
खटमलो को जिन्दा
जलाया गया
घुसपैठिये की
तरह हमें खदेड़कर निकाला गया, हमारा सारा परिवार सगे सम्बधी यो को
ढूंड-ढूंड कर मारा गया, हमारी बिरादरी पर यह कैसा भयानक संकट
आया है. हमें बचाने वाला कोई नहीं, हमारी बस्तियोको आग लगा
दी गयी, हम पर रसायन का प्रयोग किया गया. पहले तो हम भुखमरी
मर रहे थे फिर अचानक हम पर यह संकट आखिर क्या बिगाड़ा है हमने किसीका. यह संवाद ! प्रवासी खटमल
का दो प्रवासी खटमल से था. अपनी व्यथा दुसरे खटमल को सुना रहा था. दोनों संयोगवश
एक ही बस में सफ़र कर रहे थे. सहप्रवासी होने के नाते उनमे संवाद तो होना ही था,
भला वह चुप कैसे बैठ सकते थे. दुसरे खटमल ने पहले वाले को सांत्वना
दी और चुप करवाया. और पुछा यह अनर्थ कैसे हुआ और तुम यहाँ कैसे पहुँचे. पहले वाले
ने अपने अपने आंसू पोछते हुए कहा ...!
पिछले छह -
सात पीढ़ीयोसे "पुणे विश्वविद्यालय" में रह रहे है. सदिया गुजर गयी. हम
पर उपरवाले की कृपा द्र्ष्टी रही है. अभीतक इन लोगोने हम आक्रमण नहीं किया.
"हमारे बुजुर्ग कहा करते थे, हम पहले छुप छुप के कई साल रहे, पर नई पीढ़ी को यह लुका छुपी पसंद नहीं थी, वह बहार
निकलना चाहते थे, मुक्त संचार करना चाहते थे . . हम कहा करते
थे . यह ठीक नहीं है. एक दिन तुम्हारे वजह से, हम सब मारे
जायेंगे " हमारे उन्ही कर्मो का यह नतीजा है, जो आज
हमारा हत्याकांड हुआ है. "विश्वविद्यालय" में हम मस्त मोला थे, कही भी घूमते थे कही भी रहते थे. किताबे हमारी प्रिय जगह थी. उसी तरह
बिछोना भी, क्योंकि यहाँ धुलने का डर न था. उसी तरह टेबल
कुर्सी पलंग मे हम मुक्त निवास करते थे.
"विश्वविद्यालय
"ही हमारी दुनिया थी. कभी कभी घर लोटने में देर होती तो तो निचे कूड़े में
इमरजंसी निवास करना पड़ता था. सुरक्षा के कारण हमें बाद बाद में निवास बदलना और पड़ा
हम छत शिफ्ट हुए, यह जगह बहुत सेफ थी. दुश्मनों की पहुँच
यहाँ तक न थी, रात बारह बजे हम निचे आते.
तरह तरह के व्यंजनों का लुफ्त उठाते और 4 बजे लोट जाते.
गन्दगी हमारा साम्राज्य था. तैलिया, जूते, कपडे का ढेर लगा रहता, कभी देर हो जाती तो हम वहा पहुंचते,
और इन हॉस्टल वासी को धन्यवाद देते.
हमारे चर्चे
स्थानीय अखबारों में होने लगे थे. हमारी यह कामयाबी पर हमें बड़ी प्रसन्नता होती
थी. और गर्व भी होता था. पर उस दीं के बाद तीन चार कोई भी सोने नहीं आया, सभी
बहार सोने लगे थे, भूख से हमारा बेहाल था, हमारे बच्चे भूख से रोते बिलखते उन पर हमें तरस आता. कड़ी धुप के बाद जिस
तरह किसान बारिश का इन्तजार करता है. उसी तरह हम खून का इन्तजार कर रहे थे. जाने
कहा से इनको सद् बुद्धी सुझी, इस पर हमने बहुत चर्चाये की,
दोषारोप में चर्चा ख़त्म हुई पर संकट टला नहीं था. हमारे सामने बिरादरी
नष्ट हो रही थी. हम कुछ नहीं कर सकते थे. भूख से हम मर रहे थे, हम लाल से पीले हो रहे थे. खून की तलाश में हम निचे पुराने घरो में आये.
बैग बिस्तर किताबो में छुपे बैठे थे. पर खूनका एक बूंद भी नहीं मिल रहा था .
तेजी से
हमारी संख्या घट रही थी ... और एक दिन नया संकट हम पर बरसा, हमें
हमारे निवासो के साथ बहार कड़ी धुप में रखा गया. बैग, किताबे
बिस्तर के साथ हम धुप में जल रहे थे. हमें आग के हवाले किया गया. हम पर पानी का
प्रयोग किया गया. हमारे साथी मर गए, उपरवाले की कृपा दृष्टी
मुझ पर हुई, और मई बच गया. इक सुथरे बैग में मै छुप गया. उस
बैग में मैंने बहुत यातनाये झेली, कभी दबा चिमटा, कभी धक्के खाए, भूख मरी से स्लिम हो गया था. उसका
फायदा यहाँ हुआ, मुझे कोई चोट नहीं आई. हा दर्द बहुत हुआ.
उसी बैग से मै बोल रहा हु. " यह है मेरी कहानी ,तन्हाई
की जुबानी "
अच्छा दोस्त
तुम बताओ यहाँ कैसे. " मै तो खाना बदोश हु, आज यहाँ कल वहा मई बस
घूमता रहता हु. बड़ा मजा आता है अलग अलग जगह का खून पिने मे. पर दोस्त तुम घबराना
नहीं अब मै तुम्हारे साथ हु. हम मिल कर नयी दुनिया बसायेंगे. और जो गलतिया तुमे कि
हम वह नही दोहरायेगे.
कलीम अजीम
पुणे
विश्वविद्यालय
17 Oct 2012

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- कलीम अजीम
- कहने को बहुत हैं, इसलिए बेजुबान नही रह रह सकता. लिखता हूँ क्योंकि वह मेरे अस्तित्व का सवाल बना हैं. अपनी बात मैं खुद नही रखुंगा तो कौन रखेगा? मायग्रेशन और युवाओ के सवाल मुझे अंदर से कचोटते हैं, इसलिए उन्हें बेजुबान होने से रोकता हूँ. मुस्लिमों कि समस्या मेरे मुझे अपना आईना लगती हैं, जिसे मैं रोज टुकडे बनते देखता हूँ. Contact : kalimazim2@gmail.com