
भीमा-कोरेगांव के हिंसा मामला थमता
नजर नही आ रहा हैं। शुक्रवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस
हिंसा के पिछे संघ और भाजप का हाथ बताया हैं। ‘जिजाऊ जन्मोत्सव’ के उपलक्ष्य मे केजरीवाल कल महाराष्ट्र के सिंदखेड राजा सुबे में
थे। जहाँ उन्होने भीमा
कोरेगाव हिंसा को लेकर सरकार पर निशाना साधा। घटना के दो हफ्ते बाद भी हिंसा के आरोपीयोंको
हिरासत में लेने की मांग प्रमुखता से बनी हैं। गौरतलब हैं कि 4 जनवरी को (गुरुवार)
को भारिप बहुजन महासंघ के अध्यक्ष प्रकाश अम्बेडकर ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री
देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात कर दलित समुहो के युवको का कोम्बिंग ऑपरेशन रोकने की
मांग फिर एक बार की। इसी बीच मुंबई में हो रहे छात्र भारती के कार्यक्रम को
सुरक्षा कारणो का हवाला देकर सरकार ने रद्द कर दिया था। इस समारोह में विधायक बने गुजरात के दलित नेता जिग्नेश मेवानी तथा दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र उमर खालिद शिरकत करने वाले थे। पुलिसने कार्यक्रम के आयोजक विधायक कपिल पाटील को भी हिरासत में लिया था। जिसके बाद राज्य में फिर एक बार सरकार के
प्रति आक्रोष देखने को मिला था।
दक्षिणपंथी गुटोंने जिग्नेश मेवानी और उमर खालिद पर महाराष्ट्र में जातीय तनाव भड़काने का आरोप लगाया है। इन दोनो पर पुणे पुलिस में केस भी दर्ज करवाया हैं। उसी तरह 31 डिसंबर के अल्गार परिषद के आयोजको पर भा मुकदमा द्रज किया गया
है। जिससे सोशल मीडिया पर राज्य के बीजेपी
सरकार के प्रति फिर एक बार गुस्सा उबल रहा हैं। भीमा कोरेगांव हिंसा का मामला राज्यसभा मे भी
गुंजा, महाराष्ट्र के कई सांसदो ने भीमा कोरेगाव के हिंसा की निंदा की हैं। तो सामाजिक
न्याय राज्यमंत्री रामदास आठवले ने बीजेपी सरकार को यह कहते हुये क्लीन चीट दी कि ‘हर सरकार में ऐसे मामले होते रहे
हैं, सिर्फ भारतीय जनता पार्टी को जिम्मेदार ठहराना गलत हैं’
एक तरफ राज्य दलित
संघठन भीमा कोरेगांव हिंसा की जवाबदेही तय करने के लिए सरकार पर दबाव बना रहे हैं,
तो दुसरी और रिपब्लिकन पार्टी के नेता आठवले बीजेपी को दागमुक्त किया। जिससे आम
लोंगो के मन में यह सवाल बना रहा की आखीर दंगा किसने किया? और दोषी को कौन छिपा रहे हैं?
क्या हैं भिमा कोरेगांव का इतिहास?
