऐलान किया कि अगर मेरी अपील 10 लाख लोगों तक पहुंचती है तो इससे 10 करोड़ रुपये आसानी से इकट्ठा किए जाएंगे। हैरानी की बात यह है कि उन्होंने महज छह दिनों में 6,00,00,000 (छह करोड़) रुपये का फंड इकट्ठा भी कर लिए।

उन्होंने यह फंड 15 सितंबर 2023 से 20 सितंबर 2023 तक पांच दिनों की दौरान में जुटाया है। उनकी तालीम, परवरिश, कैरियर और रचनात्मक कार्य तथा नजरिये को समझने वाला यह इंटरव्यू काफी अहम है।

(इसी इंटरव्यू को अंग्रेजी मे पढ़ने के लिए क्लिक करे)

कलीम अज़ीम : सबसे पहले वली रहमानी, हमारी और से... उम्मीद अकादमीऔर आपकी टीम को मुबारका... आपने महज छह दिनों में बैतुल माल (पब्लिक मनी) से लगभग छह करोड़ रुपये इकट्ठा किए हैं। जब आपने लोगों से तालीम के लिए पैसे मांगे तो उन्होंने खुले दिल दे दिये। आपने कल्पना से परे काम कर दिखाया हैं। कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्हे आपकी पहल पसंद नहीं आ रही... कई लोगों ने आपको ट्रोल भी किया है। आपकी आलोचना की। चलिए यहीं से इंटरव्यू की शुरुआत करते हैं...

आलोचना या ट्रोलिंग आपके लिए नई तो नहीं होगी। इन सब हालातों से कैसे निपटते हों?

वली रहमानी : वाकई में आपने सही कहा। यह मेरे लिए नया नहीं हैं। कुछ दिनों पहले, एक दफा फेसबुक पर मेरे जुबान से कुछ निकल गया। इंसान हूं जबान से कभी अच्छी तो बुरी बातें भी निकल सकती है। अगर गलती से ऐसी बात निकल जाए, जिससे लोगों के सेंटीमेंट पर ठेस पहुंच जाए... मेरे साथ ऐसा ही हुआ। जिससे लोगों के सेंटीमेंट को ठेस पहुंची। जो लोग मेरी शोहरत पर वाहवाही करते थे, मेरे कामयाबी पर खुश होते थे, मेरी बातों पर तालियां पीटते थे, उसी लोगों ने मुझे ट्रोल करना शुरू कर दिया। मुझे इस तरह परेशान किया कि मैं डिप्रेशन में चला गया।

मेरी एक फीमेल फ्रेंड थी। उन्होंने मुझे बड़ा आईना दिखाया। उस वक्त उन्होंने कहा, आप दुखी क्यों होते हो?” मैंने कहा, यह लोग मुझे गाली दे रहे हैं। उन्होंने कहा, यह बात जिंदगी भर याद रखने वाली है। उनकी वाहवाही पर आप खुश हुए। आज इसलिए इनके गलियों पर आप दुखी हो रहे हो। अगर आप इनके वाहवाही और तालिया पर खुश नहीं होते और सिर्फ अपने काम पर फोकस करते, तो आज इनकी गालियों का भी असर आप पर ना होता। उनकी बात मेरे लिए बहुत बड़ी सीख थी। इससे आगे जो भी मेरी वाहवाही करें और जो भी मुझे गाली दे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए। कोई वाह वाह करे भी तो ठीक है, कोई गाली भी दे तो ठीक है। मुझे अपने सिर्फ काम से मतलब है। उसे दिन से लेकर आज तक यही मामूल रहा है कि अगर कोई तारीफ करें तो इसका गहरा असर दिल पर नहीं पड़ता, कोई ताली बजाए कोई गाली दे तो भी मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता हैं।

सवाल : अगला सवाल तो बेहद मामूली हैं, मगर रस्म के मुताबिक उसे ले लेते हैं। हमारे आज के सबसे बड़े यूथ आइकॉन वली रहमानी की पैदाइश कहां हुई, आपका बचपन कैसे बीता और आपने कहां-कहां तालीम पाई?

जवाब : यूथ आईकॉन कहना बहुत बड़ी बात है। आपने बहुत बड़े अल्फाज है मेरे लिए कहे हैं। मैं तो एक अदना सा आदमी हूं। काम करने की कोशिश कर रहा हूं। जो बन पड़ता है, जो मेरे बस में वह करने की कोशिश करता हूं।

मेरी पैदाइश 1998 में कलकत्ते शहर में हुई है। मेरी स्कूली पढ़ाई सेंट जेम्स स्कूल से हुई है। यहां मैं दसवीं तक पढ़ा। उसके बाद नोएडा के जेनेसिस ग्लोबल स्कूल में ग्यारहवीं और बारहवीं किया है, जो की इंटरनेशनल स्कूल है। जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी से मैंने लॉ की पढ़ाई पूरी की है। अभी 4 महीने पहले मेरी पढ़ाई मुकम्मल हुई है और अब मैं ग्रेजुएट हुआ हूं।

सवाल: आप जिस फॅमिली बॅकग्राऊंड से आते हैं वहां हर चीज हासिल करने के लिए मशक्कत करनी पड़ती होगी, इस बीच खुद की अलग पहचान बनाने के लिए आपने क्या कुछ तैयारी की थी।

जवाब : जैसा कि लोग कहते है, ऐसा नहीं था। मेरे वालिद शफीउद्दीन साहब ने जो बहुत ही मेहनत करके एक बड़ा बिजनेस और अंपायर खड़ा किया है। उनके मेहनत और गुरबत का जो दौर था, वह मेरे पैदाइश से पहले का है। मैं जिस साल में पैदा हुआ उसे साल तक का है। ईमानदारी से जवाब दूं तो मेरे वालिद साहब बिहार के एक छोटे से गांव के थे। 1980 में रोजगार की तलाश में वह गांव से कोलकाता शहर आए। उन्हें पहले काम जो मिला वह हात रिक्शा चलाने का था।

रिक्शा पर चमड़े का सामान लाद कर वह एक फैक्ट्री से दूसरे फैक्ट्री तक पहुंचाने का काम करते थे। उन्होंने अपने गुरबत के दिनों में बड़ी मेहनत और मशक्कत की। मेरी पैदाइश तक उनके हालात सुधर गए थे। घर में खुशहाली आ गई थी। मैंने कभी गरीबी नहीं देखी। मेरे वालिद ने मुझे बेहतरीन से बेहतरीन स्कूल में पढ़ाई के लिए भेजा। मगर हां वालिद साहब अक्सर बताते थे, गुरबत क्या होती है? उन्होंने क्या देखा? वह हमें मेहनत और मशक्कत के लिए तैयार करते थे। हमने हमेशा उनसे सुना कि उन्हें क्या-क्या सहना पड़ा। हम भाई-बहनों को पता चला कि गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी क्या होती है, भूखे रहने का एहसास क्या होता है? यह सारी चीजे उनसे सुनी थी।

सवाल : 2017 में आपका पहला यूट्यूब वीडियो खूब वायरल हुआ। उसका आइडिया कैसे आया?

