इतिहास गवाह है, ईसवीं सन 636 में इस्लामिस्टों ने यरूशलेम पर विजय हासिल की तब खलिफा हजरत उमर यरूशलेम भेट देने गए। अपने इस दौरे में खलिफा उमर पादरी सोफ्रोसिनियस के साथ सिपल्चर चर्च गए। उस समय हजरत उमर के कानों पर अजान की आवाज सुनाई दी।
तब सोफ्रोसिनियस ने हजरत उमर से कहा, "आप इस जगह नमाज अदा कर सकते हो।" तब हजरत उमर ने बहुत खूबसूरत जवाब दिया, उन्होंने कहा, "आज मैं अगर यहां नमाज अदा करता हूं तो आने वाले समय में मुसलमान इस चर्च को मस्जिद में तब्दील कर देंगे जो मैं नहीं चाहता।"
आगे चलकर हजरत उमर ने एक कानून बनाया। जिसके तहत इस चर्च में और कांस्टंटाइन कब्र पर मुसलमानों को नमाज अदा करने से मनाई की गई। इस जगह पर मस्जिद के निर्माण को भी मना किया।
इतना ही नहीं बल्कि हजरत उमर ने ईसाई और यहूदियों को फिर से शहर में आबाद होने का आदेश जारी किया।
इसके 500 साल बाद याने ईसवीं 1187 जब सलाहुद्दीन अयूबी ने खूनखराबा न करणे हुए यरूशलेम को फतह किया। बगैर रक्तपात किए उन्होंने वहां से यहूदियों को जाने दिया।
अयूबी ने हजरत उमर के नक्शे कदम पर चलते हुए अमन और शांति स्थापित की। इतिहास गवाह है कि अयूबी ने एक बूंद भी खून नहीं बहाया।
हजरत उमर की तरह उन्होंने भी ईसाई और यहूदियों को शहर में सुरक्षित रहने देने का आदेश जारी किया।
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यह वहीं यहूदी है जब आए दिन सैकड़ों मासूम बच्चे औरतें बूढ़े बुजुर्गों की हत्याए कर रहे हैं। इस बर्बरता पर विश्व समुदाय चुप्पी साधे बैठा है।
बीते कई सालों से इजरायल द्वारा फलस्तीनी लोगों पर अमानवी और क्रूरतापूर्वक अत्याचार किए जा रहे हैं। फलस्तीनीओके घरों पर बमो को बरसा कर उनकी बस्तीया खाली की जा रही है और इस जगह सरकारी योजना के तहत यहूदियों को बसाया जा रहा है।
इस तरह से हजारों साल से रहते आए फिलिस्तीनयों को अपनी ही जमीन से दूर किया जा रहा है। यह अन्याय बीते सात दशकों से चला आ रहा है।
आज इसराइल ने पूरी तरह से फिलिस्तीन पर कब्जा जमाया है। फलस्तीनीओं के खिलाफ संपूर्ण इजराइल में अन्याय, अत्याचार, क्रूरता और नफरत के बाढ़ सी आ गई है।
जब से अमेरिका ने यरूशलेम को इजराइल की राजधानी घोषित किया है तब से वहां के हालात बेकाबू हो गए हैं। पर विश्व समुदाय की नजर उस पर नहीं जाती।
जानबूझकर इस घटना को नजरअंदाज किया जा रहा है। यह खबर एक अकेली नहीं है, इससे पहले ऐसी हजारों खबरें आ चुकी है। इसका मतलब यह है कि इसराइल ने इस तरह से फलस्तीनीओं को हटाने का क्रूरता पूर्वक तरीका अपनाया है।
पीड़ित और शोषित फिलिस्तिनीयों की आवाज कोई क्यों नहीं सुन रहा है। दुनिया की अरब लॉबी डॉलरों के पैरों तले रोंदी जा रही है। दबकर चुप्पी साधे बैठी है जो लोग इस्लाम और ईमान की दावे करते हैं वह लोग चुप क्यों बैठे हैं....?
यह कहना गलत नहीं होगा कि इस खूनखराबा, बर्बरता, अमानवीयता और हिंसा के दौर में फलस्तीनी किसी सलाहुद्दीन अयूबी का इंतजार कर रहे हैं।

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- कलीम अजीम
- कहने को बहुत हैं, इसलिए बेजुबान नही रह रह सकता. लिखता हूँ क्योंकि वह मेरे अस्तित्व का सवाल बना हैं. अपनी बात मैं खुद नही रखुंगा तो कौन रखेगा? मायग्रेशन और युवाओ के सवाल मुझे अंदर से कचोटते हैं, इसलिए उन्हें बेजुबान होने से रोकता हूँ. मुस्लिमों कि समस्या मेरे मुझे अपना आईना लगती हैं, जिसे मैं रोज टुकडे बनते देखता हूँ. Contact : kalimazim2@gmail.com