एक जनवरी 1818 को इस्ट इंडिया कंपनी और
पेशवा के बीच पुणे जिले के ‘भीमा कोरेगाव’ मे लड़ाई हुई थी। इस लडाई में मुख्य रुप अंग्रेज और पेशवाओंके नेतृत्व
वाले मराठा आमने-सामने थे। उस समय अंग्रेजो के फौज में बडी संख्या में ‘महार’ सैनिक थे। लड़ाई में पेशवाओं की हार हुई और जीत का सेहरा
ईस्ट इंडिया कंपनी की ‘महार रेजिमेंट’ के सिर बंधा। महार समुदाय उस वक्त महाराष्ट्र में अछूत समझा
जाता था। जिस समुदाय को पेशवा अछुत
मानते थे, उन्होने ही चित्पावन ब्राह्मण समझे जाने वाले पेशवा बाजीराव
द्वितीय को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। करीबन आठ सौ ‘महार सैनिको’ने महाराष्ट्र से पेशवा
साम्राज्य का अंत कर दिया था। याद रहे की इस घटना के चालीस साल बाद ईस्ट इंडिया कंपनी को हिंदूस्तान से
खदेडने के लिए 1857 में जो गदर मचाथा उस क्रांतीकारी आंदोलन मे महार
समुदाय अंग्रेजो के खिलाफ खडे थे।
ब्राह्मण पेशवाओ को हराने वाला यह वही समाज था, जिन्हे
पेशवा राजाओ ने गले में हांडी और पैर पर झाडू बांधकर जिने के लिए मजबूर किया था।
पैर के झाडू से दलितो के कथित ‘अपवित्र’ पैरों के निशान मिटते चले जाएँ. इस दलित समुदाय की अगर परछाई भी अगर पड
जाती तो ब्राह्मण उन्हे जानवरो की पिटते थे। हजारो साल सामाजिक बहिष्कार झेलने के
बाद जिन समुदाय ने उन्हे ‘अछुत’ की
जिंदगी जिने पर मुहाल कर दिया था, उन्ही महार याने दलित
समुदाय ने ब्राह्मणो को राज्य का सफाया कर दिया था। ब्रिटिशो के अनुमानों के
मुताबिक इस लड़ाई में 500-600 पेशवा सैनिक मारे गए थे। इतिहासकारो की माने तो दलित
इसे चित्पावन ब्राह्मण व्यवस्था से प्रतिशोध लेने का अवसर बताते हैं। दलितो के साथ
राज्य के कई पिछडे समुदाय के लोंग इस लडाई में शामील थे, जिन्हे
ब्राह्मणो ने चातुर्वर्ण्य व्यवस्था में कैद कर दिया था। उन पिछडे समाज के लिए भी
पेशवाओ को हराना फक्र की बात थी। इसी वजह से दलित समुदाय इसे अस्मिता का लडाई
मानते हैं।
साल 1927 में बाबासाहब अम्बेडकर ने इस वॉर मेमोरियल का दौरा किया, इसके बाद महार समुदाय ने पेशवाओं पर मिली जीत की याद में इस
दिन को मनाना शुरू किया। इसके बाद हर साल एक जनवरी को ‘भीमा कोरेगाव’ में
लडाई के शहिदो का नमन कर पेशवा के हार को याद किया जाता हैं। हर साल राज्यभर से
दलित समुदाय के लोंग यहाँ जुटते हैं, राज्य सरकार का भी एक अभिवादन कार्यक्रम हर
साल यहाँ होता हैं। इस साल इस जंग को 200 साल पुरे हुये हैं, इसके उपलक्ष्य में
पुणे स्थित ‘शनिवारवाडा’ (पेशवा राजाओ
का मुख्यालय) में एक संम्मेलन ‘एल्गार परिषद’ का आयोजन किया था, इस समारोह में कई संघठन शामील थे। जैसे, भारतीय बहुजन
महासंघ, ऑल इंडिया मुस्लीम पर्सनल लॉ बोर्ड, भारत मुक्ती मोर्चा इत्यादि आठ-दस