जवाब : ग्यारहवीं-बारहवीं के दौर में मैंने वह वीडियो बनाया था। उस वक्त मैं उत्तर प्रदेश में पढ़ता था। वहां के बदलते सियासी हालात मुझे परेशान कर रहे थे। दिल में डर और अंधेरा था। धर्म के नाम पर हो रही सिय़ासत ने मेहनतकश, गरीब और बेसहारों के ख्वाबो होली होते दिख रही थी। दिल को बहुत बुरा लग रहा था। और वही फिक्र और दर्द मेरी सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरी। इसके अलावा मैंने कोई खास तैयारी नहीं की थी। मुफलिसी, गरीबों के लिए दिल में एक दर्द था। उसी दर्द को बयां किया, बस इतना ही!

सवाल: शुरुआती दिनों में आप सियासी लीडर बनना चाहते थे। कम उम्र में ही आपने अपनी मंशा जाहीर कर दी थी। कम समय में आपने राजनीतिक संजीदगी पाई हैं। आपकी डिबेट या तकरीरे देखते हैं तो उसमे बहुत कुछ मिल जाता हैं।

जवाब:  एक वक्त था जब मुझे लगा के पॉलिटिक्स में आकर देश की हालत सुधारी जा सकती हैं। लगता था की लीडर बनकर, लीडरशिप में आकर और पॉलिटिक्स में रहकर कुछ कर पाऊंगा। यही वजह थी कि में डिबेट में जाया करता था। न्यूज चॅनेल की प्राईम बहस का हिस्सा हुआ करता था। पॉलिटिक्स पर बातें किया करता था। एक वक्त था कि जब मैं डंके की चोट पर कहता था, 2040 में मुझे देश का प्रधानमंत्री बनना है। मेरे कई सारे स्पीच ऑन रिकॉर्ड है। मेरी बातें सुनकर लोग बड़ी तालियां बजाते थे। हौसला देते थे कि कोई 20 साल का लड़का खड़ा होकर कह रहा मुझे प्रधानमंत्री बनना है। मेरे लिए भी बड़ी मोटिवेशनल बातें हुआ करती थी।

मगर अब मेरे ख्याल बदल गए हैं। अब वैसे हालत नहीं है। लीडरशिप की डेफिनेशन बदल गई हैं। वक्त बीतते इंसान अपनी जिंदगी में नई सोच इंवॉल्व करता हैं। अलग सोचना शुरू करता हैं। जब थॉट प्रोसेस बढ़ती है, तो वह समझने लगता है कि यह वाली सोच सही नहीं थी। मुझे इस तरह से सोचना नहीं चाहिए था, उस तरह सोचना चाहिए था। और फिर मैंने उस तरह सोचना शुरू कर दिया। मुझे एहसास हुआ की और लीडरशिप की डिफेनेशन मेरे लिए बदल गई।

लीडरशिप की डेफिनेशन यह है कि जो इंसान खुद कह दे कि मैं लीडर हूं। मेरी नजर में वह सबसे बड़ा झूठा इंसान है। जो खुद कहता है मुझे लीडर बनना है, उसे तो बिल्कुल लीडर ना बनाओ। एक लीडर कभी नहीं कह सकता कि मुझे लीडर बनना है। उसके दिल में कभी यह ख्वाहिश नहीं होनी चाहिए कि मुझे लीडर बनना है।

उसकी तो सिर्फ एक ही ख्वाहिश होनी चाहिए कि उसे लीडरशिप की क्वालिटी हासिल करनी है। उसकी जो मेजर क्वालिटी है वह यह के आप एक अच्छे इंसान का दर्जा हासिल करें। आप परफेक्शन हासिल कर ले। जिस काम में हो उसमें परफेक्ट हो। आप परफेक्शन के हाइप लेवल पर हो। दूसरा यह की खिदमत! यह दो ही चीज है। जो आप काम कर रहे हो उस में आपसे ज्यादा खिदमत दूसरे किसी ने न की हो। लोगों की खिदमत ऐसी करो की आपसे ज्यादा किसी ने न की हो। यह दो चीजें अगर आपके अंदर है तो आप लीडर बन सकते हैं। फिर आपको कहना नहीं पड़ेगा कि मुझे लीडर बनना है।

आपके अंदर ख्वाहिश रखने की जरूरत भी नहीं है। लोग खुद आपके पास आएंगे और कहेंगे यह हमारा लीडर है। वक्त रहते मुझे समझ आया। लगा की बचपन में मैं जो सोचता था मुझे प्राइम मिनिस्टर बनना है, यह सही नहीं हैं। मुझे वजीर ए आज़म नहीं बनना हैं। मुझे तो लोगों की खिदमत करनी हैं। मुझे अपने काम में सबसे अच्छा बनना है और जो काम मैं कर रहा हूं इस काम के जरिए लोगों की सबसे ज्यादा खिदमत करनी है। सबसे ज्यादा सेवा करनी है जब मैं ऐसा करूंगा तो लोग आएंगे और कहेंगे तुम हमारे लीडर हो। और न कहे तो कोई बात नहीं, खिदमत करते-करते दुनिया से चला जाऊगा।

सवाल : आपके जो डिबेट है, वह लोगों पर काफी प्रभाव डालते है। हर बयान में अच्छे खासे किताबों का जिक्र मिलता है। रोजाना के मसरूफियत के बावजूद आप किताबें पढ़ने के लिए कितना वक्त निकाल पाते हो।

जवाब : मुझे लगता है आप मेरे पुराने वीडियो की बात कर रहे है। उसे तो तीन से साढ़े तीन साल हो गए हैं। अभी काफी दिनों से मैं डिबेट पर नहीं गया हूं। यह तो पुरानी बातें हो गई है। अब मैं बहुत आगे निकल आया हू। 

