मखमली आवाज का जादू बिखेरनेवाली मुबारक बेगम आज हमारे बीच नही हैं। लंबे बिमारी के बाद बेगम मुंबई के जोगेश्वरी में म्हाडा के छोटे से मकान मे बिती रात (18 जुलाई, सोमवार) दुनिया से वह अलविदा कह गयी। 80 साला यह गझल गायिका पिछले चार महिने से बिमार चल रही थी। आर्थिक तंगी से झुझती यह अदाकारा अपनी बदहाल जिंदगी पर आंसू बहाती जिये जा रही थी।
मुबारक बेगम की मौत बेहद दर्दनाक रही। यह एक बॉलीवूड की रंगीन दुनिया के लिए सबक हैं। 1998 मे पुणे में महान चरित्र अदाकारा ललिता पवार दर्दनाक मृत्यु हुई थी। इज्जत शोहरत बटोरने के बाद भी यह अदाकारा अकेलेपन और मुफलिसी शिकार हुई। 31 मार्च, 1972 में मीना कुमारी भी इसी तरह दर्दनाक मौत का शिकार हुई थी। कहते हैं कि अपनी मौत के समय मीना कुमारी के पास ज़्यादा पैसे नहीं थे।
मिना कुमारी के बारे कहा जाता हैं कि परिवार ने भी इनका साथ नहीं दिया। मिनाजी के पास हॉस्पिटल का बील चुकाने के भी पैसे नही थे। 70 के दशक की मशहूर अदाकारा परवीन बॉबी का भी अंत बहुत दुखद था। माना जाता है कि परवीन बाबी की मौत बॉलीवुड सितारों में सबसे ज्यादा दर्दनाक थी। परवीन का मृत शरीर पूरे 72 घंटों तक घर में ही पड़ा था। पडोसीयोने बदबू के कारण नगर निगम को सुचीत किया। तब जाकर परवीन बॉबी के मौत का पता चला।
जुनागड के शाही परिवार से संबध रखने वाली परवीन बॉबी का अंत मुफलिसी मे हुआ। परवीन अजिबो-गरीब मर्ज की शिकार थी। लोगो पर जान से मारने का इलजाम वह लगाती रही। जिसमे अमिताभ और महेश भट्ट भी शामिल थे। उनके इस डर ने प्रेस कॉन्फेंस मे कई बार 'लोग मुझे जान से मारना चाहते हैं' इस तरह का इलजाम होता था।
मुबारक बेगम की बेटी की आर्थिक के कारण मृत्यू हुई थी। जिसका गहरा सदमा बेगम साहिबा को लगा। इस घटना के बाद मुबारक बेगम ने जैसे बिस्तर पकड लिया था। वह बहुत ज्यादा बिमार रहने लगी थी। उनके परिवार वालो को इलाज के पैसे भी जुटाना मुश्कील हो रहा था।
मुबारक पर्किंसन रोग से पीड़ित थी। जिसे इलाज के लिए हर महीने करीब 5 से 6 हज़ार रुपए खर्च आता था। मुबारक की एक बेटी जो विदेश मे है वह यह खर्च उठाती थी। उनके बेटे मंजूर हुसेन टैक्सी चलाकर जैसे-तैसे पैसा जोडते थे। उनके परिवारवालो ने चार महिने पहले महाराष्ट्र सरकार से आर्थिक मदत की गुहार भी लगाई थी।
राज्य सांस्कृतिक मंत्री ने एकबार अस्पताल बील भी भरा था। पर सरकार ने इस ज्यादा मदत नही की। मुबारक बेगम के बेटे मंजूर हुसेन के लिए अस्पताल का खर्चा उठाना मुश्कील होता जा रहा था। ऐसे मे उन्होने फिरसे सरकार से आर्थिक मदत की गुजारिश की। सरकार ने मदत देने का एलान किया। पर मंजुर हुसेन कहते हैं कि वह मदत अबतक हमे नही मिली।