संघठनो ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था। इसके बाद यहाँ जमा हुये लोग एक रॅली के
माध्यम से भीमा कोरेगांव जानेवाली थे। पर इस एल्गार परिषद का पेशवाओ के वंशजो ने विरोध
किया।
अखिल भारतीय ब्राह्मण महासंघ ने पुणे पुलिस से अनुरोध किया कि दलितों को ‘शनिवार वाडा’में प्रदर्शन करने
की इजाजत नही देनी
चाहीए। एक पत्रक पुणे की मेयर मुक्ता तिलक को भी दिया गया। ऐसा भी कहा जाता हैं कि
ब्राह्मणो महासंघ ने मेयर पर दबाव बनाया की दलितो को संम्मेलन की अनुमती नही
दे, पुणे महानगरपालिका में बीजेपी की सत्ता हैं, तो बात मुंबई तक याने सीएम तक भी
पहुँची, पर दलित संघठन संम्मेलन पर अडे रहे। जैसे-तैसे संम्मेलन की परमीशन मील गई।
31 दिसंबर रविवार को आयोजित इस संम्मेलन में जिग्नेश मेवानी, उमर खालिद, बाबासाहब
अम्बेडकर के पौत्र प्रकाश अम्बेडकर, सोनी सोरी, रोहित वेमुला की माँ राधिका
वेमुला, उल्का महाजन आदी गणमान्य लोंगोने भीमा कोरेगाव के 200 साल पुरे होने के
उपल्क्ष्य में अपनी बात रखी।
भीमा कोरेगांव में क्या हुआ
अंग्रेज विरुद्ध पेशवा युद्ध के दो सौ साल मनाने के लिए देशभर से लाखो लोग
भीमा कोरेगाव में इकठ्ठा होनेवाले थे। यह लोग अंग्रेजो का नही बल्की भेदभाव पर
आधारित ब्राह्मणवादी व्यवस्था के खिलाफ विजय का जश्न मना रहे थे। एक जनवरी को
महाराष्ट्र से बडी संख्या में दलित समुदाय के लोंग भीमा कोरेगांव जमा हुये। खबरो
की माने तो करीबन 5 लाख लोग सोमवार को भीमा कोरेगाव के अभिवादन सभा में शामील थे।
भीमा नदी के किनारे स्थित मेमोरियल के पास दोपहर 10 बजे लोग अपने नायकों को
श्रद्धांजलि दे रहे थे। घटना के तीन दिन बाद ‘जातीमुक्ती आंदोलन’ संघठन
ने ‘फॅक्ट फाईगडिंग’ की, जिसमे डॉ. भारत
पाटणकर, कॉम्रेड भीमराव बनसोड, प्रतिमा परदेशी और किशोर ढमाले आदी लोग इस कमिटी
में थे। यह रिपोर्ट हिंदूवादी संघठनो पर हिंसा करानी की साजीश मानती हैं। फॅक्ट
फाईडिंग रिपोर्ट बताती हैं कि, भीमा कोरगाव के कुछ दूरी पर वढू बुदरक नामक गांव
हैं, जहाँ 27 डिसेंबर को गोविंद गायकवाड नामक एक महान व्यक्ती की मजार हैं, उसे
कुछ शरारती तत्वो ने तोड दिया, इसपर शिकायत दर्ज की जा चूकी थी। इसी घटना को आधार
बनाकर भीमा कोरेगांव मे दहशत फैलाई गई।
सुबह करीब 10 बजे कई लोग भगवे झंडों के साथ इकट्ठा हो गये। वे लोग भीमा
कोरेगांव की तरफ चले आ रहे थे। करीब 3 से 4 किलोमीटर की दूरी पर बच्चे, महिला, तथा
बुजुर्ग लोगो का जमावडा भीमा कोरेगाव की ओर आ रहा था। तो कुछ लोग सणसवाड़ी,
कोरेगांव और चाकण-शिकरापूर रोड की तरफ जा रहे थे। इन लोगो पर झंडे लिये इकठ्ठा हुये लोगो ने
लाठीया बरसानी शुरू की। कुळ लोग पत्थरों से भीमा कोरेगाव आने-जाने वाले लोंगो के
निशाना बना रहे थे। कुल लोग सड़क के दोनों किनारों पर पार्क की गई कारों और
मोटरसाईकलो पर पत्थरो से नुकसान पहुचा रहे थे। देखते-देखते लोगो में डर का माहौल आ