सवाल : यह सवाल इसलिए भी जरुरी हैं कि आपकी डिबेट और बयान काफी वायरल होते है। लोग काफी शौक से आपकी बात सुनते हैं। उसे फॉरवर्ड करते हैं।

जवाब : मैं कई प्रोग्रामों में जाता हूं। लोग प्यार से बुलाते हैं। यह तो लोगो का मेरे लिए प्यार और अपनापन हैं। जरुरत के हिसाब से मेरे स्पीच होते हैं। उसके लिए पढ़ता हू। रोजाना एक से डेढ़ घंटा तो मैं निकाल लेता हूं। किताबों के अलावा भी काफी पढता हूँ। नोट्स निकालता हूँ।

सवाल : आप इंटरनेट पर काफी व्हायरल हो, बेहद कम वक्त में सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर बने हो। एक मिलियन से ज्यादा फॉलोअर्स है, कम उम्र में इतनी शोहरत पाने पर आप कैसा महसूस करते हो।

जवाब : शुरुआती दौर में बड़ा मजा आता था। शोहरत किसे पसंद नहीं है। हम भी इंसान हैं और हर एक को शोहरत पसंद है। हर कोई शोहरत के मजे में डूब जाता है और अगर वह कम उम्र में मिल जाए तो इंसान के बहकने के बहुत चांसेस होते हैं। वह शोहरत को ही सब कुछ समझता है। उसके लिए शोहरत ही सब कुछ हो जाती है। मगर बहुत सही वक्त पर खुदा ने मुझे चोट दिया। खुदा ने हर मौके पर मुझे यह बताया कि मुझे जो शोहरत मिली है यह वक्ती है। यह कुछ दिनों की मेहमान है और इससे कोई फायदा होने वाला नहीं है। आखिर में तुम्हारा काम हो या खिदमत, यही काम आएगी।

फायदा तो आपके काम से होने वाला है। काम ही आखिर में आपके काम आएगा। जब खुदा से मुलाकात होगी तो उसके पास मेरी शोहरत काम नहीं आएंगी। मैंने दुनिया में क्या-क्या वेलफेअर के काम किए, क्या क्या खिदमत की, दूसरों को खुशी के लिए क्या क्या कुर्बानियां दी; यही तो काम में आएगी। यहीं वजह थी की मैं बहुत कम वक्त में बावजूद शोहरत के मैं संभल गया। और शोहरत में बह जाने के बजाए कंस्ट्रक्टिव काम में लग गया।

सवाल : गोदी मीडिया के बड़े बड़े सूरमाओं को पछाडा हैं, उनके शोरगुल में भी आप अपनी बात इत्मिनान से रखते हैं। झूठी और मनगढ़ंत प्रचार को आपने करारा जवाब दिया हैं। आज के इस दरबारी मीडिया के सच और झूठ में आप क्या फासला देखते हैं?

जवाब : मुझे लगता हैं, आज का मीडिया झूठा हैं। एक दौर था जब लोग सबसे ज्यादा मीडिया पर भरोसा करते थे। आज तो मीडिया के सच और झूठ में कोई फर्क ही नही हैं। हर तरफ झूठ ही झूठ नजर आता है। सारे लोग बिके हुए नजर आते हैं। नेशन के डाउनफॉल का एक खौफनाक नजारा है।

हम सब चुप्पी साधे देख रहे हैं की, हमारे राष्ट्र का पतन किस तरह से हो रहा है। जब डाउनफॉल की इंतिहा हो जाएगी तो लोग समझेंगे कि यह, यह, यह वही लोग है जिन्होंने मुल्क को बर्बादी के कगार पर लाया था।

आज ट्रस्ट का कोई फैक्टर नहीं है। कोई किसी पर भरोसा नहीं कर रहा है। आप किसी न्यूज़ पर भरोसा नहीं कर सकते, किसी न्यूज़ चैनल पर भरोसा नहीं कर सकते। देश का ट्रस्ट फैक्टर मीडिया से बढ़ता हैं और उसी ट्रस्ट फैक्टर को डाऊन करने में मीडिया कारगर साबित हो रहा हैं। लोगों में गैर यकिनी बढ़ती जा रही हैं। आम लोगों में अविश्वास फैल जाता है, तो वह मुल्क की बर्बादी की अलामत होती है।

सवाल : मौजुदा सियासत को लेकर भी आप बेबाक राय रखते हैं, ट्विटर पर आप खुलकर लिख-बोलते हैं। बीजेपी के इस हेटनेस के सियासत में मुसलमानों को नेशन बिल्डिंग में क्या रोल अदा करना चाहिए।

जवाब : भारत में जो इस्लाम फैला है वह सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों के किरदार के बुनियाद पर फैला है। वह खानकाहों के जरिए से फैला है। मध्यकाल में हमारे यहां कई सूफी बुजुर्ग आए। उन्होंने अपने किरदार का एक शानदार नमूना पेश किया, जिसकी वजह से लोग इस्लाम जानने लगे। उसे समझने लगे। ऊंच-नीच, भेदभाव, छुआछूत से परेशान लोग सूफियों के अच्छे किरदार की तरफ खिंचे चले आए। हमारे बुजुर्गों के यहां किरदार के वजह से लोग इस्लाम कबूल कर लेते थे। तब मुलसामानों को चाहिए के वे अपना किरदार साफ-सुथरा और निस्वार्थ रखे। अपने किरदार के जोर पर लोगों का दिल जीतने की कोशिश करें।

दुसरा, तो मुसलमान देने वाला बन जाए। आज इस मुल्क में मुसलमान का बड़ा तबका लेनेवाला बन गया है। अगर यह कहूं तो बुरा नहीं है कि एक सोची समझी साजिश के तहत हमें लेने वाला बनाया गया है। सिस्टमैटिक तरीके से हमें इस कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। साजिश के तहत हमें पीछे रखा जा रहा है। कई स्टडीज, रिपोर्ट यह बताती है।

