मुंबई
के बाद पिछले तीन-चार दींन से बलात्कारोकी घटना की बाढ सी आ गयी है. हर कोई
उठकर इन बलात्कारीयोको गाली देनेमे लगा है. जो गाली देगा या भला-बुरा कहेंगा उसे
शाबासी दी जा रही है. इसलीए बद किरदार भी अच्छा किरदार और विचारोको दिमाग
में लाने की बात कर रहा है. इसलीए लोग एक ही सुर में बात कर रहे है. पर इस तरह के अपराध क्यों हो रहे है, इस बारे में
कोई बात नहीं कर रहा है. हर बार पुरुषो के सर पर ही इसका दोष मढा जा रहा है. हो
सकता हम यहाँ पुरुष को ही दोषी मानेगे. पर सामाजिक व्यवस्था पर किसीने विचार किया है.
इस
बाजारवाद में पुरुष पर क्या गुजरती है किसीने सोंचा है. रोजाना सुबह से शाम जहा भी जाओ हर तरफ सेक्स को बढावा देने वाली चीजे दिखती है. अखबार उठाओ नग्न मॉडल
रेजर, टायर, बिकाती नजर आयेगी.
टिव्ही ऑंन किया तो सीरियलों में एक्स्ट्रा मैरिज अफेयर, नायक-
नायिका का रोमांस, टीनएज बच्चो का विरुध्द लिंगी व्यक्तीओका
आकर्षण, बैनर, पोस्टर, फ़ुठपाथ हर जगह अश्लीलता परोसी जा रही है. इन सब में एक मासूम आदमी, चाहे महिला हो या पुरुष कितना सह
सकता है.
अब, सवाल यह उठता है की, पुरुषों पर क्या बलात्कार नहीं होते. ऐसी भी खबरे आये दींन अखबार में पढने को मिलती है.
बड़ी उम्र की महिला द्वारा कम उम्रवाले लडको प्रताडित किया जाता है. यह विकृती
नहीं तो क्या है. एक तरफ "जिगोलो" की भी
तादाद बढ़ रही है. क्या यह चिंताजनक नहीं है. किस विकृती में हम जी रहे है. छोटे
बच्चो का लैगिंक शोषण, यह विकृती नहीं तो क्या है. इस विकृती की भी हमें चर्चा करनी चाहिए. दोनों तरफ विकृती है. पर एकही पर चर्चा होती है. इन जैसी घटनाओकी वजह हमें तलाशनी होंगी. इस
बारे में कोई बात ही नहीं कर रहा है. इस बात की चिकित्सा करने की हमें आवश्यकता है.
कलिम अजीम

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अपनी बात

- कलीम अजीम
- कहने को बहुत हैं, इसलिए बेजुबान नही रह रह सकता. लिखता हूँ क्योंकि वह मेरे अस्तित्व का सवाल बना हैं. अपनी बात मैं खुद नही रखुंगा तो कौन रखेगा? मायग्रेशन और युवाओ के सवाल मुझे अंदर से कचोटते हैं, इसलिए उन्हें बेजुबान होने से रोकता हूँ. मुस्लिमों कि समस्या मेरे मुझे अपना आईना लगती हैं, जिसे मैं रोज टुकडे बनते देखता हूँ. Contact : kalimazim2@gmail.com