गया और लोग बेतहाशा भागने लगे। मिट्टी के तेल, पेट्रोल से
रास्तो पर खडी गाडीयाँ फुँक दी गई थी। चार
दिन बाद फॅक्ट फाईंडिंग टीम वहाँ पहुँची थी, जिन्होने उस दिन कुछ गाडीयो को जलते
देखा, जिससे अंदाजा लगाया जा सकता हैं की ज्वलनशील साम्रगी कितनी शक्तीशाली थी।
घटना के समय घटनास्थल पर मौजूद मेरे एक मित्र केशव वाघमारे बताते है कि ‘कोरेगांव से कुछ दूर पर सणसवाडी नामक
गाँव में दलित समुदाय के कुठ लोंगो को पकडकर पिटा जा रहा था, घरो पर पत्थरबाजी की
जा रही थी’ पहले तो किसी को भी पता नही चला की पिटने वाले
कौन लोग हैं। दलित संघठनो के कार्यकर्ता का कहना हैं की यह लोग शिवप्रतिष्ठान और
हिंदू एकता संघठन के कार्यकर्ता थे। इसके बाद पुणे के पासवाले गाँवो से हिंसक झडपो
की खबरे आने लगी। इन झड़पों की शुरुआत
कोरेगांव भीमा, पाबल और शिकरापुर से हुई, यहाँ से जो लोग भीमा
कोरंगाव आ-जा रहे थेकुछ अज्ञात लोग उन्हे पकडकर मार रहे थे। इस बवाल में कथित रूप से राहुल नामक एक व्यक्ति की मौत हो गई। बताया जाता हैं कि अचानक
हुये हमलो से दलित समुदाय के लोग बेहद डर गये, जिससे उनमें से कुछ युवको ने भी
पथराव किया।
कई दलित संघठन सरकार पर दंगो के साजीश रचने का आरोप लगाते हैं। शनिवार वाडा
में समारोह नही करने की धमकी देनेवाले संघठन पर पुलिस ने कोई कारवाई नही की, जिसके
चलते भीमा कोरेगांव में भीड हिंसक हो उठी। कोरेगांव से कुछ दूरी पर वढू बुदरक नामक
गाव आहे, भीमा कोरेगांव के निकट ही अहमदनगर रोड पर एक जगह छत्रपति शिवाजी महाराज के वरीष्ठ पुत्र एवं तत्कालीन मराठा शासक संभाजीराजे भोसले की समाधि है। उसके समीप कुछ दूरी पर गोविंद गायकवाड़ (महाराज) की समाधि है। यह वही गोंविंद गायकवाड हैं, जिसने संभाजी राजे
भोसले की अंत्यविधी की थी। इतिहासकार कहते हैं, मुघल शासक औरंगजेब के आदेश के बाद छत्रपति
संभाजी महाराज की नृशंस हत्या की गई थी। संभाजी महाराज का तुकडो में बंटे शरीर को
किसी भी मराठा शख्स ने हाथ नही लगाया तब गोंविंद गायकवाड नामक एक दलित व्यक्ती ने आगे
आकर संभाजी महाराज के शरीर के हिस्सो को जोडकर अंत्यविधी करवाई थी। इस इतिहास को
कुठ संघठन नही मानते, एक महार व्यक्ती का मराठा शासक संभाजीराजे भोसले का अंत्यविधी करना कुछ लोगो को आज हजम नही हो रहा हैं। इसलिए
संभाजी महाराज का अंत्यविधी करने वाला शख्स महान नही बल्की मराठा था इस तरह का
झूठा प्रचार बीते कई दिनो से जारी हैं। गोविंद गायकवाड दलितो में आयकॉन माने जाते
हैं। इसी वजह से 27 दिसंबर को इस समाधी स्थल को टारगेट किया गया।
‘शिव
प्रतिष्ठान’ और ‘हिंदू एकता मंच’ जैसे दक्षिणपंथी संघठनबीते कई दिनो से वढू नामक गाँव में गोविंद महाराज समाधी
मुक्ती मुहीम शुरु की हैं। वरीष्ठ पत्रकार राजा कांदलकर कहते हैं कि ‘शिव प्रतिष्ठान के संभाजी भिडे और हिंदू एकता के मिलिंद एकबोटे जैसे लोग
