शाहिद आझमी, राणा अय्यूब, गौरी लंकेश और अब प्रकाश राज, सभी की संघर्षकथा एक बडा सा सर्कल पुरा कर रही हैं।
क्या आपको शाहिद आझमी याद हैं? नाम तो सुना हैं कभी? वकील थे वह? मुंबई में उनपर गोलीयाँ दागी गई। क्यो मारा उन्हे? कुछ याद है? शायद नही? छोडीए जुम्मन मियाँ आपसे नही होंगा, क्यो फालतू की मगजमारी करते हो! ऐसे ही आप ठीक हैं। सुबह बेड टी पर और दोपहर में ब्रेक टी पर देश के समस्या पर चाय की चुस्कियाँ लो आप!
शाहिद बेवकूफ था। घर परिवार छोड उसने अजनबीयों के दुखो को अपनाया था। उनके लिए लडने के लिए भूख प्यास छोड दी थी उसने। औरंगाबाद का थो कोई तो, उसके लिए शाहिद वकिली कर रहा था। सरेउम्र हमेशा चिखता-चिल्लाता रहा; मुस्लिम युवा आतंकवादी, नही वे चरमपंथी नही हैं, गलत तरह से उन्हे फंसाजा जा रहा हैं।
26/11 और दुसरे कई हमलो के साजीश में मुंबई के कई मुस्लिम युवाओंको फंसाया गया हैं, इस दावे के साथ लडता रहा। उन्हे बेगुनाह साबीत करने के लिए जमा रहा। फोकट में बिना एक चवन्नी लिए आखरी सांस तक लडता रहा। उन बेगुनाहो पर थोंपे गये टाडा को गलत साबीत करने के लिए झगडता रहा सबसे। इसी तरह के कई केस में वह डुबा रहा, बहुतो को उसने बेगुनाह साबीत कर खुली हवा में साँस लेने दी। परेशान हाल लोग इस तरह के मामले लिए उसके पास आते रहे। शाहिद उन्हे वैसे बुरे वक्त में ढांढस देता रहा।
लगातार आ रहे धमकीयो से तंग आकर बीवी ने शाहिद से अलग होना चाहा, फिर भी यह बंदा अपने जिद पड अडा रहा। अदालतो में चिल्लाकर कहता रहा मैं बेगुनाहो को न्याय दिलाकर रहूँगा। क्या हुआ इस जिद का? कौम के लिए उसको अपनी जान कुर्बान करनी पडी। 2009 में कुर्ला ऑफिस में उसपर गोलीयाँ दागी गई।
अब कुछ लोग उसे 'शहिद' वगैरा कहते हैं। उसे मारनेवाले पुजारी गैंग के गुंडे थें। आतंकीयों के केस लडता था? कहकर गुंडे खुदको मसिहा प्रचारित कर रहे हैं। मामुली गुंडो ने अॅडव्होकेट शाहिद को मौत के घाट उतारा। पर क्या वाकई मे सच हैं? शायद नही।
हत्यारे गुंंडो को देशभक्ती के सर्टिफिकेट बाँटे जा रहे हैं। वजह सिर्फ यही कि चरमपंथी उन्होने आतंकीयों के हमदर्द को खत्म किया। शाहिद को मारा भी किस तरह, नशे में! गुंडो का मन शायद नही माना होंगा इस वजह से तो उनको नशा करना पडा।
खैर छोडीए, कोई भी हत्या नशे के बगैर नही होती। कुछ ना कुछ तो नशा लगता ही हैं, इस तरह के काम को अंजाम देने के लिए। आज तो अज्ञानी देशभक्ती का नशा भी काफी हैं। कुछ साल पहले शाहिद पर एक फिल्म बनी थी। आप मत देखा करे इस तरह की फिल्मे, हो सकता हैं आपका दिमाग खराब होंगा। फिल्म तो बिझनेस के लिए थी। उसमे अॅडव्होकेट शाहिद आझमी कहाँ था। सब कुछ वेल डन, सारा मामला गूड गूड.. हम सब के तरह ही ''व्हाईट कॉलर.'' उसका जनाजा टिव्हीपर किसीने नही दिखाया.. उसे शहीद कहने वाली माँ नही बताई किसीने स्क्रीन पर... खालिद आझमी, शाहिद का भाई नही दिखाा टीव्ही पर. वो भी बेेेेगुनाह कैदीयों का वकील हैं। शाहिद के काम को आगे वे जाने वाला उसका भाई भी बेवकूफ. हम क्यों याद करे इनको? हम अपने बच्चो को क्यों बताई इन भाईयोंके बहादूरी के किस्से। आप सुनाते रहो उन्हे अपने गुलामी की कहानियाँ..
#राणा_अय्यूब नामक उसकी एक दोस्त नें #गुजरात_फाईल्स नामक किताब लिखी हैं। बुक की शुरुवात ही शाहिद आझमी के हत्या सें। वह कहती हैं, शाहिद का बचा काम वह आगे बढा रही हैं। वैसे क्या जरुरत हैं उसे? पच्चीस के उम्र में यह काम करने की? किसने कहां उससे यह काम करने को? सपने देखने के उम्र में मुख्यमंत्री का स्टिंग करने पहुँच गई वह। उसे लगा की 2002 की गुजरात दंगल मानवता के खिलाफ थी। छोरी तुझे क्या करना हैं। दुनिया का मजा लेते हुये शांत बैठी रहो ना। आनंद से बेड टी और ब्रेक टी लेती रहो। क्यों याद कर रही हो शाहिद आझमी को.? उसकी कौम उसे भूला चुकी हैं, फिर तुझे क्या पडी हैं उसकी? जाने दे.. छोड दे उसे।
तेेेेरी किताब का कन्नड अनुवाद कर बेचारी गौरी लंकेश मारी गई। अब कोई प्रकाश राज उसके लिए लड रहा हैं। अपना फिल्मी करिअर दाँव पर लगाये, दटा हैं वह। उसे किसने कहाँ यह सब करने? क्यो वह अपने जान का दूश्मन बना बैठा हैं?
राणा तू अब शांत बैठी रह। फिर से कोई किताब मत लिख। नही तो और कोई गौरी लंकेश बनने के लिए तैय्यार हो जायेंगी और मुफ्त में अपनी जान गवाँ बैठेंगी। तुम्हे भी खतरा हो सकता हैं। तू क्यो अंधी कौम के लिए अपनी जान दाँव पर लगा रही हैं। तूम बिमार रहती हो। पोलिओ से बाहर निकलकर तूम आई हो। डिप्रेेेेशन की गोलिया खाकर तूम जी रही हों, सोंचो कुछ तो अपने बारे में। अंधी कौम से तुम्हे क्या हैं हमदर्दी?
सरफराज अहमद केे फेसबुक वॉल से
मराठी से हिंदी Kalim Ajeem
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अपनी बात
- कलीम अजीम
- कहने को बहुत हैं, इसलिए बेजुबान नही रह रह सकता. लिखता हूँ क्योंकि वह मेरे अस्तित्व का सवाल बना हैं. अपनी बात मैं खुद नही रखुंगा तो कौन रखेगा? मायग्रेशन और युवाओ के सवाल मुझे अंदर से कचोटते हैं, इसलिए उन्हें बेजुबान होने से रोकता हूँ. मुस्लिमों कि समस्या मेरे मुझे अपना आईना लगती हैं, जिसे मैं रोज टुकडे बनते देखता हूँ. Contact : kalimazim2@gmail.com