"हाँ हमे भी चाहिए सेक्स एज्यूकेशन" मै भी सुनना चाहती तुम्हारी
बातें...! , कहते हुए 15 साल की जया
हमारी वैचारिक बैठक मे शामिल हो गयी, पहले तो हम चौंक गए
क्योंकि, हम "सेक्स एज्यूकेशन" पाठशाला मे सिखाया
जाना उचीत है, या नही इस विषय पर चर्चा कर रहे थे. पहले तो
हमारी चर्चा मे उस अबोध बालिका का शामिल होना मुझे भी खटका, और
वहा से उसे चले जाने को कहा, पर वह नही मानी. फ़िर मुझे भी न
चाहते हुए उसे इजाजत देनी पडी.
हम पिछले साल आठ से अठाराह फ़रवरी डॉ. बाबासाहब आंबेडकर मराठवाडा
विश्वविद्यालय, औरंगाबाद, स्वामी रामानंद तिर्थ विश्वविद्यालय, नांदेड और पुणे
विश्वविद्यालय, पुणे के 30 सदस्यीय दल
के हम सब N.S.S. के अँडवेंचर कॅम्प मनाली (हिमाचल प्रदेश)
मे भारी बर्फ़बारी थमने का इंतजार कर रहे थे, बैठे-बैठे
हमारे साथी मित्र विजय ने सेक्स एज्यूकेशन का मुद्दा छेडा और उसपर चर्चा करने लगे,
चर्चा मे बडी गहमा-गहमी थी. हर एक का सूर न के बराबर था. जया जो
नौवी कक्षा की छात्रा पिछले एक हफ़्ते से हमारे साथ स्कीईंग सीख रही थी, उन दिनो हमारी उसके साथ अच्छी पहचान हो गयी थी. उसका चर्चा मे शामिल होना
मुझे भी अखर रहा था. जो उसने एक झटके मे एहसास दिलाया क्यो हम इनके सामने यह चर्चा
नही कर सकते. उस संवाद के साथ वह बोलती चली गयी....
"हमे क्यो कोई नही बताता
सेक्स क्या है.... मेरी एक सहेली को बॉयफ़्रेंड था. वह उसकी बहुत केअर (चिंता)
करता था, यह देख मुझे लगता था की, मेरी
भी केअर करने कोई हो, हमेशा फ़्रेंड उसके बारे मे बाते करती
थी, तभी स्कुल के एक सहपाठी ने मुझे प्रपोज किया, मैने शुरु मे न नुकर के बाद उसे हाँ कहा, जो पहले से
मेरे मन मे था. मै माँ की बहुत लाडली थी. हर बात मै माँ को बताती थी, पर यह बात नही बतायी. उसके बाद हम काफ़ी दिन तक रिलेशन मे रहे. एक दिन
मुझे उसने स्कुल मे "उस टाईप का ट्च" किया. पहले तो मुझे समझ नही
आया, यह क्या हो रहा है. मुझे वह "टच" अच्छा लगा.
बाद मे मुझे पता चला उस के बाद, अब बहुत कुछ होंगा.... यह बात मेरी उसी सहेली ने मुझे बतायी. जो मुझे बडा
सदमा दे गयी. उस बात को मै किसी बता न सकी इसलिए मैं फ़्रस्ट्रेशन शिकार हो गयी, माँ को भी यह बात बता न सकी, जिस दिन माँ को यह बात
पता चली. उसने मुझे वह सब बाते बता दी. पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी, जब यह बात मैने मेरे उस सहपाठी मित्र को बतायी, उसने
कहा मुझे यह सब कैसे पता होगा. बस "उस टच" के बारे मे पता था.
उसी फ़्रस्ट्रेशन को मिटाने मुझे माँ ने यहा भेजा है. "उस
टच" के आगे भी बहोत कुछ होता है, यह मुझे किसीने नही बताया, जो की हम टीनएज के जरुरी
काफ़ी जरुरी है..यह सब सुनने के बाद हम सब सुन्न रह गये. मुझे उसको टोकने की बात
का बुरा लग रहा था.
(लडकी क नाम काल्पनिक है, पर घटना सत्य है.)
हमे अपने छोटो को सेक्स ऎज्युकेशन देना जरुरी है. इस बात
का ध्यान रहे, की हम किस वाणी मे
बात कर रहे है.
कलीम अजीम, औरंगाबाद

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अपनी बात

- कलीम अजीम
- कहने को बहुत हैं, इसलिए बेजुबान नही रह रह सकता. लिखता हूँ क्योंकि वह मेरे अस्तित्व का सवाल बना हैं. अपनी बात मैं खुद नही रखुंगा तो कौन रखेगा? मायग्रेशन और युवाओ के सवाल मुझे अंदर से कचोटते हैं, इसलिए उन्हें बेजुबान होने से रोकता हूँ. मुस्लिमों कि समस्या मेरे मुझे अपना आईना लगती हैं, जिसे मैं रोज टुकडे बनते देखता हूँ. Contact : kalimazim2@gmail.com