वढू गांव को मुस्लीमद्वेष की प्रयोगशाला बनाना चाह रहे हैं, औरंगजेब के आदेशो
द्वारा मराठा शासक संभाजी भोसले की हत्या को मराठा समाज को भडकाने के लिए यह लोग
इस्तेमाल कर रहे हैं, यहाँ दलित विरुद्ध मराठी समुदाय युद्ध लगाने की साजीश यह
दक्षिणपंथी संघठन रच रहे हैं, आयोध्या के बाद वढू बुदरक गाँव को हिंदुत्व की नई
प्रयोगशाला बनाने की यह साजीश हैं’ कोरेगांव भीमा हिंसा की वजह गोविंद गायकवाड का स्मारक हैं। जिसके इतिहास
को लेकर दक्षिणपंथी संघठन और इतिहासकारो में अक्सर तनातनी बनी रहती हैं। जिसे लेकर
आये दिन दक्षिणपंथी संघठन झुठी खबरे फैलाते हैं।
कुछ इतिहासकार यह भी मानते हैं की संभाजी महाराज की नृशंस हत्या औरंगजेब ने
नही बल्की पेशवाओ ने की थी, औरंगजेब ने तो सिर्फ आदेश दिया था, पर हत्या तो पेशवाओ
के कहने पर ही हुई थी। पर इस इतिहास को तोड-मरोडकर पेश करने से सामाजिक अवधारणा
बदल गई। मुस्लीम द्वेष पर आधारित इतिहास रचकर नफरत फैलाने का काम किया गया। उसी
तरह भीमा कोरेगाव में दलितो के विजयोत्सव को ब्रिटिशो के समर्थन का जश्न बताकर
दलित समुदाय को शक के घेरे में खडे करने की साजीश बीते कई दिनो से चल रही हैं। दलितो
को देशद्रोही बताकर समाज में अशाती फैलाने की साजीश रची जा रही हैं। जबकी महारों के लिए ये ब्रिटिशो की नहीं बल्कि अपनी अस्मिता
की लड़ाई थी।
मिलिंद एकबोटे पर हिंदू-मुस्लीम दंगे फैलाने का आरोप हैं, कई जगह उनपर केस भी
दर्ज हैं, वढू बुदरुक का विवाद के पिछे भी यही एकबोटे का नाम प्रमुखता से आ रहा
हैं। प्रकाश अम्बेडकर सिधे तौर पर मिलिंद
एकबोटे और संभाजी भिडे को कसूरवार मानते हैं। बीते कई दिनो से पश्चिमी महाराष्ट्र
में भिडे-एकबोटेका संघठन बढ रहा हैं। मिलिंद
एकबोटे पुणे महापालिका के पूर्व बीजेपी पार्षद हैं तो संभाजी भिडे संघ के पूर्व सदस्य
और स्वंयसेवक हैं। कहा जाता हैं कि भिडे-एकबोटे गूट सिधे तौर पर राष्ट्रीय
स्वंयसेवक संघ से जुडे हैं।
दंगो की साजीश
बीते तीन सालो से देश में बीजेपी का वर्चस्व बढ रहा हैं, सत्ता के समर्थन से
देश में असामाजिक तत्व बढ रहे हैं, जहाँ-वहाँ मुसलमानो के प्रति नफरत का माहौल
पैदा किया जा रहा हैं, अबतक सिर्फ मुस्लीम विरेध तक बीजेपी सिमित थी, पर अब बीजेपी
के सहयोगी संघठन दलित आदीवासी और ईसाई समुदाय पर हमले कर रही हैं। हर जगह नफरत का
माहौल तयार किया जा रहा हैं। उना, सहारणपूर के बाद अब भीमा कोरेगाव में दलितो को
निशाना बनाया गया हैं। छत्रपतिसंभाजी महाराज की आड में मराठा विरुद्ध दलित माहौल तयार
किया जा रहा हैं। बीते साल महाराष्ट्र में मराठा मोर्चा निकाला गया, उस समय भी मराठा
विरुद्ध दलित जंग लगाने का प्रयास कुछ छुपी ताकतो ने किया था।
भीमा कोरगांव में 200 साल पुरे होने के उपलक्ष्य में दलित बडी संख्या में