हमारे लिए जरूरी यह है कि अब हम समझे की, हम देने वाले बन जाए। जिस दिन हम देने वाले बन जाएंगे उसे दिन दुनिया हमें इज्जत देंगी, मुल्क हमे इज्जत देगा। जो लोग हमसे नफरत कर रहे हैं, हम उन्हें देने वाले बन जाए। यानी के मुल्क से शानदार डॉक्टर मुसलमान हो जाए, शानदार साइंटिस्ट मुसलमान हो जाए, सबसे बेहतरीन स्कूल मुसलमान के हो जाए, सबसे बेहतरीन कॉलेजेस मुसलमान के हो जाए, सबसे बेहतरीन हॉस्पिटल मुसलमान के हो जाए। मुल्क को खड़ा करने में हमारे बुजुर्गों ने क्या कुछ नही किया। पर आज हम क्या कर रहे हैं? देश के प्रोडक्टिव्ही में हमारी हिस्सेदारी कितनी हैं? मतलब, हम देने वाले बन जाएंगे तो उनके पास नफरत करने का कोई ऑप्शन ही नहीं बचेगा। सबसे अहम बात, हमारे जबान से हर बात ऐसी निकले जो लोगों के दिलों को जीत ले।

सवाल : आज के सियासी दौर में बिगड़ते पॉलिटिकल कल्चर को लेकर काफी बहस होती हैं, आप इस सियासत को किस तरह देखते हों।

जवाब : आज के सियासत की बात अगर की जाए तो बहुत पेनफुल सिचुएशन है। आम लोग भी पॉलिटिकल पार्टीज के दावों और उनके बहकावे में खुद को भूल जा रहे हैं। रोजाना टीवी डिबेट में जो हो रहा हैं, हम देख रहे हैं। वहां विन्डो में जो लोग बैठे वह अलग-अलग सियासी पार्टी के होते हैं। आपने कभी देखा नही होगा की वह डिबेट के बाद भी वह लड़ाई कर रहे हैं, बहस कर रहे हैं। मैं खुद वहां गया हूं और मैंने अपनी आंखों से यह सब देखा है।

डिबेट के दौरान कोई भी पॉलिटिकल पार्टी के स्पोकपर्सन एक से डेढ़ घंटा डेढ़ घंटा लगातार लड़ाई करते हैं। उन्हे देख ऐसा लगता कि वह एक दूसरे के जानी दुश्मन है। मगर डिबेट खत्म होती है तो वह एक दूसरे के साथ चाय पीते नजर आते हैं। हंस-खेलते हैं। उन्हें पता है कि वह उनका दायरा क्या है। उन्हें पता हैं की, डिबेट कहां करना है। मगर जो लोग उनके फॉलोअर्स बने हैं, उन को यह बात अब तक पता नहीं चली हैं। वह पॉलिटिकल लीडर को देख कर समज में जहर फैला रहे हैं, गुमराही फैला रही हैं। इससे हुआ यह है की, आम लोग अपने आप को देशवासी समझने के बजाए पॉलिटिकल लीडर समझ बैठे हैं। हमारे देश में जितने पॉलिटिकल पार्टीज है, उतने खेमे बने हैं। एक बड़ा दर्दनाक माहौल है। जिसे सिर्फ और सिर्फ मोहब्बत से हटाया जा सकता है। नफरत वाले ताकतों को हराकर ही इसे ठीक किया जा सकता है।

सवाल :  इन दिनों आपकी क्या क्या मसरूफियत हैं।

जवाब : एक वक्त आया जब मुझे लगा की डिबेट वगैरह में जाकर मेरा बड़ा नाम हो रहा है, शोहरत मिल रही है। अगर वहां बना रहता तो अब तक कोई पॉलिटिकल पार्टी ज्वाइन भी कर दिया होता। उसे कंटिन्यू करता। उनसे कुछ टिकट भी मिल गए होते। शायद पोलिटिकल कैरियर में मैं बहुत आगे भी बढ़ गया होता। पर मुझे लगा के जमीनी सतह पर कुछ काम नहीं हुआ है। जमीनी सतह पर कुछ बदलाव नहीं ला पा रहा हूं। और मेरा जो दर्द था कि, मुझे गरीबी से लड़ना हैं, गरीबों के लिए लड़ना है। उसके लिए कुछ काम नहीं हो पा रहा था। तो मैंने अपना खुद का एक स्कूल शुरू किया। मेरा मकसद था कि अमीरों की तालीम गरीबों को दे सकूं। फिलहाल वह स्कूल चला रहा हूं।

मेरे पास 300 बच्चे पढते हैं। जिनको मैंने गोद लिया है। उन में से तकरीबन 20 फीसदी बच्चे अनाथ है और 60 फीसदी के मां-बाप नहीं है। और बचे हुए बेहद गरीब है। सारे बच्चे मुझे अब्बाजी बोलते हैं और मुझे एक फादर फिगर की तरह देखते हैं। इन बच्चों की मैं परवरिश कर रहा हूं। पूरा वक्त इन बच्चों के तरबीयत पर और उसके ऊपर उठाने पर दे रहा हूं। उनको पढ़ता हूं, लिखता हूं।

ऐसे 1500 बच्चे और है जो वेटिंग लिस्ट पर है, जो मेरे स्कूल को ज्वाइन करना चाहते हैं। पर मेरे स्कूल में जगह नहीं है, इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं हैं। इसलिए हमने 24 परगना जिले में 2 एकड़ जमीन ली है। उसपर स्कूल बिल्डिंग बना रहे हैं। रेसिडेन्शियल स्कूल कैंपस बना रहे हैं। फुटबॉल, वॉलीबॉल और बास्केटबॉल कोर्ट होगा। यहां हम अमीरों की तालीम गरीबों को दे सके, इन्शाल्लाह।

सवाल : शिक्षा के इस  समाजी खिदमत के लिए आप किससे मुतासीर हुए वह कौन सी वजह, कौन सा पल था, जो आपको इस सेक्टर में खिंच लाया।

जवाब : इसकी चार-पाँच वजह रही हैं। पर उसमें दो काफी अहम हैं, जो मेरे लिए वाकई में हौसला बन कर उभरी। एक तो जब मैं स्कूल में पढ़ता था तो वहां मेरी एक टीचर थी, लेनी लेसीवर! यह मेरी 11वीं 12वीं की टीचर थी, उन्होंने 25 साल तक एक अनाथ आश्रम में खिदमत अंजाम दी। जब रिटायरमेंट का वक्त आया तो उन्हे लगा की अब कुछ पैसे कमा लेने चाहिए, उसके बाद वह इंटरनेशनल स्कूल में आ गई। जिस साल वह स्कूल में आई उसके 6 महीने के बाद ही स्कूल छोड़कर वह वापस अपने अनाथ आश्रम चली गई। उनकी इस कमिटमेंट की वजह से दिल में फिक्र और दर्द पैदा हुआ।

