पिछले साल औरंगाबाद स्थित डा. बाबासाहब आंबेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय मे जनसंचार एवं पत्रकारिता की पढाई पुरी करने के बाद पुणे शहर के एफ़.टी.आई. मे स्क्रिनप्ले राईटिंग का एग्जाम दीया उस समय सोंचा था. अब पत्रकारिता नही करनी कुछ और किया जाए, पर अफ़सोस कुछ कारणवष मेरा एफ़.टी.आय. मे प्रवेश नही हो पाया. युंही जाते जाते एफ़.सी. रोड स्थित रानडे इंन्स्टिट्यूट मे पत्रकारिता कोर्स की जानकारी ली. और संयोगवश यहा पहूंचा.
देखते-देखते यहा साल किस तरह बीत गया यह समझ नही आया. आनेवाले ३ मई को हमारी परिक्षाए खत्म हो जायेगी, और हम दुबारा जुलाई को लौटेंगे, पर यहा सालभर कुछ- अच्छे बुरे पल बिताये है, दिल्ली हो या मुंबई का दौरा उम्रभर याद रहेगा. रानडे के गेट पर कदम रखने से पहले मुझे पता नही था, मुझे आगे करना क्या है. बस दिन बितते गये और मुझे एक राह मिली. और अब उस राह पर चलने के लिये जीये जा रहा हु.
इन दिनो मुझमे एक नई भूमिका का जन्म हुआ, और इसका विकास मैने किया. पुणे विश्वविद्यालय के इस विभाग मै मैने क्लासरुम मे जितना कुछ सिखा उससे कई ज्यादा बाहर सिखा. यहा हम लोगो मे एक अजीब सा जुडाव पैदा हुआ. केंटीन की गप लडाते लडाते हम एक दुसरे के काफ़ी करिब आ गये.
यहा मुझे बहुत से नये दोस्त मिले उनमे मानवधिकारो का हमेशा संदर्भ देते सुनिल दुधे, अपनी तिखे शब्दोसे और मृदुमयी कविताओसे हमेशा व्यवस्था पर प्रहार करते कुणाल गायकवाड, हमेशा नई संकल्पना पेश करते सागर नरेकर, मशहुर मराठी गजलकार सुरेश भट के उत्तराधिकारी और गजलप्रेमी संकेत सबनीस, तीन शार्ट फ़िल्मो के निर्माता और एक उम्दा कलाकार अक्षय लटपटे, और कुछ फ़िल्मी हस्तीया जैसे शाळा मराठी फ़िल्म मे काम करने वाले अमोल गोखले, नाटिका और फ़िल्म अदाकारा अमृता देशमुख, मशहुर नर्तिका और नाटिका अभिनेत्री नेहा भोसले,मराठी लोकसंगीत मे पकड रखने वाले दीपक कुलाल, पार्थसारथी ब्लाग के निर्माता क्रुष्णा वर्पे, सुंबरान के और बंक के संस्थापक प्रथमेश पाटील, तथा बंक की संपादिका नम्रता देविकर, पत्रकारिता का तगडा अनुभव रखने वाले अशोक अबुज, इन सब का साथ पुरे वर्षभर रहा.
इस जाने-माने पत्रकारिता विभाग मे मुझे शिक्षा का अवसर प्राप्त हुआ, इसलिए मै विश्वविद्यालय का आभारी हु. अलविदा दोस्तो मिलने की तमन्ना लिये रुखसती चाहता हुं.
कलीम अजीम
पिछले साल औरंगाबाद स्थित डा. बाबासाहब आंबेडकर मराठवाडा विश्वविद्यालय मे जनसंचार एवं पत्रकारिता की पढाई पुरी करने के बाद पुणे शहर के एफ़.टी.आई. मे स्क्रिनप्ले राईटिंग का एग्जाम दीया उस समय सोंचा था. अब पत्रकारिता नही करनी कुछ और किया जाए, पर अफ़सोस कुछ कारणवष मेरा एफ़.टी.आय. मे प्रवेश नही हो पाया. युंही जाते जाते एफ़.सी. रोड स्थित रानडे इंन्स्टिट्यूट मे पत्रकारिता कोर्स की जानकारी ली. और संयोगवश यहा पहूंचा.
देखते-देखते यहा साल किस तरह बीत गया यह समझ नही आया. आनेवाले ३ मई को हमारी परिक्षाए खत्म हो जायेगी, और हम दुबारा जुलाई को लौटेंगे, पर यहा सालभर कुछ- अच्छे बुरे पल बिताये है, दिल्ली हो या मुंबई का दौरा उम्रभर याद रहेगा. रानडे के गेट पर कदम रखने से पहले मुझे पता नही था, मुझे आगे करना क्या है. बस दिन बितते गये और मुझे एक राह मिली. और अब उस राह पर चलने के लिये जीये जा रहा हु.
इन दिनो मुझमे एक नई भूमिका का जन्म हुआ, और इसका विकास मैने किया. पुणे विश्वविद्यालय के इस विभाग मै मैने क्लासरुम मे जितना कुछ सिखा उससे कई ज्यादा बाहर सिखा. यहा हम लोगो मे एक अजीब सा जुडाव पैदा हुआ. केंटीन की गप लडाते लडाते हम एक दुसरे के काफ़ी करिब आ गये.
यहा मुझे बहुत से नये दोस्त मिले उनमे मानवधिकारो का हमेशा संदर्भ देते सुनिल दुधे, अपनी तिखे शब्दोसे और मृदुमयी कविताओसे हमेशा व्यवस्था पर प्रहार करते कुणाल गायकवाड, हमेशा नई संकल्पना पेश करते सागर नरेकर, मशहुर मराठी गजलकार सुरेश भट के उत्तराधिकारी और गजलप्रेमी संकेत सबनीस, तीन शार्ट फ़िल्मो के निर्माता और एक उम्दा कलाकार अक्षय लटपटे, और कुछ फ़िल्मी हस्तीया जैसे शाळा मराठी फ़िल्म मे काम करने वाले अमोल गोखले, नाटिका और फ़िल्म अदाकारा अमृता देशमुख, मशहुर नर्तिका और नाटिका अभिनेत्री नेहा भोसले,मराठी लोकसंगीत मे पकड रखने वाले दीपक कुलाल, पार्थसारथी ब्लाग के निर्माता क्रुष्णा वर्पे, सुंबरान के और बंक के संस्थापक प्रथमेश पाटील, तथा बंक की संपादिका नम्रता देविकर, पत्रकारिता का तगडा अनुभव रखने वाले अशोक अबुज, इन सब का साथ पुरे वर्षभर रहा.
इस जाने-माने पत्रकारिता विभाग मे मुझे शिक्षा का अवसर प्राप्त हुआ, इसलिए मै विश्वविद्यालय का आभारी हु. अलविदा दोस्तो मिलने की तमन्ना लिये रुखसती चाहता हुं.
कलीम अजीम

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अपनी बात

- कलीम अजीम
- कहने को बहुत हैं, इसलिए बेजुबान नही रह रह सकता. लिखता हूँ क्योंकि वह मेरे अस्तित्व का सवाल बना हैं. अपनी बात मैं खुद नही रखुंगा तो कौन रखेगा? मायग्रेशन और युवाओ के सवाल मुझे अंदर से कचोटते हैं, इसलिए उन्हें बेजुबान होने से रोकता हूँ. मुस्लिमों कि समस्या मेरे मुझे अपना आईना लगती हैं, जिसे मैं रोज टुकडे बनते देखता हूँ. Contact : kalimazim2@gmail.com