मंजूर हुसेन के दामाद इजहार अहमद कहते हैं कि हमारे गुहार के बाद भी सरकार के तरफ से कोई भी हमसे नही मिला। बॉलीवूड की कोई बडी हस्ती या फिर कोई राजनेता हमसे नही मिला। उम्र के अंतिम पड़ाव पर उन्हें गम ही मिला। फिल्मी दुनिया को उन्होंने अपनी जिंदगी के बेशकीमती 40 साल दिए। पर उस बॉलीवुडने बेगम की जरा भी सुध नही ली।
मंजूर हुसेन के दामाद इजहार अहमद आगे कहते हैं कि बाद इसके कई गुमनाम नाम हमारी मदत के लिए आगे आए। अपने आप बँक खाते रुपया जमा हो जाता था। लोग अपना नाम भी नही बताते थे। पर बेगम के चाहने वालो जो बन सका वह मदत की जिसके हम एहसानमंद हैं।
बचपन से था संगीत से लगाव
राजस्थान के झुंझुनू जिले मे मुबारक बेगम का जन्म हुआ। छोटी सी उम्र मे मुबारक अपने परिवार के साथ अहमदाबाद आयी। मुबारक के पिता को संगीत से गहरा लगाव था। कुछ दिनों बाद याने 1946 में मुबारक परिवार के साथ मुंबई आयी।
एक दिन पिता ने अपनी बेटी के हुनर को भांप लिया। और मुबारक को संगीत की विधिवत तालीम देने की ठान ली। शुरु में ही किराना घराने के उस्ताद रियाजदुदीन खाँ और उस्ताद समद खाँ की शागिर्दी में शामिल कर दिया। देखते देखते मुबारक ट्रेन हो गई।
इसी बीच मुबारक ने ऑल इंडिया रेडियो पर ऑडिशन दिये। वो रेडिओ के लिए सिलेक्ट हो गयी। देखते देखते मुबारक बेगम घर-घर में पहचानी जानी लगीं। उनकी आवाज के लोग कायल हुये।
बेगम को फिल्मी गानो रे लिए पहला ब्रेक मिला 1961 में फिल्म 'हमारी याद आएगी' के लिए। इस फिल्म सदाबहार गाना आज भी लोगो के जुबान पर हैं। वह गाना था 'कभी तन्हाइयों में हमारी याद आएगी'। इसके बाद बेगम साहिबा ने कई गाने बॉलीवुड को दिए। नतीजन यहीं से उनके लिए बॉलीवुड के दरवाजे खुले। और उसके बाद दो दशक तक बतौर प्लेबैक सिंगर मुबारक बेगम ने बॉलीवुड में छाई रहीं। मुबारक
बेगम को 1950 से 1970 के दौरान हिंदी सिनेमा जगत में शानदार योगदान के लिए याद किया जाता है।
मुबारक बेगम बड़े-बड़े म्यूजिक डायरेक्टरों के साथ काम किया हैं। मुहंमद रफी के साथ भी बेगम साहिबा काम कर चुकी हैं। मुबारक बेगम ने कई दिल में बसने वाले बेहद खूबसूरत गीत दिए हैं। कभी तन्हाइयों में हमारी याद आएगी.. मुझको अपने गले लगा लो.. ऐ दिल बता.. ऐजी-ऐजी याद रखना, जब इश्क कही हो जाता हैं... शामिल हैं।
मुबारक बेगम आज हमारे बीच नही हैं। बॉलीवुड की दर्दनाक मौतो मे मुबारक बेगम भी लिस्टेट हो चुकी हैं। गुरुदत्त, मीना कुमारी, ललिता पवार, परवीन बॉबी, दिव्या भारती, जिया खान के साथ मुबारक बेगम भी एक दर्दभरा इतिहास बन अखबारो के सिंगल कॉलम मे समा गयी। मगर पर उनकी आवाज हमारे दिलो-दिमाग को हमेशा ताजा कर जायेगी।
कलीम अजीम, मुंबई
(लेखक मुंबई स्थित महाराष्ट्र१ नामक मराठी न्यूज चैनल मे प्रोड्युसर हैं।)
वाचनीय
ट्रेडिंग$type=blogging$m=0$cate=0$sn=0$rm=0$c=4$va=0
-
जर्मनीच्या अॅडाल्फ हिटलरच्या मृत्युनंतर जगभरात फॅसिस्ट प्रवृत्ती मोठया प्रमाणात फोफावल्या. ठिकठिकाणी या शक्तींनी लोकशाही व्यवस्थेला हादरे द...