दूसरी वजह हाकिम हाफिज अब्दुल मजीद (1908-1999) साहब हैं। यह हमदर्द मेडिकल प्रोडक्ट के कंपनी ओनर थे। उन्होंने अपने कमाई से करोड़ों रुपये लगाकर हमदर्द यूनिवर्सिटी बनाई हैं। उसी यूनिवर्सिटी में मैंने अपनी लॉ की पढ़ाई मुकम्मल की हैं।

हाकिम साहब एक अरबपति आदमी थे। उनसे मिलने वाले बताते हैं ती, उनके कपडे दो-तीन जगह पर फटे हुए होते थे। उपसर अलग अलग कपड़ों के पैबंद लगे होते थे। हमेशा इसी तरह के कपडों में दिखते। मैंने उनके नजदीकी लोगों सें उनके बारे में काफी सुना। कहते हैं, कोई नया इंसान उन्हे देखता तो लगता है कि वह भिखारी है, लगता कि इससे गरीब इंसान शायद ही कोई हो। उन्होंने अपनी सारी कमाई मुल्क के लिए, कौम के खिदमत के लिए, उनके एज्युकेशन के लिए लगाई। उन्होंने अपने हजारों करोड खर्च कर मुसलमानों का इतना बड़ा इंस्टिट्यूशन खड़ा किया। देश और समाजी काम के लिए अपनी सारी जिंदगी लगा दी। अरबपति होने के बावजूद भी तंगदस्त और फटेहाल रहे, मगर एक आलीशान तालीमी इदारा खड़ा किया। उनके जानने वाले के साथ मैं यूनिवर्सिटी मे रहा। उनसे हाकिम साहब के किरदार का पता चला। जिससे मैं काफी मुतासिर हुआ। उनके सादा मिजाजी मेरे लिए असरदार साबित हुई। लगा की अपने आप को मुल्क के खिदमत के लिए कुर्बान कर देना हैं ताकि दूसरों की जिंदगी बन सके।

सवाल : उम्मीद अकेडमी की सोच कब और कैसे वजूद में आई।

जवाब : 2018 में जेनेसिस ग्लोबल स्कूल से बारहवीं क्लास से पास आउट हुआ। उन दिनों डिबेट का हिसा हुआ करता था। इधर-उधर जाकर बयान देता था। उन दिनों मुझे एहसास हुआ की मुल्क में बहुत गरीबी हैं। गरीबों को देखकर लगा की, यह ऐसे क्यों है? क्योंकि उन्हें गरीबी में रखा जा रहा है इसलिए वह मुफलिस हैं। मैंने देखा की, पूरे मुल्क में बड़े पैमाने पर चैरिटी का एक बिजनेस चल रहा है। जो नॉन मुस्लिम है वह चैरिटी का कारोबार चला रहे हैं और जो मुसलमान है वह जकात का बिजनेस चला रहे हैं।  हमें हर साल चैरिटी करना है, हमें पुण्य कमाना है, सवाब कमाना है। चैरिटी से किसका क्या फायदा हो रहा है? इस से लोगों को फर्क नहीं पड़ता।

यानी कि एक गरीब के पास हम जाएंगे और उसे एक कंबल देकर आएंगे। अगले साल वह फिर आएगा और हम उसे फिर से कंबल देंगे। उसके बाद वह फिर आएगा और उसे फिर कुछ देंगे। ऐसे ही एक गरीब आता है और खाना मांगता है। हम उसे खाना देते हैं। वह फिर खाना मांगने आ जाता है। अगले दिन फिर आया हमने फिर उसे कुछ दे दिया। तो इसी तरह जिस गरीब को मैं पैसे दे रहा हूं, उसके बाप को मेरे वालिद ने पैसे दिए। उसके दादा को मेरे दादा ने, उसके परदादा को मेरे परदादा ने पैसे दिए। यह कई पीढ़ियों से चला आ रहा हैं।

हमारे देश में जो गरीब वह 20 से 30 फीसदी है। वह सारे बिलो पॉवर्टी लाइन में है। हमारे लिए यह शर्म की बात हैं की, आजादी के 75 साल बाद भी हम हालात बदल नहीं सके। यह लोग एक रात में गरीब नहीं बने हैं। यह लोग कई पीढ़ियों से गरीब रहे हैं। इनके दादा भी गरीब, उनके परदादा भी गरीब, उनके भी परदादा गरीब।। न जाने कितनी पीढ़ियों से, कितने जनरेशन आफ्टर जनरेशन यह लोग गरीबी में रहे हैं। मैंने यह समझा कि इन्हें गरीबों से निकलने का वाहिद तरीका है कि इन्हें अच्छी सी अच्छी तालीम दी जाए।

अगर मैं इनको खाना देता तो फिर अगले दिन फिर मांगने आ जाते हैं।। अंग्रेजी में एक कहावत हैं, “If you give a man a fish, you feed him for a day If you teach a man to fish, you feed him for a lifetimeयानी एक इंसान को अगर आप मछली खाने देते हैं तो कुछ दिन के लिए आपने उसकी भूख मिटाई। मगर आपने उसे मछली पकड़ने का हुनर सिखा दिया तो वह जिंदगी भर भूखा नहीं रहेगा। उसे खुद मछली पकड़ेगा और खुद खाएगा। यहां तालीम जो हैं वह मछली पकड़ना हैं। मैं उसे सिखा रहा हूं, इससे गरीबी का जो चक्रव्यूह है लोग उससे बार निकल जाएगे। इसलिए मैंने उम्मीद अकादमी की फाउंडेशन की हैं और गरीब बच्चों की मैं तालीम दे रहा हूं। जो लोग 7, 10, 15 न जाने कितने पीढ़ियों से गरिबी के साइकल में फंसे हैं, एक बार में वह गरीबी से बाहर निकल जाए। यही वजह रही थी की ‘उम्मीद अॅकेडमी’ वजूद में आई। यह संस्था 1 अप्रैल 2018 से शुरू हुई।

सवाल : आप बार-बार कहते हैं की उम्मीद अकादमी का जो सिलेबस है, वह सबसे अलग है वह अलग किस तरह से है।

