कोई व्यवस्था है, बचा हुआ पानी सहेजने की .....?



एक दिसंबर को पुणे से औरंगाबाद जाने वाली बस मे सवार हुआ. बस मे ज्यादा भीड नही थी इसलिए विन्डो सीट आसानी से मिल गयी, एक महिने बाद औरंगाबाद जा रहा था मन विचार शलाकाके पथ पर सवार था. मराठवाडा मे आकाल के समाचार आये दिन समाचापत्रो मे पढने को मील रहे थे. मराठवाडा परिक्षेत्र मे कम वर्षा होने के कारण  नवंबर मे ही  पीने के पानी के लिये समस्त मराठवाडा  झुज रहा था. अभी यह हाल है तो पुरे पाँच-छह महिने कैसे बितेंगे यह चिंता मेरे साथ तमाम मराठवाडावासी को खाये जा रही थी.
इधर पुणे मे मराठवाडा से स्थिती कई बेहतर थी. यहा के सिंचन तालाब लबालब भरे थे. बस मे बैठा मै सोंच रहा था, उपरवाले से बेहतरी की प्रार्थना कर रहा था. उधर सरकार जायकवाडी को  "मोसी और भंडारदरा" सिंचन तालाब से पानी छोडने पर बहुत वाद विवाद के बाद राजी हो गयी थी . सरकारी आदेशनुसार पूरे नऊ T.M.C. पानी छोडे जाना था, 28-29 नवंबर को पानी छोडा भी गया था. पुरे चार पाँच दिन मे जायकवाडी तक कितना पानी पहुंचा यह सब जानते है. सरकार इसके बाद एक बुंद भी नही देनेवाली थी. आधे से ज्यादा पानी तो रास्ता ही खा गया. चार दिसंबर तक साढे चार क्युसेक पानी जायकवाडी मे पहुंच चुका था, पिछले साल इसी महिने मे 56 क्युसेक पानी था. (सकाल 3 दिसंबर) अब साढे चार क्युसेक मे पाँच महिने कैसे कटेंगे....!
बस के साथ मेरी चिंताओका दोर भी चल पडा बस सभी सिग्नल पार करके  पुणे से बाहर  निकल पडी, शिरुर से एक सहप्रवासी मेरे बगलवाली सीट पर आ बैठा, पुछने पर पता चला की वह औरंगाबाद जा रहा है. वहा किसी प्रतिष्ठीत शराब कंपनी मे काम करता हु ऎसा उसने बताया. कोतुहलवश मैने उससे पुछा,
"आपके कंपनी मे पानी कहा से आता है....!"
उसने कहा....
 "जायकवाडी से.....!"
मैने कहा कितना....
"हजारो लिटर आता होगा मै आंकडा नही बता सकता....!"
इसका मतलब सरकार अभी भी उद्यमीओको पानी मुहैया करा रही है. एक तरफ़ नवंबर मे सामान्य जनता पिने के पानी के लिये झुज रही है और दुसरी तरफ़ सरकार हजारो लिटर पानी इन शराबीयोको दे रही है. यहा न जाने कितना  लिटर पानी अकारण ही बर्बाद किया जाता है.  पूरा नऊ T.M.C पानी पिने के लिए ईस्तेमाल होगा इस आश्वासन के साथ पानी जायकवाडी को मील रहा था.  इसमे  से आधा पानी  सरकार शराब के रूप मे  जनता मे वितरीत करने वाली है. मतलब सरकार या स्थानीय प्रशासन  वादे की पक्की है, ईधर पीने को पानी मिले न मिले पर शराब को जरुर मिलेगा.
औरंगाबाद आते ही यहा के विदारक स्थिती से सामना हुआ  शहर का हर्सूल तालाब पिछले तीन महिने से सुखा पडा है, इस वजह से शहर का सारा भार  जायकवाडी पर ही  पडा है. इस अतिरीक्त बोझ से जायकवाडी का जलस्तर तेजी से घट रहा है. स्थानीय प्रशासन अब शहर मे दो दिन के अलावा चार दिन बाद पानी छोड रही है. पर ऒद्योगिक परिसर अभी भी पानी से लबालब है. उद्यमी रोजाना आधे शहर का पानी गटक जाते है.
हजारो लिटर पानी रोजाना खत्म हुए जा रहा है, बोतलबंद पानी धड्ल्ले से बीक रहा था. इसीके साथ पानी के लिकेजस, पानी का अपव्यय, पानी का गलत इस्तेमाल पर प्रशासन की और से कोई ठोस कदम नही उठाये गये है.
यही हाल केवल औरंगाबाद शहर का नही, समस्त मराठवाडा का है, बीड, उस्मानाबाद, हमेशा से ही आकाल सा सामना करते आ रहे है.  इस बार अत्यंत विदारक अवस्था यहा की है.  सरकार के तरफ़ से  बचा हुआ पानी सहेजने की कोई व्यवस्था नही है.
बोतलबंद पानी की कंपनीया, शराब कंपनीयो तथा उद्यमीओ पर सरकार दोनो हाथ से लुटा रही है. इसके अलावा शहर मे निजी टँकर्स द्वारा लाखो लिटर पानी रोजाना  खरिदा बेचा जा रहा है. और प्रशासन आँखे मुंदे सो रहा है, A.C. कँबीन मे बैठे प्रशासन बोतलबंद पानी पीकर जनता मे बोतले वितरीत कर रही है. इस से यह अनुमान लगाया जा सकता है की, भविष्य मे बोतलो के पानी पर ही निर्भर रहो, ऎसा स्पष्ट संकेत प्रशासकिय व्यवस्था दे रही है....!
                                                                            
कलिम अजीम
पुणे 
अगले लेख मे बोतलबंद पानी की विदारक कहानी, इसे जरुर पढे

वाचनीय

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कोई व्यवस्था है, बचा हुआ पानी सहेजने की .....?
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