भारत की सभ्यता और संस्कृति दुनिया में सबसे
प्राचीनतम मानी जाती हैं. कहा जाता हैं कि जब मिस्र, यूनान और रोम की सभ्यताएं मिट रही थी
तब भारत की सभ्यता और संस्कृति फल-फूल रही थी. वैस्विक पटल पर भारत अपने आप में एक
अनुठा देश माना जाता हैं. जहाँ भाषा, खान-पान,
वेषभूषा, प्रादेशिकता, संस्कृति, स्थापत्य
और सभ्यता हर एक में विविधता पायी जाती हैं.
प्राचीन भारत का इतिहास और संस्कृति
अपनेआप में गतिशील है. जितने भी विदेशी आक्रमणधारी आये. उन्होने इस देश को लूटा पर
आज भी यह देश अपनी सभ्यता पर गौरवांकित हैं. भारतवासी कहने में हमे गर्व होता.
हैं. भारत की प्राचीन मानव सभ्यता की शुरूआत सिंधु घाटी से शुरू होती हैं. मध्यकाल
में गंगा और जमुना नदी के तट पर बसे और उसपार के लोगो को गंगापार और जमुना पार के
लोग कहा जाता था. यही से दो सभ्यता, दो संस्कृति और दो धर्मो और समुदायो का मिलाप
हुआ. वह समूह था हिंदू और मुस्लमान. इसी को हम गंगा-जमुनी सभ्यता तता संस्कृति
कहते हैं.
मध्यकाल से या उससे भी पूर्व में देखे
तो भारत में एक मिलीजुली संस्कृति और सभ्यता को लेकर यहाँ के लोग चले हैं. इस
विसारत को आज तक सहेजकर रखने का काम किया गया हैं. विश्व पटल पर भारत एकमात्र ऐसा
देश हैं जहाँ विविध जाति-समुदाय के लोग आपस में मिल-जुलकर रहते हैं. इसी एक खुबी
के वजह सें वैस्विक स्तर पर भारत अपनी अलग पहचान बनाता हैं. पर विगत कुछ सालो से
इस सोहार्द की परंपरा को जैसे दिमख लग गई हैं. भाजपशासित सत्ताकाल में धर्म के नाम
पर बहुसंख्यक समुदाय को अल्पसंख्य समुदाय के प्रति भडकाया जा रहा हैं. अल्पसंख्याक
समुदाय के नागरी अधिकार को नकारा जा रहा हं. उनके प्रार्थनास्थलो को निशाना बनाया
जा रहा हैं. जिससे वैशिव स्तर पर भारत की छवी को बेहद नुकसान हुआ हैं.
इस को पुनर्स्थापित करने की जरुरत को
निरंतर चर्चा में लिया जाता हैं. कुछ समूह उसके लिए कार्य भी करते हैं. कई लोगो ने
इस कर्य को अपना अंतिम लक्ष्य माना हैं. इसी प्रवाह को हम भी आगे ले जाना चाहते
हैं. जिसके लिए हमने ‘सामाजिक
सौहार्द के मानदंड’ नामक
एक मराठी पुस्तक का निर्माण किया हैं. इस पुस्तक में कला, साहित्य, संस्कृति, सुफीझम, भारतीयत्व,. मुस्लिमत्व
और राष्ट्रीयत्व के साथ प्राचीन सभ्यता को रेखांकित किया हैं.
सामाजिक सौहार्द के इस विधा को प्रो.
फकरुद्दीन बेन्नूर ने सरेउम्र संहेजकर रका तता उसके लिए कार्य करते रहैं. समाज के
उनके योगदान के लिए हम उपरोक्त ग्रंथ प्रो. फकरुद्दीन बेन्नूर समर्पित कर रहैं.
उनकी स्मृतिशेष में हम यह ग्रंथ का निर्माण किया हैं.
इस पुस्तक का विमोचन कार्यक्रम इसी
सप्ताहांत में पुणे में होने जा रहा हैं. जिसके प्रमुख अतिथी मोहतरमा आरफा खानम
शेरवानी (सिनियर एडिटर दि वायर) हैं. तथा भारत भूतपूर्व गृहंमत्री श्री.
सुशीलकुमार शिंदे के हाथो इस ग्रंथ क विमोचन होने जा रहा हैं. तथा हिंदी क
प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. सूर्यनारायण रणसुभे उपस्थित रहने वाले हैं.
हम आपको आग्रहपूर्वक इस पुस्तक विमोचन
कार्यक्रम का न्यौता देते हैं. आप इस कार्यक्रम में शिरकत कर उसकी शोभा बढाए..
भवदीय
कलीम अजीम
(संपादक-सामाजिक समतेचा प्रवाह)
हस्ते : सुशीलकुमार शिंदे (पूर्व
गृहमंत्री, भारत सरकार)
प्रमुख अतिथी : आरफा खानम शेरवानी
(सिनियर एडिटर दि वायर)
उपस्थिती : डॉ. सूर्यनारायण रणसुभे
(हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार और समीक्षक)
तारीख : २० जनवरी २०१९
समय : सुबह ११ बजे
स्थल : पत्रकार भवन, लालबहादूर शास्त्री मार्ग, नवी पेठ पुणे,
निमंत्रक
गाजियोद्दीन रिसर्च सेंटर, सोलापूर

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अपनी बात

- कलीम अजीम
- कहने को बहुत हैं, इसलिए बेजुबान नही रह रह सकता. लिखता हूँ क्योंकि वह मेरे अस्तित्व का सवाल बना हैं. अपनी बात मैं खुद नही रखुंगा तो कौन रखेगा? मायग्रेशन और युवाओ के सवाल मुझे अंदर से कचोटते हैं, इसलिए उन्हें बेजुबान होने से रोकता हूँ. मुस्लिमों कि समस्या मेरे मुझे अपना आईना लगती हैं, जिसे मैं रोज टुकडे बनते देखता हूँ. Contact : kalimazim2@gmail.com