-
“जो तीराव फुले और सावित्रीमाई फुले के साथ काम फातिमा कर चुकी हैं। जब जोतीराव को पत्नी सावित्री के साथ उनके पिताजी ने घर से निकाला तब फातिमा ...
-
उस्मानाबाद येथे ९३वे अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलन पार पडत आहे. या संमेलनाचे अध्यक्ष फादर फ्रान्सिस दिब्रिटो आहेत. तर उद्घाटन म्हणून रान...
-
अ खेर ४० वर्षानंतर इराणमधील फुटबॉल स्टेडिअमवरील महिला प्रवेशबंदी उठवली गेली. इराणी महिलांनी खेळ मैदानात प्रवेश करून इतिहास रचला. विविध वे...
-
मध्यपूर्वेतील इस्लामिक राष्ट्रात गेल्या 10 वर्षांपासून लोकशाही राज्यासाठी सत्तासंघर्ष सुरू आहे. सत्तापालट व पुन्हा हुकूमशहाकडून सत्...
-
फिल्मी लेखन की दुनिया में साहिर लुधियानवी और सलीम-जावेद के उभरने के पहले कथाकार, संवाद-लेखक और गीतकारों को आमतौर पर मुंशीजी के नाम से संबोधि...
-
इ थियोपियाचे पंतप्रधान अबी अहमद यांना शांततेसाठी ‘नोबेल सन्मान’ जाहीर झाला आहे. शेजारी राष्ट्र इरिट्रियासोबत शत्रुत्व संपवून मैत्रीपर्व सुरू...
/fa-clock-o/ रिसेंट$type=list
चर्चित
RANDOM$type=blogging$m=0$cate=0$sn=0$rm=0$c=4$va=0
/fa-fire/ पॉप्युलर$type=one
-
को णत्याही देशाच्या इतिहासलेखनास प्रत्यक्षाप्रत्यक्ष रीतीने उपयोगी पडणाऱ्या साधनांना इतिहाससाधने म्हणतात. या साधनांचे वर्गीकर...
-
“जो तीराव फुले और सावित्रीमाई फुले के साथ काम फातिमा कर चुकी हैं। जब जोतीराव को पत्नी सावित्री के साथ उनके पिताजी ने घर से निकाला तब फातिमा ...
-
इ थे माणूस नाही तर जात जन्माला येत असते . इथे जातीत जन्माला आलेला माणूस जातीतच जगत असतो . तो आपल्या जातीचीच बंधने पाळत...
-
2018 साली ‘ युनिसेफ ’ व ‘ चरखा ’ संस्थेने बाल संगोपन या विषयावर रिपोर्ताजसाठी अभ्यासवृत्ती जाहीर केली होती. या योजनेत त्यांनी माझ...
-
फा तिमा इतिहास को वह पात्र हैं, जो जोतीराव फुले के सत्यशोधक आंदोलन से जुड़ा हैं। कहा जाता हैं की, फातिमा शेख सावित्रीमाई फुले की सहयोगी थी।...
अपनी बात
- कलीम अजीम
- कहने को बहुत हैं, इसलिए बेजुबान नही रह रह सकता. लिखता हूँ क्योंकि वह मेरे अस्तित्व का सवाल बना हैं. अपनी बात मैं खुद नही रखुंगा तो कौन रखेगा? मायग्रेशन और युवाओ के सवाल मुझे अंदर से कचोटते हैं, इसलिए उन्हें बेजुबान होने से रोकता हूँ. मुस्लिमों कि समस्या मेरे मुझे अपना आईना लगती हैं, जिसे मैं रोज टुकडे बनते देखता हूँ. Contact : kalimazim2@gmail.com