उपस्थित रहने वाले थे, यह बात सरकार को पता थी, उसी तरह उसका गलत फायदा उठाने वाले
संघठनो को भी यह बात पता थी। प्रकाश अम्बेडकर बार-बार कह रहे हैं की सरकार को कहने
के बाद भी सुरक्षा के इंतेजाम नही किये गये। इसके पिछे कुछ तो साजीश हैं। कई लोग
यह भी मानते हैं कि भीमा कोरेगाव की हिंसा सोची-समझी साजीश थी। कुछ दलित संघठन यह
भी आरोप करते हैं की सरकार ने जानबुझकर दंगाईयोको छुट दी। क्योंकि कुछ दिन पहले राज्य
के मुख्यमंत्री फडणवीस और खाद्य मंत्री गिरिश बापट को जान से मारने की धमीक सोशल
मीडिया पर दी गई थी। धमकी देनेवालो का आरोप था कि यह लोग दलितो के ह्मायती बनने की
कोशीश कर रहे हैं। एक जनवरी को हर कोई सोशल मीडिया पर चिख-चिखकर कह रहा हैं की इस
दंगे के लिए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस जिम्मेदार हैं। वरीष्ठ पत्रकार निखिल
वागले कहते हैं कि, ‘यह हिंसा
पूर्वनियोजित थी, सरकार को इसके सूत्र जल्दी ढुंढने चाहीए’
भीमा कोरेगाव के आस-पास भडकी हिंसा ने कई प्रश्न पिछे छोडे हैं, गांव मे कई
गाडीयाँ फुके गये, टू व्हिलर को नुकसान पहुँचाया गया, हर जगह काँच और का पत्थरो का
ढेर नजर आ रहे थे। इतने कम समय मैं इतनी बडी हिंसा आखीर कैसे हो गई? वढू जैसे छोटेसे कस्बे में इतने
सारे पत्थर अचानक कहाँ से आ गये? हिंसा कर दंगाई आखीर कहाँ
भाग गये? पुलिस दंगाई को क्यो रोक नही सकी? गांव वाले गाडीयाँ फुँकी जा रही तब चूप क्यो थे?
दंगाई कितने थे वह कहाँ से आये थे, इसके बारे में कोई नही जानता। पर हमलो का
प्रतिरोध करने वाले दलित युवको के बारे में सबको पता हैं, तीन दिनो में पुलिस ने
कई दलित लडको को पकडकर जेल में डालने की खबरे आई। राज्य के मुख्यमंत्री ने वादा
किया था की किसी का भी कोम्बिंग ऑपरेशन नही होंगा, फिर भी हजारो लोगो को गिरफ्तार
किया गया। अभी भी कई जगहो से धरपकड की खबरे आ रही हैं।
मीडिया को रोल
भीमा कोरेगाव की हिंसा के विरोध में 2 जनवरी को महाराष्ट्र बंद का एलान दलित संघठनो ने किया था। औरंगाबाद, कोल्हापूर, पुणे, मुंबई और राज्य कई जगह शांतीपूर्व विरोध प्रदर्शन हुए, पर कुछ जगह छिटपूट
हिंसा की खबरे आई पर बंद शांतीपूर्ण रहा। कुछ अपवाद छोडे तो दलित समूहोंने समूचे महाराष्ट्र शांती बनाये रखी। जगह-जगह दलित युवा निले रंग के झेंडे लिए रास्तो पर उतर कर
व्यावसायिक प्रतिष्ठान बंद रखने की अपील कर रहे थे। पुणे में दलितो के साथ कई
मुस्लीम संघठन भी हरे झंडो के साथ बंद मे शरीक थे। पुणे में कुछ शहर बसो पर पथराव
किया गया, जिसके बाद बसो को बंद कर दिया गया। यही हाल अन्य शहरो का भी रहा।
उस दिन स्थानिय मीडिया ने छिटपूट हिंसा की खबरे बार-बार दिखाकर दहशत का माहौल
पैदा किया। दलितो पर मीडिया अपना गुस्सा निकाल रही थी। नॅशनल मीडिया भी इसमे पिछे