जवाब : सबसे अलग तो नहीं हैं। मगर कह सकता हूं की जो अमीरों की तालिम है वह गरीबों को दे रहा हूं। यहीं हमारी खासियत है। देश के बेहतरीन से बेहतरीन स्कूल में जो एजुकेशन दी जा रही है, वह तालीम मैं ने दे रहा हू। आप अगर सरकारी स्कूलों में जाओगे तो देखेगे की, वहां बायोलॉजी के किताब पढ़ाई जा रही हैं। यह हार्ट का डायग्राम हैं, यह हार्ट हैं, वह उसकी आर्टिरीज है, यह इसमें चैंबर है, वगैरा-वगैरा... बच्चों ने सरकारी स्कूल में हार्ट का डायग्राम पढ़ा और पढ़ने के बाद 90 फीसदी मार्क भी ले आए। बाद में उसके हाथ में इंसान का दिल रख दिया और उससे पूछा कि यह क्या है बताओ? वह आपसे पूछेगा कि आप ही बताओ क्या है? तो आप हैरान नहीं होंगे कि जिस बच्चों ने हार्ट का डायग्राम भी पढ़ा है, 90 फीसदी नंबर भी लाया है, तो इंसान का दिल जब हाथ में दिया तो उसे पता ही नहीं कि यह इंसान का दिल है।

देश के बेहतरीन स्कूल में जो तालीम दी जा रही है, वहीं हम यहां दे रहे हैं। बच्चों को ऑडियो, विजुअल के जरिए बताया जा रहा है कि देखो यह है हार्ट! यह उसके पुर्जे है। बल्कि थ्री डी होलोग्राम बच्चों के टेबल के रख दिया जाता है। बच्चे निकलते हैं हार्ट के चेंबर को। हार्ट को महसूस करते हैं। धीरूभाई अंबानी स्कूल में इस तरह की फैसिलिटी है और ऐसी फैसिलिटी अच्छे से अच्छे स्कूलों में भी है। हमारी कोशिश यह है कि हम किस तरह से उस लेवल पर पहुंच जाए।

उसके पीछे की जो फिलासफी है वह यह है कि अमीर और गरीबों के कपड़े अलग हो सकते हैं, अमीर और गरीबों के घर अलग हो सकते हैं, अमीर और गरीबों के खाने अलग हो सकते हैं, अमीर और गरीबों के जिंदगी जीने के तरीके अलग हो सकते है, मगर अमीर और गरीबों के किताबे और तालीमी इदारे अलग नहीं हो सकते।

हमारे स्कूल में आप आएंगे और देखेंगे तो हमारे लेसन प्लानिंग का जो सिस्टम है जो सबसे मॉडर्न टेक्निक ऑफ एजुकेशन है; कि किस तरह बच्चों को पढ़ाया जाए। सारे मॉडर्न तकनीक को हम इस्तेमाल करते हैं। हर क्लास हमारा स्मार्ट क्लास रूम है। सारे बच्चे लैपटॉप पर, प्रोजेक्टर पर पढ़ाई करते हैं। सारी टीचर के पास लैपटॉप है। और इंशाल्लाह, हम अगले साल बच्चों के लिए रोबोटिक, एआई और कोडिंग यह तीन चीजें इंट्रोड्यूस करने वाले हैं। हमारे स्कूल के बच्चे बाकी बच्चों से पीछे ना रह जाए, जो बड़े स्कूलों मे जा रहे हैं। एक स्कूल का मॉडल हम तैयार कर रहे हैं और हम चाह रहे हैं कि हर स्कूल का ऐसा मॉडल हो। अमीर और गरीबों की स्कूल अलग ना हो, सभी बच्चों के लिए स्कूल एक जैसा हो।।

सवाल : क्या अकादमी में मजहबी तालीम को ज्यादा तवज्जो दी जाएगी।

जवाब : मजहबी तालीमसे मैं क्या समझूं? हम माइनॉरिटी एफीलिएशन लेना चाह रहे हैं। आईन के आर्टिकल 13 में इसकी छुट हैं। हम मुसलमान बच्चों पर काम करना चाहते हैं। हमारे स्कूल का पैटर्न सीबीएसई बोर्ड है। सीबीएसई करिकुलम के साथ मह मुसलमान बच्चों को मजहबी तालीम भी देते हैं। बाकी तालीम के साथ-साथ बच्चों को हम कुरान और इस्लामिया भी पढ़ाते हैं। यह दो सब्जेक्ट एडिशनल है। जितनी तवज्जो साइंस पर दी जाती है उतनी ही कुरान पर दी जाती है, जितनी तवज्जो हिस्ट्री पर दी जाती है उतनी इस्लामिक स्टडीज पर दी जाती है। जितनी तवज्जो मैथमेटिक्स पर दी जाती है उतनी ही हदिसों पर दी जाती है। हम सभी सब्जेक्ट पर इक्वल तवज्जो देते है।

इस्लामी मोरल एज्युकेशन पर हम ज्यादा फोकस कर रहे हैं। जो मजहब से आगे बढ़कर जीने का फलसफा सिखाता है। इस्लाम की नैतिक शिक्षा पर जोर देता है। एक अच्छा इंसान बनाना इस्लाम की मूल शिक्षा है, हम इसे छात्रों तक पहुंचाते हैं। इस्लाम सिखाता है आप अच्छे इंसान कैसे बनेंगे? हमारे स्कूल में 10 परसेंट बच्चे नॉन मुस्लिम है। इस्लामिक स्टडीज के पीरियड में उनका वैल्यू एजुकेशन पीरियड होता है। बताने के लिए हमारा स्कूल इस्लामी है, मगर हमारी प्रिंसिपल जो है वह एक नॉन मुस्लिम है। उनका नाम रिंकू भट्टाचार्य हैं। हमारे जो जनरल मैनेजर है, जो संस्था की रीढ़ की हड्डी हैं, वह इंडियन आर्मी से रिटायर है। उनका नाम अभिषेक मुखर्जी हैं।

सवाल : जैसा की आप कह रहे हैं, की अकेडमी छात्रों को जिस्मानी और जहेनी रूप से मजबूत बनाती हैं। ऐसे क्या क्या नये प्रोग्राम आप लेकर आए हैं।

जवाब : जिस्मानी और जेहनी तौर पर बेहतरीन बनाने के लिए हम दो-तीन चीज करते हैं। एक तो यह के बच्चों के अंदर अच्छी सोच पैदा करते हैं। हम मुसलसल बच्चों से बात करते हैं। हमारी जो पहली असेंबली होती है, उसका एजेंडा यही है कि बच्चों का कैरेक्टर बिल्डिंग करना हैं। हर दिन एक ही बात करते हैं, झूठ नहीं बोलना हैं, झूठ नहीं बोलना है... सच बोलना है.... सच बोलना है... ईमानदार होना है... ईमानदार होना है... किसी के बारे में भी बुरा नहीं सोचना है.... बुरा नहीं सोचना है... एक टॉपिक मुसलसल एक हफ्ते बाद चलता है। हम पहले तय करते हैं कि इस महीने का क्या टॉपिक होगा और पूरे महीने सिर्फ उसी पर बात होगी। यह बात स्पिरिचुअल रूप से बच्चों के दिमाग को मजबूत बनाती है।