नही था। मुंबई में बंद के वजह से लोकल रेल यातायात प्रभावित रही। कई जगह पर मेट्रो
भी प्रभावित होने की खबरे आई। मीडिया ने यही खबरे बार-बार दिखाकर माहौल में दहशत
भर दी। जिसके बाद गुस्साए दलित युवक ने तोडफोड शुरु की, मीडिया खबरो के बाद राज्य
के औरंगाबाद, नांदेड और कोल्हापूर में हिंसा भडक उठी। कोल्हापूर मे कई जगह आगजनी
और पथराव हुआ। कुछ जगहो पर सुरक्षा के चलते इंटनेट सेवा बाधित कर दी गई।
हिंसा भडकने के पिछे भिडे-एकबोटे ग्रूप्स जितने जिम्मेदार हैं उतना ही मीडिया; भीमा कोरेगाव हिंसा को मीडिया
ने दलित विरुद्ध हिंदू दंगल के नाम से प्रचारित किया हैं। कई प्रमुख न्यूज चॅनल
टॉप हेडर के साथ दलितो को दंगाई बता रही थी। प्रकाश अम्बेडकर ने तो सिदे तौर पर
मीडिया पर निशाना साधते हुये कहाँ की ‘मीडिया गाँव से आई
खबरे सही तरीके से चलाती तो हिंसा नही भडकती, पर मीडिया ने
न्यूज रुम की खबरे चला दी जिससे गुस्साए लोंग हिंसा करने पर आमादा हो गये’ वरीष्ठ पत्रकार निखिल वागले भी हिंसा भडकने के
पिछे मीडिया को जिम्मेदार मानते हैं। वागले तो यहाँ तक कह बैठे की ‘दंगाई कौन है यह मीडिया को खुदही पता चलेंगा जब वह पेशवाई को चोला उतार फेकेंगा’
हिंसा की साजीश रचने के आरोप में मिलिंद एकबोटे और संभाजी भिडे को हिरासत में
लेने की मांग की जा रही हैं. पर सरकारने इन्हे अरेस्ट करने के बजाए, दलित युवको का
कोम्बिंग ऑपरेशन कर रही हैं. जिससे दलित संघठन नाराज हैं. हिंसा के जाँच के लिए
राज्य सरकार ने एक सिटिंग जज के समिती का गठन किया हैं। इन जजो को सिविल और
क्रिमिनल पावर दोनो भी देने की माँग प्रकाश अम्बेडकर ने की हैं। जिससे हाईकोर्ट के
जज घटना की जाँच कर दोषी के खिलाफ तुरुंत कारवाई कर सकेंगे। भीमा कोरेगाव के हिंसा
को लेकर राजनिती भी तेज हो गई हैं। शरद पवार, राहुल गांधी और मायवती ने सरकार
को आडे हाथो लिया था। पर सही माने तो बीजेपी ने अपनी ही कबर भीमा कोरेगांव मे खोदी
हैं। दलित संघठन इस हिंसा के पिछे बीजेपी को सिधा जिम्मेदार मानता हैं। शनिवार
वाडा की ‘एल्गार
परिषद’ के स्पीचे सुने तो बीजेपी अपनी ही सांप्रदायिकता के
दलदल में कितनी धंस चुकी हैं यह नजर आयेंगा। उसके बाद भीमा कोरेगाव की हिंसा इस
बात का सबुत देती हैं की बीजेपी की नैय्या डुबने वाली हैं।

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अपनी बात

- कलीम अजीम
- कहने को बहुत हैं, इसलिए बेजुबान नही रह रह सकता. लिखता हूँ क्योंकि वह मेरे अस्तित्व का सवाल बना हैं. अपनी बात मैं खुद नही रखुंगा तो कौन रखेगा? मायग्रेशन और युवाओ के सवाल मुझे अंदर से कचोटते हैं, इसलिए उन्हें बेजुबान होने से रोकता हूँ. मुस्लिमों कि समस्या मेरे मुझे अपना आईना लगती हैं, जिसे मैं रोज टुकडे बनते देखता हूँ. Contact : kalimazim2@gmail.com