बच्चे जब हमारे पास आते हैं, तो बहुत कमजोर होते हैं। 10 साल का बच्चा 6 या 7 साल का दिख रहा होता है। हम उसे हम तीन वक्त बेहतरीन से बेहतरीन खाना देते हैं। मैं खुद बच्चों के साथ बैठकर खाना खाता हूं। जो बच्चे खाते हैं वह मैं भी खाता हूं। हम बच्चों को दूध पिलाते हैं, अंडे खिलाते हैं। एक दो साल के अंदर वह बच्चे जिस उम्र के होते हैं वैसे दिखते हैं।

हमारे यहां आने वाले बच्चे बहुत ही डरे और सहमे के माहौल से होते है। उनके साथ सेक्सुअल एब्यूज हुआ होता हैं। जुल्म हुआ होता हैं। हम ऐसे बच्चों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग भी देते हैं। यह ट्रेनिंग देते देते हमें पता ही नहीं चला कि हमारे बच्चे इतने अच्छे फाइटर बन गए कि नेशनल लेवल और स्टेट लेवल पर भी गोल्ड मेडलिस्ट हुए हैं। इस वजह से बच्चे की पर्सनैलिटी डेवलपमेंट भी हुई है। उनके अंदर बहुत अच्छे से कॉन्फिडेंस आया है।

सीबीएसई करिकुलम के साथ दो और सब्जेक्ट एडिशनल है। पब्लिक स्पीकिंग और रिसर्च अँड प्रेजेंटेशन यह दोनों की क्लास में खुद लेता हूं। 

सवाल : आमतौर पर देखा जाता हैं की, मुसलमानों की लड़कियां माअशी और दिगर वजूहात की वजह से तालीम मे पिछड रही हैं, उम्मीद एकेडमी इसपर क्या खास तवज्जो देनेवाली हैं।

जवाब : बिल्कुल, हम मानते हैं की बच्चियों की तालीम बहुत जरूरी है। सिर्फ लड़कियां ही नहीं मुसलमानों के लड़के और लड़कियां दोनों भी तालीम में बहुत पीछे है। जब हमने शुरू किया था तब सिर्फ लड़कों को हम तालीम दे रहे थे। जो इलाकों में हम जाते थे, वहां बच्चियों भी हमारा हाथ पकड़ लेती थी और कहती थी कि हमें भी स्कूल जाना है। 2019 में हमने लड़कियों को लेना शुरू किया। अभी हमारे पास 60 फीसदी लड़के हैं और 40 फीसदी लड़कियां है। और हमने देखा है की लड़कियों से हम बहुत बेहतर रिजल्ट की उम्मीद कर सकते हैं। मगर उनसे मुकाबले में बच्चे ज्यादा पढ़ाई में डेडिकेटेड है, डिसिप्लिन में भी ज्यादा है।

हमारे सारे टीचर्स यही कहते हैं कि बच्चियों ही है जो हमारा नाम रोशन करेंगी। हमारी लड़कियों पढ़ाई में काफी अच्छी है। टीचर इसलिए भी यह कहते हैं कि मैं अक्सर कहता हूं की बच्चियों को लेना बंद कर दूंगा, क्योंकि लड़कियों को एडमिशन दिलवाने बड़ी जिम्मेदारी है। यह आसान काम नहीं है। आप उन्हें हॉस्टल में रखे, उनके देखरेख करें, उनके सिक्योरिटी का इंतजाम करें, यह बहुत मुश्किल काम हैं। जिस तरह का आज मुल्क में माहौल है, आपको नहीं पता कि कौन कहां बैठा है और किसी नजर से बच्चियों को देख रहा है। बड़ा डर का माहौल है इसलिए हम बच्चों को लेना बंद कर दिया है। जब तक मेरे पास एक मजबूत टीम नहीं हो जाती, तब तक मैं इसे होल्ड पर रख रहा हूं।

सवाल : आप मौलाना आज़ाद की सरजमीन से आते हैं, जो हमारे पहले वजीर ए तालीम थे, आज़ाद की दूरअंदेशी महज तालीम तक महदूद नहीं थी, उन्होंने तहजीब और सख़ाफत में भी बहुत कुछ किया था। क्या इस शौबे में भी उम्मीद कुछ नया करने की सोच रही हैं।

जवाब : शुरुआत में तो हम बहुत बेसिक काम कर रहे हैं। हम बच्चों को खाना खिला रहे। हम बच्चों को चलना सीखा रहे हैं। तहजीब और सखाफत तो बहुत बाद की स्टेज है। इसके साथ-साथ मौलाना आज़ाद की जो भी दिगर एक्टिविटी है वह बहुत बाद की चीज है। मगर शुरुआती जो चीज है वह यह के कोई बच्चा भूखा ना सोए। हर एक बच्चा अच्छा लीडर बन के निकले। जो कमजोर आए वह खा-पी कर अच्छा बन जाए। पढ़ाई में अच्छा हो जाए। वह ज्ञानी बन जाए। एक अच्छा शहरी बन कर निकले। जिंदगी में कुछ कर जाए बन जाए। हम लोग बहुत बेसिक स्टेज पर है। आप बहुत दूर की विजन की बात कर रहे हैं हम इस बारे में अभी तक तो सोचा नहीं है। मगर इंशा अल्लाह इस बारे में जरूर सोचेंगे।

सवाल : आपको जन आंदोलन के नेता और सेक्युलॅरिझम के हिमायती के रूप में भी भारत ने देखा हैं, आनेवाले आम चुनाव में वली रहमानी किस रूप मे दिखेगे...

जवाब : जैसा कि मैं पहले बताया है मैं पॉलिटिक्स से बहुत दूर हो चुका हूं। पॉलिटिक्स में सुकून नहीं था। मेरा सुकून छीन गया था। हर दूसरा इंसान कम उम्र का होने की वजह से मेरा इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा था। आज मुझे लगता है कि मैं जो काम कर रहा हूं वैसे 100 स्कूल बनाऊं, ऐसे 100 हॉस्पिटल बनाऊ और खामोशी के साथ काम करता रहूं। लोगों के पैसों से, आवाम के पैसों से, मैं वही कर रहा हूं जो सरकार करती है। सरकार टैक्स लेकर स्कूल, हॉस्पिटल बनती है और मैं लोगों से भीख मांग कर स्कूल बना रहा हूं। सरकार जबरदस्ती से टैक्स लेकर बनाती है और मैं हाथ फैला कर लोगों से पैसा लेता हूं और उन्हीं के पैसों से स्कूल बनाता हूं। उन्हीं के पैसों से हॉस्पिटल भी बनाएंगे और उन्हीं के पैसों से आम लोगों की मदद करेंगे इंशाल्लाह।

आज मैं अपना फ्यूचर पॉलिटिक्स में नहीं देख रहा हूं। मगर हां अगर मेरे लोग आएंगे और मुझे कहेंगे मेरी जरूरत है पॉलिटिक्स में, तो शायद फिर मैं सोचूं। फिलहाल तो मैं खुद अभी नहीं सोच रहा हूं। अगर मेरी कम्युनिटी को लगता है कि मैं इस लायक हूं तो शायद मैं फिर सोचूंगा। 

सवाल : बढ़ते हैं आखिरी सवाल पर.... पिछले दिनो की गई फंड रेस की अपील से आप दुनिया भर में पहुचे।। उसी तरह गरीब और मेहनतकश लोगों ने आपको इमदाद की और उनका प्यार भी मिला। 6 दिन में 6 करोड़ आपने जुटाई, इसके पीछे का वीजन हमारे पाठकों को बताए।

जवाब : विजन यह है कि मैं लोगों से भीख मांग कर थक चुका था। मैं अक्सर अमीरों के पास जाता था और कहता था कि पैसे दीजिए। लोग मुझे दो दो घंटे बाहर बैठाकर रखते थे, और हजार रुपये देते थे। मुझे बुरा नहीं लगता था कि कोई मुझे ऑफिस के बाहर घंटा बैठा कर रखे और हजार रुपए दे। मैं इसे कतई बुरा नहीं मानता।

मगर मैं मुझे काम बड़ा करना था और जल्द से जल्द करना था। मेरे पास वक्त कम है। हर इंसान के पास वक्त कम है। आज के दौर में कोई इंसान 65 साल भी जी ले तो बहुत बड़ी बात है। जिस तरह हार्ट अटैक आ रहे हैं बहुत सारी चीज हो रही है। मैं चाहता हूं कि मैं जिंदगी में बहुत कुछ कर कर जाऊं। अपने लोगों के लिए कुछ बना कर जाऊ। तब मुझे रिलाइज हुआ कि इसमें सबसे आसान तरीका मुझे यह लगा कि हिंदुस्तान के हर इंसान से पैसे मांगूंगा। हर मुसलमान से पैसे मांगूगा। इसलिए मैंने फंड रेजिंग की।

मेरा 5 साल का जो ट्रैक रिकॉर्ड है, उसे पर एक भरोसा बना था। लोगों ने अपना भरोसा दिखाया। 6 दिन में 6 करोड़ रुपए रेज हो गए। अब हमारे पास 7 करोड़ रुपए जमा हो चुके हैं। यह बहुत बड़ी बात है की, एक हफ्ते में किसी को 7 करोड रुपए दे दे। 100 रुपये से 7 करोड़ रुपए जमा हो जाए। लोगों ने तो भरोसा दिखाया है अब मेरी जिम्मेदारी है कि लोगों के भरोसे को और मजबूत करू और जल्द से जल्द स्कूल बिल्डिंग बनाकर लोगों को दिखाऊ। इस तरह के 100 स्कूल, 100 हॉस्पिटल बनाऊ।। इंशाल्लाह।

सवाल : आपने 25 सितंबर तो हमे बताया की, 5 दिनों ने 5 लाख से ज्यादा ट्रान्झॅक्शन हुए हैं। इसका मतलब आम लोग भी अच्छी तालीम हासिल करना चाहते हैं।

जवाब : गरीबो के ख्वाबों को पूरा होना मुझे देखना है। मैं अगर ना देखूं तो मेरी अगली जनरेशन जरूर देखेंगी। कोई भी बदलाव जो है एक जनरेशन में नहीं आती, पहले जनरेशन जो होती है वह पहल करती है वह कुर्बान हो जाती है और उसकी अगली जनरेशन को फल देती है। मैं अपनी जिंदगी में फल ना देखू तो कोई बात नहीं। मगर मेरी अगली पीढ़ी जरूर देखेंगे यह तो मेरी मनोकामना है।

हमारे अकाउंट पर 10, 50, 100 रुपये के पांच लाख वित्तीय लेनदेन किए गए हैं। इसलिए बैंक या इंटेलिजेंस के लोगों को लगा कि कोई बड़ा घपला हो रहा है। इसलिए हमारा बैंक ट्रांसफर कुछ दिन बंद रहा। हम तक फंड नहीं पहुंच रहे थे। इसलिए हमने एक्सिस बैंक में एक नया अकाउंट खोला है। पहले यह ICICI में था। जो पाठक हमारे नेक काम के लिए पैसे देना चाहते हैं, उनसे विनती है कि वे निचे दिए गए अकाउंट बँक टू बँक पैसे ट्रान्सफर करे....

Al Hadi Educational Trust

AC: 923020049222542

IFSC: UTIB0002759

Branch: Topsia

Axis Bank | Current Account |

**

साक्षात्कारकर्ता :

कलीम अज़ीम, पुणे

मेल : kalimazim2@gmail.com

(साक्षात्कारकर्ता स्वतंत्र लेखक हैं। मुसलमानों के सामाजिक, सांस्कृतिक विषय के वह अध्येता हैं। इस विषय पर हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू तथा मराठी भाषा में उन्होंने काफी लिखा हैं।)

वाचनीय

Name

अनुवाद,2,इतिहास,42,इस्लाम,37,किताब,15,जगभर,129,पत्रव्यवहार,4,राजनीति,271,व्यक्ती,4,संकलन,61,समाज,222,साहित्य,68,सिनेमा,22,हिंदी,53,
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नजरिया: अमीरों की तालीम गरीबों के देनेवाले वली रहमानी
अमीरों की तालीम गरीबों के देनेवाले वली रहमानी
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